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दुनाल देवता

सूची दुनाल देवता

हिन्दुस्तान के अनेकों राज्यों में नागराज देवता की पूजा होती है, उत्तराखण्ड के गढ़वाल और कुमांऊं में इसे नागराजा देवता के नाम से जाना जाता है, गढ़वाल में जिला पौड़ी गढ़वाल में डांडा नागराज व जिला टिहरी गढवाल में प्रतापनगर लमगांव के पास सेम नागराजा गढवाल के बड़े आश्था के केंद्र हैं,टिहरी गढवाल के घनसाली तहसील के गांव मुयालगांव गौरिया में थपलियाल जाती के उच्च कुलीन ब्राहम्ण जंदोली नामक एक छोटे से मौहल्ले में रहते हैं इस ब्राहम्ण वंश के कुल देवता के रूप में दूनाल देवता को एक छत्र अधिकार है, इस परिवार का मुख्य धनोपार्जन का माध्यम ब्रहमावृति यानी पंडिताई है, इस वंश के सभी लोगों का मानना है कि हमारे कुल देवता दुनाल वास्तव में भगवान नागराजा का ही रूप है, जो कि दूनाल देवता को लोहे की बनी दो छडीयों को विशेष आकृति देकर ही पूजते हैं, दुनाल देवता का पूजनिय स्थान आज भी इन लेंगों के उसी स्यांरी नामक स्थान में है जहां कालांतर में इनके पूर्वज कहीं और से आकर बसे थे, हालांकि स्यांरी नामक स्थान अब सुनसान जंगल का रूप ले चुका है लेकिन इन लोगों की आस्था है कि ये लोग आज भी समय समय पर उस स्थान पर पूजा करने जाते हैं। विशेष कर जब इनके परिवार में किसी गाय या भैंस का बच्चा होता है तो ये ११ या २१ दिन कि अशुद्धी मिटाने के लिए व उस दूध को अपने खाने पीने के प्रयोग से पहले अपने इष्ट को इस दूध से स्नान कराते हैं व उस दूध से बनें पकवानों से अपने कुलदेवता को भोग लगाते हैं, इनके भोग में विशेषता है कि इस देवता का रोट (प्रसाद के लिए बनी रोटी) दो रोटीयो को आपस में मिलाकर बनाया जाता है, मान्यता है कि जब भी कभी लंबे समय तक इस क्षेत्र में बरसात नहीं होती थी तो पूरे क्षेत्र विशेष कर पास के गांव गौरिया मुयालगांव कुमाल्थ आदी आसपास के गांवों के लोग एकत्रित हो कर ढोल नगाडों के साथ दुनाल देवता को खुश करने जाते थे और अपने अपने घरों से ले जाये गये दूध को एकत्रित करके देवता का भोग बनाते व हवन करते थे निश्चित तौर पर यह मान्यता है कि जब कभी भी ऐसे आयोजन पूजन किये गये तो अवश्य उस सांय को बारिस होती थी, यह मान्यता क्षेत्र में आज भी है, जितेन्द्र थपलियाल अनिल, विजय प्रवीन धनिराम सुशील आदी युवाओं ने आज भी उस प्रथा को जीवित रखने का प्रयास जारी रखा है ये युवा अब काफी उत्साहित हैं क्यूंकि इनके कुल देवता के पास से ही अब सडक बनकर निकल रही है तो ये लोग कहते हैं कि सडक पास आने से जंगल का भय दूर हो जायेगा और धनिराम उर्फ रविन्द्र तो सडक पास आने के बाद कहते हैं कि अब तो यहां रात को रूकने में भी भय नहीं रहेगा और हम अपने इष्ट के मूल रूप यानी भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी को रात्री जागरण के तौर पर यहां पर मना सकते है। जय हो दुधाधारी दुनाल देवता.

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