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तन्त्रिका तन्त्र

सूची तन्त्रिका तन्त्र

मानव का '''तंत्रिकातंत्र''' जिस तन्त्र के द्वारा विभिन्न अंगों का नियंत्रण और अंगों और वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है उसे तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) कहते हैं। तंत्रिकातंत्र में मस्तिष्क, मेरुरज्जु और इनसे निकलनेवाली तंत्रिकाओं की गणना की जाती है। तन्त्रिका कोशिका, तन्त्रिका तन्त्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। तंत्रिका कोशिका एवं इसकी सहायक अन्य कोशिकाएँ मिलकर तन्त्रिका तन्त्र के कार्यों को सम्पन्न करती हैं। इससे प्राणी को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती तथा एककोशिकीय प्राणियों जैसे अमीबा इत्यादि में तन्त्रिका तन्त्र नहीं पाया जाता है। हाइड्रा, प्लेनेरिया, तिलचट्टा आदि बहुकोशिकीय प्राणियों में तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। मनुष्य में सुविकसित तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। .

15 संबंधों: तिलचट्टा, तंत्रिका, तंत्रिकाविकृति विज्ञान, न्यूरॉन, परिधीय तंत्रिका तंत्र, मस्तिष्क, मेरूरज्जु, स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली, हाइड्रा, जैविक तंत्रिका तंत्र, कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र, कोशिका, अनुकंपी तंत्रिकातंत्र, अमीबा

तिलचट्टा

''Blaberus giganteus'' तिलचट्टा कीट वर्ग का एक सर्वाहारी, रात्रिचर प्राणी है जो अंधेरे में, गर्म स्थानों में, जैसे रसोई घर, गोदाम, अनाज और कागज के भंडारों में पाया जाता है। पंख से ढका हल्का लाल एवं भूरे रंग का इसका शरीर तीन भागों सिर, वक्ष और उदर में विभाजित रहता है। सिर में एक जोड़ी संयुक्त नेत्र पाया जाता है एवं एक जोड़ी संवेदी श्रृंगिकाएँ (एन्टिना) निकली रहती है जो भोजन ढूँढ़ने में सहायक होती हैं। वक्ष से दो जोड़ा पंख और तीन जोड़ी संधियुक्त टाँगें लगी रहती हैं जो इसके प्रचलन अंगों का कार्य करते हैं। शरीर में श्वसन रंध्र पाये जाते हैं। उदर दस खंडों में विभक्त रहता है। छिपकली तथा बड़ी-बड़ी मकड़ियाँ इसके शत्रु हैं। तिलचट्टे का शरीर २.५ सेण्टीमीटर से ४ सेण्टीमीटर लम्बा तथा १.५ सेण्टीमीटर चौड़ा होता है। शरीर ऊपर से नीचे की ओर चपटा एवं खंडयुक्त होता है। नर तिलचट्टा मादा तिलचट्टा से साधारणतः छोटा होता है। तिलचट्टे का श्वसन तंत्र अनेक श्वासनलिकाओं से बनता है। ये नलिकाएँ बाहर की ओर श्वासरंध्रों द्वारा खुलती हैं। तिलचट्टे में दस जोड़े श्वासरंध्र होते हैं, दो वक्ष में और आठ उदर में। तिलचट्टे की श्रृंगिकाये तीन भागों में विभक्त होती है । जिसका आधारीय खंड स्केप मध्य खंड पेडिसेल ओर ऊपरी खंड फ्लेजिलम कहलाता है । .

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तंत्रिका

किसी जीव के शरीर में तंत्रिका ऐसे रेशे को कहते हैं जिसके द्वारा शरीर के एक स्थान से दूसरे स्थान तक संकेत भेजे जाते हैं। तंत्रिका को अंग्रेजी में नर्व कहते हैं। मनुष्य शरीर में तंत्रिकाएँ शरीर के लगभग हर भाग को मस्तिष्क या मेरूरज्जु से जोड़कर उनमें आपसी संपर्क रखतीं हैं। यदि तंत्रिकाओं को क़रीब से देखा जाए तो वह न्यूरॉन नामक कोशिकाओं (सैल) के गुच्छों की बनी होतीं हैं। जब मस्तिष्क को किसी हाथ को हिलने का आदेश देना होता है तो मस्तिष्क से हाथ तक यह संकेत तंत्रिकाओं के ज़रिये ही भेजा जाता है। इसी तरह जब आँख पर कोई छवि पड़ती है तो उसके संकेत दिमाग़ तक तंत्रिकाएं ही ले जातीं हैं। .

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तंत्रिकाविकृति विज्ञान

तंत्रिकाविकृति विज्ञान (Neuropathology) तंत्रिका तंत्र के ऊतकों के रोगों का अध्ययन है जिसमें छोटे शल्यक्रिया के द्वार बायोप्सी की जाती है या पूरे मस्तिष्क की आटोप्सी (autopsy) की जाती है। तंत्रिकाविकृति विज्ञान, शरीरविकृति विज्ञान (anatomic pathology) की उपशाखा है। .

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न्यूरॉन

तंत्रिका कोशिकाओं तंत्रिकोशिका या तंत्रिका कोशिका (अंग्रेज़ी:न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र में स्थित एक उत्तेजनीय कोशिका है। इस कोशिका का कार्य मस्तिष्क से सूचना का आदान प्रदान और विश्लेषण करना है।। हिन्दुस्तान लाइव। १ फ़रवरी २०१० यह कार्य एक विद्युत-रासायनिक संकेत के द्वारा होता है। तंत्रिका कोशिका तंत्रिका तंत्र के प्रमुख भाग होते हैं जिसमें मस्तिष्क, मेरु रज्जु और पेरीफेरल गैंगिला होते हैं। कई तरह के विशिष्ट तंत्रिका कोशिका होते हैं जिसमें सेंसरी तंत्रिका कोशिका, अंतरतंत्रिका कोशिका और गतिजनक तंत्रिका कोशिका होते हैं। किसी चीज के स्पर्श छूने, ध्वनि या प्रकाश के होने पर ये तंत्रिका कोशिका ही प्रतिक्रिया करते हैं और यह अपने संकेत मेरु रज्जु और मस्तिष्क को भेजते हैं। मोटर तंत्रिका कोशिका मस्तिष्क और मेरु रज्जु से संकेत ग्रहण करते हैं। मांसपेशियों की सिकुड़न और ग्रंथियां इससे प्रभावित होती है। एक सामान्य और साधारण तंत्रिका कोशिका में एक कोशिका यानि सोमा, डेंड्राइट और कार्रवाई होते हैं। तंत्रिका कोशिका का मुख्य हिस्सा सोमा होता है। तंत्रिका कोशिका को उसकी संरचना के आधार पर भी विभाजित किया जाता है। यह एकध्रुवी, द्विध्रुवी और बहुध्रुवी (क्रमशः एकध्रुवीय, द्विध्रुवीय और बहुध्रुवीय) होते हैं। तंत्रिका कोशिका में कोशिकीय विभाजन नहीं होता है जिससे इसके नष्ट होने पर दुबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। किन्तु इसे स्टेम कोशिका के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा भी देखा गया है कि अस्थिकणिका को तंत्रिका कोशिका में बदला जा सकता है। तंत्रिका कोशिका शब्द का पहली बार प्रयोग जर्मन शरीर विज्ञानशास्त्री हेनरिक विलहेल्म वॉल्डेयर ने किया था। २०वीं शताब्दी में पहली बार तंत्रिका कोशिका प्रकाश में आई जब सेंटिगयो रेमन केजल ने बताया कि यह तंत्रिका तंत्र की प्राथमिक प्रकार्य इकाई होती है। केजल ने प्रस्ताव दिया था कि तंत्रिका कोशिका अलग कोशिकाएं होती हैं जो कि विशिष्ट जंक्शन के द्वारा एक दूसरे से संचार करती है। तंत्रिका कोशिका की संरचना का अध्ययन करने के लिए केजल ने कैमिलो गोल्गी द्वारा बनाए गए सिल्वर स्टेनिंग तरीके का प्रयोग किया। मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका की संख्या प्रजातियों के आधार पर अलग होती है। एक आकलन के मुताबिक मानव मस्तिष्क में १०० अरब तंत्रिका कोशिका होते हैं। टोरंटो विश्वविद्यालय में हुए अनुसंधान में एक ऐसे प्रोभूजिन की पहचान हुई है जिसकी मस्तिष्क में तंत्रिकाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस प्रोभूजिन की सहायता से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को और समझना भी सरल होगा व अल्जामरर्स जैसे रोगों के कारण भी खोजे जा सकेंगे। एसआर-१०० नामक यह प्रोभूजिन केशरूकीय क्षेत्र में पाया जाता है साथ ही यह तंत्रिका तंत्र का निर्माण करने वाले जीन को नियंत्रित करता है। एक अमरीकी जरनल सैल (कोशिका) में प्रकाशित बयान के अनुसार स्तनधारियों के मस्तिष्क में विभिन्न जीनों द्वारा तैयार किए गए आनुवांशिक संदेशों के वाहन को नियंत्रित करता है। इस अध्ययन का उद्देश्य ऐसे जीन की खोज करना था जो मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका के निर्माण को नियंत्रित करते हैं। ऎसे में तंत्रिका कोशिका के निर्माण में इस प्रोभूजिन की महत्त्वपूर्ण भूमिका की खोज तंत्रिका कोशिका के विकास में होने वाली कई अपसामान्यताओं से बचा सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका निर्माण के समय कुछ गलत संदेशों वाहन से तंत्रिका कोशिका का निर्माण प्रभावित होता है। तंत्रिका कोशिका का विकृत होना अल्जाइमर्स जैसी बीमारियों के कारण भी होता है। इस प्रोभूजिन की खोज के बाद इस दिशा में निदान की संभावनाएं उत्पन्न हो गई हैं। .

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परिधीय तंत्रिका तंत्र

परिधीय तंत्रिका तंत्र (peripheral nervous system), तंत्रिका तंत्र का वह भाग है जो संवेदी न्यूरॉनों तथा दूसरे न्यूरानों से बनती है जो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को परिधीय तंत्रिका तंत्र से जोड़ते हैं। इसमें केवल तंत्रिकाओं का समूह है, जो मेरूरज्जु से निकलकर शरीर के दोनों ओर के अंगों में विस्तृत है। मानव का तंत्रिकातंत्र; केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (लाल रंग में) तथा परिधीय तंत्रिका तंत्र (नीले रंग में) .

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मस्तिष्क

मानव मस्तिष्क मस्तिष्क जन्तुओं के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण केन्द्र है। यह उनके आचरणों का नियमन एंव नियंत्रण करता है। स्तनधारी प्राणियों में मस्तिष्क सिर में स्थित होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है। यह मुख्य ज्ञानेन्द्रियों, आँख, नाक, जीभ और कान से जुड़ा हुआ, उनके करीब ही स्थित होता है। मस्तिष्क सभी रीढ़धारी प्राणियों में होता है परंतु अमेरूदण्डी प्राणियों में यह केन्द्रीय मस्तिष्क या स्वतंत्र गैंगलिया के रूप में होता है। कुछ जीवों जैसे निडारिया एंव तारा मछली में यह केन्द्रीभूत न होकर शरीर में यत्र तत्र फैला रहता है, जबकि कुछ प्राणियों जैसे स्पंज में तो मस्तिष्क होता ही नही है। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव में मस्तिष्क अत्यंत जटिल होते हैं। मानव मस्तिष्क में लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिका कोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है। मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। तंत्रिका विज्ञान का क्षेत्र पूरे विश्व में बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। बडे-बड़े तंत्रिकीय रोगों से निपटने के लिए आण्विक, कोशिकीय, आनुवंशिक एवं व्यवहारिक स्तरों पर मस्तिष्क की क्रिया के संदर्भ में समग्र क्षेत्र पर विचार करने की आवश्यकता को पूरी तरह महसूस किया गया है। एक नये अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि मस्तिष्क के आकार से व्यक्तित्व की झलक मिल सकती है। वास्तव में बच्चों का जन्म एक अलग व्यक्तित्व के रूप में होता है और जैसे जैसे उनके मस्तिष्क का विकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यक्तित्व भी तैयार होता है। मस्तिष्क (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों - नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा - से आवेग यहीं पर आते हैं, जिनको समझना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम्र है। पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं, यद्यपि ये क्रियाएँ मेरूरज्जु में स्थित भिन्न केन्द्रो से होती रहती हैं। अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंग का है। .

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मेरूरज्जु

कशेरूक नाल में नीचले मेरूरज्जु की स्थिति मेरूरज्जु (लैटिन: Medulla spinalis, जर्मन: Rückenmark, अंग्रेजी: Spinal cord), मध्य तंत्रिकातंत्र का वह भाग है, जो मस्तिष्क के नीचे से एक रज्जु (रस्सी) के रूप में पश्चकपालास्थि के पिछले और नीचे के भाग में स्थित महारंध्र (foramen magnum) द्वारा कपाल से बाहर आता है और कशेरूकाओं के मिलने से जो लंबा कशेरूका दंड जाता है उसकी बीच की नली में चला जाता है। यह रज्जु नीचे ओर प्रथम कटि कशेरूका तक विस्तृत है। यदि संपूर्ण मस्तिष्क को उठाकर देखें, तो यह 18 इंच लंबी श्वेत रंग की रज्जु उसके नीचे की ओर लटकती हुई दिखाई देगी। कशेरूक नलिका के ऊपरी 2/3 भाग में यह रज्जु स्थित है और उसके दोनों ओर से उन तंत्रिकाओं के मूल निकलते हैं, जिनके मिलने से तंत्रिका बनती है। यह तंत्रिका कशेरूकांतरिक रंध्रों (intervertebral foramen) से निकलकर शरीर के उसी खंड में फैल जाती हैं, जहाँ वे कशेरूक नलिका से निकली हैं। वक्ष प्रांत की बारहों मेरूतंत्रिका इसी प्रकार वक्ष और उदर में वितरित है। ग्रीवा और कटि तथा त्रिक खंडों से निकली हुई तंत्रिकाओं के विभाग मिलकर जालिकाएँ बना देते हैं जिनसे सूत्र दूर तक अंगों में फैलते हैं। इन दोनों प्रांतों में जहाँ वाहनी और कटित्रिक जालिकाएँ बनती हैं, वहाँ मेरूरज्जु अधिक चौड़ी और मोटी हो जाती है। मस्तिष्क की भाँति मेरूरज्जु भी तीनों तानिकाओं से आवेष्टित है। सब से बाहर दृढ़ तानिका है, जो सारी कशेरूक नलिका को कशेरूकाओं के भीतर की ओर से आच्छादित करती है। किंतु कपाल की भाँति परिअस्थिक (periosteum) नहीं बनाती और न उसके कोई फलक निकलकर मेरूरज्जु में जाते हैं। उसके स्तरों के पृथक होने से रक्त के लौटने के लिये शिरानाल भी नहीं बनते जैसे कपाल में बनते हैं। वास्तव में मरूरज्जु पर की दृढ़तानिका मस्तिष्क पर की दृढ़ तानिका का केवल अंत: स्तर है। दृढ़ तानिका के भीतर पारदर्शी, स्वच्छ, कोमल, जालक तानिका है। दोनों के बीच का स्थान अधोदृढ़ तानिका अवकाश (subdural space) कहा जाता है, जो दूसरे, या तीसरे त्रिक खंड तक विस्तृत है। सबसे भीतर मृदु तानिका है, जो मेरूरज्जु के भीतर अपने प्रवर्धों और सूत्रों को भेजती है। इस सूक्ष्म रक्त कोशिकाएँ होती हैं। इस तानिका के सूत्र तानिका से पृथक् नहीं किए जा सकते। मृदु तानिका और जालक तानिका के बीच के अवकाश को अधो जालक तानिका अवकाश कहा जाता है। इसमें प्रमस्तिष्क मेरूद्रव भरा रहता है। नीचे की ओर द्वितीय कटि कशेरूका पर पहुँचकर रज्जु की मोटाई घट जाती है और वह एक कोणाकार शिखर में समाप्त हो जाती है। यह मेरूरज्जु पुच्छ (canda equina) कहलाता है। इस भाग से कई तंत्रिकाएँ नीचे को चली जाती हैं और एक चमकता हुआ कला निर्मित बंध (bond) नीचे की ओर जाकर अनुत्रिक (coccyx) के भीतर की ओर चला जाता है। .

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स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली

स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली (एएनएस या सहज-ज्ञान तंत्रिका प्रणाली) मुख्य तंत्रिका प्रणाली का एक भाग है जो मूल रूप से चेतना के स्तर के नीचे नियंत्रण तंत्र के रूप में कार्य करती है और सहज प्रकार्यों को नियंत्रित करती है। एएनएस का प्रभाव ह्रदय गति, पाचन क्रिया, श्वांस गति, लार निकलना, पसीना निकलना, आंख की पुतलियों का व्यास, मिक्टूरीशन (मूत्र), तथा यौन उत्तेजना पर पड़ता है। हालांकि इसके अधिकांश कार्य अवचेतन रूप से होते हैं, फिर भी कुछ चेतन मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित किये जा सकते हैं जैसे श्वांस लेना.

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हाइड्रा

जलव्याल जलव्याल (हाइड्रा) निडेरिया संघ का जन्तु है। इस जलीय जन्तु का आकार कुछ मिलीमीटर का होता है तथा इनके अध्ययन के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ती है। इनमें प्रजनन की क्रिया अलैंगिक जनन से होती है। जलव्याल के शरीर में अलग से मलोत्सर्ग प्रणाली नहीं होता है। इसके शरीर में बनने वाला उत्सर्जी पदार्थ विसरण विधि द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। श्रेणी:अकशेरुक श्रेणी:प्राणी विज्ञान.

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जैविक तंत्रिका तंत्र

350px तंत्रिका विज्ञान में जैविक तंत्रिका नेटवर्क ऐसे न्यूरांस के समूह को कहाँ जाता है जो मस्तिष्क से सूचना का आदान प्रदान करने के काम आते है। इस सूचना का प्रसारण एक विद्युत-रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा होता है। इसको दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं.

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कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क

कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क जिसे आम तौर "न्यूरल नेटवर्क" भी कहा जाता है एक गणितीय मॉडल है। यह मॉडल जैविक तंत्रिका नेटवर्क की संरचना एवं कार्यविधि का अनुसरण करता है। अधिकतर मामलों में कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क अपना स्वरूप विभिन्न सूचनाओं को विश्लेषित कर निरंतर परिवर्तित करता रहता है। तंत्रिका नेटवर्क अरैखिक सांख्यिकीय सूचना मॉडलिंग (non-linear statistical data modeling) का एक उपकरण है। इस मॉडल का उपयोग कर जटिल डेटा (Data) विश्लेषण किया जा सकता है। श्रेणी:गणित श्रेणी:कंप्यूटर.

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केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र

केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र, तंत्रिका तंत्र का भाग है, जो बहुकोशिकीय जन्तुओं की सभी क्रियायों पर नियंत्रण और नियमन करता है। हड्डीवाले जीवों में तंत्रिका तंत्र मिनिन्जीज़ में संलग्न होता है। इसमें तंत्रिका तंत्र का अधिकांश भाग और मस्तिष्क और सुषुम्ना या मेरूरज्जु आते हैं। तंत्रिका तंत्र पृष्ठीय गुहा में स्थित होता है, जिसमे मस्तिष्क कपालीय गुहा में और मेरुरज्जु, मेरुरज्जु गुहा में होता है। मस्तिष्क खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है और मेरुरज्जु हड्डियों द्वारा। .

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कोशिका

कोशिका कोशिका (Cell) सजीवों के शरीर की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है और प्राय: स्वत: जनन की सामर्थ्य रखती है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रूप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन कहतें हैं। 'कोशिका' का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटिन भाषा के 'शेलुला' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ 'एक छोटा कमरा' है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने होते हैं, उन्हें एककोशकीय जीव कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने १६६५ ई० में किया।"...

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अनुकंपी तंत्रिकातंत्र

अनुकंपी तंत्रिकातंत्र द्वारा नियंत्रित विभिन्न अंग मनुष्य के विविध अंगों और मस्तिष्क के बीच संबंध स्थापित करने के लिए तागे से भी पतले अनेक स्नायुतंतु (नर्व फाइबर) होते हैं। स्नायुतंतुओं की लच्छियाँ अलग अलग बँधी रहती हैं। इनमें से प्रत्येक को तंत्रिका (नर्व) कहते हैं। प्रत्येक में कई एक तंतु रहते हैं। तंत्रिकाओं के समुदाय को तंत्रिकातंत्र (नर्वस सिस्टम) कहते हैं। ये तंत्र तीन प्रकार के होते हैं.

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अमीबा

अमीबा (Amoeba) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में एक वंश है तथा इस वंश के सदस्यों को भी प्रायः अमीबा कहा जाता है। अत्यंत सरल प्रकार का एक प्रजीव (प्रोटोज़ोआ) है जिसकी अधिकांश जातियाँ नदियों, तालाबों, मीठे पानी की झीलों, पोखरों, पानी के गड्ढों आदि में पाई जाती हैं। कुछ संबंधित जातियाँ महत्त्वपूर्ण परजीवी और रोगकारी हैं। जीवित अमीबा बहुत सूक्ष्म प्राणी है, यद्यपि इसकी कुछ जातियों के सदस्य 1/2 मि.मी.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

तंत्रिका तंत्र, तंत्रिका प्रणाली, तंत्रिकातंत्र

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