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दिव्य शिशु संस्कार

सूची दिव्य शिशु संस्कार

माता-पिता के करे सपने साकार दिव्य शिशु संस्कार माँ का गौरव किसी ने ठीक ही कहा हैः जननी जणे तो भक्त जण, कां दाता कां शूर। 'हे जननी ! यदि तुझे जन्म देना है तो भक्त, दानी या वीर को जन्म देना। संतान की प्रथम शिक्षिका माँ ही होती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि आदर्श माताएँ अपनी संतान को श्रेष्ठ एवं आदर्श बना देती हैं। माँ के जीवन और उसकी शिक्षा का बालक पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। माँ संतान में बचपन से ही सुसंस्कारों की नींव डाल सकती है। संतान की जीवन वाटिका को सद्गुणों के फूलों से सुशोभित करने से खुद माता का जीवन भी सुवासित और आनंदमय बन जायेगा। संतान में यदि दुर्गुण के काँटें पनपेंगे तो वे माता को भी चुभेंगे और शिशु, माता एवं पूरे परिवार के जीवन को खिन्नता से भर देंगे। इसीलिए माताओं का परम कर्तव्य है कि संतान का शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक संरक्षण और पोषण करके आदर्श माता बन जायें। नन्हा सा बालक एक कोमल पौधे जैसा होता है। उसे चाहे जिस दिशा में मोड़ा जा सकता है। अतः बाल्यकाल से ही उसमें शुभ संस्कारों का सिंचन किया जाय तो भविष्य में वही विशाल वृक्ष के रूप में परिणत होकर भारतीय संस्कृति के गौरव की रक्षा करने में सक्षम हो सकता है। बालक देश का भविष्य, विश्व का गौरव और अपने माता-पिता की शान है उसके भीतर सामर्थ्य का असीम भण्डार छुपा है, जिसे प्रकट करने के लिए जरूरी है उत्तम संस्कारों का सिंचन। प्रस्तावना किसी भी देश का भविष्य वहाँ की संस्कारी बाल पीढ़ी पर निर्भर करता है। वास्तव में खनिज, वन, पर्वत, नदी आदि देश की सच्ची सम्पत्ति नहीं हैं अपितु ऋषि-परम्परा के पवित्र संस्कारों से सम्पन्न तेजस्वी संतानों ही देश की सच्ची सम्पत्ति हैं और वर्तमान समय में देश को इस सम्पत्ति की अत्यन्त आवश्यकता है। शिशु में संस्कारों की नीँव माँ के गर्भ में ही पड़ जाती है। इसलिए उत्तम संतानप्राप्ति के इच्छुक दम्पत्तियों को चाहिए कि वे ब्रह्मज्ञानी संतों के दर्शन-सत्संग का लाभ लेकर स्वयं सुविचारी, सदाचारी एवं पवित्र बनें। साथ ही उत्तम संतानप्राप्ति के नियमों को जान लें और शास्त्रोक्त रीति से गर्भधान कर परिवार, देश व मानवता का मंगल करने वाली महान आत्माओं की आवश्यकता की पूर्ति करें। गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू द्वारा प्रेरित 'महिला उत्थान मंडल' द्वारा यह पुस्तिका लोकहितार्थ प्रकाशित की गयी है। इसके अलावा विशेष रूप से मार्गदर्शन देने के लिए 'महिला उत्थान मंडल' द्वारा समय-समय पर विशेष बैठकों तथा 'दिव्य शिशु संस्कार' शिविरों एवं सम्मेलनों का भी आयोजन किया जाता है और अनुक्रमणिका विचारशक्ति की गरिमा गर्भस्थ शिशु पर संस्कारों का प्रभाव आधुनिक विज्ञान ने भी स्वीकारा.....

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