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दशभूमीश्वर

सूची दशभूमीश्वर

दशभूमीश्वर, महायान बौद्ध साहित्य का एक विशिष्ट पारिभाषिक शब्द जिसका आधार "दशभूमिक" नामक ग्रंथ है। यह महासांधिकों की लोकोत्तरवादी शाखा का ग्रंथ है जिसका सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य नागार्जुन ने अपनी "प्रज्ञापारमिता शास्त्र" की व्याख्या में किया है। नागार्जुन द्वारा उल्लिखित यह ग्रंथ अपने जापानी रूपांतर "जुजि-क्यो" के रूप मे सुरक्षित रहा है जो वस्तुत: "अवतंशक साहित्य" (जापानी, ऊ के गान) के अंतर्गत है। जापानी में अवतंशक साहित्य की अवतारण आचार्य बुद्धभद्र (उत्तर भारत) ने पूर्वी शिन काल (418-520 ई.) में की थी। दशभूमिक के दो भाषांतर प्रसिद्ध हैं -.

7 संबंधों: धर्मरक्ष, नागार्जुन (प्राचीन दार्शनिक), महायान, संस्कृत भाषा, जापानी भाषा, कुमारजीव, अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता

धर्मरक्ष

धर्मरक्ष (चीनी: 竺法護; pinyin: Zhú Fǎhù) एक बौद्ध विद्वान थे जिन्होने महायान सम्रदाय के सूत्रों का संस्कृत से चीनी भाषा में अनुवाद किया। इसका पूर्वी देशों में प्रचलित बौद्ध धर्म पर विशेष प्रभाव पड़ा। धर्मरक्ष ने सन २६६ से सन ३०८ के कालावधि में १५९ संस्कृत ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। .

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नागार्जुन (प्राचीन दार्शनिक)

नागार्जुन (बौद्धदर्शन) शून्यवाद के प्रतिष्ठापक तथा माध्यमिक मत के पुरस्कारक प्रख्यात बौद्ध आचार्य थे। युवान् च्वाङू के यात्राविवरण से पता चलता है कि ये महाकौशल के अंतर्गत विदर्भ देश (आधुनिक बरार) में उत्पन्न हुए थे। आंध्रभृत्य कुल के किसी शालिवाहन नरेश के राज्यकाल में इनके आविर्भाव का संकेत चीनी ग्रंथों में उपलब्ध होता है। इस नरेश के व्यक्तित्व के विषय में विद्वानों में ऐकमत्य नहीं हैं। 401 ईसवी में कुमारजीव ने नागार्जुन की संस्कृत भाषा में रचित जीवनी का चीनी भाषा में अनुवाद किया। फलत: इनका आविर्भावकाल इससे पूर्ववर्ती होना सिद्ध होता है। उक्त शालिवाहन नरेश को विद्वानों का बहुमत राजा गौतमीपुत्र यज्ञश्री (166 ई. 196 ई.) से भिन्न नहीं मानता। नागार्जुन ने इस शासक के पास जो उपदेशमय पत्र लिखा था, वह तिब्बती तथा चीनी अनुवाद में आज भी उपलब्ध है। इस पत्र में नामत: निर्दिष्ट न होने पर भी राजा यज्ञश्री नागार्जुन को समसामयिक शासक माना जाता है। बौद्ध धर्म की शिक्षा से संवलित यह पत्र साहित्यिक दृष्टि से बड़ा ही रोचक, आकर्षक तथा मनोरम है। इस पत्र का नाम था - "आर्य नागार्जुन बोधिसत्व सुहृल्लेख"। नागार्जुन के नाम के आगे पीछे आर्य और बोधिसत्व की उपाधि बौद्ध जगत् में इनके आदर सत्कार तथा श्रद्धा विश्वास की पर्याप्त सूचिका है। इन्होंने दक्षिण के प्रख्यात तांत्रिक केंद्र श्रीपर्वत की गुहा में निवास कर कठिन तपस्या में अपना जीवन व्यतीत किया था। .

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महायान

गन्धार से पहली सदी ईसवी में बनी महात्मा बुद्ध की मूर्ति महायान, वर्तमान काल में बौद्ध धर्म की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है। दूसरी शाखा का नाम थेरवाद है। महायान बुद्ध धर्म भारत से आरम्भ होकर उत्तर की ओर बहुत से अन्य एशियाई देशों में फैल गया, जैसे कि चीन, जापान, कोरिया, ताइवान, तिब्बत, भूटान, मंगोलिया और सिंगापुर। महायान सम्प्रदाय कि आगे और उपशाखाएँ हैं, जैसे ज़ेन/चान, पवित्र भूमि, तियानताई, निचिरेन, शिन्गोन, तेन्दाई और तिब्बती बौद्ध धर्म।, Stuart Chandler, University of Hawaii Press, 2004, ISBN 978-0-8248-2746-5,...

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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जापानी भाषा

जापानी भाषा (जापानी: 日本語 नीहोंगो) जापान देश की मुख्यभाषा और राजभाषा है। द्वितीय महायुद्ध से पहले कोरिया, फार्मोसा और सखालीन में भी जापानी बोली जाती थी। अब भी कोरिया और फार्मोसा में जापानी जाननेवालों की संख्या पर्याप्त है, परंतु धीरे धीरे उनकी संख्या कम होती जा रही है। भाषाविद इसे 'अश्लिष्ट-योगात्मक भाषा' मानते हैं। जापानी भाषा चीनी-तिब्बती भाषा-परिवार में नहीं आती। भाषाविद इसे ख़ुद की जापानी भाषा-परिवार में रखते हैं (कुछ इसे जापानी-कोरियाई भाषा-परिवार में मानते हैं)। ये दो लिपियों के मिश्रण में लिखी जाती हैं: कांजी लिपि (चीन की चित्र-लिपि) और काना लिपि (अक्षरी लिपि जो स्वयं चीनी लिपिपर आधारित है)। इस भाषा में आदर-सूचक शब्दों का एक बड़ा तंत्र है और बोलने में "पिच-सिस्टम" ज़रूरी होता है। इसमें कई शब्द चीनी भाषा से लिये गये हैं। जापानी भाषा किस भाषा कुल में सम्मिलित है इस संबंध में अब तक कोई निश्चित मत स्थापित नहीं हो सका है। परंतु यह स्पष्ट है कि जापानी और कोरियाई भाषाओं में घनिष्ठ संबंध है और आजकल अनेक विद्वानों का मत है कि कोरियाई भाषा अलटाइक भाषाकुल में संमिलित की जानी चाहिए। जापानी भाषा में भी उच्चारण और व्याकरण संबंधी अनेक विशेषताएँ है जो अन्य अलटाइ भाषाओं के समान हैं परंतु ये विशेषताएँ अब तक इतनी काफी नहीं समझी जाती रहीं जिनमें हम निश्चित रूप से कह सकें कि जापानी भाषा अलटाइक भाषाकुल में ऐ एक है। हाइकु इसकी प्रमुख काव्य विधा है। .

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कुमारजीव

कुमारजीव (344 ई – 413 ई) एक भारतीय बौद्ध भिक्षु थे जो चीन में जाकर बस गये, जहाँ उन्होंने संस्कृत के बौद्ध ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। .

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अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता

मानवीकृत 'अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता' प्रज्ञापारमिता-बोधिसत्व (जावा, इण्डोनेशिया) अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता आठ हजार श्लोकोंवाला यह महायान बौद्ध ग्रंथ प्रज्ञा की पारमिता (पराकाष्ठा) के माहात्म्य का वर्णन करता है। प्रज्ञापारमिता को मूर्त रूप में अवतरित कर उसके चमत्कार दिखाए गए हैं। इसमें ३२ परिच्छेद हैं जिनमें प्राय: गृद्धकूट पर्वत पर भगवान्‌ बुद्ध अपने सुभूति, सारिपुत्र, पूर्ण मैत्रायणीपुत्र जैसे शिष्यों को उपदेश देते हुए उपस्थित हैं। आगे चलकर इस ग्रंथ के कई छोटै और बड़े संस्करण बने। अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता की रचना सम्भवतः ईसापूर्व पहली शताब्दी में हुई। .

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दशभूमिकासूत्र

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