सामग्री की तालिका
3 संबंधों: तुष्यरथ, मित्तानी साम्राज्य, अखेनातेन।
तुष्यरथ
मित्तानी राजा जिसकी पुत्री राजकुमारी तदुक्षिपा मिस्र के फारो अखेनातेन की दूसरी रानी बनी।.
देखें तदुक्षिपा और तुष्यरथ
मित्तानी साम्राज्य
मित्तानी साम्राज्य मित्तानी साम्राज्य यह सा्म्राज्य कई सदियों तक (१६०० -१२०० ईपू) पश्चिम एशीया में राज करता रहा। इस वंश के सम्राटों के संस्कृत नाम थे। विद्वान समझते हैं कि यह लोग महाभारत के पश्चात भारत से वहां प्रवासी बने। कुछ विद्वान समझते हैं कि यह लोग वेद की मैत्रायणीय शाखा के प्रतिनिधि हैं। मित्तानी देश की राजधानी का नाम वसुखानी (धन की खान) था। इस वंश के वैवाहिक सम्बन्ध मिस्र से थे। एक धारणा यह है कि इनके माध्यम से भारत का बाबिल, मिस्र और यूनान पर गहरा प्रभाव पडा। .
देखें तदुक्षिपा और मित्तानी साम्राज्य
अखेनातेन
फारो अखेनातेन फारो अखेनातेन (१३५१-१३३४ ईपू) मिस्र के १८वें वंश का था। उसने मिस्र के प्राचीन धर्म पर प्रतिबन्ध लगाया और केवल अतेन नामी सूर्य की चक्रिका की उपासना का आदेश दिया। उसे पाश्चात्य विद्वान विश्व का पहला एकेश्वरवादी मानते हैं। पहले इसका नाम अमेनहोतेप ४ था। पर नया धर्म चलाने के पश्चात इसने यह बदलकर अखेनातेन कर दिया। अखेनातेन और उसका परिवार सूर्य की पूजा करता हुआनेफरतिति उसकी पहली पत्नी थी। मित्तानी राजकुमारी तदुक्षिपा उसकी दूसरी रानी बनी। एक अवधारणा यह है कि इसका धार्मिक परिवर्तन तदुक्षिपा के आगम की भ्रमित समझ पर आधारित था। सुभाष काक के अनुसार उसके सूर्य स्तोत्र और ऋग्वेद के सूर्य सूक्तों में महत्त्वपूर्ण सादृश्य है। अखेनातेन का सूर्य स्तोत्र बाइबल के पूर्वविधान (Old Testament) में १०४वें स्तोत्र के रूप में मिलता है। उसकी मृत्यु पशचात उसके नये धर्म दबाया गया। कुछ विद्वान समझते हैं कि मूसा ने इसी के विचारों को दुबारा उठाना चाहा। यदि यह सिद्धान्त सही है तो यह विडम्बना है कि अखेनातन की परम्परा, जिसे यहूदी ईसाई और इसलामी धर्मों का पूर्वरूप माना जाता है, स्वयं इसकी विरोधी सनातन धर्म की परम्परा पर आधारित है। अखेनातेन, नेफरतिति और उनके बच्चे .
देखें तदुक्षिपा और अखेनातेन