7 संबंधों: धारा स्रोत, प्रतिबाधा, प्रत्यावर्ती धारा, फ़्रान्स, रैखिक परिपथ, श्रेणीक्रम और समानांतरक्रम परिपथ, वोल्टता स्रोत।
धारा स्रोत
प्रतिरोध (दाएँ) से जुड़ा एक धारा स्रोत (बाएँ) एक सरल धारा स्रोत जो बीजेटी का उपयोग करते हुए बना है। धारा स्रोत (current source) वह युक्ति या एलेक्ट्रानिक परिपथ है जो एक नियत धारा देती है या लेती है, चाहे उसके सिरों के बीच विभवान्तर कुछ भी हो। उदाहरण के लिए 1.5 एम्पीयर धारा-स्रोत के सिरों के बीच 1 ओम का प्रतिरोध लागाएँ तो उसमें 1.5 अम्पीयर धारा बहेगी और स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर 1.5 वोल्ट होगा और यदि इस धारा स्रोत के सिरों के बीच 5 ओम का प्रतिरोध जोड़ें तो इस प्रतिरोध में भी 1.5 अम्पीयर धारा बहेगी जबकि इस स्थिति में स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर 7.5 (.
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प्रतिबाधा
विद्युत के सन्दर्भ में, किसी परिपथ पर वोल्टता आरोपित करने पर उसमें धारा के प्रवाह के विरोध की माप का नाम प्रतिबाधा (impedance) है। संख्यात्मक मान की दृष्टि से किसी परिपथ की प्रतिबाधा उस परिपथ के सिरों के बीच समिश्र वोल्टता तथा समिश्र धारा के अनुपात के बराबर होती है। प्रतिबाधा को एसी के लिए प्रतिरोध के विस्तार के रूप में समझा जा सकता है। अर्थात् डीसी में जो भूमिका प्रतिरोध की है वही भूमिका एसी में प्रतिबाधा की है। प्रतिबाधा एक समिश्र संख्या है जिसका परिमाण (magnitude) और कला (phase) दोनों होते हैं। श्रेणी:विद्युत.
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प्रत्यावर्ती धारा
प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जो किसी विद्युत परिपथ में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। इसके विपरीत दिष्ट धारा समय के साथ अपनी दिशा नहीं बदलती। भारत में घरों में प्रयुक्त प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति ५० हर्ट्स होती हैं अर्थात यह एक सेकेण्ड में पचास बार अपनी दिशा बदलती है। वेस्टिंगहाउस का आरम्भिक दिनों का प्रत्यावर्ती धारा निकाय प्रत्यावर्ती धारा या पत्यावर्ती विभव का परिमाण (मैग्निट्यूड) समय के साथ बदलता रहता है और वह शून्य पर पहुंचकर विपरीत चिन्ह का (धनात्मक से ऋणात्मक या इसके उल्टा) भी हो जाता है। विभव या धारा के परिमाण में समय के साथ यह परिवर्तन कई तरह से सम्भव है। उदाहरण के लिये यह साइन-आकार (साइनस्वायडल) हो सकता है, त्रिभुजाकार हो सकता है, वर्गाकार हो सकता है, आदि। इनमें साइन-आकार का विभव या धारा का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। आजकल दुनिया के लगभग सभी देशों में बिजली का उत्पादन एवं वितरण प्रायः प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही किया जाता है, न कि दिष्ट-धारा (डीसी) के रूप में। इसका प्रमुख कारण है कि एसी का उत्पादन आसान है; इसके परिमाण को बिना कठिनाई के ट्रान्सफार्मर की सहायता से कम या अधिक किया जा सकता है; तरह-तरह की त्रि-फेजी मोटरों की सहायता से इसको यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इसके अलावा श्रव्य आवृत्ति, रेडियो आवृत्ति, दृश्य आवृत्ति आदि भी प्रत्यावर्ती धारा के ही रूप हैं। .
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फ़्रान्स
फ़्रान्स,या फ्रांस (आधिकारिक तौर पर फ़्रान्स गणराज्य; फ़्रान्सीसी: République française) पश्चिम यूरोप में स्थित एक देश है किन्तु इसका कुछ भूभाग संसार के अन्य भागों में भी हैं। पेरिस इसकी राजधानी है। यह यूरोपीय संघ का सदस्य है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह यूरोप महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है, जो उत्तर में बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, पूर्व में जर्मनी, स्विट्ज़रलैण्ड, इटली, दक्षिण-पश्चिम में स्पेन, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्यसागर तथा उत्तर पश्चिम में इंग्लिश चैनल द्वारा घिरा है। इस प्रकार यह तीन ओर सागरों से घिरा है। सुरक्षा की दृष्टि से इसकी स्थिति उत्तम नहीं है। लौह युग के दौरान, अभी के महानगरीय फ्रांस को कैटलिक से आये गॉल्स ने अपना निवास स्थान बनाया। रोम ने 51 ईसा पूर्व में इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया गया। फ्रांस, गत मध्य युग में सौ वर्ष के युद्ध (1337 से 1453) में अपनी जीत के साथ राज्य निर्माण और राजनीतिक केंद्रीकरण को मजबूत करने के बाद एक प्रमुख यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरा। पुनर्जागरण के दौरान, फ्रांसीसी संस्कृति विकसित हुई और एक वैश्विक औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित हुआ, जो 20 वीं सदी तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी थी। 16 वीं शताब्दी में यहाँ कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट (ह्यूजेनॉट्स) के बीच धार्मिक नागरिक युद्धों का वर्चस्व रहा। फ्रांस, लुई चौदहवें के शासन में यूरोप की प्रमुख सांस्कृतिक, राजनीतिक और सैन्य शक्ति बन कर उभरा। 18 वीं शताब्दी के अंत में, फ्रेंच क्रांति ने पूर्ण राजशाही को उखाड़ दिया, और आधुनिक इतिहास के सबसे पुराने गणराज्यों में से एक को स्थापित किया, साथ ही मानव और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा के प्रारूप का मसौदा तैयार किया, जोकि आज तक राष्ट्र के आदर्शों को व्यक्त करता है। 19वीं शताब्दी में नेपोलियन ने वहाँ की सत्ता हथियाँ कर पहले फ्रांसीसी साम्राज्य की स्थापना की, इसके बाद के नेपोलियन युद्धों ने ही वर्तमान यूरोप महाद्वीपीय के स्वरुप को आकार दिया। साम्राज्य के पतन के बाद, फ्रांस में 1870 में तृतीय फ्रांसीसी गणतंत्र की स्थापना हुई, हलाकि आने वाली सभी सरकार लचर अवस्था में ही रही। फ्रांस प्रथम विश्व युद्ध में एक प्रमुख भागीदार था, जहां वह विजयी हुआ, और द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्र में से एक था, लेकिन 1940 में धुरी शक्तियों के कब्जे में आ गया। 1944 में अपनी मुक्ति के बाद, चौथे फ्रांसीसी गणतंत्र की स्थापना हुई जिसे बाद में अल्जीरिया युद्ध के दौरान पुनः भंग कर दिया गया। पांचवां फ्रांसीसी गणतंत्र, चार्ल्स डी गॉल के नेतृत्व में, 1958 में बनाई गई और आज भी यह कार्यरत है। अल्जीरिया और लगभग सभी अन्य उपनिवेश 1960 के दशक में स्वतंत्र हो गए पर फ्रांस के साथ इसके घनिष्ठ आर्थिक और सैन्य संबंध आज भी कायम हैं। फ्रांस लंबे समय से कला, विज्ञान और दर्शन का एक वैश्विक केंद्र रहा है। यहाँ पर यूरोप की चौथी सबसे ज्यादा सांस्कृतिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल मौजूद है, और दुनिया में सबसे अधिक, सालाना लगभग 83 मिलियन विदेशी पर्यटकों की मेजबानी करता है। फ्रांस एक विकसित देश है जोकि जीडीपी में दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तथा क्रय शक्ति समता में नौवीं सबसे बड़ा है। कुल घरेलू संपदा के संदर्भ में, यह दुनिया में चौथे स्थान पर है। फ्रांस का शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, जीवन प्रत्याशा और मानव विकास की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में अच्छा प्रदर्शन है। फ्रांस, विश्व की महाशक्तियों में से एक है, वीटो का अधिकार और एक आधिकारिक परमाणु हथियार संपन्न देश के साथ ही यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से एक है। यह यूरोपीय संघ और यूरोजोन का एक प्रमुख सदस्यीय राज्य है। यह समूह-8, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी), विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और ला फ्रैंकोफ़ोनी का भी सदस्य है। .
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रैखिक परिपथ
रैखिक परिपथ (linear circuit) वह परिपथ है जिसमें f आवृत्ति का साइनवक्रीय (साइनस्वायडल) इनपुट वोल्टेज लगाने पर उसके सभी वोल्टेज तथा धाराएँ भी f आवृत्ति की साइनवक्रीय होती हैं। हाँ, यह आवश्यक नहीं है कि सभी वोल्टेज और धारायें इनपुट के फेज में ही हों।.
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श्रेणीक्रम और समानांतरक्रम परिपथ
एक श्रेणीक्रम परिपथ बहुत से विद्युत या इलेक्ट्रॉनिक घटकों या अवयवों को जोड़कर विद्युत परिपथ बनते हैं। परिपथों में घटक दो प्रकार से जोड़े जा सकते हैं: श्रेणीक्रम और समानांतरक्रम में। जिस परिपथ में सभी घटक श्रेणीक्रम में जुड़े हों, उसे श्रेणी परिपथ और जिस परिपथ में सभी घटक समानांतर क्रम में जुड़े हों उसे समानांतर परिपथ कहा जा सकता है। श्रेणी परिपथ में हरेक घटक से समान धारा प्रवाहित होती हैरेस्निक, रॉबर्ट एवं हलिडे, डेविड, फ़िज़िक्स, अध्याय ३२, उदाहरण १(खण्ड I एवं II, संयुक्त संस्करण), जबकि समानांतर परिपथ में हरेक घटक पर समान वोल्टता उपलब्ध होती है।रेस्निक, रॉबर्ट एवं हलिडे, डेविड, फ़िज़िक्स, अध्याय ३२, उदाहरण ४ (खण्ड I एवं II, संयुक्त संस्करण) श्रेणी परिपथों में प्रत्येक घटक का कार्यरत रहना आवश्यक है, अन्यथा परिपथ टूट जायेगा। श्रेणीक्रम परिपथों में कोई भी घटक खराब होने पर भी शेष घटक कार्य करते रहेंगे, किन्तु किसी भी घटक को शॉर्ट सर्किट होने पर पूरा परिपथ शॉर्ट-सर्किट हो सकता है। यदि किसी परिपथ में किसी स्थान पर १० ओम के प्रतिरोध की आवश्यकता है किन्तु वह उपलब्ध नहीं है किन्तु ५-५ ओम के दो प्रतिरोध सुलभ हैं तो इनको श्रेणीक्रम में जोड़कर लगाया जा सकता है। इसी प्रकार यदि २०-२० ओम के दो प्रतिरोध उपलब्ध होने पर उन्हें समान्तरक्रम में जोड़ देने से १० ओम का तुल्य प्रतिरोध प्राप्त हो जाता है। डेढ़-दो वोल्ट सहन कर सकने वाले सैकड़ों बल्बों को श्रेणीक्रम में जोड़कर २३० वोल्ट से घरेलू बिजली से उनको जगमगाया जाता है। कहीं पर २४ वोल्ट की जरूरत हो तो १२ वोल्ट वाली दो बैटरियों को श्रेणीक्रम में जोड़कर २४ वोल्ट प्राप्त किया जा सकता है। परिपथों में भिन्न प्रकार के अवयव भी श्रेणीक्रम या समान्तरक्रम में जुड़े हो सकते हैं उदाहरण के लिये डायोड की रक्षा के लिये उसके श्रेणीक्रम में उपयुक्त मान का फ्यूज लगा दिया जाता है; या पंखे को चालू/बंद करने के लिये उसके श्रेणीक्रम में एक स्विच डाला जाता है। इसी तरह किसी विद्युत-अपघट्टीय संधारित्र में उल्टी दिशा में वोल्टता न लग जाये इसके लिये उसके समान्तरक्रम में एक डायोड (उचित पोलैरिटी में) डाल दिया जाता है। किसी स्थान पर २ अम्पीयर धारा वहन कर सकने वाला डायोड लगाना हो तो १ एम्पीयर धारा वहन कर सकने वाले दो डायोड समान्तरक्रम में लगा देने से भी काम चल सकता है। .
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वोल्टता स्रोत
एक प्रतिरोध (दाहिने) से जुड़ा वोल्टता स्रोत (बाएँ) वोल्टता स्रोत (Voltage source) दो सिरों वाली युक्ति है जिसके सिरों के बीच का विभवान्तर नियत (fixed) हो। भिन्न-भिन्न धारा देने के बावजूद आदर्श वोल्टता स्रोत के सिरों का विभवान्तर नियत बना रहता है। वास्तव में 'आदर्श वोल्टता स्रोत' असम्भव है किन्तु ऐसे वोल्टता स्रोत बनाए जा सकते हैं जिनका गुण आदर्श वोल्टता स्रोत के काफी निकट हो। वास्तविक वोल्टता स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर धारा के साथ कुछ न कुछ बदलता है। इसके अलावा वे अनन्त धारा नहीं दे सकते। वोल्टता स्रोत, धारा स्रोत का द्वैत (dual) है। विद्युत ऊर्जा के प्रमुख स्रोत जैसे बैटरी, जनित्र तथा शक्ति निकाय (power systems) को विश्लेषण के लिए एक आदर्श वोल्टता स्रोत तथा एक प्रतिबाधा (impedance) के श्रेणीक्रम संयोजन के रूप में मॉडल किया जा सकता है। .
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