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स्वनविज्ञान

सूची स्वनविज्ञान

स्वानिकी या स्वनविज्ञान (Phonetics), भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत मानव द्वारा बोली जाने वाली ध्वनियों का अध्ययन किया जाता है। यह बोली जाने वाली ध्वनियों के भौतिक गुण, उनके शारीरिक उत्पादन, श्रवण ग्रहण और तंत्रिका-शारीरिक बोध की प्रक्रियाओं से संबंधित है। .

13 संबंधों: पाणिनि, भारत, भाषाविज्ञान, यूनान, सहस्वानिकी, संस्कृत भाषा, स्वनिमविज्ञान, व्याकरण, व्यंजन, आघात (स्वनविज्ञान), अष्टाध्यायी, उच्चारण, उच्चारण स्थान

पाणिनि

पाणिनि (५०० ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, ख़ान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भाषाविज्ञान

भाषाविज्ञान भाषा के अध्ययन की वह शाखा है जिसमें भाषा की उत्पत्ति, स्वरूप, विकास आदि का वैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है। भाषा विज्ञान के अध्ययेता 'भाषाविज्ञानी' कहलाते हैं। भाषाविज्ञान, व्याकरण से भिन्न है। व्याकरण में किसी भाषा का कार्यात्मक अध्ययन (functional description) किया जाता है जबकि भाषाविज्ञानी इसके आगे जाकर भाषा का अत्यन्त व्यापक अध्ययन करता है। अध्ययन के अनेक विषयों में से आजकल भाषा-विज्ञान को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। .

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यूनान

यूनान यूरोप महाद्वीप में स्थित देश है। यहां के लोगों को यूनानी अथवा यवन कहते हैं। अंग्रेजी तथा अन्य पश्चिमी भाषाओं में इन्हें ग्रीक कहा जाता है। यह भूमध्य सागर के उत्तर पूर्व में स्थित द्वीपों का समूह है। प्राचीन यूनानी लोग इस द्वीप से अन्य कई क्षेत्रों में गए जहाँ वे आज भी अल्पसंख्यक के रूप में मौज़ूद है, जैसे - तुर्की, मिस्र, पश्चिमी यूरोप इत्यादि। यूनानी भाषा ने आधुनिक अंग्रेज़ी तथा अन्य यूरोपीय भाषाओं को कई शब्द दिये हैं। तकनीकी क्षेत्रों में इनकी श्रेष्ठता के कारण तकनीकी क्षेत्र के कई यूरोपीय शब्द ग्रीक भाषा के मूलों से बने हैं। इसके कारण ये अन्य भाषाओं में भी आ गए हैं।ग्रीस की महिलाएं देह व्यापार के धंधे में सबसे आगे है.

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सहस्वानिकी

v की ध्वनि सुनिए - हिंदी में इसके लिए वर्ण 'व' है w की ध्वनि सुनिए - हिंदी में इसके लिए भी वर्ण 'व' ही है (इसकी ध्वनी 'v' से भिन्न है लेकिन हिंदी में 'v' और 'w' की सहस्वानिकी के कारण हिंदीभाषियों को अक्सर फ़र्क बताने में कठिनाई होती है भाषाविज्ञान में सहस्वानिक ध्वनियाँ, जिन्हें अंग्रेज़ी में एलोफ़ोन (allophone) कहा जाता है, वह ध्वनियाँ होती हैं जो किसी भाषा के बोलने वालों के लिए एक ही वर्ण या वर्ण-समूह को बोलने के भिन्न तरीक़े हों। सहस्वानिकी में बोलने वालों को स्वयं ज्ञात नहीं होता के वह एक ही वर्ण को अलग-अलग प्रकार से उच्चारित कर रहें हैं। उदहारण के तौर पर अंग्रेज़ी में 'ट', 'त', 'थ' और 'ठ' में सहस्वनिकी होती है। अंग्रेज़ी मातृभाषी (जो हिंदी ना जानते हों) 'ताली', 'थाली', 'टाली' और 'ठाली' में अक्सर फ़र्क नहीं बता सकते क्योंकि उनके लिए यह सारे स्वर अंग्रेज़ी अक्षर 't' से समन्धित हैं और उन्हें सब एक ही जैसे सुनाई देते हैं। उसी तरह हिंदी में 'v' और 'w' सहस्वनिक ध्वनियाँ होती हैं। हिंदी मातृभाषी अक्सर 'wow' (यानि 'वाह!') और 'vow' (यानि 'शपथ') को एक जैसा उच्चारित करते हैं, जो अंग्रेज़ी में ग़लत है। .

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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स्वनिमविज्ञान

स्वनिमविज्ञान (Phonology) भाषाविज्ञान की वह शाखा है जो किसी भी मानव भाषा में ध्वनि के सम्यक उपयोग द्वारा अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति से सम्बन्धित मुद्दों का अध्ययन करती है। किसी भाषा की सार्थक ध्वनियों की व्यवस्था का अध्ययन ही स्वनिमविज्ञान कहलाता है। स्वनिमविज्ञान अपनी मूल इकाई के रूप में स्वनिम (फोनीम) की संकल्पना करता है और इसके उपरांत स्वनिम तथा सहस्वन, उनके वितरण तथा अनुक्रम आदि का अध्ययन करता है। यह 'शब्द' के स्तर के नीचे के स्तर पर अध्यन करता है। .

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व्याकरण

किसी भी भाषा के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन व्याकरण (ग्रामर) कहलाता है। व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना, शुद्ध पढ़ना और शुद्ध लिखना आता है। किसी भी भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं। भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम भी व्याकरण के अंतर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। किसी भी "भाषा" के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "व्याकरण" कहलाता है, जैसे कि शरीर के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "शरीरशास्त्र" और किसी देश प्रदेश आदि का वर्णन "भूगोल"। यानी व्याकरण किसी भाषा को अपने आदेश से नहीं चलाता घुमाता, प्रत्युत भाषा की स्थिति प्रवृत्ति प्रकट करता है। "चलता है" एक क्रियापद है और व्याकरण पढ़े बिना भी सब लोग इसे इसी तरह बोलते हैं; इसका सही अर्थ समझ लेते हैं। व्याकरण इस पद का विश्लेषण करके बताएगा कि इसमें दो अवयव हैं - "चलता" और "है"। फिर वह इन दो अवयवों का भी विश्लेषण करके बताएगा कि (च् अ ल् अ त् आ) "चलता" और (ह अ इ उ) "है" के भी अपने अवयव हैं। "चल" में दो वर्ण स्पष्ट हैं; परंतु व्याकरण स्पष्ट करेगा कि "च" में दो अक्षर है "च्" और "अ"। इसी तरह "ल" में भी "ल्" और "अ"। अब इन अक्षरों के टुकड़े नहीं हो सकते; "अक्षर" हैं ये। व्याकरण इन अक्षरों की भी श्रेणी बनाएगा, "व्यंजन" और "स्वर"। "च्" और "ल्" व्यंजन हैं और "अ" स्वर। चि, ची और लि, ली में स्वर हैं "इ" और "ई", व्यंजन "च्" और "ल्"। इस प्रकार का विश्लेषण बड़े काम की चीज है; व्यर्थ का गोरखधंधा नहीं है। यह विश्लेषण ही "व्याकरण" है। व्याकरण का दूसरा नाम "शब्दानुशासन" भी है। वह शब्दसंबंधी अनुशासन करता है - बतलाता है कि किसी शब्द का किस तरह प्रयोग करना चाहिए। भाषा में शब्दों की प्रवृत्ति अपनी ही रहती है; व्याकरण के कहने से भाषा में शब्द नहीं चलते। परंतु भाषा की प्रवृत्ति के अनुसार व्याकरण शब्दप्रयोग का निर्देश करता है। यह भाषा पर शासन नहीं करता, उसकी स्थितिप्रवृत्ति के अनुसार लोकशिक्षण करता है। .

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व्यंजन

कोई विवरण नहीं।

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आघात (स्वनविज्ञान)

बोलते समय किसी शब्द के किसी अक्षर (syllable) को या किसी शब्दसमूह (phrase) के किसी शब्द के उच्चारण को जो विशेष बल दिया जाता है, उसे आघात, बलाघात या स्वराघात (Accent) कहते हैं। शब्दों के उच्चारण में अक्षरों पर जो जोर (धक्का) लगता है, उसे आघात या बल कहते हैं। ध्वनि, कंपन की लहरों से बनती है। यह बल अथवा आघात (झटका) उन ध्वनिलहरों के छोटी-बड़ी होने पर निर्भर होता है। ‘मात्रा’ का उच्चारण काल के परिमाण से संबंधित रहता है और ‘आघात’ का स्वर-कंपन की छुटाई-बड़ाई के परिमाण से। इसी से फेफड़ों में से निःश्वास जितने बल से निकलता है, उसके अनुसार बल में अंतर पड़ता है। इस बल के उच्च-मध्य और नीच होने के अनुसार ही ध्वनि के तीन भेद किए जाते हैं सबल, समबल, निर्बल। जैसे, ‘कालिमा’ में मा तो सबल है, इसी पर धक्का लगता है और ‘का’ पर उससे कम और लि पर सबसे कम बल पड़ता है, अतः समबल और ‘लि’ निर्बल है। इसी प्रकार पत्थर में ‘पत्’, अंतःकरण में ‘अः’, चंदा में ‘चन्’ सबल अक्षर हैं। .

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अष्टाध्यायी

अष्टाध्यायी (अष्टाध्यायी .

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उच्चारण

1. नासिका (नाक); 2. ओष्ठ (ओठ); 3. दन्त; 4. तालु; 5. जिस प्रकार से कोई शब्द बोला जाता है; या कोई भाषा बोली जाती है; या कोई व्यक्ति किसी शब्द को बोलता है; उसे उसका उच्चारण (pronunciation)" कहते हैं। भाषाविज्ञान में उच्चारण के शास्त्रीय अध्ययन को ध्वनिविज्ञान की संज्ञा दी जाती है। भाषा के उच्चारण की ओर तभी ध्यान जाता है जब उसमें कोई असाधारणता होती है, जैसे.

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उच्चारण स्थान

मानव द्वारा ध्वनि उत्पन्न करने वाले प्रमुख अंगों का विवरण 1. बाह्योष्ठ्य (exo-labial) 2. अन्तःओष्ठ्य (endo-labial)3. दन्त्य (dental) 4. वर्त्स्य (alveolar) 5. post-alveolar6. prä-palatal 7. तालव्य (palatal)8. मृदुतालव्य (velar)9. अलिजिह्वीय (uvular)10. ग्रसनी से (pharyngal) 11. श्वासद्वारीय (glottal)12. उपजिह्वीय (epiglottal)13. जिह्वामूलीय (Radical)14. पश्चपृष्ठीय (postero-dorsal)15. अग्रपृष्ठीय (antero-dorsal) 16. जिह्वापाग्रीय (laminal)17. जिह्वाग्रीय (apical)18. sub-laminal स्वनविज्ञान के सन्दर्भ में, मुख गुहा के उन 'लगभग अचल' स्थानों को उच्चारण बुन्दु (articulation point या place of articulation) कहते हैं जिनको 'चल वस्तुएँ' छूकर जब ध्वनि मार्ग में बाधा डालती हैं तो उन व्यंजनों का उच्चारण होता है। उत्पन्न व्यंजन की विशिष्ट प्रकृति मुख्यतः तीन बातों पर निर्भर करती है- उच्चारण स्थान, उच्चारण विधि और स्वनन (फोनेशन)। मुख गुहा में 'अचल उच्चारक' मुख्यतः मुखगुहा की छत का कोई भाग होता है जबकि 'चल उच्चारक' मुख्यतः जिह्वा, नीचे वाला ओठ, तथा श्वासद्वार (ग्लोटिस) हैं। व्यंजन वह ध्वनि है जिसके उच्चारण में हवा अबाध गति से न निकलकर मुख के किसी भाग (तालु, मूर्धा, दांत, ओष्ठ आदि) से या तो पूर्ण अवरूद्ध होकर आगे बढ़ती है या संकीर्ण मार्ग से घर्षण करते हुए या पार्श्व से निकले। इस प्रकार वायु मार्ग में पूर्ण या अपूर्ण अवरोध उपस्थित होता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

ध्वनिविज्ञान, स्वानिकी

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