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टेस्टोस्टेरॉन

सूची टेस्टोस्टेरॉन

टेस्टोस्टेरॉन एंड्रोजन समूह का एक स्टीरॉएड हार्मोन है। स्तनपाइयों में टेस्टॉस्टेरॉन प्राथमिक रूप से नरों में अंडकोष से व मादाओं में अंडाशय से स्रावित होता है। हालांकि कुछ मात्रा अधिवृक्क ग्रंथि से भी स्रवित होती है।। हिन्दुस्तान लाइव। १६ मार्च २०१० यह प्रधान नर-सेक्स हार्मोन एवं एक एनाबोलिक स्टीरॉएड होता है। टेस्टोस्टेरॉन पुरुष यौन लक्ष्णों के विकास को बढ़ाता है और इसका संबंध यौन क्रियाकलापों, रक्त संचरण और मांसपेशियों के परिमाण के साथ साथ एकाग्रता, मूड और स्मृति से भी होता है। जब कोई पुरुष चिड़चिड़ा या गुस्सैल हो जाता है तो लोग इसे उसके काम या आयु का प्रभाव मानते हैं, पर यह टेस्टोस्टेरॉन की कमी से भी होता है। एक परीक्षण के अनुसार, इससे प्रभावित अधिकतर लोग ३५ साल से कम आयु के थे और कुछ की तो एक दो साल पहले ही शादी हुई थी। इसके अनुसार टेस्टोस्टेरॉन का स्तर निर्णय लेने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और जिन रोगियों मेंउनकी जानकारी के बगैर इसका स्तर बढ़ाया गया, उनका सामाजिक व्यवहार अन्य की तुलना में समाज के प्रति अधिक सकारात्मक हो गया। जिन रोगियों का मानना था कि टेस्टोस्टेरॉन अधिकता से आक्रामक व्यवहार उत्पन्न होता है अथवा जिन्होंने जानकारी में मात्रा ली, उनका प्रदर्शन अपेक्षाकृत कम ठीक रहा। पुरुषत्व के हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन मांसपेशियां सुगठित बनाने में भी सहायक होता है। चिकित्सकों के अनुसार टेस्टोस्टेरॉन की अधिक मात्र के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। आर्थिक दबावों और बढ़ती महंगाई के अलावा सामाजिक समस्याओं के कारण पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन नामक हार्मोन के स्तर में गिरावट सकती है और यह गिरावट अंततः स्तंभन ह्रास जैसी समस्याएं पैदा करती हैं। हाल के वर्षो में पति पत्नी घर, परिवार एवं दाम्पत्य संबंधों के बजाय व्यवसाय, वेतन और पैसे आदि को लेकर ही अधिक चिंता का वातावरण बना है। इनसे प्रभावित व्यक्ति के अंदर उपस्थित टेस्टोस्टेरॉन का स्तर उसके सामाजिक व्यवहारों को प्रभावित करता है। यह लोगों की मानसिक शांति के साथ-साथ उनके यौन जीवन पर ही ग्रहण लगा रही है। इससे पुरुषों में यौन शक्ति पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लंबे समय तक बना रहने वाला तनाव पुरुषों में उक्त हार्मोन के स्तर को कम कर सकता है। टेस्टोस्टेरॉन क्रम-विकास से ही अधिकतर कशेरुकियों में संरक्षित है, हालांकि मछलियों में भी ये एक अन्य रूप में, ११-कीटोटेस्टॉस्टेरॉन नाम से मिलता है। .

7 संबंधों: डिम्बग्रंथि, मूत्र, यकृत, स्तनधारी, वृषण, कशेरुकी प्राणी, अधिवृक्क ग्रंथि

डिम्बग्रंथि

डिम्बग्रंथि स्त्री जननांग या स्त्री प्रजनन प्रणाली का एक भाग हैं। महिलाओं में गर्भाशय के दोनों ओर डिम्बग्रंथियां होती है। यह देखने में बादाम के आकार की लगभग ३.५ सेमी लम्बी और २ सेमी चौड़ी होती है। इसके ऊपर ही डिम्बनलिकाओं कि तंत्रिकाएं होती है जो अंडों को अपनी ओर आकर्षित करती है। डिम्बग्रंथियों का रंग गुलाबी होता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ ये हल्के सफेद रंग की हो जाती है। वृद्वावस्था में यह सिकुड़कर छोटी हो जाती है। इनका प्रमुख कार्य अंडे बनाना तथा उत्तेजित द्रव और हार्मोन्स बनाना होता है। डिम्बग्रंथियों के मुख्य हार्मोन्स ईस्ट्रोजन और प्रोजैस्ट्रोन है। माहवारी (मासिक-धर्म) स्थापीत होने के पूर्व इसका कोई काम नहीं होता है। परन्तु माहवारी के बाद इसमें प्रत्येक महीने डिम्ब बनते और छोड़े जाते है, जो शुक्राणुओं के साथ मिलकर गर्भधारण करते है। .

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मूत्र

मानव का मूत्र-तंत्र मूत्र, मानव और अन्य कशेरुकी जीवों मे वृक्क (गुर्दे) द्वारा स्रावित एक तरल अपशिष्ट उत्पाद है। कोशिकीय चयापचय के परिणामस्वरूप कई अपशिष्ट यौगिकों का निर्माण होता है, जिनमे नाइट्रोजन की मात्रा अधिक हो स्कती है और इनका रक्त परिसंचरण तंत्र से निष्कासन अति आवश्यक होता है। आयुर्वेद अनुसार मूत्र को तीन प्रकार के मलो में शामिल किया है एवं शरीर मे इसका प्रमाण 4 अंजली माना गया है । .

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यकृत

यकृत की स्थिति (4) यकृत या जिगर या कलेजा (Liver) शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो पित्त (Bile) का निर्माण करती है। पित्त, यकृती वाहिनी उपतंत्र (Hepatic duct system) तथा पित्तवाहिनी (Bile duct) द्वारा ग्रहणी (Duodenum), तथा पित्ताशय (Gall bladder) में चला जाता है। पाचन क्षेत्र में अवशोषित आंत्ररस के उपापचय (metabolism) का यह मुख्य स्थान है। .

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स्तनधारी

यह प्राणी जगत का एक समूह है, जो अपने नवजात को दूध पिलाते हैं जो इनकी (मादाओं के) स्तन ग्रंथियों से निकलता है। यह कशेरुकी होते हैं और इनकी विशेषताओं में इनके शरीर में बाल, कान के मध्य भाग में तीन हड्डियाँ तथा यह नियततापी प्राणी हैं। स्तनधारियों का आकार २९-३३ से.मी.

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वृषण

अंडकोष पुरूष के नीचे एक थैली होती है। इसे स्क्रोटम कहा जाता है। इस थैली की त्वचा ढीली होती है। जो गर्मियों में अधिक बढ़कर लटक जाती है तथा सर्दियों में सिकुड़कर छोटी होती है। इसके अंदर वृषण होते है इनका मुख्य कार्य शुक्राणु और पुरूष उत्तेजित द्रव को बनाना होता है। वे पुरूष जो आग के सामने कार्य करते है, अधिक गर्म पानी से नहाते हैं। यह कच्छा को अधिक कसकर बांधते हैं। उनके अंडकोष से शुक्राणु कम मात्रा में या नहीं बन पाते है। अंडकोश की लंबाई 5 cm सेमी और चौड़ाई 2.5 सेमी होती है। इसमें रक्त का संचार बहुत अधिक होता है। दोनों तरफ के अंडकोष एक नलिका के द्वारा जुड़े होते हैं। जिसको वास डिफेरेन्स कहते है तथा दूसरी तरफ ये अन्य ग्रंथि से जुड़े रहते हैं। जिनको सेमिनाल वेसाईकल कहते है। Image:Hanging testicles.JPG| Image:Human_Scrotum.JPG| .

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कशेरुकी प्राणी

कशेरुकी जन्तु कशेरुकी या कशेरुकदंडी (वर्टेब्रेट, Vertebrate) प्राणिसाम्राज्य के कॉरडेटा (Chordata) समुदाय का सबसे बड़ा उपसमुदाय है। जिसके सदस्यों में रीढ़ की हड्डियाँ (backbones) या पृष्ठवंश (spinal comumns) विद्यमान रहते हैं। इस समुदाय में इस समय लगभग 58,000 प्रजातियाँ वर्णित हैं। इसमें बिना जबड़े वाली मछलियां, शार्क, रे, उभयचर, सरीसृप, स्तनपोषी तथा चिड़ियाँ शामिल हैं। ज्ञात जन्तुओं में लगभग 5% कशेरूकी हैं और शेष अकेशेरूकी। .

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अधिवृक्क ग्रंथि

अधिवृक्क ग्रन्थि (अंग्रेज़ी: adrenal gland या Suprarenal gland) कशेरुकी जीवों में पायी जाने वाली एक अंतःस्रावी ग्रन्थि है। यह वृक्क (गुर्दे) के ऊपर स्थित होती है। इनका मुख्य कार्य तनाव की स्थिति में हार्मोन निकालना है। मनुष्यों की दाहिनी अधिवृक्क ग्रंथि का आकार त्रिकोणाकार होता है जबकि दायीं अधिवृक्क ग्रन्थि अर्धचन्द्राकार होती है। अधिवृक्क ग्रन्थियाँ शरीर में सोडियम के नियंत्रण के लिए एल्डोस्टीरॉन नाम की हार्मोन उत्पन्न करती है और एपिनेफ्राइन नाम का हार्मोन उत्पन्न करती है जो हृदय पर अपना प्रभाव छोड़ती है। जब शरीर में ये हार्मोन कम उत्पन्न होता है तो पाचन क्रिया मन्द पड़ जाती है। मनुष्य को भूख नहीं लगती है, रक्तचाप गिर जाता है। इस प्रकार से उत्पन्न रोग को एडीसन रोग कहते है। लेकिन जब शरीर में ये ग्रन्थियाँ शरीर में अधिक हार्मोन उत्पन्न करते है तो स्त्रियों में दाढ़ी मूछें आदि नरों के लक्षण उभरने लगते हैं तथा बच्चों में आसाधारण गति के कारण जननांगों का विकास होने लगता हैं। .

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