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दामोदरगुप्त

सूची दामोदरगुप्त

दामोदरगुप्त परवर्ती गुप्तवंश का पंचम शासक था। उसके वंश का कुछ वृत्त अपसड के अभिलेख (फ्लीट, कार्पस् इंस्क्रिप्शनम् इंडिकेरम, खंड 2, पृष्ठ 42 तथा 201 और आगे) से ज्ञात होता है, जहाँ उसकी भी थोड़ी चर्चा मिलती है। अधिकांश विद्वान् यह मानते हैं कि परवर्ती गुप्तों का मूलस्थान पूर्वी मालवा था, किंतु कुछ लेखकों के मत में वे वास्तव में मगध के ही रहनेवाले थे। दामोदरगुप्त के पिता कुमारगुप्त (तृतीय) ने मौखरियों (ईशानवर्मा) को युद्ध में परास्त कर अपने को मध्य भारत को एक प्रमुख शक्ति बना लिया। उसके समय से परवर्ती गुप्त सामंत न रहकर संभवत: पूर्ण स्वतंत्र बन गए। लगभग 560 ई. में कुमारगुप्त के मरने पर दामोदर गुप्त राजा हुआ। अपसड के अभिलेख से ज्ञात होता है कि "मंदार की तरह उसने अपने शत्रुओं को मार डाला" (हताद्विष)। किंतु साथ ही यह भी कहा गया है कि युद्ध में ही वह मूर्छित हो गया। (संमूर्छित: सुखघूर्वरनामेति) और कदाचित् वहीं मर भी गया। अंतिम विजय किसके हाथों रही, इस बात पर विद्वानों में मतभेद हैं। किंतु उसी अभिलेख में यह कहा गया है कि मौखरि सेना छिन्न-भिन्न हा गई (यो मौखरे: समितिषूद्धतहूणसैन्यवल्गत्घटाविघटयनुरुवारणानाम्)। उससे दामोदर गुप्त की विजय का अनुमान लगाया जा सकता है। उस युद्ध में दामोदर गुप्त का शत्रु मौखरिराज शरवर्मन था, यह प्रतीत होता है। श्रेणी:प्राचीन भारत का इतिहास.

2 संबंधों: गुप्त राजवंश, अभिलेख

गुप्त राजवंश

गुप्त राज्य लगभग ५०० ई इस काल की अजन्ता चित्रकला गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी इ. में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्‍ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। गुप्त वंश पर सबसे ज्यादा रिसर्च करने वाले इतिहासकार डॉ जयसवाल ने इन्हें जाट बताया है।इसके अलावा तेजराम शर्माhttps://books.google.co.in/books?id.

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अभिलेख

कंधार स्थित सम्राट अशोक के द्वारा उत्कीर्ण एक पाषाण अभिलेख अभिलेख पत्थर अथवा धातु जैसी अपेक्षाकृत कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किये गये पाठन सामाग्री को कहते है। प्राचीन काल से इसका उपयोग हो रहा है। शासको के द्वारा अपने आदेशो को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे, ताकि लोग उन्हे देख सके एवं पढ़ सके और पालन कर सके। आधुनिक युग मे भी इसका उपयोग हो रहा है। .

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दामोदर गुप्त

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