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ट्राँसफार्मर

सूची ट्राँसफार्मर

---- एक छोटे ट्रांसफॉर्मर का स्वरूप ट्रान्सफार्मर या परिणामित्र एक वैद्युत मशीन है जिसमें कोई चलने या घूमने वाला अवयव नहीं होता। विद्युत उपकरणों में सम्भवतः ट्रान्सफार्मर सर्वाधिक व्यापक रूप से प्रयुक्त विद्युत साषित्र (अप्लाएन्स) है। यह किसी एक विद्युत परिपथ (circuit) से अन्य परिपथ में विद्युत प्रेरण द्वारा परस्पर जुडे हुए चालकों के माध्यम से विद्युत उर्जा स्थान्तरित करता है। ट्रांसफार्मर केवल प्रत्यावर्ती धारा या विभवान्तर के साथ कार्य कर सकता है, एकदिश (direct) के साथ नहीं। ट्रांसफॉर्मर एक-फेजी, तीन-फेजी या बहु-फेजी हो सकते है। यह सभी विद्युत मशीनों में सर्वाधिक दक्ष (एफिसिएंट) मशीन है। आधुनिक युग में परिणामित्र वैद्युत् तथा इलेक्ट्रॉनी उद्योगों का अभिन्न अंग बन गया है। किसी ट्रान्सफार्मर में एक, दो या अधिक वाइन्डिंग हो सकती हैं। दो वाइंडिंग वाले ट्रान्सफार्मर के प्राथमिक (प्राइमरी) एवं द्वितियक (सेकेण्डरी) वाइण्डिंग के फेरों (टर्न्स) की संख्या एवं उनके विभवान्तरों में निम्नलिखित सम्बन्ध होता है: \frac .

19 संबंधों: चुम्बकीय परिपथ, चुम्बकीय अभिवाह, ट्रांसफॉर्मर तेल, ट्रांसफॉर्मर के प्रकार, धारा परिणामित्र, प्रत्यावर्ती धारा, फेराइट, भँवर धारा, माइकल फैराडे, शैथिल्य, विद्युत परिपथ, विद्युत मशीन, विद्युत उपकरण, विद्युतरोधी, विद्युतवाहक बल, विभव परिणामित्र, आटोट्रान्सफार्मर, आवृत्ति, क्षरण प्रेरकत्व

चुम्बकीय परिपथ

केवल एक लूप वाला चुम्बकीय परिपथ चुंबकीय परिपथ (magnetic circuit) एक या अधिक बंद लूप वाले मार्गों से बना होता है जिनमें चुंबकीय फ्लक्स होता है। यह फ्लक्स प्राय: किसी स्थाई चुम्बक या विद्युत चुम्बक द्वारा पैदा किया जाता है। इन मार्गों में स्थित लौहचुम्बकीय पदार्थों के कारण फ्लक्स इन मार्गों में ही सीमित रहता है तथा मार्ग के बाहर फ्लक्स की मात्रा नगण्य ही रहती है। चुम्बकीय परिपथ का कांसेप्ट विद्युतचुम्बकीय युक्तियों की डिजाइन में बहुत सुविधा प्रदान करता है। यह विभिन्न स्थानों से होकर गुजरने वाले फ्लक्स की मात्रा आदि की गणना में बहुत उपयोगी है। चूंकि विद्युत परिपथ और चुम्बकीय परिपथ में समानता है, इस कारण विद्युत परिपथ के विश्लेषण के सभी औजार (जैसे KCL, KVL, suparposition आदि) चुम्बकीय परिपथ के विश्लेषण में काम आ जाते हैं। .

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चुम्बकीय अभिवाह

चुम्बकीय अभिवाह या चुम्बकीय फ्लक्स (Magnetic flux) वह भौतिक राशि है जो किसी तल (जैसे किसी चालक तार की कुण्डली) से होकर गुजरने वाले चुम्बकीय क्षेत्र का सम्पूर्ण परिमाण की माप है। इसे संक्षेप में Φm से निरूपित किया जाता है। इसका SI मात्रक वेबर (weber) है; व्युत्पन्न मात्रक वोल्ट-सेकेण्ड है तथा CGS मात्रक 'मैक्सवेल' है। चुम्बकीय फ्लक्स अत्यन्त महत्वपूर्ण भौतिक राशि है क्योंकि -.

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ट्रांसफॉर्मर तेल

एक उच्च वोल्टता के ट्रान्सफॉर्मर का कटा-हुआ दृष्य जिसमें ट्रान्सफार्मर तेल प्रयुक्त होता है परिणामित्र तेल या ट्रान्सफॉर्मर ऑयल (Transformer oil या insulating oil) का उपयोग ट्रान्सफार्मरों, उच्च वोल्तता के संधारित्रों, उच्च वोल्टता के स्विचों एवं सर्किट ब्रेकरों आदि में किया जाता है। ट्रान्सफॉर्मर तेल का विद्युत इन्सुलेशन का गुण उत्तम होता है जो उच्च ताप पर बना रहता है। इसके अलावा यह कोरोना रोकना, आर्किंग रोकना और शीतल करने का काम भी करता है। भी उत्तम बनाये रखता है। ट्रान्सफॉर्मर तेल प्रायः खनिज तेल पर आधारित होता है किन्तु अन्य प्रकार से भी निर्मित तेलों के इंजीनियरिंग या/तथा पर्यावरणीय गुण बेहतर पाये गये हैं और वे लोकप्रिय हो रहे हैं। श्रेणी:ट्रांसफॉर्मर श्रेणी:द्रव विद्युत इन्सुलेटर.

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ट्रांसफॉर्मर के प्रकार

'''लीकेज ट्रांसफॉर्मर''' जो आर्क-भट्टियों आदि में प्रयुक्त होते हैं। परिणामित्र (ट्रांसफॉर्मर), कार्य की दृष्टि से, कोर की दृष्टि से एवं आकार-प्रकार की दृष्टि से कई प्रकार के होते हैं किन्तु अभिकल्पन (डिजाइन) के आधार पर इन्हें तीन श्रेणियों में बाँट सकते हैं-.

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धारा परिणामित्र

११० किलोवोल्ट पर काम करने वाला धारा परिणामित्र (CT) CT का कार्य सिद्धान्त विद्युत इंजीनियरी में धारा परिणामित्र या 'करेंट ट्रांस्फॉर्मर' (current transformer (CT)) विद्युत धारा को मापने के काम आता है। धारा परिणामित्र और विभव परिणामित्र (voltage transformers (VT) या (potential transformers (PT)) को सम्मिलित रूप से 'इंस्ट्रूमेन्त ट्रांस्फॉर्मर' कहा जाता है। अन्य ट्रांसफॉर्मरों की तरह धारा ट्रान्सफॉर्मर में दो वाइंडिंग होती हैं। - प्राथमिक (प्राइमरी) और द्वितीयक (सेकेंडरी)। प्रायः प्राइमरी एक टर्न की होती है। यदि प्राइमरी में केवल एक टर्न हो और सेकेंडरी में N टर्न तो सेकेंडरी में धारा का मान प्राइमरी की धारा के मान का 1/N होता है। जहाँ कहीँ धारा का मान बहुत अधिक होने से उसे सीधे मापक यंत्रों (जैसे अमीटर) द्वारा मापना अव्यवहारिक हो, वहाँ सी टी का प्रयोग किया जाता है। धारा परिणामित्र अधिक परिणाम की धारा के समानुपाती कम परिणाम की धारा देता है जिसे किसी अमीटर में जोड़कर सीधे धारा का मान पढ़ा जा सकता है। सेकेंडरी में कोई छोटे मान का प्रतिरोध जोड़कर धारा को वोल्टेज में बदल लिया जाता है जिसे किसी कन्ट्रोल परिपथ में नियंत्रण या सुरक्षा (प्रोटेक्शन) के लिये दिया जा सकता है। सी टी लगाने का एक और लाभ यह है कि यह उच्च वोल्टता वाली लाइन से आइसोलेशन प्रदान करता है जिससे इसके सेकेंडरी साइड में कोई उपकरण आदि लगाने में कोई खतरा नहीं रहता। .

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प्रत्यावर्ती धारा

प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जो किसी विद्युत परिपथ में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। इसके विपरीत दिष्ट धारा समय के साथ अपनी दिशा नहीं बदलती। भारत में घरों में प्रयुक्त प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति ५० हर्ट्स होती हैं अर्थात यह एक सेकेण्ड में पचास बार अपनी दिशा बदलती है। वेस्टिंगहाउस का आरम्भिक दिनों का प्रत्यावर्ती धारा निकाय प्रत्यावर्ती धारा या पत्यावर्ती विभव का परिमाण (मैग्निट्यूड) समय के साथ बदलता रहता है और वह शून्य पर पहुंचकर विपरीत चिन्ह का (धनात्मक से ऋणात्मक या इसके उल्टा) भी हो जाता है। विभव या धारा के परिमाण में समय के साथ यह परिवर्तन कई तरह से सम्भव है। उदाहरण के लिये यह साइन-आकार (साइनस्वायडल) हो सकता है, त्रिभुजाकार हो सकता है, वर्गाकार हो सकता है, आदि। इनमें साइन-आकार का विभव या धारा का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। आजकल दुनिया के लगभग सभी देशों में बिजली का उत्पादन एवं वितरण प्रायः प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही किया जाता है, न कि दिष्ट-धारा (डीसी) के रूप में। इसका प्रमुख कारण है कि एसी का उत्पादन आसान है; इसके परिमाण को बिना कठिनाई के ट्रान्सफार्मर की सहायता से कम या अधिक किया जा सकता है; तरह-तरह की त्रि-फेजी मोटरों की सहायता से इसको यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इसके अलावा श्रव्य आवृत्ति, रेडियो आवृत्ति, दृश्य आवृत्ति आदि भी प्रत्यावर्ती धारा के ही रूप हैं। .

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फेराइट

फेराइत के बने स्थायी चुम्बक फेराइट (ferrite) सिरामिक चुम्बकीय पदार्थ हैं। इनकी वैद्युत प्रतिरोधकता (लगभग 10E6 Ohm-m) बहुत अधिक होती है। इस कारण अधिक आवृत्ति पर काम करने वाले ट्रान्सफार्मर एवं प्रेरकत्व (चोक) के निर्माण में इनका उपयोग किया जाता है क्योंकि अधिक प्रतिरोधकता के कारण इनमें भंवर-धारा-हानियाँ बहुत कम होतीं हैं। इनके स्थायी चुम्बक भी बनाये जाते हैं। .

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भँवर धारा

ट्रान्सफार्मर के कोर में फ्ल्क्स और भँवर धारा; भँवरधारा के कारण ऊर्जा-ह्रास को रोकने के लिए कोर को पतली-पतली पट्टियों से बनाया जाता है। किसी चालक के भीतर परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र होने पर उसमें विद्युत धारा उत्पन्न होती है उसे भँवर धारा (Eddy current) कहते हैं। धारा की ये भवरें चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करती हैं और यह चुम्बकीय बाहर से आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र के परिवर्तन का विरोध करता है। भँवर धाराओं से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र आकर्षण, प्रतिकर्षण, ऊष्मन आदि प्रभाव उत्पन्न करता है। बाहर से आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र जितना ही तीव्र होगा और उसके परिवर्तन की गति जितनी अधिक होगी और पदार्थ की विद्युत चालकता जितनी अधिक होगी, उतनी ही अधिक मात्रा में भँवर धाराएँ उत्पन्न होंगी तथा उनके कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का मान भी उतना ही अधिक होगा। परिणामित्र (ट्रांसफॉर्मर), विद्युत जनित्र एवं विद्युत मोटरों के कोर में भँवर धाराओं के कारण ऊर्जा की हानि होती है और इसके कारण क्रोड गर्म होती है। कोर में भँवरधारा हानि कम करने के लिए क्रोड को पट्टयित (लैमिनेटेड) बनाया जाता है, अर्थात पतली-पतली पट्टियों को मिलाकर कोर बनाई जाती है, न कि एक ठोस कोर (सॉलिड कोर) से। .

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माइकल फैराडे

माइकल फैराडे माइकेल फैराडे, अंग्रेज भौतिक विज्ञानी एवं रसायनज्ञ थे। उन्होने विद्युत-धारा के चुम्बकीय प्रभाव का आविष्कार किया। उसने विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का अध्ययन करके उसको नियमवद्ध किया। इससे डायनेमों तथा विद्युत मोटर का निर्माण हुआ। बाद में मैक्सवेल Maxwell के विद्युतचुम्बकत्व के चार समीकरणों में फैराडे का यह नियम भी सम्मिलित हुआ। फैराडे ने विद्युत रसायन पर भी बहुत काम किया और इससे सम्बन्धित अपने दो नियम दिये। उन्होंने रुडोल्फ डिजल सहित डिजल-चलित बिजली उत्पादक का आविष्कार किया था। .

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शैथिल्य

शैथिल्य या 'हिस्टेरिसिस' (magnetic hysteresis) पदार्थों या तंत्र का वह गुण है जिसके कारण कोई आउटपुट, केवल इनपुट पर ही निर्भर नहीं करता बल्कि निवेश (इन्पुट) एवं निर्गत (आउटपुट) सिग्नल की पूर्व स्थितियों (इतिहास) पर भी निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि शैथिल्ययुक्त किसी पदार्थ या तंत्र में स्मृति (memory) होती है। भौतिकी में बहुत से निकाय अपनी प्राकृतिक में शैथिल्य प्रदर्शन करते हैं। उदाहरण के लिये लोहा का चुम्बकन शैथिल्य प्रकट करता है। .

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विद्युत परिपथ

एक सरल विद्युत परिपथ जो एक वोल्टेज स्रोत एवं एक प्रतिरोध से मिलकर बना है ब्रेडबोर्ड के ऊपर बनाया गया एक सरल परिपथ (मल्टीवाइव्रेटर) विद्युत अवयवों (वोल्टेज स्रोत, प्रतिरोध, प्रेरकत्व, संधारित्र एवं कुंजियों आदि) एवं विद्युतयांत्रिक अवयवों (स्विच, मोटर, स्पीकर आदि) का परस्पर संयोजन विद्युत परिपथ (Electric circuit) अथवा विद्युत नेटवर्क (electrical network) कहलाता है। विद्युत परिपथ बहुत विशाल क्षेत्र में फैले हो सकते हैं; जैसे-विद्युत-शक्ति के उत्पादन, ट्रान्समिसन, वितरण एवं उपभोग का नेटवर्क। बहुत से विद्युत परिपथ प्राय: प्रिन्टेड सर्किट बोर्डों पर संजोये जाते हैं। विद्युत परिपथ अत्यन्त लघु आकार के भी हो सकते हैं; जैसे एकीकृत परिपथ। जब किसी परिपथ में डायोड, ट्रान्जिस्टर या आईसी आदि लगे होते हैं तो उसे एलेक्ट्रॉनिक परिपथ भी कहा जाता है जो कि विद्युत परिपथ का ही एक रूप है। विद्युत परिपथ को परिपथ आरेख (सर्किट डायग्राम) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। प्रायः एक या अधिक बन्द लूप वाले नेटवर्क ही विद्युत परिपथ कहलाते हैं। .

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विद्युत मशीन

वैद्युत अभियांत्रिकी मे, विद्युत मशीन, विद्युत मोटर और विद्युत उत्पाद्क तथा अन्य विद्युतचुंबकीय उपकरणों के लिये एक व्यापक शब्द हे। यह सब वैध्युतयांत्रिक उर्जा परीवर्तक हे। विद्युत मोटर विद्युत उर्जा को यांत्रिक उर्जा मे, जब की  विद्युत उत्पाद्क यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा मे परीवर्तीत करता हे। यंत्र के गतिशील भाग घूर्णन या रैखिक गती रख सकते हे। मोटर और उत्पाद्क के अतिरिक्त, बहुधा ट्रांसफार्मर (परिणतक) का तीसरी श्रेणी की तरह समावेश किया जाता हे, हालाँकि इन मे कोइ गतिशील खंड नही होते, फ़िर भी प्रत्यावर्ती उर्जा का विद्युत दाब परीवर्तीत करता हे। विद्युत यंत्र, परीवर्तक  के स्वरूप मे, वस्तुतः संसार की समस्त वैध्युत शक्ति का उत्पादन करते हे, तथा विद्युत मोटर के स्वरूप मे, समस्त  उत्पादित वैध्युत शक्ति लगभग ६० प्रतिशत उपभोग करते हे। विद्युत यंत्र १९ वी शताब्दी की शुरुआत मे  विकसित कीये गए थे, उस समय से आधारिक संरचना का सर्वव्यापी घटक बन गए हे। हरित ऊर्जा या वैकल्पिक ऊर्जा, अधिक कार्यक्षम विद्युत यंत्र विकसित करना वैश्विक संरक्षण के लिये महत्वपूर्ण हे। ट्रांसफॉर्मर, विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र आदि को विद्युत मशीन (electrical machine) कहते हैं। विद्युत मशीने तीन प्रकार से ऊर्जा का परिवर्तन करतीं है.

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विद्युत उपकरण

एक वोल्टमापी, जिसके सभी अवयव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। किसी पॉवर सप्लाई में लगे हुए अमीटर और वोल्टमीटर वर्तमान समय में अधिकांश उपकरण डिजिटल हो गये हैं। एक '''डिजिटल बहुमापी''' (मल्टीमीटर) विद्युत का उपयोग बहुत समय से होता आ रहा है और निरंतर अन्वेषण कार्य के फलस्वरूप आज के युग में अनेक प्रकार के विद्युत् उपकरणों (Electrical Instruments) का प्रयोग होने लगा है। .

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विद्युतरोधी

११० किलोवोल्ट का एक सिरैमिक कुचालक विद्युतरोधी (Insulator) वे पदार्थ होते हैं जो तुलनात्मक रूप से विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करते हैं या जिनमें से होकर समान स्थितियों में बहुत कम धारा प्रवाहित होती है। लकड़ी (सूखी हुई), बैकेलाइट, एस्बेस्टस, चीनी मिट्टी, कागज, पीवीसी आदि कुचालकों के कुछ उदाहरण हैं। वैद्युत प्रौद्योगिकी में जिस तरह सुचालकों, अर्धचालकों एवं अतिचालकों के विविध उपयोग हैं, उसी प्रकार कुचालकों के भी विविध प्रकार से उपयोग किये जाते हैं। ये सुचालक तारों के ऊपर चढ़ाये जाते हैं; विद्युत मशीनों के वाइंडिंग में तारों की परतों के बीच उपयोग किये जाते हैं; उच्च वोल्टता की लाइनों को खम्भों या तावरों से आश्रय देने (लटकाने/झुलाने) आदि विविध कामों में प्रयुक्त होते हैं। .

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विद्युतवाहक बल

भौतिकी में मोटे तौर पर विद्युतवाहक बल (electromotive force, या emf) वह कारण है जो विद्युत धारा (या एलेक्ट्रॉन/ आयन) को परिपथ में प्रवाहित करता है। किन्तु विद्युतवाहक बल की औपचारिक परिभाषा इस प्रकार है: वोल्टीय सेल, विद्युतउष्मीय युक्तियाँ, सौर सेल, विद्युत जनित्र, वान डी ग्राफ आदि कुछ विद्युतवाहक बल उत्पन्न करने वाले सामान हैं। .

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विभव परिणामित्र

विभव परिणामित्र विभव परिणामित्र या विभव ट्रान्सफॉर्मर (Voltage transformers (VT) या potential transformers (PT)) उच्च एसी विभव को मापने के लिये प्रयुक्त उपकरण ट्रान्सफोर्मर (इन्स्ट्रुमेन्ट ट्रान्सफॉर्मर) हैं। ये समान्तर (parallel) जोड़े जाते हैं। .

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आटोट्रान्सफार्मर

आटोट्रान्सफार्मर का प्रतीक आटोट्रान्सफार्मर (Autotransformer) एक ऐसी संरचना वाला ट्रान्सफार्मर होता है जिसमें केवल एक ही वाइंडिंग होती है। एक ही वाइंडिंग का कुछ भाग प्राइमरी (इनपुट) का काम करता है और कुछ भाग द्वितियक वाइंडिंग (या आउटपुट) का काम करता है। अत: इस अकेली वाइंडिंग में कम से कम तीन विद्युतीय सिरे (टर्मिनल्स) होते हैं। इस तरह का ट्रान्सफार्मर समान केवीए रेटिंग से सामान्य ट्रान्सफार्मर की अपेक्षा आकार और वजन में छोटा होता है। किन्तु इसमें प्राइमरी और सेकेण्डरी के बीच आइसोलेशन नहीं मिलता जो कहीँ-कहीं अनिवार्य रूप से आवश्यक होती है। .

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आवृत्ति

विभिन्न आवृतियों की तरंगें कोई आवृत घटना (बार-बार दोहराई जाने वाली घटना), इकाई समय में जितनी बार घटित होती है उसे उस घटना की आवृत्ति (frequency) कहते हैं। आवृति को किसी साइनाकार (sinusoidal) तरंग के कला (phase) परिवर्तन की दर के रूप में भी समझ सकते हैं। आवृति की इकाई हर्त्ज (साकल्स प्रति सेकण्ड) होती है। एक कम्पन पूरा करने में जितना समय लगता है उसे आवर्त काल (Time Period) कहते हैं। आवर्त काल .

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क्षरण प्रेरकत्व

ट्रान्सफॉर्मर में क्षरण फ्लक्स जो क्षरण प्रेरकत्व का जनक है। क्षरण प्रेरकत्व (Leakage inductance) एक विद्युत-राशि है जो यह इंगित करती है कि दो कुंडलियाँ चुम्बकीय रूप से कितनी अच्छी तरह युग्मित (कपल्ड) हैं। जब एक कुण्डली द्वारा उत्पन्न अधिकांश चुम्बकीय फ्लक्स दूसरी कुंडली में भी चला जाता है तो हम कहते हैं के ये दोनों कुंडलियाँ अच्छी-तरह युग्मित हैं। इसी को दूसरे शब्दों में कहते हैं कि इनके बीच क्षरण प्रेरकत्व बहुत कम है। ट्रांसफॉर्मर की वाइंडिंग के लिये क्षरण प्रेरकत्व का बहुत महत्व है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

परिणामित्र, ट्रान्सफार्मर, ट्रान्सफॉर्मर, ट्रांसफार्मर, ट्रांसफॉर्मर

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