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दानस्तुति

सूची दानस्तुति

भगवान इंद्र; जिनकी स्तुति ऋगवेद के दानस्तुति में मौजूद है ऋग्वेद में कतिपय ऐसे सूक्त तथा मंत्र हैं, जिनकी संज्ञा 'दानस्तुति' है। दानस्तुति का शाब्दिक अर्थ है 'दान की प्रशंसा में गाए गए मंत्र'। व्यापक अर्थ में दान के उपलब्ध में राजाओं तथा यज्ञ के आश्रयदाताओं की स्तुति में ऋषियों द्वारा गाई गई ऋचाएँ 'दानस्तुति' हैं। ऋग्वेद में दानस्तुति से संबद्ध सूक्तों की संख्या लगभग ४० है। उपर्युक्त सूक्तों में एक संपूर्ण सूक्त (१-१२६) दानस्तुति का है, किंतु शेष अन्य सूक्तों में सामान्यत: कुछ इनी-गिनी ऋचाएँ ही दानस्तुति के रूप में मिलती हैं। इन सूक्तों में कुछ वस्तुत: विजय-प्रशस्ति-सूक्त हैं, जिनमें पहले इंद्र की स्तुति रहती है, क्योंकि इंद्र की सहायता से कुछ राजा अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं। तदनंतर देवस्तुति के साथ विजयी राजा की प्रशस्ति भी संबद्ध हो गई है। आखिर में स्तोता के द्वारा अपने उस आश्रयदाता की स्तुति की जाती है, जिससे उसे बैल, घोड़े तथा युद्ध में विजित धन का दान मिला है। दूसरे प्रकार के सूक्त यज्ञ संबंधी हैं जो बहुत बड़े हैं और अधिकतर इंद्र देवता के हैं। ये सूक्त यज्ञ के अवसर पर पढ़े जाते हैं। इन सूक्तों के अंतिम भाग में कतिपय दानस्तुति परक ऋचाएँ उपलब्ध होती हैं। इनमें स्तोता यज्ञ के आश्रयदाता की स्तुति करता है, क्योंकि उसने स्तोता को यज्ञ की दक्षिणा प्रदान की है। जर्मन विद्वान् विंटरनित्स की सम्मति में ये दानस्तुतियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये धार्मिक दाताओं के पूर्ण नामों का उल्लेख करती हैं और ऐतिहासिक तथ्यों अथवा वास्तविक घटनाओं की सूचना देती हैं। एक भारतीय विद्वान् का विचार है कि ऋग्वेदिक युग में महायज्ञ का अनुष्ठान कई राजा मिलकर किया करते थे, इसी लिए दानस्तुति में प्राय: अनेक आश्रयदाताओं का उल्लेख एक साथ मिलता है। इसके अतिरिक्त, दानस्तुतियों में जिस नदी का नाम पाया जाता है उससे उस नदी के किनारे यज्ञ के अनुष्ठान होने की सूचना मिलती है। ('भारतीय अनुशीलन' नामक ओझा अभिनंदन ग्रंथ) वेदों को अपौरुषेय माननेवाले विशेषरूप से मीमोसकों की दृष्टि में इन दानस्तुतियों में या वेद में अन्यत्र ऐतिहासिक झलक आभासमात्र है। ऋग्वेद के दशम मंडल का ११७वाँ सूक्त उत्कृष्ट अर्थ में दानस्तुति है। इसमें धन एवं अन्न के दान की महिमा गाई गई है। यह सूक्त ऋग्वेदिक युग की महान् उदात्त भावना क परिचायक है; उदाहरण के लिए इस सूक्त की पाँचवीं ऋचा का, जिसमें धनी पुरुष को दान के महत्व की प्रेरणा निहित है, भावार्थ नीचे प्रस्तुत किया जाता है- श्रेणी:वेद श्रेणी:चित्र जोड़ें.

11 संबंधों: दान, नदी, बैल, मन्त्र, मारिज विण्टरनित्ज, यज्ञ, युद्ध, सूक्त, घोड़ा, इन्द्र, ऋग्वेद

दान

मन्दिर में भिक्षा देती स्त्री (राजा रवि वर्मा की चित्रकारी) दान का शाब्दिक अर्थ है - 'देने की क्रिया'। सभी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य माना गया है। हिन्दू धर्म में दान की बहुत महिमा बतायी गयी है। आधुनिक सन्दर्भों में दान का अर्थ किसी जरूरतमन्द को सहायता के रूप में कुछ देना है। .

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नदी

भागीरथी नदी, गंगोत्री में नदी भूतल पर प्रवाहित एक जलधारा है जिसका स्रोत प्रायः कोई झील, हिमनद, झरना या बारिश का पानी होता है तथा किसी सागर अथवा झील में गिरती है। नदी शब्द संस्कृत के नद्यः से आया है। संस्कृत में ही इसे सरिता भी कहते हैं। नदी दो प्रकार की होती है- सदानीरा या बरसाती। सदानीरा नदियों का स्रोत झील, झरना अथवा हिमनद होता है और वर्ष भर जलपूर्ण रहती हैं, जबकि बरसाती नदियाँ बरसात के पानी पर निर्भर करती हैं। गंगा, यमुना, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, अमेज़न, नील आदि सदानीरा नदियाँ हैं। नदी के साथ मनुष्य का गहरा सम्बंध है। नदियों से केवल फसल ही नहीं उपजाई जाती है बल्कि वे सभ्यता को जन्म देती हैं अपितु उसका लालन-पालन भी करती हैं। इसलिए मनुष्य हमेशा नदी को देवी के रूप में देखता आया है। .

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बैल

बैलगाड़ी खींचते बैल (मुम्बई) बैलगाड़ी खींचते बैल (थाईलैण्ड) बैल एक चौपाया पालतू प्राणी है। यह गोवंश के अन्तर्गत आता है। बैल प्राय: हल, बैलगाड़ी आदि खींचने के लिये प्रयुक्त होते हैं। सांड इसका एक पर्याय है। .

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मन्त्र

हिन्दू श्रुति ग्रंथों की कविता को पारंपरिक रूप से मंत्र कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ विचार या चिन्तन होता है । मंत्रणा, और मंत्री इसी मूल से बने शब्द हैं। मन्त्र भी एक प्रकार की वाणी है, परन्तु साधारण वाक्यों के समान वे हमको बन्धन में नहीं डालते, बल्कि बन्धन से मुक्त करते हैं। काफी चिन्तन-मनन के बाद किसी समस्या के समाधान के लिये जो उपाय/विधि/युक्ति निकलती है उसे भी सामान्य तौर पर मंत्र कह देते हैं। "षड कर्णो भिद्यते मंत्र" (छ: कानों में जाने से मंत्र नाकाम हो जाता है) - इसमें भी मंत्र का यही अर्थ है। .

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मारिज विण्टरनित्ज

मारिज विण्टरनित्ज (Moriz Winternitz; 23 दिसम्बर 1863 – 9 जनवरी 1937) आस्ट्रिया के गणमान्य पौर्वात्यविद (Orientalist) थे। उन्होने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में मैक्समूलर के साथ मिलकर भारत विद्या से सम्बन्धित कार्य आरम्भ किया। १९०८ से १९२२ के बीच उन्होने 'Geschichte der indischen Literatur' नामक संस्कृत साहित्य का इतिहास लिखा। उनके योगदान से ही आधुनिक युग में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म से सम्बन्धित अध्ययन के क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी। .

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यज्ञ

यज्ञ, योग की विधि है जो परमात्मा द्वारा ही हृदय में सम्पन्न होती है। जीव के अपने सत्य परिचय जो परमात्मा का अभिन्न ज्ञान और अनुभव है, यज्ञ की पूर्णता है। यह शुद्ध होने की क्रिया है। इसका संबंध अग्नि से प्रतीक रूप में किया जाता है। यज्ञ का अर्थ जबकि योग है किन्तु इसकी शिक्षा व्यवस्था में अग्नि और घी के प्रतीकात्मक प्रयोग में पारंपरिक रूचि का कारण अग्नि के भोजन बनाने में, या आयुर्वेद और औषधीय विज्ञान द्वारा वायु शोधन इस अग्नि से होने वाले धुओं के गुण को यज्ञ समझ इस 'यज्ञ' शब्द के प्रचार प्रसार में बहुत सहायक रहे। अधियज्ञोअहमेवात्र देहे देहभृताम वर ॥ 4/8 भगवत गीता शरीर या देह के दासत्व को छोड़ देने का वरण या निश्चय करने वालों में, यज्ञ अर्थात जीव और आत्मा के योग की क्रिया या जीव का आत्मा में विलय, मुझ परमात्मा का कार्य है। अनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति य: स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ॥ 1/6 भगवत गीता .

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युद्ध

वर्ष १९४५ में कोलोन युद्ध एक लंबे समय तक चलने वाला आक्रामक कृत्य है जो सामान्यतः राज्यों के बीच झगड़ों के आक्रामक और हथियारबंद लड़ाई में परिवर्तित होने से उत्पन्न होता है। .

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सूक्त

वेदों के संहिता भाग में मंत्रों का शुद्ध रूप रहता है जो देवस्तुति एवं विभिन्न यज्ञों के समय पढ़ा जाता है। अभिलाषा प्रकट करने वाले मंत्रों तथा गीतों का संग्रह होने से संहिताओं को संग्रह कहा जाता है। इन संहिताओं में अनेक देवताओं से सम्बद्ध सूक्त प्राप्त होते हैं। वृहद्देवताकार सूक्त की परिभाषा करते हैं----------- "सम्पूर्णमृषिवाक्यं तु सूक्तमित्यsभिधीयते"अर्थात् मन्त्रद्रष्टा ऋषि के सम्पूर्ण वाक्य को सूक्त कहते हैँ,जिसमेँ एक अथवा अनेक मन्त्रों में देवताओं के नाम दिखलाई पडते हैं। सूक्त के चार भेद:- देवता,ऋषि,छन्द एवं अर्थ। .

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घोड़ा

घोड़ा, घोड़ी और उसका बच्चा घोड़े भी खेल में इस्तेमाल किया जाता है। घोड़ा या अश्व (Equus ferus caballus; ऐक़्वस फ़ेरस कैबेलस) ऐक़्वस फ़ेरस (Equus ferus) की दो अविलुप्त उपप्रजातियों में से एक हैं। वह एक विषम-उंगली खुरदार स्तनधारी हैं, जो अश्ववंश (ऐक़्वडी) कुल से ताल्लुक रखता हैं। घोड़े का पिछले ४५ से ५५ मिलियन वर्षों में एक छोटे बहु-उंगली जीव, ऐओहिप्पस (Eohippus) से आज के विशाल, एकल-उंगली जानवर में क्रम-विकास हुआ हैं। मनुष्यों ने ४००० ईसा पूर्व के आसपास घोड़ों को पालतू बनाना शुरू कर दिया, और उनका पालतूकरण ३००० ईसा पूर्व से व्यापक रूप से फैला हुआ माना जाता हैं। कैबेलस (caballus) उपप्रजाति में घोड़े पालतू बनाएँ जाते हैं, यद्यपि कुछ पालतू आबादियाँ वन में रहती हैं निरंकुश घोड़ो के रूप में। ये निरंकुश आबादियाँ असली जंगली घोड़े नहीं हैं, क्योंकि यह शब्द उन घोड़ो को वर्णित करने के लिए प्रयुक्त होता हैं जो कभी पालतू बनाएँ ही नहीं गएँ हो, जैसे कि विलुप्तप्राय शेवालस्की का घोड़ा, जो एक अलग उपप्रजाति हैं और बचा हुआ केवल एकमात्र असली जंगली घोड़ा हैं। वह मनुष्य से जुड़ा हुआ संसार का सबसे प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी ने किसी रूप में सेवा की है। घोड़ा ईक्यूडी (Equidae) कुटुंब का सदस्य है। इस कुटुंब में घोड़े के अतिरिक्त वर्तमान युग का गधा, जेबरा, भोट-खर, टट्टू, घोड़-खर एवं खच्चर भी है। आदिनूतन युग (Eosin period) के ईयोहिप्पस (Eohippus) नामक घोड़े के प्रथम पूर्वज से लेकर आज तक के सारे पूर्वज और सदस्य इसी कुटुंब में सम्मिलित हैं। इसका वैज्ञानिक नाम ईक्वस (Equus) लैटिन से लिया गया है, जिसका अर्थ घोड़ा है, परंतु इस कुटुंब के दूसरे सदस्य ईक्वस जाति की ही दूसरों छ: उपजातियों में विभाजित है। अत: केवल ईक्वस शब्द से घोड़े को अभिहित करना उचित नहीं है। आज के घोड़े का सही नाम ईक्वस कैबेलस (Equus caballus) है। इसके पालतू और जंगली संबंधी इसी नाम से जाने जातें है। जंगली संबंधियों से भी यौन संबंध स्थापति करने पर बाँझ संतान नहीं उत्पन्न होती। कहा जाता है, आज के युग के सारे जंगली घोड़े उन्ही पालतू घोड़ो के पूर्वज हैं जो अपने सभ्य जीवन के बाद जंगल को चले गए और आज जंगली माने जाते है। यद्यपि कुछ लोग मध्य एशिया के पश्चिमी मंगोलिया और पूर्वी तुर्किस्तान में मिलनेवाले ईक्वस प्रज़्वेलस्की (Equus przwalski) नामक घोड़े को वास्तविक जंगली घोड़ा मानते है, तथापि वस्तुत: यह इसी पालतू घोड़े के पूर्वजो में से है। दक्षिण अफ्रिका के जंगलों में आज भी घोड़े बृहत झुंडो में पाए जाते है। एक झुंड में एक नर ओर कई मादाएँ रहती है। सबसे अधिक 1000 तक घोड़े एक साथ जंगल में पाए गए है। परंतु ये सब घोड़े ईक्वस कैबेलस के ही जंगली पूर्वज है और एक घोड़े को नेता मानकर उसकी आज्ञा में अपना सामाजिक जीवन व्यतीत करतेे है। एक गुट के घोड़े दूसरे गुट के जीवन और शांति को भंग नहीं करते है। संकटकाल में नर चारों तरफ से मादाओ को घेर खड़े हो जाते है और आक्रमणकारी का सामना करते हैं। एशिया में काफी संख्या में इनके ठिगने कद के जंगली संबंधी 50 से लेकर कई सौ तक के झुंडों में मिलते है। मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार उन्हे पालतू बनाता रहता है। .

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इन्द्र

इन्द्र (या इंद्र) हिन्दू धर्म में सभी देवताओं के राजा का सबसे उच्च पद था जिसकी एक अलग ही चुनाव-पद्धति थी। इस चुनाव पद्धति के विषय में स्पष्ट वर्णन उपलब्ध नहीं है। वैदिक साहित्य में इन्द्र को सर्वोच्च महत्ता प्राप्त है लेकिन पौराणिक साहित्य में इनकी महत्ता निरन्तर क्षीण होती गयी और त्रिदेवों की श्रेष्ठता स्थापित हो गयी। .

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ऋग्वेद

ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें १०२८ सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है। ऋक् संहिता में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-.

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