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तवायफ़

सूची तवायफ़

तवायफ़ मुगल काल के दौरान एक प्रकार की शाही वेश्या हुआ करती थी जो राजदरबारियों को खुश रखा करती थी। पुरानी बॉलीवुड की फिल्मों में तवायफों की बहुत प्रमुख भूमिका रही है। श्रेणी:वेश्यावृत्ति श्रेणी:उर्दू शब्द.

2 संबंधों: मुग़ल साम्राज्य, वेश्यावृत्ति

मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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वेश्यावृत्ति

टियुआना, मेक्सिको में वेश्या अर्थलाभ के लिए स्थापित संकर यौन संबंध वेश्यावृत्ति कहलाता है। इसमें उस भावनात्मक तत्व का अभाव होता है जो अधिकांश यौनसंबंधों का एक प्रमुख अंग है। विधान एवं परंपरा के अनुसार वेश्यावृत्ति उपस्त्री सहवास, परस्त्रीगमन एवं अन्य अनियमित वासनापूर्ण संबंधों से भिन्न होती है। संस्कृत कोशों में यह वृत्ति अपनाने वाले स्त्रियों के लिए विभिन्न संज्ञाएँ दी गई हैं। वेश्या, रूपाजीवा, पण्यस्त्री, गणिका, वारवधू, लोकांगना, नर्तकी आदि की गुण एवं व्यवसायपरक अमिघा है - 'वेशं (बाजार) आजोवो यस्या: सा वेश्या' (जिसकी आजीविका में बाजार हेतु हो, 'गणयति इति गणिका' (रुपया गिननेवाली), 'रूपं आजीवो यस्या: सा रूपाजीवा' (सौंदर्य ही जिसकी आजीविका का कारण हो); पण्यस्त्री - 'पण्यै: क्रोता स्त्री' (जिसे रुपया देकर आत्मतुष्टि के लिए क्रय कर लिया गया हो)। .

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