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पुनर्भरणीय विद्युत्कोष

सूची पुनर्भरणीय विद्युत्कोष

तरह-तरह की पुनर्भरणीय बैटरियाँ जिन बैटरियों को पुन: आवेशित करके पुनः विद्युत ऊर्जा ली जा सकती है उन्हें पुनर्भरणीय बैटरी (rechargeable battery) कहते हैं। इन्हें द्वितीयक सेल भी कहते हैं। इनमें होने वाली विद्युतरासायनिक अभिक्रियाएँ विद्युतीय रूप से उत्क्रमणीय (electrically reversible) होती हैं। पुनर्भरणीय बैटरियाँ विभिन्न आकार-प्रकार की होतीं है - बटन सेल से लेकर मेगावाट शक्ति प्रदान करने वाली प्रणालियाँ (विद्युत वितरण को स्थायित्व प्रदान करने के लिये) .

17 संबंधों: पुनर्भरणीय विद्युत्कोष, बैटरी आवेशक, रबड़, रेडॉक्स, लेड-एसिड बैटरी, सेल, विद्युत धारा, विद्युत कोष, विद्युत अपघट्य, वैद्युत-रासायनिक सेल, गन्धकाम्ल, आपेक्षिक घनत्व, इलेक्ट्रॉन, क्षार, क्षारीय बैटरी, अम्ल, अमेरिकी डॉलर

पुनर्भरणीय विद्युत्कोष

तरह-तरह की पुनर्भरणीय बैटरियाँ जिन बैटरियों को पुन: आवेशित करके पुनः विद्युत ऊर्जा ली जा सकती है उन्हें पुनर्भरणीय बैटरी (rechargeable battery) कहते हैं। इन्हें द्वितीयक सेल भी कहते हैं। इनमें होने वाली विद्युतरासायनिक अभिक्रियाएँ विद्युतीय रूप से उत्क्रमणीय (electrically reversible) होती हैं। पुनर्भरणीय बैटरियाँ विभिन्न आकार-प्रकार की होतीं है - बटन सेल से लेकर मेगावाट शक्ति प्रदान करने वाली प्रणालियाँ (विद्युत वितरण को स्थायित्व प्रदान करने के लिये) .

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बैटरी आवेशक

रिचार्जेबल सेल को चार्ज करने वाला चार्जर कार की बैटरी के लिये उपयुक्त चार्जर: यह ६ या १२ वोल्ट की बैटरी को ४ अम्पीयर धारा देकर चार्ज कर सकता है। द्वितीयक सेल या 'रिचार्जेबल बैटरी' में विद्युत धारा प्रवाहित कराकर उनमें विद्युत ऊर्जा भरने वाली एलेक्ट्रॉनिक युक्तियों को बैटरी आवेशक (battery charger) कहते हैं। ये प्रायः २२० वोल्ट एसी से विद्युत ऊर्जा लेकर उसे कम वोल्टेज (४८ वोल्ट, १२ वोल्ट, ९ वोल्त, ३ वोल्ट आदि) की डीसी में बदल देते हैं। इनमें प्रायः आवेशन धारा का नियंत्रण करने और अधिक चार्ज होने के पहले ही चार्ज करना रोकने की व्यवस्था होती है। इनका उपयोग क्षेत्र बहुत विस्तृत है। जहाँ-जहाँ द्वितीयक बैटरी है, वहाँ-वहाँ बैटरी-आवेशक है। कार आदि गाड़ियों के बैटरी आवेशक, लैपटॉप के आवेशक, सेल फोन के आवेशक, तथा यूपीएस के आवेशक कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। किसी भी बैटरी को चार्ज करने हेतु उसमें धारा प्रवाहित करनी पड़ती है जिसकी दिशा ऐसी हो कि बैटरी के धनाग्र (पॉजिटिव एलेक्ट्रोड) में घुसकर उसके ऋणाग्र से निकले। धारा की मात्रा और अन्य बातें चार्ज की जाने वाली बैटरी या सेल की प्रकृति पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिये ट्रक की बैटरी को आवेशित करने हेतु २० एम्पीयर धारा दी जा सकती है जबकि किसी पेंसिल सेल को चार्ज करने के लिये एक अम्पीयर से भी कम धारा चाहिये। बैटरी आवेशक के विद्युत परिपथ में अन्य बातों के अलावा एक एसी से डीसी करने वाला दिष्टकारी (रेक्टिफायर) तथा बैटरी में जाने वाली धारा को उचित मान पर बनाये रखने वाला धारा नियंत्रक होता है। बैटरी चार्जर भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। कम शक्ति के आवेशकों में आजकल एसएमपीएस (जैसे फॉरवर्ड कन्वर्टर) पर आधारित परिपथ प्रयोग किया जाता है जिससे इनका आकार अपेक्षाकृत बहुत छोटा होता है। .

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रबड़

रबर के वृछ का चित्रांकन रबड़ के वृक्ष भूमध्य रेखीय सदाबहार वनों में पाए जाते हैं, इसके दूध, जिसे लेटेक्स कहते हैं से रबड़ तैयार किया जाता हैं। सबसे पहले यह अमेजन बेसिन में जंगली रूप में उगता था, वहीं से यह इंगलैण्ड निवासियों द्वारा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में ले जाया गया। पहले इसका प्रयोग पेन्सिल के निशान मिटाने के लिये किया जाता था। आज यह विश्व की महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से है। इसका प्रयोग मोटर के ट्यूब, टायर, वाटर प्रूफ कपड़े, जूते तथा विभिन्न प्रकार के दैनिक उपयोग की वस्तुओं में होता है। थाईलैंड, इण्डोनेशिया, मलेशिया, भारत, चीन तथा श्रीलंका प्रमुख उत्पादक देश है। भारत का विश्व उत्पादन में चौथा स्थान है परन्तु घरेलु खपत अधिक होने के कारण यह रबर का आयात करता है। रबर का आदिमस्थान अमरीका है। अमरीका की एक आदि जाति 'माया' थी, जिसमें रबर के गेंद प्रचलित थे। कोलंबस ने सन्‌ 1493 ई. में वहाँ के आदिवासियों को रबर के बने गेदों से खेलते देखा था। ऐसा मालूम होता है कि दक्षिण पूर्व एशिया के आदिवासी भी रबर से परिचित थे और उससे टोकरियाँ, घड़े और इसी प्रकार की व्यवहार की अन्य चीजें तैयार करते थे। धीरे-धीरे रबर का प्रचार सारे संसार में हो गया और आज रबर आधुनिक सभ्यता का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। रबर के बने सामानों की संख्या और उपयोगिता आज इतनी बढ़ गई है कि उसके अभाव में काम चलाना असंभव समझा जाता है। रबर का उपयोग शांति और युद्धकाल में, घरेलू और औद्योगिक कार्मों में समान रूप से होता है। संसार के समस्त रबर के उत्पादन का प्राय: 78 प्रतिशत गाड़ियों के टायरों और ट्यूबों के बनाने में तथा शेष जूतों के तले और एड़ियाँ, बिजली के तार, खिलौने, बरसाती कपड़े, चादरें, खेल के सामान, बोतलों और बरफ के थैलों, सरजरी के सामान इत्यादि, हजारों चीजों के बनाने में लगता है। अब तो रबर की सड़के भी बनने लगी हैं, जो पर्याप्त टिकाऊ सिद्ध हुई है। रबर का व्यवसाय आज दिनोंदिन बढ़ रहा है। .

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रेडॉक्स

रेडॉक्स (Redox; 'Reduction and Oxidation' का लघुकृत रूप) अभिक्रियाएँ के अन्तर्गत वे सब रासायनिक अभिक्रियाएँ सम्मिलित हैं जिनमें परमाणुओं के आक्सीकरण अवस्थाएँ बदल जातीं हैं। सामान्यतः रेडॉक्स अभिक्रियाओं के अभिकारकों के परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रानों का आदान-प्रदान होता है। कभी भी आक्सीकरण या अपचयन अभिक्रिया अकेले नहीं होती। दोनो साथ-साथ होतीं हैं। एक ही अभिक्रिया में यदि किसी चीज का आक्सीकरण होता है तो किसी दूसरी का अपचयन होता है। इसीलिये इनका अलग-अलग अध्ययन न करके एकसाथ अध्ययन करने हैं और दोनों को मिलाकर 'रेडॉक्स' कहते हैं। .

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लेड-एसिड बैटरी

कार आदि में प्रयुक्त '''लेड-एसिड बैटरी''' लेड-एसिड बैटरी (Lead-acid batteries) बहुतायत में प्रयोग आने वाली बैटरी है जिसका आविष्कार सन् १८५९ में फ्रांसीसी भौतिकशास्त्री गैस्टन प्लेन्टी (Gaston Planté) ने किया था। पुन: आवेशित (चार्ज) करने योग्य बैटरियों में यह सबसे पुरानी बैटरी है। सबसे कम उर्जा-से-भार के अनुपात की दृष्टि से निकिल-कैडमियम बैटरी के बाद यह दूसरे स्थान पर आती है। इसमें थोड़े समय के लिये उच्च धारा प्रदान करने की क्षमता होती है। उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त यह बहुत ही सस्ती भी होती है जिसके कारण कारों, ट्रकों, अन्य गाड़ियों तथा व्यवधानरहित शक्ति स्रोतों में बहुतायत में प्रयोग की जाती है। .

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सेल

कोई विवरण नहीं।

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विद्युत धारा

आवेशों के प्रवाह की दिशा से धारा की दिशा निर्धारित होती है। विद्युत आवेश के गति या प्रवाह में होने पर उसे विद्युत धारा (इलेक्ट्रिक करेण्ट) कहते हैं। इसकी SI इकाई एम्पीयर है। एक कूलांम प्रति सेकेण्ड की दर से प्रवाहित विद्युत आवेश को एक एम्पीयर धारा कहेंगे। .

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विद्युत कोष

विभिन्न प्रकार की विद्युत कोष (बांयी तरफ् नीचे से दक्षिणावर्त): दो 9-वोल्ट; दो AA; दो AAA; एक D विद्युत कोष; एक C विद्युत कोष; एक हैम-रेडियो की विद्युत कोष; कार्डलेस फोन की विद्युत कोष; और एक कैमराकार्डर विद्युत कोष (लेटी हुई) विद्युत कोष (Battery) विद्युत ऊर्जा का स्रोत है जिसे रासायनिक उर्जा से प्राप्त किया जाता है। वैद्युत अभियांत्रिकी एवं एलेक्ट्रानिक्स में दो या दो से अधिक विद्युतरासायनिक सेलों के संयोजन को विद्युत कोष कहते हैं। ये रासायनिक उर्जा भण्डारित करते हैं एवं इस उर्जा को विद्युत उर्जा के रूप में उपलब्ध करते हैं। सन १८०० में अलेसान्द्रो वोल्टा द्वारा sabse पहले बैटरी का आविष्कार हुआ। आजकल अधिकांश घरेलू एवं औद्योगिक उपयोगों के लिये विद्युत कोष ही विद्युत उर्जा का प्रमुख साधन है। सन २००५ के एक अनुमान के अनुसार विश्व भर में विद्युत कोष की बिक्री लगभग ४८ बिलियन अमेरिकी डालर के बराबर होता है। .

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विद्युत अपघट्य

एल्युमिनियम के एलेक्ट्रोरोलाइटिक कैपेसिटर रसायन विज्ञान में उन पदार्थों को विद्युत अपघट्य (electrolyte) कहते हैं जिनमें मुक्त एलेक्ट्रॉन होते हैं जो उस पदार्थ को विद्युत चालक बनाते हैं। किसी आयनिक यौगिक का जल में विलयन सबसे साधारण (आम) विद्युत अपघट्य है। इसके अलावा पिघले हुए आयनिक यौगिक तथा ठोस विद्युत अपघट्य भी होते हैं। सामान्यत: विद्युत अपघट्य अम्लों, क्षारों एवं लवणों के विलयन के रूप में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त उच्च ताप एवं कम दाब पर कुछ गैसें भी विद्युत अपघट्य जैसा गुण प्रदर्शित करतीं हैं। कुछ जैविक (जैसे डीएनए, पॉलीपेप्टाइड्स आदि) एवं संश्लेषित बहुलकों (जैसे पॉलीस्टरीन सल्फोनेट) के विलयन भी विद्युत अपघटनीय होते हैं। श्रेणी:भौतिक रसायन श्रेणी:विद्युत चालक.

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वैद्युत-रासायनिक सेल

डेनियल सेल से मिलता-जुलता एक प्रदर्शन विद्युतरासायनिक सेल। इसमें दो अर्ध-सेल हैं जो एक लवण-सेतु से जुड़े हैं जिससे होकर एक अर्श सेल से दूसरे में आयन आते-जाते हैं। इसके द्वारा वाह्य परिपथ में इलेक्ट्रान बहाये जाते हैं। उन सभी युक्तियों को वैद्युत-रासायनिक सेल (electrochemical cell) कहते हैं जो रासायनिक अभिक्रिया के माध्यम से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करते हैं या जिनमें विद्युत ऊर्जा देने से उनके अन्दर रासायनिक अभिक्रिया होने लगती है या उसकी गति बढ़ जाती है। 1.5-वोल्ट का शुष्क सेल इसका एक सर्वसामान्य उदाहरण है। कई सेलों को श्रेणीक्रम या समान्तर क्रम में जोड़ने से बैटरी बनती है। वाहनों की १२ वोल्ट की बैटरी इसका आम उदाहरण है। .

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गन्धकाम्ल

गन्धकाम्ल (सल्फ्युरिक एसिड) एक तीव्र अकार्बनिक अम्ल है। प्राय: सभी आधुनिक उद्योगों में गन्धकाम्ल अत्यावश्यक होता है। अत: ऐसा माना जाता है कि किसी देश द्वारा गन्धकाम्ल का उपभोग उस देश के औद्योगीकरण का सूचक है। गन्धकाम्ल के विपुल उपभोगवाले देश अधिक समृद्ध माने जाते हैं। शुद्ध गन्धकाम्ल रंगहीन, गंधहीन, तेल जैसा भारी तरल पदार्थ है जो जल में हर परिमाण में विलेय है। इसका उपयोग प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में तथा अनेक रासायनिक उद्योगों में विभिन्न रासायनिक पदार्थों के संश्लेषण में होता है। बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के लिए सम्पर्क विधि का प्रयोग किया जाता है जिसमें गन्धक को वायु की उपस्थिति में जलाकर विभिन्न प्रतिकारकों से क्रिया कराई जाती है। खनिज अम्लों में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला यह महत्त्वपूर्ण अम्ल है। प्राचीन काल में हराकसीस (फेरस सल्फेट) के द्वारा तैयार गन्धक द्विजारकिक गैस को जल में घोलकर इसे तैयार किया गया। यह तेल जैसा चिपचिपा होता है। इन्ही कारणों से प्राचीन काल में इसका नाम 'आयँल ऑफ विट्रिआँल' रखा गया था। हाइड्रोजन, गन्धक तथा जारक तीन तत्वों के परमाणुओं द्वारा गन्धकाम्ल के अणु का संश्लेषण होता है। आक्सीजन युक्ति होने के कारण इस अम्ल को 'आक्सी अम्ल' कहा जाता है। इसका अणुसूत्र H2SO4 है तथा अणु भार ९८ है। गन्धकाम्ल प्राचीनकाल के कीमियागर एवं रसविद् आचार्यों को गन्धकाम्ल के संबंध में बहुत समय से पता था। उस समय हरे कसीस को गरम करने से यह अम्ल प्राप्त होता था। बाद में फिटकरी को तेज आँच पर गरम करने से भी यह अम्ल प्राप्त होने लगा। प्रारंभ में गन्धकाम्ल चूँकि हरे कसीस से प्राप्त होता था, अत: इसे "कसीस का तेल' कहा जाता था। तेल शब्द का प्रयोग इसलिए हुआ कि इस अम्ल का प्रकृत स्वरूप तेल सा है। .

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आपेक्षिक घनत्व

किसी वस्तु का आपेक्षिक घनत्व (Relative density) या विशिष्ट घनत्व (specific gravity) उसके घनत्व को किसी 'सन्दर्भ पदार्थ' के घनत्व से भाग देने से प्राप्त होता है। प्रायः दूसरे पदार्थों का घनत्व जल के घनत्त्व के सापेक्ष व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिये बर्फ का आपेक्षिक घनत्व 0.91 है जिसका अर्थ है कि बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व का 0.91 गुना होता है। आधुनिक वैज्ञानिक साहित्य में 'विशिष्ट घनत्व' की अपेक्षा 'आपेक्षिक घनत्व' का अधिक प्रयोग किया जा रहा है। .

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इलेक्ट्रॉन

इलेक्ट्रॉन या विद्युदणु (प्राचीन यूनानी भाषा: ἤλεκτρον, लैटिन, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, स्पेनिश: Electron, जर्मन: Elektron) ऋणात्मक वैद्युत आवेश युक्त मूलभूत उपपरमाणविक कण है। यह परमाणु में नाभिक के चारो ओर चक्कर लगाता हैं। इसका द्रव्यमान सबसे छोटे परमाणु (हाइड्रोजन) से भी हजारगुना कम होता है। परम्परागत रूप से इसके आवेश को ऋणात्मक माना जाता है और इसका मान -१ परमाणु इकाई (e) निर्धारित किया गया है। इस पर 1.6E-19 कूलाम्ब परिमाण का ऋण आवेश होता है। इसका द्रव्यमान 9.11E−31 किग्रा होता है जो प्रोटॉन के द्रव्यमान का लगभग १८३७ वां भाग है। किसी उदासीन परमाणु में विद्युदणुओं की संख्या और प्रोटानों की संख्या समान होती है। इनकी आंतरिक संरचना ज्ञात नहीं है इसलिए इसे प्राय:मूलभूत कण माना जाता है। इनकी आंतरिक प्रचक्रण १/२ होती है, अतः यह फर्मीय होते हैं। इलेक्ट्रॉन का प्रतिकणपोजीट्रॉन कहलाता है। द्रव्यमान के अलावा पोजीट्रॉन के सारे गुण यथा आवेश इत्यादि इलेक्ट्रॉन के बिलकुल विपरीत होते हैं। जब इलेक्ट्रॉन और पोजीट्रॉन की टक्कर होती है तो दोंनो पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं एवं दो फोटॉन उत्पन्न होती है। इलेक्ट्रॉन, लेप्टॉन परिवार के प्रथम पीढी का सदस्य है, जो कि गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुम्बकत्व एवं दुर्बल प्रभाव सभी में भूमिका निभाता है। इलेक्ट्रॉन कण एवं तरंग दोनो तरह के व्यवहार प्रदर्शित करता है। बीटा-क्षय के रूप में यह कण जैसा व्यवहार करता है, जबकि यंग का डबल स्लिट प्रयोग (Young's double slit experiment) में इसका किरण जैसा व्यवहार सिद्ध हुआ। चूंकि इसका सांख्यिकीय व्यवहार फर्मिऑन होता है और यह पॉली एक्सक्ल्युसन सिध्दांत का पालन करता है। आइरिस भौतिकविद जॉर्ज जॉनस्टोन स्टोनी (George Johnstone Stoney) ने १८९४ में एलेक्ट्रों नाम का सुझाव दिया था। विद्युदणु की कण के रूप में पहचान १८९७ में जे जे थॉमसन (J J Thomson) और उनकी विलायती भौतिकविद दल ने की थी। कइ भौतिकीय घटनाएं जैसे-विध्युत, चुम्बकत्व, उष्मा चालकता में विद्युदणु की अहम भूमिका होती है। जब विद्युदणु त्वरित होता है तो यह फोटान के रूप मेंऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन करता है।प्रोटॉन व न्यूट्रॉन के साथ मिलकर यह्परमाणु का निर्माण करता है।परमाणु के कुल द्रव्यमान में विद्युदणु का हिस्सा कम से कम् 0.0६ प्रतिशत होता है। विद्युदणु और प्रोटॉन के बीच लगने वाले कुलाम्ब बल (coulomb force) के कारण विद्युदणु परमाणु से बंधा होता है। दो या दो से अधिक परमाणुओं के विद्युदणुओं के आपसी आदान-प्रदान या साझेदारी के कारण रासायनिक बंध बनते हैं। ब्रह्माण्ड में अधिकतर विद्युदणुओं का निर्माण बिग-बैंग के दौरान हुआ है, इनका निर्माण रेडियोधर्मी समस्थानिक (radioactive isotope) से बीटा-क्षय और अंतरिक्षीय किरणो (cosmic ray) के वायुमंडल में प्रवेश के दौरान उच्च ऊर्जा टक्कर के कारण भी होता है।.

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क्षार

क्षार एक ऐसा पदार्थ है, जिसको जल में मिलाने से जल का pHमान 7.0 से अधिक हो जाता है। ब्रंस्टेड और लोरी के अनुसार, क्षार एक ऐसा पदार्थ है जो अम्लीय पदार्थों को OH- दान करते हैं। क्षारक वास्तव में वे पदार्थ हैं जो अम्ल के साथ मिलकर लवण और जल बनाते हैं। उदाहरणत:, जिंक आॅक्साइड सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर ज़िंक सल्फेट और जल बनाता है। दाहक सोडा (कॉस्टिक सोडा), सल्फ़्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर सोडियम सल्फेट और जल बनाता है। धातुओं के आॅक्साइड सामान्यत: क्षारक हैं। पर इसके अपवाद भी हैं। क्षारकों में धातुओं के आॅक्साइड और हाइड्राॅक्साइड हैं, पर सुविधा के लिए तत्वों के कुछ ऐसे समूह भी रखे गए हैं जो अम्लों के साथ मिलकर बिना जल बने ही लवण बनाते हैं। ऐसे क्षारकों में अमोनिया, हाइड्राॅक्सिलएमीन और फाॅस्फीन हैं। द्रव अमोनिया में घुल जाता है पर फिनोल्फथैलीन से कोई रंग नहीं देता। अत: कहाँ तक यह क्षारक कहा जा सकता है, यह बात संदिग्ध है। यद्यपि ऊपर की क्षारक की परिभाषा बड़ी असंतोषप्रद है, तथापि इससे अच्छी परिभाषा नहीं दी जा सकी है। क्षारक (बेस) और क्षार (ऐल्कैली) पर्यायवाची शब्द नहीं हैं। सब क्षार क्षारक हैं पर सब क्षारक क्षार नहीं हैं। क्षार-धातुओं के आॅक्साइड, जैसे सोडियम आॅक्साइड, जल में घुलकर हाइड्राॅक्साइड बनाते हैं। ये प्रबल क्षारकीय होते हैं। क्षारीय मृदाधातुओं के आक्साइड, जैसे कैल्सियम आॅक्साइड, जल में अल्प विलेय और अल्प क्षारीय होते हैं। अन्य धातुओं के आॅक्साइड जल में नहीं घुलते और उनके हाइड्राॅक्साइड परोक्ष रीतियों से ही बनाए जाते हैं। धातुओं के आॅक्साइड और हाइड्राॅक्साइड क्षारक होते हैं। क्षार धातुओं के आॅक्साइड जल में शीघ्र घुल जाते हैं। कुछ धातुओं के आॅक्साइड जल में कम विलेय होते हैं और कुछ धातुओं के आॅक्साइड जल में ज़रा भी विलेय नहीं हैं। कुछ अधातुओं के हाइड्राइड, जैसे नाइट्रोजन और फाॅस्फोरस के हाइड्राइड (क्रमश: अमोनिया और फाॅस्फीन) भी भस्म होते हैं। .

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क्षारीय बैटरी

विभिन्न आकार-प्रकार की क्षारीय बैटरियाँ क्षारीय बैटरी (Alkaline batteries) वह प्राथमिक बैटरी है जो जस्ता और मैंगनीज आक्साइड (Zn/MnO2) की रासायनिक अभिक्रिया पर आधारित है। इस प्रकार की पुनर्भरणीय बैटरियाँ भी बनायी जाती हैं। इस प्रकार की बैटरी में विद्युत अपघट्य, अम्ल की जगह क्षार होता है। सर्वाधिक प्रचलित क्षारीय बैटरी एडिसन सेल (Edison) प्रकार की बैटरी है। यह बैटरी निकल-लोह क्षारीय प्रकार का सेल है। एक अन्य बैटरी निकल-कैडमिययम प्रकार की है। इस बैटरी का विद्युत्‌ अपघट्य, पोटैशियम और लीथियम ऑक्साइड का जलीय विलयन है। इस विद्युत्‌ अपघट्य से सक्रिय पदार्थ का किसी भी अवस्था में विघटन या विलयन नहीं होता। उच्च निकाल ऑक्साइड के इलेक्ट्रोड पर पोटैशियम और लीथियम हाइड्रॉक्साइड का अल्प परिमाण में अवशोषण होता है, लेकिन आवेशन तथा विसर्जन के संपर्क के दौरान विद्युत्‌ अपघट्य के संघटन में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। अत: विद्युत्‌ अपघट्य का आपेक्षिक घनत्व एवं चालकता व्यवहारत: स्थिर रहती है। लीथियम हाइड्रॉक्साइड उच्च निकल ऑक्साइड के इलेक्ट्रोड में सक्रिय पदार्थों को अत्यधिक उपयोगी कर देता है। लीथियम हाइड्रॉक्साइड के कारण बैटरी की दक्षता और जीवन में वृद्धि हो जाती है। अत: यह विद्युत्‌ अपघट्य का अत्यावश्यक घटक है। पट्टिकाएँ बनाने के लिए छिद्रित निकल इस्पात की नलियों या खानों (pockets) में सक्रिय पदार्थ भर दिए जाते हैं। धन पट्टिकाएँ, जो एक दूसरे के बगल में रखी रहती है, अनेक ऊर्ध्वाधर नलियों के रूप में रहती हैं। धन पट्टिका में इसके वैद्युत गुण को बढ़ाने के लिए, निकल हाइड्रेट के साथ फ्लेक निकल (flake nickel) एकांतरित स्तरों में भरा रहता है। नलियाँ, जो बिना जोड़ के परिवेष्टित करनेवाले आठ वलयों से प्रबलित रहती है, ग्रिड पर समान अवकाश में आरोपित रहती हैं। ऋण पट्टिका धन पट्टिका के समान रहती है। अंतर केवल यह रहता है कि ऋण पट्टिका में नली के स्थान पर छिद्रित खाने में सूक्ष्म विभाजित लोह ऑक्साइड सक्रिय पदार्थ के रूप में भरा रहता है। ऋण एवं धन पट्टिकाएँ धन और ऋण समूहों में समायोजित रहती हैं। ऐसा ग्रिडों के सिरों के छोदों में से सयोजी दंड डालकर किया जाता है। इस्पात के छल्ले (washer) के उपयोग से उपयुक्त फासला प्राप्त किया जाता है। मध्य अंतरक पोलपीस (pole-piece) का आधार होता है। संयोजी दंड के प्रत्येक सिरे को लॉक वाशर (lock washer) तथा नट से कस देने पर पट्टिकाओं का समूह दृढ़ता से एक दूसरे के साथ बँध जाता है। सब बाशर, नट, संयोजी दंड तथा टरमिनल निकल इस्पात के बने होते हैं। पट्टिका समूहों को पूर्ण एलिमेंट (element) में संयोजित करते हैं। ऋण पट्टिकाओं के समूह में धन पट्टिकाओं के समूह की अपेक्षा एक अधिक एक अधिक पट्टिका होती है। ऊर्ध्वाधर कठोर रबर पिनों (pins) के द्वारा, जो पट्टिकाओं की लंबाई के बराबर होते हैं, प्रत्यावर्ती ऋण एव धन पट्टिकाएँ विद्युत्रोधी बनाई जाती है। रबर की पट्टियाँ ऋण पट्टिकाओं के बाह्य भागों को पात्र के प्रति विद्युत्रोधी बनाती है। कठोर रबर संरचना द्वारा पट्टिकाओं के सिरों तथा किनारों का विद्युत्रोधन होता है। यह संरचना ग्रिडों का पृथक्करण करती है और पट्टिकाओं के पंक्तिबंधन को ठीक रखती है। इस संरचना का अभिकल्प ऐसा होता है कि विद्युत्‌ अपघट्य का परिसंचरण निर्बाध होता है। निकल-लोह-क्षारीय सेल का पात्र निकल इस्पात का बनाया जाता है, क्योंकि इस्पात पर पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड (विद्युत्‌ अपघटय) की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है। सेल संधियाँ वेल्डित की रहती हैं। इस्पात के वलयों से प्रसारित और कठोर रबर के छल्लों या ग्लैंड कैपों (gland caps) से पोल पीस का विद्युत्रोधन उन स्थानों पर होता है जहाँ से पोल आच्छादन से बाहर निकलता है। संपूर्ण सेल को विद्युत्रोधी पेंट से रँग दिया जाता है। सेल के शीर्ष पर रोज़िन पेट्रोलियम जेली का फिल्म चढ़ा दिया जाता है। नट को कसने से संयोजक सुरक्षित हो जाते हैं। नट को ढीला करके जैक द्वारा हटाया जाता है। कठोर लकड़ी की ट्रे में निकल-लोह-क्षारीय सेल को बैटरी के रूप में समायोजित किया जाता है। यह समायोजन प्रत्येक सेल को अपने स्थान पर रखता है और ट्रे तथा संगत सेलों के प्रति सेल को विद्युत्रोधी बनाता है। संचायक सेल के सक्रिय पदार्थ विद्युत्‌ का संचय नहीं करते, पर विद्युत्‌ ऊर्जा के उपयोग से इन सक्रिय पदार्थों में इस प्रकार के भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तन होते हैं जिनसे वे विद्युत्‌ ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम हो जाते हैं। बैटरी को आवेशित करने पर जो रासायनिक परिवर्तन होते हैं, उन्हें समीकरणों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। विद्युत्‌ अपघट्य, पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड KOH, K+ और OH- में आयनित हो जाता है। फेरस ऑक्साइड, और (Fe O), की बनी ऋण पट्टिका पर होनेवाली अभिक्रिया तथा निकल ऑक्साइड की बनी धन पट्टिका पर होनेवाली अभिक्रिया निम्नलिखित समीकरणों से क्रमश: व्यक्त की जा सकती है: 'एक्साइड' (Exide) छाप बैटरियाँ जो १९७२ और १९७५ के बीच निर्मित हुईं, उनका विकास मूलतः थॉमस अल्वा एडीसन ने १९०१ में किया था। जब सेल विसर्जित होता है, तब ऋण एवं धन पट्टिका पर निम्नलिखित रासायनिक परिवर्तन होता है: प्रत्येक सेल की, ५ घंटे में, सामान्य औसत विसर्जन दर लगभग १.२० वोल्ट होती है, जबकि लेड एसिड बैटरी की विसर्जन दर २ वोल्ट है। अत: एक ही वोल्ट की ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए लेड सेल की अपेक्षा ऐडिसन सेल की अधिक आवश्यकता पड़ती है। वैद्युत परीक्षण द्वारा बैटरी का आवेश निर्धारित किया जाता है। हाइड्रोमीटर के पाठ्यांक के द्वारा आवेश निर्धारित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि विद्युत्‌ अपघट्य में आपेक्षिक घनत्व आवेश की अवस्था के साथ साथ परिवर्तित नहीं होता। .

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अम्ल

अम्ल एक रासायनिक यौगिक है, जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन (H+) देता है। इसका pH मान 7.0 से कम होता है। जोहान्स निकोलस ब्रोंसटेड और मार्टिन लॉरी द्वारा दी गई आधुनिक परिभाषा के अनुसार, अम्ल वह रासायनिक यौगिक है जो प्रतिकारक यौगिक (क्षार) को हाइड्रोजन आयन (H+) प्रदान करता है। जैसे- एसीटिक अम्ल (सिरका में) और सल्फ्यूरिक अम्ल (बैटरी में).

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अमेरिकी डॉलर

एक अमेरिकी डॉलर का नोट अमेरिकी डॉलर संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय मुद्रा है। एक डॉलर में सौ सेंट होते हैं। पचास सेंट के सिक्के को आधा डॉलर कहा जाता है। पच्चीस सेंट के सिक्के को क्वार्टर कहते हैं। दस सेंट का सिक्का डाइम कहलाता है और पाँच सेंट के सिक्के को निकॅल कहते हैं। एक सेंट को पैनी के नाम से पुकारा जाता है। डॉलर के नोट १,५,१०,२०,५० और १०० डॉलर में मिलते है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

द्वितीयक सेल, पुनर्भरणीय बैटरी, रिचार्जेबल बैटरी, रिचार्जेबल सेल, संचायक बैटरी

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