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तुल्यकालन (प्रत्यावर्ती धारा)

सूची तुल्यकालन (प्रत्यावर्ती धारा)

प्रत्यावर्ती धारा विद्युत प्रणाली के सन्दर्भ में, दो युक्तियों (जैसे जनित्र और विद्युत नेटवर्क) की आवृत्ति तथा वोल्टता (आर एम एस नहीं, ताक्षणिक वोल्तता) को समान करने की क्रिया को तुल्यकालन (synchronization) कहते हैं। तुल्यकालन की आवश्यकता कई स्थियों में पड़ सकती है। उदाहरण के लिये एक अल्टरनेटर को किसी पहले से कार्यरत ए सी विद्युत नेटवर्क से जोड़ना हो (अर्थात, समान्तर करना हो), तो अल्टरनेटर को पहले उस नेटवर्क के साथ तुल्यकालिक बनाना पड़ेगा, उसके बाद ही इसे नेटवर्क से जोड़ा जा सकता है। बिना तुल्यकालिक किये सीधे नेटवर्क से जोड़ने पर एक प्रकार का 'शार्ट सर्किट' बनता है और बहुत अधिक धारा प्रवाहित होगी। इसी प्रकार यदि दो विद्युत ग्रिडें बिना आपस में जुड़े काम कर रहीं हैं, यदि उन्हें जोड़ना है तो पहले दोनों को एक दूसरे के तुल्यकालिक करना पड़ेगा। .

3 संबंधों: तुल्यकालन, प्रत्यावर्ती धारा, अल्टरनेटर

तुल्यकालन

अग्निरक्षकों की परेड, तुल्यकालिक होती है। यदि किसी प्रणाली (सिस्टम) में बहुत सारी घटनाएँ हैं तो उन घटनाओं को को सही समय पर और सही क्रम में करने के लिए आवश्यक प्रयत्न तुल्यकालन (Synchronization) कहलाता है। उदाहरण के लिए, किसी आर्केस्ट्रा का संचालक आर्केस्ट्रा को तुल्यकालित रखता है। जिस प्रणाली के सभी घटनाएँ तुल्यकालित रूप में घटित होतीं हैं उसे तुल्यकालिक तंत्र कहते हैं। इसके विपरीत तंत्र को अतुल्यकालिक तंत्र कहते हैं। आजकल, यदि किसी विशाल प्रणाली के विभिन्न घटक विश्व के विभिन्न भागों (देशों) में भी फैले हों तो उपग्रह नौवहन प्रणाली की सहायता से उसे भी तुल्यकालित रखना सम्भव है। .

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प्रत्यावर्ती धारा

प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जो किसी विद्युत परिपथ में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। इसके विपरीत दिष्ट धारा समय के साथ अपनी दिशा नहीं बदलती। भारत में घरों में प्रयुक्त प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति ५० हर्ट्स होती हैं अर्थात यह एक सेकेण्ड में पचास बार अपनी दिशा बदलती है। वेस्टिंगहाउस का आरम्भिक दिनों का प्रत्यावर्ती धारा निकाय प्रत्यावर्ती धारा या पत्यावर्ती विभव का परिमाण (मैग्निट्यूड) समय के साथ बदलता रहता है और वह शून्य पर पहुंचकर विपरीत चिन्ह का (धनात्मक से ऋणात्मक या इसके उल्टा) भी हो जाता है। विभव या धारा के परिमाण में समय के साथ यह परिवर्तन कई तरह से सम्भव है। उदाहरण के लिये यह साइन-आकार (साइनस्वायडल) हो सकता है, त्रिभुजाकार हो सकता है, वर्गाकार हो सकता है, आदि। इनमें साइन-आकार का विभव या धारा का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। आजकल दुनिया के लगभग सभी देशों में बिजली का उत्पादन एवं वितरण प्रायः प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही किया जाता है, न कि दिष्ट-धारा (डीसी) के रूप में। इसका प्रमुख कारण है कि एसी का उत्पादन आसान है; इसके परिमाण को बिना कठिनाई के ट्रान्सफार्मर की सहायता से कम या अधिक किया जा सकता है; तरह-तरह की त्रि-फेजी मोटरों की सहायता से इसको यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इसके अलावा श्रव्य आवृत्ति, रेडियो आवृत्ति, दृश्य आवृत्ति आदि भी प्रत्यावर्ती धारा के ही रूप हैं। .

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अल्टरनेटर

अल्टरनेटर का कार्य-सिद्धान्त अल्टरनेटर प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न करने वाला विद्युत जनित्र है। वस्तुतः यह एक तुल्यकालिक मशीन है। वर्तमान समय में अधिकांश शक्ति संयंत्रों में विद्युत उत्पादन का कार्य अलटरनेटर ही करते हैं। समय के साथ साथ बहुत बड़े बड़े आकार के अलटरनेटर बनने लगते हैं। ५०,००० से १,५०,००० किलोवाट की क्षमतावाले जनित्र अब सामान्य हो गए हैं। ये निरंतर प्रवर्तन करनेवाली मशीनें हैं, इसलिए इनकी संरचना भी अत्यंत मानक आधार (exacting standards) पर होती है। मुख्यत:, यह स्वत: कार्यकारी मशीन होती है और इसके सारे प्रवर्तन दूरस्थ नियंत्रण (remote control) द्वारा नियंत्रित किए जा सकते हैं। क्षेत्र धारा के विचरण से वोल्टता नियंत्रण सुगमता से किया जा सकता है। भार के अनुरूप निवेश (input) स्वयं ही नियंत्रित हो जाता है। इन सब कारणों से वर्तमान विद्युत् जनित्र बहुत ही दक्ष एवं विश्वसनीय होते हैं। वास्तव में इनके विश्वसनीय प्रवर्तन के कारण ही विद्युत् संभरण को विश्वसनीय बनाया जाना संभव हो सका है। .

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