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ददरी मेला (बलिया)

सूची ददरी मेला (बलिया)

बलिया का ददरी मेला हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से आरम्भ होता है। इसमें मुख्यतः पशुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है। मेले की ऐतिहासिकता इस मेले की ऐतिहासिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीनी यात्री फाह्यान तक ने इस मेले का अपनी पुस्तक में जिक्र किया है। गुलाम भारत की बदहाली को लेकर भारतेंदु हरिश्चंद्र ने एक बेहद मार्मिक निबंध लिखा है- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है- इस निबंध को उन्होंने पहली बार बलिया के इसी ददरी मेले के मंच पर १८८४ में पेश किया था। .

6 संबंधों: पूर्णिमा, फ़ाहियान, बलिया, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, सोनपुर मेला, कार्तिक

पूर्णिमा

पूर्णिमा पंचांग के अनुसार मास की 15वीं और शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चंद्रमा आकाश में पूरा होता है। इस दिन का भारतीय जनजीवन में अत्यधिक महत्व हैं। हर माह की पूर्णिमा को कोई न कोई पर्व अथवा व्रत अवश्य मनाया जाता हैं। .

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फ़ाहियान

फ़ाहियान के यात्रा-वृत्तान्त का पहला पन्ना फ़ाहियान या फ़ाशियान (चीनी: 法顯 या 法显, अंग्रेज़ी: Faxian या Fa Hien; जन्म: ३३७ ई; मृत्यु: ४२२ ई अनुमानित) एक चीनी बौद्ध भिक्षु, यात्री, लेखक एवं अनुवादक थे जो ३९९ ईसवी से लेकर ४१२ ईसवी तक भारत, श्रीलंका और आधुनिक नेपाल में स्थित गौतम बुद्ध के जन्मस्थल कपिलवस्तु धर्मयात्रा पर आए। उनका ध्येय यहाँ से बौद्ध ग्रन्थ एकत्रित करके उन्हें वापस चीन ले जाना था। उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन अपने वृत्तांत में लिखा जिसका नाम बौद्ध राज्यों का एक अभिलेख: चीनी भिक्षु फ़ा-शियान की बौद्ध अभ्यास-पुस्तकों की खोज में भारत और सीलोन की यात्रा था। उनकी यात्रा के समय भारत में गुप्त राजवंश के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का काल था और चीन में जिन राजवंश काल चल रहा था। फा सिएन पिंगगयांग का निवासी था जो वर्तमान शांसी प्रदेश में है। उसने छोटी उम्र में ही सन्यास ले लिया था। उसने बौद्ध धर्म के सद्विचारों के अनुपालन और संवर्धन में अपना जीवन बिताया। उसे प्रतीत हुआ कि विनयपिटक का प्राप्य अंश अपूर्ण है, इसलिए उसने भारत जाकर अन्य धार्मिक ग्रंथों की खोज करने का निश्चय किया। लगभग ६५ वर्ष की उम्र में कुछ अन्य बंधुओं के साथ, फाहिएन ने सन् ३९९ ई. में चीन से प्रस्थान किया। मध्य एशिया होते हुए सन् ४०२ में वह उत्तर भारत में पहुँचा। यात्रा के समय उसने उद्दियान, गांधार, तक्षशिला, उच्छ, मथुरा, वाराणसी, गया आदि का परिदर्शन किया। पाटलिपुत्र में तीन वर्ष तक अध्ययन करने के बाद दो वर्ष उसने ताम्रलिप्ति में भी बिताए। यहाँ वह धर्मसिद्धांतों की तथा चित्रों की प्रतिलिपि तैयार करता रहा। यहाँ से उसने सिंहल की यात्रा की और दो वर्ष वहाँ भी बिताए। फिर वह यवद्वीप (जावा) होते हुए ४१२ में शांतुंग प्रायद्वीप के चिंगचाऊ स्थान में उतरा। अत्यंत वृत्र हो जाने पर भी वह अपने पवित्र लक्ष्य की ओर अग्रसर होता रहा। चिएन कांग (नैनकिंग) पहुँचकर वह बौद्ध धर्मग्रंथों के अनुवाद के कार्य में संलग्न हो गा। अन्य विद्वानों के साथ मिलकर उसने कई ग्रंथों का अनुवाद किया, जिनमें से मुख्य हैं-परिनिर्वाणसूत्र और महासंगिका विनय के चीनी अनुवाद। 'फौ-कुओ थी' अर्थात् 'बौद्ध देशों का वृत्तांत' शीर्षक जो आत्मचरित् उसने लिखा है वह एशियाई देशों के इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। विश्व की अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद किया जा चुका है। .

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बलिया

बलिया (भोजपुरी: बलिया या बलिंयाँ) भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में एक नगर निगम वाला शहर है। यह अपने ही नाम के जिले का मुख्यालय भी है। इस शहर की पूर्वी सीमा गंगा और सरयू के संगम द्वारा बनायी जाती है। यह शहर वाराणसी से 155 किलोमीटर स्थित है। भोजपुरी यहाँ की प्राथमिक स्थानीय भाषा है। यह क्षेत्र गंगा और घाघरा के बीच के जलोढ़ मैदानों में स्थित है। अक्सर बाढ़ग्रस्त रहने वाले इस उपजाऊ क्षेत्र में चावल, जौ, मटर, ज्वार-बाजरा, दालें, तिलहन और गन्ना उगाया जाता है। .

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भारतेन्दु हरिश्चंद्र

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (९ सितंबर १८५०-७ जनवरी १८८५) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ्य परम्परा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुंदर (१८६७) नाटक के अनुवाद से होती है। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किंतु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया। उन्होंने 'हरिश्चंद्र पत्रिका', 'कविवचन सुधा' और 'बाल विबोधिनी' पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे। इसके अलावा वे लेखक, कवि, संपादक, निबंधकार, एवं कुशल वक्ता भी थे।। वेबदुनिया। स्मृति जोशी भारतेन्दु जी ने मात्र ३४ वर्ष की अल्पायु में ही विशाल साहित्य की रचना की। पैंतीस वर्ष की आयु (सन् १८८५) में उन्होंने मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से इतना लिखा, इतनी दिशाओं में काम किया कि उनका समूचा रचनाकर्म पथदर्शक बन गया। .

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सोनपुर मेला

सोनपुर मेला बिहार के सोनपुर में हर साल कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर-दिसंबर) में लगता हैं। यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला हैं। मेले को 'हरिहर क्षेत्र मेला' के नाम से भी जाना जाता है जबकि स्थानीय लोग इसे छत्तर मेला पुकारते हैं। बिहार की राजधानी पटना से लगभग 25 किमी तथा वैशाली जिले के मुख्यालय हाजीपुर से ३ किलोमीटर दूर सोनपुर में गंडक के तट पर लगने वाले इस मेले ने देश में पशु मेलों को एक अलग पहचान दी है। इस महीने के बाकी मेलों के उलट यह मेला कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के बाद शुरू होता है। एक समय इस पशु मेले में मध्य एशिया से कारोबारी आया करते थे। अब भी यह एशिया का सबसे बडा पशु मेला माना जाता है। सोनपुर पशु मेला में आज भी नौटंकी और नाच देखने के लिए भीड़ उमड़ती है। एक जमाने में यह मेला जंगी हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र था। मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य (340 ई॰पु॰ -298 ई॰पु), मुगल सम्राट अकबर और 1857 के गदर के नायक वीर कुँवर सिंह ने भी से यहां हाथियों की खरीद की थी। सन् 1803 में रॉबर्ट क्लाइव ने सोनपुर में घोड़े के बड़ा अस्तबल भी बनवाया था। एक दौर में सोनपुर मेले में नौटंकी की मल्लिका गुलाब बाई का जलवा होता था। सोनपुर मेला में भू-राजस्व विभाग का स्टॉल से बिहार के सभी राजस्व ग्रामों का डिजिटल मानचित्र 150 रूपये मात्र सरकारी शुल्क के द्वारा कोई भी नागरिक तीन मिनट के अन्दर प्राप्त कर सकते हैं। यह कार्य राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र पटना के तकनीकी सहयोग के द्वारा किया गया है। समय के बदलते प्रभाव के असर से हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला, पशु बाजारों से हटकर अब आटो एक्स्पो मेले का रूप लेता जा रहा है। पिछले कई वर्षों से इस मेले में कई कंपनियों के शोरूम तथा बिक्री केंद्र यहां खुल रहे हैं। मेले में रेल ग्राम प्रदर्शनी लगी। रेलग्राम में टॉय ट्रेन चलाई जा रही। सोनपुर मेले के प्रति विदेशी पर्यटकों में भी खास आकर्षण देखा जाता है। जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस एवं अन्य विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए स्विस कॉटेजों का निर्माण किया जाता है। पर्यटकों को पटना एयरपोर्ट से सोनपुर मेला आने व जाने के लिए प्रीपेड टैक्सी भी उपलब्ध कराई जायेगी। मेलों से जुडे तमाम आयोजन तो यहां होते ही हैं। यहां हाथियों व घोडों की खरीद हमेशा से सुर्खियों में रहती है। पहले यह मेला हाजीपुर में होता था। सिर्फ हरिहर नाथ की पूजा सोनपुर में होती थी लेकिन बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश से मेला भी सोनपुर में ही लगने लगा। 2001 में, सोनपुर मेला में लाया गया हाथियों की संख्या 92 थी, जबकि 2016 में 13 हाथियों ने इसे मेले में बनाया, केवल प्रदर्शन के लिए, बिक्री के लिए नहीं। 2017 में, मेले में 3 टस्कर था। हरिहर क्षेत्र 2017 सोनपुर मेला 32 दिनों का होगा। सोनपुर मेले का उदघाटन इस बार 2 नवंबर को तथा समापन 3 दिसंबर को किया जाएगा। मेला में नौका दौड़, दंगल, वाटर सर्फिंग, वाटर के¨नग सहित विभिन्न प्रकार के खेल व प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाएगा। .

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कार्तिक

हिन्दू पंचांग के अनुसार साल के आठवें माह का नाम कार्तिक हैं। .

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