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धूपावरण

सूची धूपावरण

धूपावरण या धूप आवरण (सनस्क्रीन) जिसे धूपरोधी (सनब्लॉक) या धूपताम्र (सनटैन) लोशन के रूप में भी जाना जाता है एक, लोशन, स्प्रे, श्लेष (जेल) आदि प्रकार का एक स्थानिक उत्पाद है जो सूर्य के पराबैंगनी (यूवी) विकिरण को अवशोषित या परावर्तित करके त्वचा की धूप से रक्षा करता है। श्रेणी:प्रसाधन.

6 संबंधों: त्वचा, धूप, पराबैंगनी, लोशन, सूर्य, विकिरण

त्वचा

त्वचा या त्वक् (skin) शरीर का बाह्य आवरण होती है जिसे बाह्यत्वचा (एपिडरमिस) भी कहते हैं। यह वेष्टन प्रणाली का सबसे बड़ा अंग है जो उपकला ऊतकों की कई परतों द्वारा निर्मित होती है और अंतर्निहित मांसपेशियों, अस्थियों, अस्थिबंध (लिगामेंट) और अन्य आंतरिक अंगों की रक्षा करती है। चूंकि यह सीधे वातावरण के संपर्क मे आती है, इसलिए त्वचा रोगजनकों के खिलाफ शरीर की सुरक्षा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अन्य कार्यों मे जैसे तापावरोधन (इन्सुलेशन), तापमान विनियमन, संवेदना, विटामिन डी का संश्लेषण और विटामिन बी फोलेट का संरक्षण करती है। बुरी तरह से क्षतिग्रस्त त्वचा निशान ऊतक बना कर चंगा होने की कोशिश करती है। यह अक्सर रंगहीन और वर्णहीन होता है। मानव मे त्वचा का वर्ण प्रजाति के अनुसार बदलता है और त्वचा का प्रकार शुष्क से लेकर तैलीय हो सकता है। .

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धूप

धूप सूर्यकिरणों से सीधे प्रकाश और गरमी को कहते हैं। इसके अंतर्गत विकिरण के दृश्य अंश (visible parts) ही नहीं आते, वरन् अदृश्य नीललोहित (blue and red) और अवरक्त किरणें (infrared) भी आती हैं। इसमें सूर्य की परावर्तित और प्रकीर्णित किरणें सम्मिलित नहीं हैं। .

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पराबैंगनी

सौर्य एवं हैलियोस्फेरिक वेधशाला (SOHO) अंतरिक्ष वाहन से लिया गया था। पृथ्वी की पराबैंगनी छायांकन, जो कि चंद्रमा से अपोलो 16 अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा लिया गया था पराबैंगनी किरण (पराबैंगनी लिखीं जाती हैं) एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण हैं, जिनकी तरंग दैर्घ्य प्रत्यक्ष प्रकाश से छोटी हो एवं कोमल एक्स किरण से अधिक हो। इनकी ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि, इनका वर्णक्रम लिए होता है विद्युत चुम्बकीय तरंग जिनकी आवृत्ति मानव द्वारा दर्शन योग्य बैंगनी वर्ण से ऊपर होती हैं।परा का मतलब होता है कि इस से अधिक अर्थात बैगनी से अधिक आवृत्ति की तरंग। .

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लोशन

लोशन एक निम्न से मध्यम श्यानता का, स्थानिक सम्पाक (चिकित्सीय निर्मिति) है, जिसका प्रयोग बिना कटी-फटी त्वचा पर लगाने के लिए किया जाता है, लोशन के विपरीत क्रीम और जेल की श्यानता उच्च होती है। अधिकांश लोशन जल-में-तेल प्रकार के पायसन (इमल्शन) होते हैं जिनमे सीटायरिल अल्कोहल जैसे पदार्थों का प्रयोग विभिन्न घटकों को पायसन में बनाये रखने के लिए किया जाता है, हालाँकि तेल-में-जल जैसे पायसन लोशन भी तैयार किये जाते हैं। लोशन को आमतौर पर बाहरी त्वचा पर हाथों, एक साफ कपड़े या रूई या चिकित्सीय पट्टी की सहायता से लगाया जाता है, जबकि क्रीम और जेल को आमतौर से एक व्यक्ति अपनी उंगलियों या हथेलियों से ही लगाता है। कई लोशनों को विशेषकर हाथों की क्रीम और चेहरे की क्रीम को एक औषधि के रूप में प्रयोग में नहीं लाया जाता अपितु इनका प्रयोग, विशेष रूप से त्वचा को सिर्फ नरम और मुलायम बनाने में किया जाता है और यह विशेषकर प्रौढ़ और वृद्ध लोगों में बहुत लोकप्रिय हैं। जहाँ तक चेहरे पर उपयोग का प्रश्न है, इन्हें कई मामलों में एक प्रसाधन सामग्री के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। एक त्वचा की देखभाल संबंधी लोशन, क्रीम या जेल पायसन (तेल और पानी का मिश्रण) के प्रमुख घटक जलीय और तैलीय दो प्रावस्थायें, इन दो प्रावस्थाओं के विभाजन को रोकने के लिए पायसीकर और यदि मिलाना हो तो भेषज या भेषज पदार्थ, इसके अतिरिक्त सुगंध, ग्लिसरॉल, पेट्रोलियम जेली, रंजक, परिरक्षक, प्रोटीन और स्थिरण एजेंट जैसे घटक सामान्यतः लोशन में मिलाये जाते हैं।.

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सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

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विकिरण

भौतिकी में प्रयुक्त विकिरण ऊर्जा का एक रूप है जो तरंगों या किसी परमाणु या अन्य निकाय द्वारा उत्सर्जित गतिशील उपपरमाणुविक कणों के रूप में उच्च से निम्न ऊर्जा अवस्था की ओर चलती है। विकिरण को परमाणु पदार्थ पर उसके प्रभाव के आधार पर या विआयनीकारक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। विकिरण जो अणु या परमाणु का आयनीकरण करने मे सक्षम होता है उसमे उर्जा का स्तर विआयनीकारक विकिरण से अधिक होता है। रेडियोधर्मी पदार्थ वो भौतिक पदार्थ है जो कि आयनीकारक विकिरण उत्सर्जित करती है। तीन भिन्न प्रकार के विकिरण और उनका भेदन .

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धूप मलहम

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