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त्रिभुज

सूची त्रिभुज

त्रिभुज (Triangle), तीन शीर्षों और तीन भुजाओं वाला एक बहुभुज (Polygon) होता है। यह ज्यामिति की मूल आकृतियों में से एक है। शीर्षों A, B, और C वाले त्रिभुज को \triangle ABC द्वारा दर्शाया जाता है। यूक्लिडियन ज्यामिति में कोई भी तीन असंरेखीय बिन्दु, एक अद्वितीय त्रिभुज का निर्धारण करते हैं और साथ ही, एक अद्वितीय तल (यानी एक द्वि-विमीय यूक्लिडियन समतल) का भी। दूसरे शब्दों में, तीन सरल रेखाओं से घिरी बंद आकृति को त्रिभुज या त्रिकोण कहते हैं। त्रिभुज में तीन भुजाएं और तीन कोण होते हैं। त्रिभुज सबसे कम भुजाओं वाला बहुभुज है। किसी त्रिभुज के तीनों आन्तरिक कोणों का योग सदैव 180° होता है। इन भुजाओं और कोणों के माप के आधार पर त्रिभुज का विभिन्न प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है। .

38 संबंधों: त्रिभुज के अन्तर्वृत्त और बहिर्वृत्त, त्रिभुज असमिका, त्रिभुजों के हल, त्रिकोणमितीय फलन, त्रिकोणीय सर्वेक्षण, थेल्स का प्रमेय, न्यूनकोण त्रिभुज तथा अधिककोण त्रिभुज, परिमाप, परिवृत्त, पायथागॉरियन प्रमेय, पाइथागोरस प्रमेय, प्रतिलोम त्रिकोणमितीय फलन, बहुभुज, यूक्लिड, यूक्लिडीय ज्यामिति, सदिश गुणनफल, समद्विबाहु त्रिभुज, समबाहु त्रिभुज, समरूपता, समान्तर चतुर्भुज, समकोण त्रिभुज, सर्वांगसमता, संहति-केन्द्र, हीरोन का सूत्र, ज्या, ज्यामिति, घनत्व, विषमबाहु त्रिभुज, व्यास (ज्यामिति), गुरुत्वाकर्षण, आयत, आर्यभट, आर्यभटीय, कार्तीय निर्देशांक पद्धति, क्षेत्रफल, केंद्रक (ज्यामितीय), कोज्या नियम, अदिश गुणनफल

त्रिभुज के अन्तर्वृत्त और बहिर्वृत्त

ज्यामिति में, किसी त्रिभुज का अन्तर्वृत्त (या, अन्तःवृत्त / incircle) वह बड़ा से बड़ा वृत्त है जो उस त्रिभुज के अन्दर बनाया जा सकता है। वस्तुतः, अन्तःवृत्त तीनों भुजाओं को स्पर्श करता है। इसका केन्द्र 'अन्तःकेन्द्र' (incenter) कहलाता है। किसी त्रिभुज के तीन बहिर्वृत्त (excircle या escribed circle) होते हैं। ये तीनों वृत्त उस त्रिभुज के बाहर होते हैं। इनमें से प्रत्येक वृत्त, त्रिभुज की किसी एक भुजा को तथा शेष दो भुजाओं को आगे बढाने से बनी दो रेखाओं को स्पर्श करता है। .

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त्रिभुज असमिका

त्रिभुज असमिका के तीन उदाहरण गणित में त्रिभुज असमिका (triangle inequality) यह है- यदि x, y और z किसी त्रिभुज की भुजाओं की लम्बाई हैं, तो त्रिभुज असमिका के अनुसार, दूसरे शब्दों में, किसी त्रिभुज ABC में, इन असमिकाओं से निम्नलिखित असमिका निकाली जा सकती है- इसका ज्यामितीय अर्थ यह है- त्रिभुज की किन्हीं दो भुजाओं की लम्बाई का अन्तर तीसरी भुजा के बराबर या उससे छोटा होता है। .

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त्रिभुजों के हल

त्रिभुज के हल का विहंगम अवलोकन त्रिकोणमिति में 'त्रिभुज का हल' का मतलब त्रिभुज के सभी तीन कोण तथा तीन भुजाओं की लम्बाई ज्ञात करना है। इस समस्या में कुछ जानकारी दी होती है और शेष की गणना करनी होती है। नीचे कुछ प्रमुख स्थितियाँ दी गयीं है (S .

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त्रिकोणमितीय फलन

right गणित में त्रिकोणमितीय फलन (trigonometric functions) या 'वृत्तीय फलन' (circular functions) कोणों के फलन हैं। ये त्रिभुजों के अध्ययन में तथा आवर्ती संघटनाओं (periodic phenomena) के मॉडलन एवं अन्य अनेकानेक जगह प्रयुक्त होते हैं। ज्या (sine), कोज्या (कोज) (cosine) तथा स्पर्शज्या (स्पर) (tangent) सबसे महत्व के त्रिकोणमितीय फलन हैं। ईकाई त्रिज्या वाले मानक वृत्त के संदर्भ में ये फलन सामने के चित्र में प्रदर्शित हैं। इन तीनों फलनों के व्युत्क्रम फलनों को क्रमशः व्युज्या (व्युज) (cosecant), व्युकोज्या (व्युक) (secant) तथा व्युस्पर्शज्या (व्युस) (cotangent) कहते हैं। .

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त्रिकोणीय सर्वेक्षण

उन्नीसवीं शती का राइनलैण्ड-हेस्स क्षेत्र का त्रिकोणीय सर्वेक्षण त्रिकोणीय सर्वेक्षण (Triangulation) उस विधि का नाम है जिसमें सर्वेक्षण के लिये दिये गये क्षेत्र को त्रिकोणीय टुकड़ों के जाल के रूप में बाँटकर सर्वेक्षण को सरलतापूर्वक कर लिया जाता है। इसका सिद्धान्त बहुत सरल है - ज्ञात दूरी पर स्थित किन्हीं भी दो बिंदुओं से किसी तीसरे बिंदु द्वारा बनाये गये कोणों को मापकर त्रिकोणमित्तीय सर्वसमिकाओं की सहायता से उस तीसरे बिन्दु की सही स्थिति निर्धारित की जा सकती है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें दूरी का मापन कम से कम करना पड़ता है और कोणों के मापन से काम चल जाता है। कोणों का मापन अधिक शुद्धता से, कम समय मे, कम श्रम से हो जाता है। सामान्यत:, जहाँ दो दूर के बिंदुओं के बीच सीधी दूरी नाप पाना संभव न हो, मगर वे आपस मे दृष्टिगत हों, वहाँ त्रिकोणीय सर्वेक्षण बड़ा लाभप्रद होता है। ट्रैंगुलेशन के उपयोग द्वारा समुद्र में स्थित किसी जलयान की तट से दूरी और उसके निर्देशांक निकाले जा सकते हैं। '''A''' बिन्दु पर स्थित प्रेक्षक कोण '''α''' मापता है; इसी प्रकार, बिन्दु '''B''' पर स्थित प्रेक्षक कोण '''β''' मापता है। यदि A और B के बीच की दूरी या उनके निर्देशांक ज्ञात हों तो ज्या सूत्र की सहायता से '''C''' बिन्दु पर स्थित जहाज के निर्देशांक तथा दूरी '''d''' निकाली जा सकती है। यदि ऐसे त्रिभुज की एक, दो या तीनों भुजाओं पर क्रमानुगत त्रिभुज बनाते चले जाएँ और प्रारंभिक त्रिभुज की एक भुजा, उसके दोनों शीर्ष बिंदुओं के नियामक (coordinate) और बनाए गए सभी त्रिभुजों के कोण ज्ञात हों, तो ऐसी संपूर्ण त्रिभुजमाला की भुजाओं की लंबाइयाँ और त्रिभुज बनानेवाले बिंदुओं के नियामक और बनाए गए सभी त्रिभुजों के कोण ज्ञात हों, तो ऐसी संपूर्ण त्रिभुजमाला की भुजाओं की लंबाइयाँ और त्रिभुज बनानेवाले बिंदुओं के नियामक गणितीय कलन (computations) से ज्ञात किए जा सकते हैं। किसी भी क्षेत्र का मानचित्र बनाने के लिये इस प्रकार के बिंदु संपूर्ण क्षेत्र में समान रूप से बिखरें हुए स्थापित करना आवश्यक होता है। ऐसे बिंदुओं को सामूहिक रूप में सर्वेक्षण हेतु 'नियंत्रण ढाँचा' और प्रत्येक बिंदु को अलग अलग 'सर्वेक्षण स्टेशन' कहते हैं। त्रिकोणीय सर्वेक्षण में गणना में त्रिकोणमित्तीय सर्वसमिकाओं की सहायता ली जाती है जिनमे निम्नलिखित प्रमुख हैं -.

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थेल्स का प्रमेय

यदि AC वृत्त का व्यास हो तो कोण ABC हमेशा 90 डिग्री होगा। ज्यामिति में थेल्स के प्रमेय (Thales' theorem) के अनुसार किसी भी वृत्त के परिधि पर स्थित तीन बिन्दुओं A, B तथा C हो तो कोण ABC का मान ९० अंश होगा यदि AB उस वृत्त का कोई व्यास हो। यह प्रमेय 'अन्तःनिर्मित कोण प्रमेय' (inscribed angle theorem) का एक विशेष रूप है। प्रायः इस प्रमेय के खोज का श्रेय थेल्स को दिया जाता है किन्तु कभी-कभी पाइथागोरस को भी इसका आविष्कारकर्ता माना जाता है। .

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न्यूनकोण त्रिभुज तथा अधिककोण त्रिभुज

न्यूनकोण त्रिभुज (acute triangle) उस त्रिभुज को कहते हैं जिसके तीनों कोण, न्यूनकोण (90° से कम) हों। अधिककोण त्रिभुज (obtuse triangle) उस त्रिभुज को कहते हैं जिसका कोई कोण, अधिककोण (90° से अधिक) हो। चूँकि त्रिभुज के तीनों कोणों का योग १८० डिग्री होता है, अतः किसी भी त्रिभुज में दो कोण, अधिककोण नहीं हो सकते। जिस त्रिभुज का एक कोण ९० डिग्री का हो, उसे समकोण त्रिभुज कहते हैं। श्रेणी:गणित.

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परिमाप

द्विबीमीय आकृतियाँ जिन रेखाखण्डों से घिरी होती हैं (अर्थात मिलकर बनी होती हैं) उन सभी के लम्बाइयों का योग परिमाप या परिमिति कहलाता है। परिमाप शब्द दो शब्दो से मिलकर बना है - परि और माप। 'परि' का अर्थ होता है "चारों ओर" और माप का अर्थ होता है "मापना"। अर्थात किसी आकृति के सभी भुजाओं के माप को परिमाप (Perimeter) कहते हैं। जैसे- आयत का परिमाप उसकी चारों भुजाओं के योग के बराबर होता है; वर्ग का परिमाप उसकी भुजा का चार गुना होता है; आदि। हम किसी भी आकृति का परिमाप उसके सभी भुजाओं की लम्बाई को जोड़कर ज्ञात कर सकते है। .

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परिवृत्त

ज्यामिति में किसी बहुभुज का परिवृत्त (circumscribed circle) ऐसा वृत्त होता है जो उस बहुभुज के हर शीर्ष से गुज़रता हो। इस वृत्त के केन्द्र को परिकेन्द्र (circumcenter) और त्रिज्या (रेडियस) को परित्रिज्या (circumradius) कहते हैं। प्रत्येक बहुभुज ऐसा नहीं होता कि उसके लिए एक परिगत वृत्त बनाया जा सके और जिसके लिए परिगत वृत्त सम्भव होता है उसे वृत्तीय बहुभुज (cyclic polygon) कहा जाता है। सारे सम-सरल बहुभुज (regular simple polygon), त्रिभुज और आयत वृत्तीय होते हैं। .

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पायथागॉरियन प्रमेय

पायथागॉरियन प्रमेय: दो वर्गों के क्षेत्रों का जोड़ (a और b) पैरों पर कर्ण पर वर्ग के क्षेत्र (c) बराबर होता है। गणित में, पायथागॉरियन प्रमेय (अमेरिकी अंग्रेजी) या पायथागॉरस' प्रमेय (ब्रिटिश अंग्रेजी) युक्लीडीयन ज्यामिति में एक समकोण त्रिकोण(समकोण त्रिकोण - ब्रिटिश अंग्रेजी) के तीन पार्श्वों के बीच एक रिश्ता है। इस प्रमेय को आमतौर पर एक समीकरण के रूप में लिखा जाता है: जहाँ c कर्ण की लंबाई को प्रतिनिधित्व करता है और a और b अन्य दो पार्श्वों की लंबाई को प्रतिनिधित्व करते हैं। शब्दों में:समकोण त्रिकोण के कर्ण का वर्ग अन्य दो पार्श्वों के वर्गों की राशि के बराबर है।पायथागॉरियन प्रमेय यूनानी गणितज्ञ पायथागॉरस के नाम पर रखा गया है, जिन्हें रिवाज से अपनी अपनी खोज और प्रमाण का श्रेय दिया जाता है,हेथ, ग्रंथ I,p.

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पाइथागोरस प्रमेय

'''बौधायन का प्रमेय''': समकोण त्रिभुज की दो भुजाओं की लम्बाइयों के वर्गों का योग कर्ण की लम्बाई के वर्ग के बराबर होता है। पाइथागोरस प्रमेय (या, बौधायन प्रमेय) यूक्लिडीय ज्यामिति में किसी समकोण त्रिभुज के तीनों भुजाओं के बीच एक सम्बन्ध बताने वाला प्रमेय है। इस प्रमेय को आमतौर पर एक समीकरण के रूप में निम्नलिखित तरीके से अभिव्यक्त किया जाता है- जहाँ c समकोण त्रिभुज के कर्ण की लंबाई है तथा a और b अन्य दो भुजाओं की लम्बाई है। पाइथागोरस यूनान के गणितज्ञ थे। परम्परानुसार उन्हें ही इस प्रमेय की खोज का श्रेय दिया जाता है,हेथ, ग्रंथ I,p.

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प्रतिलोम त्रिकोणमितीय फलन

गणित में त्रिकोणमितीय फलनों के प्रतिलोम फलनों को प्रतिलोम त्रिकोणमितीय फलन (inverse trigonometric functions) कहते हैं। इनके डोमेन समुचित रूप से सीमित करके पारिभाषित किये गये हैं। इन्हें sin−1, cos−1 आदि के रूप में निरूपित करते हैं और 'साइन इन्वर्स', 'कॉस इन्वर्स' आदि बोलते हैं।.

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बहुभुज

त्रिभुज, चतुर्भुज, अष्टभुज आदि सभी 'बहुभुज' कहलाते हैं। बहुभुज (Polygon) एक समतल सतह पर बनी ज्यामितीय आकृतियों का सामान्य नाम है। बहुभुज कई सरल रेखाओं से बंद होता है। इन सरल रेखाओं को बहुभुज की 'भुजा' कहते हैं। जहां दो भुजाएँ मिलती हैं वह कोण कहलाता है। बहुभुज अंग्रेजी शब्द 'पोलीगोन' का हिंदी रूपांतरण है। अंग्रेजी में पोलीगोन शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों को मिलने से बना है। इसमें पहला शब्द पोली यानी बहुत और गोनिया यानी कोण.

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यूक्लिड

यूक्लिड यूक्लिड (Euclid; 300 ईसा पूर्व), या उकलैदिस, प्राचीन यूनान का एक गणितज्ञ था। उसे "ज्यामिति का जनक" कहा जाता है। उसकी एलिमेण्ट्स (Elements) नामक पुस्तक गणित के इतिहास में सफलतम् पुस्तक है। इस पुस्तक में कुछ गिने-चुने स्वयंसिद्धों (axioms) के आधार पर ज्यामिति के बहुत से सिद्धान्त निष्पादित (deduce) किये गये हैं। इनके नाम पर ही इस तरह की ज्यामिति का नाम यूक्लिडीय ज्यामिति पड़ा। हजारों वर्षों बाद भी गणितीय प्रमेयों को सिद्ध करने की यूक्लिड की विधि सम्पूर्ण गणित का रीढ़ बनी हुई यूक्लिड ने शांकवों, गोलीय ज्यामिति और संभवत: द्विघातीय तलों पर भी पुस्तकें लिखीं। .

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यूक्लिडीय ज्यामिति

Rajesh Dubey- यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड की ज्यामिति पर रचित पुस्तक 'एलिमेन्ट्स' पर आधारित गणितीय प्रणाली को यूक्लिडीय ज्यामिति (Euclidean geometry) कहा जाता है। .

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सदिश गुणनफल

दो सदिशों का सदिश गुणनफल (या, क्रॉस गुणनफल) गणित तथा सदिश बीजगणित में, दो सदिशों a और b का सदिश गुणनफल (vector product) या क्रॉस गुणनफल (cross product), वह सदिश है जिसकी दिशा a और b दोनों के लम्बवत होती है तथा परिमाण |\vec|\, |\vec|\, \sin\theta के बराबर होता है। गणित, भौतिकी, इंजीनियरी तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में सदिश गुणनफल के अनेक उपयोग हैं। यह सदिशों के डॉट गुणनफल से अलग है। श्रेणी:सदिश बीजगणित.

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समद्विबाहु त्रिभुज

समद्विबाहु त्रिभुज (Isosceles Triangle) ज्यामिति की एक आकृति है जिसकी कोई दो भुजाएं समान हों। .

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समबाहु त्रिभुज

ज्यामिति में समबाहु त्रिभुज (equilateral triangle) वह त्रिभुज है जिसकी तीनों भुजाएं समान लम्बाई की हों। यूक्लिडीय ज्यामिति में, समबाहु त्रिभुज के तीनों कोण भी समान (६० डिग्री के) होते हैं। .

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समरूपता

इस चित्र में समान रंग में रंगे गये ज्यामितीय आकृयाँ परस्पर समरूप हैं। यदि दो ज्यामितीय वस्तुओं का आकार (स्वरूप) समान हो तो उन्हें समरूप (similar) कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, यदि दूसरी आकृति की सभी लम्बाइयों को समान अनुपात में घटाकर या बढ़ाकर पहली आकृति प्राप्त की जा सकती है तो ये दोनो आकृतियाँ परस्पर समरूप हैं। किन्ही दो समरूप बहुभुजों की संगत भुजाएं समानुपाती होतीं हैं और संगत कोणों के मान समान होते हैं। सभी वृत्त समरूप होते हैं। दो दीर्घवृत्तों के दीर्घ अक्षों का अनुपात उनके लघु-अक्षों के अनुपात के बराबर हो तो वे भी समरूप होंगे। .

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समान्तर चतुर्भुज

समान्तर चतुर्भुज (Parallelogram) ज्यामिति की एक आकृति है। Area of parallelogram.

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समकोण त्रिभुज

ज्यामिति में समकोण त्रिभुज की परिभाषा एक ऐसे त्रिभुज के रूप में की जाती है जिसका एक कोण 90 अंश का (अर्थात, समकोण) हो। समकोण के सामने वाली भुजा कर्ण कहलाती है। इसकी भुजाओं की लम्बाई के बीच में एक विशेष सम्बन्ध होता है जिसे बौधायन प्रमेय द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसे शब्दों में इस प्रकार व्यक्त करते हैं- 300px.

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सर्वांगसमता

'''सर्वांगसमता''' का एक उदाहरण - वायीं तरफ् की दो आकृतियाँ सर्वांगसम हैं; तीसरी आकृति उनके समरूप है; अन्तिम आकृति, पहली दो आकृतियों के '''न''' तो सर्वांगसम है न ही समरूप। ज्यामिति में बिन्दुओं के दो समुच्चय को परस्पर सर्वांगसम (congruent) कहते हैं यदि उनमें से किसी एक समुच्चय को स्थानान्तरण (translation), घूर्णन (rotation), परावर्तन (reflection) या इनके मिश्रित क्रियाओं के द्वारा परिवर्तित करने पर दूसरा समुच्चय प्राप्त किया जा सके। सर्वांगसम .

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संहति-केन्द्र

अलग-अलग द्रव्यमान वाली चार गेंदों के निकाय का '''संहति-केन्द्र भौतिकी में, संहतियों के किसी वितरण का संहति-केंद्र (center of mass) वह बिन्दु है जिस पर वह सारी संहतियाँ केन्द्रीभूत मानी जा सकती हैं। संहति केन्द्र के कुछ विशेष गुण हैं, उदाहरण के लिये यदि किसी वस्तु पर कोई बल लगाया जाय जिसकी क्रियारेखा उस वस्तु के संहति-केन्द्र से होकर जाती हो तो उस वस्तु में केवल स्थानातरण गति होगी (घूर्णी गति नहीं)। संहति-केन्द्र के सापेक्ष उस वस्तु में निहित सभी संहतियों के आघूर्णों (मोमेण्ट) का योग शून्य होता है। दूसरे शब्दों में, संहति-केन्द्र के सापेक्ष, सभी संहतियों की स्थिति का भारित औसत (वेटेड एवरेज) शून्य होता है। कणों के किसी निकाय का संहति केन्द्र वह बिन्दु है जहाँ, अधिकांश उद्देश्यों के लिए, निकाय ऐसे गति करता है जैसे निकाय का सब द्रव्यमान उस बिन्दु पर संकेंद्रित हो। संहति केन्द्र, केवल निकाय के कणों के स्थिति-सदिश और द्रव्यमान पर निर्भर होता है। संहति केन्द्र पर वास्तविक पदार्थ होना अनिवार्य नहीं है (जैसे, एक खोखले गोले का संहति-केन्द्र उस गोले के केन्द्र पर होता है जहाँ कोई द्रव्यमान ही नहीं है)। गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के एकसमान होने की स्थिति में कभी-कभी इसे गलती से गुरुत्वाकर्षण केन्द्र भी कहा जाता है। किसी वस्तु का रेखागणितीय केन्द्र, द्रव्यमान केन्द्र तथा गुरुत्व केन्द्र अलग-अलग हो सकते हैं। संवेग-केन्द्रीय निर्देश तंत्र वह निर्देश तंत्र है जिसमें निकाय का द्रव्यमान केन्द्र स्थिर है। यह एक जड़त्वीय फ्रेम है। एक द्रव्यमान-केन्द्रीय निर्देश तंत्र वह तंत्र है जहाँ द्रव्यमान केन्द्र न केवल स्थिर है बल्कि निर्देशांक निकाय के मूल बिन्दु पर स्थित है। .

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हीरोन का सूत्र

एक त्रिभुज जिसकी भुजाएँ a, b तथा c हैं। ज्यामिति में हीरोन का सूत्र (Heron's formula) त्रिभुज की तीनों भुजाएँ ज्ञात होने पर उसका क्षेत्रफल निकालने का एक सूत्र है। इसे 'हीरो का सूत्र' (Hero's formula) भी कहते हैं। सूत्र का यह नाम अलेक्जैण्ड्रिया के हीरोन के नाम पर पड़ा है। इस सूत्र के अनुसार, यदि किसी त्रिभुज की तीन भुजाएँ a, b और c हों तो उसका क्षेत्रफल जहाँ s उस त्रिभुज का अर्धपरिमाप है, अर्थात् हीरोन का सूत्र चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने के लिए ब्रह्मगुप्त के सूत्र की एक विशेष स्थिति (केस) है। ब्रह्मगुप्त का सूत्र यह है: जहाँ, .

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ज्या

समकोण त्रिभुज में किसी कोण की ज्या उस कोण के सामने की भुजा और कर्ण के अनुपात के बराबर होती है। गणित में ज्या (Sine), एक त्रिकोणमितीय फलन का नाम है। समकोण त्रिभुज में का समकोण के अलावा एक कोण x है तो, उदाहरण के लिये, यदि कोण का मान डिग्री में हो तो, .

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ज्यामिति

ब्रह्मगुप्त ब्रह्मगुप्त का प्रमेय, इसके अनुसार ''AF'' .

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घनत्व

भौतिकी में किसी पदार्थ के इकाई आयतन में निहित द्रव्यमान को उस पदार्थ का घनत्व (डेंसिटी) कहते हैं। इसे ρ या d से निरूपित करते हैं। अर्थात अतः घनत्व किसी पदार्थ के घनेपन की माप है। यह इंगित करता है कि कोई पदार्थ कितनी अच्छी तरह सजाया हुआ है। इसकी इकाई किग्रा प्रति घन मीटर होती है। .

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विषमबाहु त्रिभुज

विषमबाहु त्रिभुज (Scalene triangle) की सभी भुजाएँ आसमान होती हैं। .

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व्यास (ज्यामिति)

ज्यामिति में व्यास (diameter) किसी वृत्त में ऐसी रेखांश होती है जो वृत्त के केन्द्र से निकले और जिसके अंतबिन्दु वृत्त पर स्थित हों। इसकी लम्बाई वृत्त की अधिकतम चौड़ाई भी होती है और यह त्रिज्या (radius) से दुगनी लम्बी होती है। इसे वृत्त की सबसे लम्बी सम्भव जीवा (chord) भी कहा जा सकता है। वृत्त के अलावा गोले (sphere) में भी इसी प्रकार का व्यास होता है। .

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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आयत

आयत ऐसा चतुर्भुज जिसके चारों अंतः कोण समकोण हों उसे आयत (रेक्टैंगल) कहते हैं। .

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आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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आर्यभटीय

आर्यभटीय नामक ग्रन्थ की रचना आर्यभट प्रथम (४७६-५५०) ने की थी। यह संस्कृत भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में १२३ श्लोक हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है। इसके चार अध्याय इस प्रकार हैं: 1.

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कार्तीय निर्देशांक पद्धति

Fig. 1 - कार्तीय निर्देशांक पद्धति. चार बिन्दु प्रकट हैं: (2,3) हरे मै, (-3,1) लाल मै, (-1.5,-2.5) नीले मै और (0,0), मूल बिन्दु, पीले में. गणित में कार्तीय निर्देशांक पद्धति (cartesian coordinate system), समतल मे किसी बिन्दु की स्थिति को दो अंको के द्वारा अद्वितीय रूप से दर्शाने के लिए प्रयुक्त होती है। इन दो अंको को उस बिन्दु के क्रमशः X-निर्देशांक व Y-निर्देशांक कहा जाता है। इसके लिये दो लंबवत रेखाएं निर्धारित की जाती हैं जिन्हे X-अक्ष और Y-अक्ष कहते हैं। इनके कटान बिन्दु को मूल बिन्दु (origin) कहते हैं। जिस बिन्दु की स्थिति दर्शानी होती है, उस बिन्दु से इन अक्षों पर लम्ब डाले जाते हैं। इस बिन्दु से Y-अक्ष की दूरी को उस बिन्दु का X-निर्देशांक या भुज कहते हैं। इसी प्रकार इस बिन्दु की X-अक्ष से दूरी को उस बिन्दु का Y-निर्देशांक या कोटि कहते है। उदाहरण के लिये यदि किसी बिन्दु की Y-अक्ष से (लम्बवत) दूरी a तथा X-अक्ष से दूरी b हो तो क्रमित-युग्म (a,b) को उस बिन्दु का कार्तीय निर्देशांक कहते हैं। .

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क्षेत्रफल

किसी तल (समतल या वक्रतल) के द्वि-बीमीय (द्वि-आयामी) आकार के परिमाण (माप) को क्षेत्रफल कहते हैं। जिस क्षेत्र के क्षेत्रफल की बात की जाती है वह क्षेत्र प्रायः किसी बन्द वक्र (closed curve) से घिरा होता है। इसे प्राय: m2 (वर्ग मीटर) में मापा जाता है। .

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केंद्रक (ज्यामितीय)

त्रिभुज का केन्द्रक ज्यामिति में किसी समतल आकृति का केन्द्रक (centroid, geometric center, या barycenter) वह बिंदु है जिससे जाने वाली प्रत्येक रेखा उस आकृति को दो सामान आघूर्ण (moment) वाले दो भागों में विभक्त करती है। (आघूर्ण, उस रेखा के सापेक्ष लिए गए हों)। त्रिभुज की माध्यिकाओं का कटान बिंदु ही उस त्रिभुज का केन्द्रक होता है। .

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कोज्या नियम

चित्र 1 – त्रिभुज, जिसमें कोण ''α'', ''β'', तथा ''γ'' क्रमशः भुजाओं ''a'', ''b'', and ''c'' के सामने के कोण हैं। त्रिकोणमिति में एक सामान्य त्रिभुज के लिये निम्नलिखित संबन्ध को कोज्या नियम (law of cosines) या कोज्या सूत्र कहते हैं (सन्दर्भ चित्र १) - कोज्या नियम पाइथागोरस के प्रमेय का सामान्यीकृत स्थिति (केस) है, अर्थात \gamma\ .

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अदिश गुणनफल

दो सदिशों का '''डॉट गुणनफल''' या '''अदिश गुणनफल''' दो सदिशों A और B का डॉट गुणनफल या अदिश गुणनफल एक अदिश राशि होती है, जिसका मान निम्नलिखित समीकरण से दिया जाता है- जहाँ θ वह कोण है जो सदिश ||A|| और सदिश ||B|| के बीच में बनता है। .

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