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झा

सूची झा

एक भारतीय उपनाम। इसका प्रयोग मैथिल ब्राह्मण करते हैं। मैथिल ब्राह्मण पंचगौड़ ब्राह्मणों के अंतर्गत आते हैं और मूलतः मिथिला के निवासी होने के कारण मैथिल कहे जाते हैं। प्राचीन काल में मिथिला अलग राज्य था पर अब यह बिहार (उत्तरी) के अंतर्गत आता है। 'झा' शब्द संस्कृत भाषा के शब्द उपाध्याय का अपभ्रंश है। वैदिक काल में वैदिक शिक्षकों को उपाध्याय कहा जाता था। जिसे पालि में 'उवज्झा' कहा जाता था। यही 'उवज्झा' काल के उत्तरोत्तर प्रवाह में 'ओझा' से होते हुए घटकर केवल 'झा' रह गया। .

6 संबंधों: पालि भाषा, ब्राह्मण, मिथिला, संस्कृत भाषा, उपनाम, उपाध्याय

पालि भाषा

ब्राह्मी तथा भाषा '''पालि''' है। पालि प्राचीन उत्तर भारत के लोगों की भाषा थी। जो पूर्व में बिहार से पश्चिम में हरियाणा-राजस्थान तक और उत्तर में नेपाल-उत्तरप्रदेश से दक्षिण में मध्यप्रदेश तक बोली जाती थी। भगवान बुद्ध भी इन्हीं प्रदेशो में विहरण करते हुए लोगों को धर्म समझाते रहे। आज इन्ही प्रदेशों में हिंदी बोली जाती है। इसलिए, पाली प्राचीन हिन्दी है। यह हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में की एक बोली या प्राकृत है। इसको बौद्ध त्रिपिटक की भाषा के रूप में भी जाना जाता है। पाली, ब्राह्मी परिवार की लिपियों में लिखी जाती थी। .

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ब्राह्मण

ब्राह्मण का शब्द दो शब्दों से बना है। ब्रह्म+रमण। इसके दो अर्थ होते हैं, ब्रह्मा देश अर्थात वर्तमान वर्मा देशवासी,द्वितीय ब्रह्म में रमण करने वाला।यदि ऋग्वेद के अनुसार ब्रह्म अर्थात ईश्वर को रमण करने वाला ब्राहमण होता है। । स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को द्विज की उत्त्पत्ति बताई गई है जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते। शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता। ब्राह्मण (आचार्य, विप्र, द्विज, द्विजोत्तम) यह वर्ण व्‍यवस्‍था का वर्ण है। एेतिहासिक रूप हिन्दु वर्ण व्‍यवस्‍था में चार वर्ण होते हैं। ब्राह्मण (ज्ञानी ओर आध्यात्मिकता के लिए उत्तरदायी), क्षत्रिय (धर्म रक्षक), वैश्य (व्यापारी) तथा शूद्र (सेवक, श्रमिक समाज)। यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर का ज्ञाता"। सन:' शब्द के भी तप, वेद विद्या अदि अर्थ है | निरंतारार्थक अनन्य में भी 'सना' शब्द का पाठ है | 'आढ्य' का अर्थ होता है धनी | फलतः जो तप, वेद, और विद्या के द्वारा निरंतर पूर्ण है, उसे ही "सनाढ्य" कहते है - 'सनेन तपसा वेदेन च सना निरंतरमाढ्य: पूर्ण सनाढ्य:' उपर्युक्त रीति से 'सनाढ्य' शब्द में ब्राह्मणत्व के सभी प्रकार अनुगत होने पर जो सनाढ्य है वे ब्राह्मण है और जो ब्राह्मण है वे सनाढ्य है | यह निर्विवाद सिद्ध है | अर्थात ऐसा कौन ब्राह्मण होगा, जो 'सनाढ्य' नहीं होना चाहेगा | भारतीय संस्कृति की महान धाराओं के निर्माण में सनाढ्यो का अप्रतिभ योगदान रहा है | वे अपने सुखो की उपेक्षा कर दीपबत्ती की तरह तिलतिल कर जल कर समाज के लिए मिटते रहे है | .

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मिथिला

'''मिथिला''' मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था। माना जाता है कि यह वर्तमान उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई का इलाका है जिसे मिथिला के नाम से जाना जाता था। मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये भारत और भारत के बाहर जानी जाती रही है। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा मैथिली है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत शतपथ ब्राह्मण में तथा स्पष्ट उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में मिलता है। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है। .

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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उपनाम

नाम के साथ प्रयोग हुआ दूसरा शब्द जो नाम कि जाति या किसी विशेषता को व्यक्त करता है उपनाम (Surname / सरनेम) कहलाता है। जैसे महात्मा गाँधी, सचिन तेंदुलकर, भगत सिंह आदि में दूसरा शब्द गाँधी, तेंदुलकर, सिंह उपनाम हैं। .

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उपाध्याय

उपाध्याय (संस्कृत - उप + अधि + इण घं‌) इस शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है- 'उपेत्य अधीयते अस्मात्‌' जिसके पास जाकर अध्ययन किया जाए, वह उपाध्याय होता है। उपाध्याय ब्राह्मणों के एक वर्ग की संज्ञा भी है। मनुस्मृति के अनुसार वेद के एक भाग एवं वेदांग को वृत्ति लेकर पढ़ानेवाले शिक्षक को उपाध्याय कहते थे। 'एकदेशं तु वेदस्य वेदांगान्यपि वा पुन:। योऽध्यापयति वृत्तयर्थ उपाध्याय: स उच्चते (मनु 2:141)। यह आचार्य की अधीनता में शिक्षण कार्य किया करता था। संभवत: एक आचार्य के अधीन दस उपाध्याय शिक्षण कार्य किया करते थे ('उपाध्यायान्‌ दशाचार्य: मनु 2,146)। याज्ञवल्क्य (1,35), वशिष्ठ (3,21) और विष्णु (28,2) के अनुसार भी वृत्ति लेकर पढ़ाना ब्राह्मणों के आदर्श के अनुरूप नहीं समझा जाता था, इसलिए संभवत: उपध्याय के संबंध में नीतिकार ने कहा है - 'उपाध्याश्च वैद्यश्च ऋतुकाले वरस्त्रिय:। सूतिका दूतिका नौका कार्यान्ते ते च शष्पवत्‌।' बौद्ध साहित्य में भी उपाध्याय (उपज्झाय) के संबंध में अनेक निर्देश उपलब्ध हैं। महावग्ग (1-31) के अनुसार उपसंपन्न भिक्षु को बौद्ध ग्रंथों की शिक्षा उपाध्याय द्वारा दी जाती थी। पढ़ने का प्रार्थनापत्र भी उसी की सेवा में प्रस्तुत किया जाता था। (महावग्ग 1.25.7)। इत्सिंग के विवरण से ज्ञात होता है कि जब उपासक प्र्व्राज्या लेता था, जब उपाध्याय के सम्मुख ही उसे श्रम की दीक्षा दी जाती थी। दीक्षाग्रहण के पश्चात्‌ ही उसे 'त्रिचीवर' भिक्षापात्र और निशीदान (जलपात्र) प्रदान करता था। उपसंपन्न भिक्षु को 'विनय' की शिक्षा उपाध्याय द्वारा ही दी जाती थी। केवल पुरुष ही नहीं, स्त्रियाँ भी उपाध्याय होती थीं। पतंजलि ने उपाध्याया की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है-'उपेत्याधीयते अस्या: सा उपाध्याया।' उपाध्याय संस्था का विकास संभवत: इस प्रकार हुआ। धार्मिक संस्कार करने तथा धर्मतत्व का उपदेश देने का कार्य पहले कुल का मुख्य पुरुष वा कुलवृद्ध करता था। यही उपाध्याय होता था। प्राय: सब जातियों में यही पाया जाता है। भारतीय आर्यों में कुलपति ही उपाध्याय होता था। यहूदियों में 'अब्राहम आइजे' आदि कुलपति उपाध्याय का काम करते थे। अरब लोगों में शेख यह काम करता था। आज भी वह उस समाज का नेता तथा धार्मिक कृत्यों और मामलों में प्रमुख होता है। रोमन कैथोलिक और ग्रीक संप्रदाय में उपाध्याय का अधिकार मानने की प्रथा है। श्रेणी:शिक्षा श्रेणी:भारतीय संस्कृति श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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