5 संबंधों: चीनी भाषा, मूलसर्वास्तिवाद, शुंग राजवंश, विनयपिटक, अवदान साहित्य।
चीनी भाषा
चीनी भाषा (अंग्रेजी: Chinese; 汉语/漢語, पिनयिन: Hànyǔ; 华语/華語, Huáyǔ; या 中文 हुआ-यू, Zhōngwén श़ोंग-वॅन) चीन देश की मुख्य भाषा और राजभाषा है। यह संसार में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह चीन एवं पूर्वी एशिया के कुछ देशों में बोली जाती है। चीनी भाषा चीनी-तिब्बती भाषा-परिवार में आती है और वास्तव में कई भाषाओं और बोलियों का समूह है। मानकीकृत चीनी असल में एक 'मन्दारिन' नामक भाषा है। इसमें एकाक्षरी शब्द या शब्द भाग ही होते हैं और ये चीनी भावचित्र में लिखी जाती है (परम्परागत चीनी लिपि या सरलीकृत चीनी लिपि में)। चीनी एक सुरभेदी भाषा है। .
नई!!: दिव्यावदान और चीनी भाषा · और देखें »
मूलसर्वास्तिवाद
मूलसर्वास्तिवाद (परम्परागत चीनी: 根本說一切有部;; pinyin: Gēnběn Shuō Yīqièyǒu Bù) भारत का एक प्राचीन आरम्भिक बौद्ध दर्शन है। इस दर्शन की उत्पत्ति के बारे में तथा इसका सर्वास्तिवादी सम्प्रदाय से सम्बन्ध के बारे में प्रायः कुछ भी ज्ञात नहीं है। फिर भी, इसके बारे में कई सिद्धान्त मौजूद हैं। मूलसर्वास्तिवादी सम्प्रदाय का मठ अब भी तिब्बत में विद्यमान है। श्रेणी:बौद्ध दर्शन.
नई!!: दिव्यावदान और मूलसर्वास्तिवाद · और देखें »
शुंग राजवंश
शुंग साम्राज्य का विस्तार शुंग वंश प्राचीन भारत का एक शासकीय वंश था जिसने मौर्य राजवंश के बाद शासन किया। इसका शासन उत्तर भारत में १८७ ई.पू.
नई!!: दिव्यावदान और शुंग राजवंश · और देखें »
विनयपिटक
विनय पिटक एक बौद्ध ग्रंथ है। यह उन तीन ग्रंथों में से एक है जो त्रिपिटक बनाते है। इस ग्रंथ का प्रमुख विषय विहार के भिक्षु, भिक्षुणी आदि है। विनय पिटक का शाब्दिक अर्थ "अनुशासन की टोकरी" है। बौद्ध धर्म में भिक्षु और भिक्षुणी के रूप मे प्रवेश करने वाले शिष्य (अनुयायी) के आचरण व्यवस्थित करने के निमित्त निर्मित अनुशासन के नियमों को विनय कहते है। अतः विनय पिटक विनय से संबन्धित नियमों का व्यवस्थित संग्रह है। .
नई!!: दिव्यावदान और विनयपिटक · और देखें »
अवदान साहित्य
बौद्धों का संस्कृत भाषा में चरितप्रधान साहित्य अवदान साहित्य कहलाता है। "अवदान" (प्राकृत अपदान) का अमरकोश के अनुसार अर्थ है - प्राचीन चरित, पुरातन वृत्त (अवदानं कर्मवृत्तंस्यात्)। "अवदान" से तात्पर्य उन प्राचीन कथाओं से है जिनके द्वारा किसी व्यक्ति की गुणगरिमा तथा श्लाघनीय चरित्र का परिचय मिलता है। कालिदास ने इसी अर्थ में "अवदान" शब्द का प्रयोग किया है (रघुवंश, 11। 21)। बौद्ध साहित्य में इसी अर्थ में "जातक" शब्द भी बहुश: प्रचलित है, परंतु अवदान जातक से कतिपय विषयों में भिन्न है। "जातक" भगवान बुद्ध की पूर्वजन्म की कथाओं से सर्वथा संबद्ध होते हैं जिनमें बुद्ध ही पूर्वजन्म में प्रधान पात्र के रूप में चित्रित किए गए रहते हैं। "अवदान" में यह बात नहीं पाई जाती। अवदान प्राय: बुद्धोपासक व्यक्तिविशेष आदर्श चरित होता है। बौद्धों ने जनसाधारण में अपने धर्म के तत्वों के प्रचार के निमित्त सुबोध संस्कृत गद्य-पद्य में इस सुंदर साहित्य की रचना की है। इ "अवदानशतक" है जो दस वर्गों में विभक्त है तथा प्रत्येक वर्ग में दस-दस कथाएँ हैं। इन कथाओं का रूप थेरवादी (हीनयानी) है। महायान धर्म के विशिष्ट लक्षणों का यहाँ विशेष अभाव दृष्टिगोचर होता है। यहाँ बोधिसत्व संप्रदाय की बातें बहुत कम हैं। बुद्ध की उपासना पर आग्रह करना ही इन कथाओं का उद्देश्य है। इन कथाओं का वर्गीकरण एक सिद्धांत के आधार पर किया गया है। प्रथम वर्ग की कथाओं में बुद्ध की उपासना करने से विभिन्न दशा के मनुष्यों (जैसे ब्रह्मण, व्यापारी, राजकन्या, सेठ आदि) के जीवन में चमत्कार उत्पन्न होता है तथा वे अगले जन्म में बुद्धत्व पाते विवरण। अवदानशतक का चीनी भाषा में अनुवाद तृतीय शताब्दी के पूर्वार्ध में हुआ था। फलत: इसका समय द्वितीय शताब्दी माना जाता है। .