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तुकोजी होल्कर

सूची तुकोजी होल्कर

तुकोजीराव होल्कर प्रथम (1767-1797) अहिल्याबाई होल्कर का सेनापति था तथा उसकी मृत्यु के बाद होल्करवंश का शासक बन गया था। दूरदर्शिता के अभाव तथा प्रबल महत्वाकांक्षावश इसने महादजी शिन्दे से युद्ध मोल लिया था तथा अंततः पूर्णरूपेण पराजित हुआ था। .

15 संबंधों: तुकोजीराव होलकर द्वितीय, नाना फडणवीस, पुणे, पेशवा, मथुरा, मराठा साम्राज्य, मल्हारराव होलकर, महादजी शिंदे, रघुनाथराव, हिन्दू, हिन्दी विश्वकोश, होलकर, गोविंद सखाराम सरदेसाई, इन्दौर, अहिल्याबाई होल्कर

तुकोजीराव होलकर द्वितीय

महाराजधिराज राज राजेश्वर सवाई श्री सर तुकोजी राव होलकर द्वितीय  (करणजी (खुर्द) ताल - निफाड (नासिक) महाराष्ट्र 3 मई 1835 - महेश्वर 17 जून 1886) इंदौर के होलकर राज्य) के होलकर राजवंश से संबंधित महाराज थे। उनके जन्म का नाम श्रीमंत युकाजी जसवंत होलकर था। होलकर वंश की जमानत के शाखा से सरदार श्रीमंत सन्तोजी राव होलकर के बेटे थे। .

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नाना फडणवीस

नाना फडणवीस, जन्म: 12 फरवरी 1742 ई.- मृत्यु: 13 मार्च 1800 ई., एक अत्यंत चतुर और प्रभावशाली मराठा मंत्री थे, जब पानीपत का तृतीय युद्ध लड़ा जा रहा था उस समय वे पेशवा की सेवा में नियुक्त थे। वह अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिये बहुत प्रसिद्ध थे। 1800 ई. में नाना फडणवीस की मृत्यु हो गई थी। नाना फडणवीस ने रघुनाथराव (राघोवा) की पेशवा बनने की सारी कोशिशें नाकाम कर दी थीं। नाना फडणवीस का टीपू सुल्तान से भी युद्ध हुआ था। उन्होंने मराठा साम्राज्य की शक्ति को एक नेतृत्व के नीचे एकत्र करने का सफल प्रयास किया था । .

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पुणे

पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मूठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का ”डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आइ.बी.एम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केंन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेंद्र के रूप मे विकसित हुआ। .

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पेशवा

दरबारियों के साथ पेशवा मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्रियों को पेशवा (मराठी: पेशवे) कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। शिवाजी के अष्टप्रधान मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री अथवा वजीर का पर्यायवाची पद था। 'पेशवा' फारसी शब्द है जिसका अर्थ 'अग्रणी' है। पेशवा का पद वंशानुगत नहीं था। आरंभ में, संभवत: पेशवा मर्यादा में अन्य सदस्यों के बराबर ही माना जाता था। छत्रपति राजाराम के समय में पंत-प्रतिनिधि का नवनिर्मित पद, राजा का प्रतिनिधि होने के नाते पेशवा से ज्येष्ठ ठहराया गया था। पेशवाई सत्ता के वास्तविक संस्थापन का, तथा पेशवा पद को वंशपरंपरागत रूप देने का श्रेय ऐतिहासिक क्रम से सातवें पेशवा, बालाजी विश्वनाथ को है। किंतु, यह परिवर्तन छत्रपति शाहू के सहयोग और सहमति द्वारा ही संपन्न हुआ, उसकी असमर्थता के कारण नहीं। यद्यपि बालाजी विश्वनाथ के उत्तराधिकारी बाजीराव ने मराठा साम्राज्य के सीमाविस्तार के साथ साथ अपनी सत्ता को भी सर्वोपरि बना दिया, तथापि वैधानिक रूप से पेशवा की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन शाहू की मृत्यु के बाद, बाजीराव के पुत्र बालाजी के समय में हुआ। अल्पवयस्क छत्रपति रामराजा की अयोग्यता के कारण समस्त राजकीय शक्ति संगोला के समझौते (२५ सितंबर १७५०) के अनुसार, पेशवा को हस्तांतरित हो गई, तथा शासकीय केंद्र सातारा की अपेक्षा पुणे निर्धारित किया गया। किंतु पेशवा माधवराव के मृत्युपरांत जैसा सातारा राजवंश के साथ हुआ, वैसा ही पेशवा वंश के साथ हुआ। माधवराव के उत्तराधिकारियों की नितांत अयोग्यता के कारण राजकीय सत्ता उनके अभिभावक नाना फडनवीस के हाथों में केंद्रित हो गई। किंतु आँग्ल शक्ति के उत्कर्ष के कारण इस स्थिति में भी शीघ्र ही महान परिवर्तन हुआ। अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय को वसई की संधि के अनुसार (३१ दिसम्बर १८०२) अंग्रेजों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा; १३ जून १८१७, की संधि के अनुसार मराठा संघ पर उसे अपना अधिकार छोड़ना पड़ा; तथा अंत में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध की समाप्ति पर, मराठा साम्राज्य के विसर्जन के बाद, पदच्युत होकर अंग्रेजों की पेंशन ग्रहण करने के लिये विवश होना पड़ा।; पेशवाओं का शासनकाल-.

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मथुरा

मथुरा उत्तरप्रदेश प्रान्त का एक जिला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। लंबे समय से मथुरा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म,दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, कवि रसखान आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है। मथुरा को श्रीकृष्ण जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है। .

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मराठा साम्राज्य

मराठा साम्राज्य या मराठा महासंघ एक भारतीय साम्राज्यवादी शक्ति थी जो 1674 से 1818 तक अस्तित्व में रही। मराठा साम्राज्य की नींव छत्रपती शिवाजी महाराज जी ने १६७४ में डाली। उन्होने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। बाद में आये पेशवाओनें इसे उत्तर भारत तक बढाया, ये साम्राज्य १८१८ तक चला और लगभग पूरे भारत में फैल गया। .

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मल्हारराव होलकर

मल्हारराव होलकर (16 मार्च 1693 – 20 मई 1766) मराठा साम्राज्य का एक सामन्त था जो मालवा का प्रथम मराठा सूबेदार था। वह होलकर राजवंश का प्रथम राजकुमार था जिसने इन्दौर पर शासन किया। मराठा साम्राज्य को उत्तर की तरफ प्रसारित करने वाले अधिकारियों में मल्हारराव का नाम अग्रणी है। .

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महादजी शिंदे

महादजी सिंदे महादजी शिंदे (या, महादजी सिंधिया; १७३० -- १७९४) मराठा साम्राज्य के एक शासक थे जिन्होंने ग्वालियर पर शासन किया। वे सरदार राणोजी राव शिंदे के पाँचवे तथा अन्तिम पुत्र थे। शिंदे (अथवा सिंधिया) वंश के संस्थापक राणोजी शिंदे के पुत्रों में केवल महादजी पानीपत के तृतीय युद्ध से जीवित बच सके। तदनंतर, सात वर्ष उसके उत्तराधिकार संघर्ष में बीते (१७६१-६८)। स्वाधिकार स्थापन के पश्चात् महादजी का अभूतपूर्व उत्कर्ष आरंभ हुआ (१७६८)। पेशवा के शक्तिसंवर्धन के साथ, उसने अपनी शक्ति भी सुदृढ़ की। पेशवा की ओर से दिल्ली पर अधिकार स्थापित कर (१० फरवरी, १७७१), उसने शाह आलम को मुगल सिंहासन पर बैठाया (६ जनवरी, १७७२)। इस प्रकार, पानीपत में खोये, उत्तरी भारत पर मराठा प्रभुत्व का उसने पुनर्लाभ किया। माधवराव की मृत्यु से उत्पन्न अव्यवस्था तथा उससे उत्पन्न आंग्ल-मराठा युद्ध में उसने रघुनाथराव (राघोबा) तथा अंग्रेजों के विरुद्ध नाना फड़नवीस और शिशु पेशवा का पक्ष ग्रहण किया। तालेगाँव में अंग्रेजों की पराजय (जनवरी, १७७९) से वह महाराष्ट्र संघ का सर्वप्रमुख सदस्य मान्य हुआ। अंतत:, उसी की मध्यस्थता से मराठों और अंग्रेजों में सालबाई की संधि संभव हो सकी (१७८२)। इससे उसकी महत्ता और प्रभुत्व में बड़ी अभिवृद्धि हुई। युद्ध की समाप्ति पर महादजी पुन: उत्तर की ओर अभिमुख हुआ। ग्वालियर अधिकृत कर (१७८३), उसने गोहद के राणा को पराजित किया (१७८४)। फ्रेंच सैनिक डिबोयन (de boigne) की सहायता से उसने अपनी सेना सुशिक्षित एवं सशक्त की। मुगल सम्राट् ने उसे वकील-ए-मुतलक की पदवी से पुरस्कृत किया; तथा मुगल राज्य संचालन का उत्तरदायित्व उसे सौंपा। महादजी ने अनेक विद्रोहों का दमन कर मुगल राज्य में व्यवस्था स्थापित की। किंतु जयपुर के सैनिक अभियान की असफलता के कारण उसकी स्थिति संकटापन्न हो गई (१७८७), तथापि इस्माइल बेग की पराजय से (जून, १७८८) उसने अपनी सत्ता पुन:स्थापित कर ली। दानवी आततायी गुलाम कादिर को दिल्ली से खदेड़, नेत्रविहीन मुगल सम्राट् को उसने पुन: सिंहासनासीन किया (अक्टूबर, १७८९)। १७९१ के अंत तक उसने राजपूतों को भी नत कर दिया। अब नर्मदा से सतलज तक पूरा उत्तरी भारत उसके आधिपत्य में था। अपनी सफलता के चरमोत्कर्ष में, १२ वर्षों बाद, वह महाराष्ट्र लौटा। दो वर्ष पूना में रहकर (१७९२-९४) उसने महाराष्ट्र संघ को पुन: संगठित करने का सतत किंतु विफल प्रयत्न किया। लाखेरी में तुकोजी होल्कर की पूर्ण पराजय (जून १७९३) उसकी अंतिम विजय थी, यद्यपि पारस्परिक विभेद से दु:खित महादजी ने उसे विजय दिवस संबोधित करने की अपेक्षा शोक दिवस ही की संज्ञा दी। १२ फरवरी, १७९४ को उसकी मृत्यु हुई। कुशाग्रबुद्धि महादजी व्यक्तिगत जीवन में सरल, तथा स्वभाव से सहिष्णु, धैर्यशील और उदार था। उसमें नेतृत्व शक्ति और सैनिक प्रतिभा तो थी ही, राजनीतिज्ञता भी असाधारण थी। उसके महान् कार्य, विषम परिस्थितियों तथा आंतरिक वैमनस्य - नाना फड़निस के द्वेषी स्वभाव और तुकोजी होल्कर के शत्रुतापूर्ण व्यवहार - के बावजूद केवल स्वावलंबन के बल पर संपन्न हुए। किंतु इन सब के ऊपर थी उसकी स्वार्थरहित उदात्त दृष्टि, जिसे, महाराष्ट्र के दुर्भाग्य से, सहयोग की अपेक्षा सदैव गत्यवरोध ही प्राप्त हुआ। .

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रघुनाथराव

श्रीमन्त रघुनाथराव बल्लाल पेशवा (उपाख्य, राघो बल्लाल या राघो भरारी) (18 अगस्त1734 – 11 दिसम्बर 1783), सन १७७३ से १७७४ तक मराठा साम्राज्य के पेशवा थे। .

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हिन्दू

शब्द हिन्दू किसी भी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो खुद को सांस्कृतिक रूप से, मानव-जाति के अनुसार या नृवंशतया (एक विशिष्ट संस्कृति का अनुकरण करने वाले एक ही प्रजाति के लोग), या धार्मिक रूप से हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ मानते हैं।Jeffery D. Long (2007), A Vision for Hinduism, IB Tauris,, pages 35-37 यह शब्द ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में स्वदेशी या स्थानीय लोगों के लिए एक भौगोलिक, सांस्कृतिक, और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त किया गया है। हिन्दू शब्द का ऐतिहासिक अर्थ समय के साथ विकसित हुआ है। प्रथम सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में सिंधु की भूमि के लिए फारसी और ग्रीक संदर्भों के साथ, मध्ययुगीन युग के ग्रंथों के माध्यम से, हिंदू शब्द सिंधु (इंडस) नदी के चारों ओर या उसके पार भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक रूप में, मानव-जाति के अनुसार (नृवंशतया), या सांस्कृतिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त होने लगा था।John Stratton Hawley and Vasudha Narayanan (2006), The Life of Hinduism, University of California Press,, pages 10-11 16 वीं शताब्दी तक, इस शब्द ने उपमहाद्वीप के उन निवासियों का उल्लेख करना शुरू कर दिया, जो कि तुर्किक या मुस्लिम नहीं थे। .

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हिन्दी विश्वकोश

हिन्दी विश्वकोश, नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा हिन्दी में निर्मित एक विश्वकोश है। यह बारह खण्डों में पुस्तक रूप में उपलब्ध है। इसके अलावा यह अन्तरजाल पर पठन के लिये भी नि:शुल्क उपलब्ध है। यह किसी एक विषय पर केन्द्रित नहीं है बल्कि इसमें अनेकानेक विषयों का समावेश है। .

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होलकर

होलकर राजवंश मल्हार राव से प्रारंभ हुआ जो १७२१ में पेशवा की सेवा में शामिल हुए और जल्दी ही सूबेदार बने। होल्कर वंश के लोग 'होलगाँव' के निवासी होने से 'होलकर' कहलाए। अतः पूरे भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में इस जाती को अलग अलग नाम से जाना जाता है परंतु यह एक ही जाती है इनके नाम अलग अलग है पूरे भारत में इनकी एक ही पहचान हैधनगर नाम से यह सब जातियां जानी जाती है जैसे(1) पाल (2)बघेल(3) गाडरी(4) गडरिया (5)होलकर (6)गायरी उन्होने और उनके वंशजों ने मराठा राजा और बाद में १८१८ तक मराठा महासंघ के एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में मध्य भारत में इंदौर पर शासन किया और बाद में भारत की स्वतंत्रता तक ब्रीटिश भारत की एक रियासत रहे। होलकर वंश उन प्रतिष्ठित राजवंशों मे से एक था जिनका नाम शासक के शीर्षक से जुडा, जो आम तौर पर महाराजा होल्कर या 'होलकर महाराजा' के रूप में जाना जाता था, जबकि पूरा शीर्षक 'महाराजाधिराज राज राजेश्वर सवाई श्री (व्यक्तिगत नाम) होलकर बहादुर, महाराजा ऑफ़ इंदौर' था। .

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गोविंद सखाराम सरदेसाई

महान इतिहासकार '''गोविंद सखाराम सरदेसाई''' गोविंद सखाराम सरदेसाई (17 मई 1865 - 1959) का मराठों के अर्वाचीन इतिहासकारों में अग्रगण्य स्थान है। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९५७ में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। .

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इन्दौर

इन्दौर (अंग्रेजी:Indore) जनसंख्या की दृष्टि से भारत के मध्य प्रदेश राज्य का सबसे बड़ा शहर है। यह इन्दौर ज़िला और इंदौर संभाग दोनों के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है। इंदौर मध्य प्रदेश राज्य की वाणिज्यिक राजधानी भी है। यह राज्य के शिक्षा हब के रूप में माना जाता है। इंदौर भारत का एकमात्र शहर है, जहाँ भारतीय प्रबन्धन संस्थान (IIM इंदौर) व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT इंदौर) दोनों स्थापित हैं। मालवा पठार के दक्षिणी छोर पर स्थित इंदौर शहर, राज्य की राजधानी से १९० किमी पश्चिम में स्थित है। भारत की जनगणना,२०११ के अनुसार २१६७४४७ की आबादी सिर्फ ५३० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में वितरित है। यह मध्यप्रदेश में सबसे अधिक घनी आबादी वाले प्रमुख शहर है। यह भारत में के तहत आता है। इंदौर मेट्रोपोलिटन एरिया (शहर व आसपास के इलाके) की आबादी राज्य में २१ लाख लोगों के साथ सबसे बड़ी है। इंदौर अपने स्थापना के इतिहास में १६वीं सदी क डेक्कन (दक्षिण) और दिल्ली के बीच एक व्यापारिक केंद्र के रूप में अपने निशान पाता है। मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम के मालवा पर पूर्ण नियंत्रण ग्रहण करने के पश्चात, १८ मई १७२४ को इंदौर मराठा साम्राज्य में सम्मिलित हो गया था। और मल्हारराव होलकर को वहाँ का सुबेदार बनाया गया। जो आगे चल कर होलकर राजवंश की स्थापना की। ब्रिटिश राज के दिनों में, इन्दौर रियासत एक १९ गन सेल्यूट (स्थानीय स्तर पर २१) रियासत था जो की उस समय (एक दुर्लभ उच्च रैंक) थी। अंग्रेजी काल के दौरान में भी यह होलकर राजवंश द्वारा शासित रहा। भारत के स्वतंत्र होने के कुछ समय बाद यह भारत अधिराज्य में विलय कर दिया गया। इंदौर के रूप में सेवा की राजधानी मध्य भारत १९५० से १९५६ तक। इंदौर एक वित्तीय जिले के समान, मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी के रूप में कार्य करता है। और भारत का तीसरा सबसे पुराने शेयर बाजार, मध्यप्रदेश स्टॉक एक्सचेंज इंदौर में स्थित है। यहाँ का अचल संपत्ति (रीयल एस्टेट) बज़ार, मध्य भारत में सबसे महंगा है। यह एक औद्योगिक शहर है। यहाँ लगभग ५,००० से अधिक छोटे-बडे उद्योग हैं। यह सारे मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वित्त पैदा करता है। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ४०० से अधिक उद्योग हैं और इनमे १०० से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के उद्योग हैं। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के प्रमुख उद्योग व्यावसायिक वाहन बनाने वाले व उनसे सम्बन्धित उद्योग हैं। व्यावसायिक क्षेत्र में मध्य प्रदेश की प्रमुख वितरण केन्द्र और व्यापार मंडीयाँ है। यहाँ मालवा क्षेत्र के किसान अपने उत्पादन को बेचने और औद्योगिक वर्ग से मिलने आते है। यहाँ के आस पास की ज़मीन कृषि-उत्पादन के लिये उत्तम है और इंदौर मध्य-भारत का गेहूँ, मूंगफली और सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक है। यह शहर, आस-पास के शहरों के लिए प्रमुख खरीददारी का केन्द्र भी है। इन्दौर अपने नमकीनों व खान-पान के लिये भी जाना जाता है। प्र.म. नरेंद्र मोदी के स्मार्ट सिटी मिशन में १०० भारतीय शहरों को चयनित किया गया है जिनमें से इंदौर भी एक स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जाएगा। स्मार्ट सिटी मिशन के पहले चरण के अंतर्गत बीस शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जायेगा और इंदौर भी इस प्रथम चरण का हिस्सा है। 'स्वच्छ सर्वेक्षण २०१७' के परिणामों के अनुसार इन्दौर भारत का सबसे स्वच्छ नगर है। .

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अहिल्याबाई होल्कर

महारानी अहिल्याबाई (३१ मई १७२५ - १३ अगस्त १७९५) इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं। जन्म इनका सन् 1725 में हुआ था और देहांत 13 अगस्त 1795 को; तिथि उस दिन भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी थी। अहिल्याबाई किसी बड़े भारी राज्य की रानी नहीं थीं। उनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित था। फिर भी उन्होंने जो कुछ किया, उससे आश्चर्य होता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

तुकोजी होलकर, तुकोजीराव होल्कर प्रथम

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