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जॉन मेनार्ड कीन्स

सूची जॉन मेनार्ड कीन्स

जोन मेनार्ड केन्स मार्शल के शिष्य जान मेनार्ड कीन्स (1883) का 'रोजगार, ब्याज एवं मुद्रा का सामान्य सिद्धांत' (सन्‌ 1936) नामक ग्रंथ अर्थशास्त्र की विशेष महत्वपूर्ण पुस्तक है। वास्तव में इस ग्रंथ ने पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों की विचारधारा को आमूल परिवर्तित कर दिया है। इसी पर हेराड डोमर का सुप्रसिद्ध विकास माडल, लियोंतिफ का इन-पुट आउटपुट माडल आदि कई महत्वपूर्ण सिद्धांत उद्भूत हुए हैं। प्रो॰ सैम्युलसन मानते हैं कि कोई भी व्यक्ति या अर्थशास्त्री एक बार कीन्स के विश्लेषण से प्रभावित होने के बाद पुरानी विचारधाराओं की ओर नहीं लौटा। कीन्स के प्रभाव के कारण ही उनके पूर्ववर्ती आलोचक भी उनके समर्थक हो गए। वे बहुत स्पष्टवादी रहे और इसी कारण उनके आर्थिक विचार सुलझे हुए हैं। उन्होंने व्यावहारिक क्षेत्र में भी यथेष्ट योगदान दिया था। अमेरिका की न्यू डील, अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष तथा अंतराष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (विश्व बैंक) आदि की स्थापना में उनका सक्रिय योगदान रहा है। कीन्स व्यष्टि अर्थशास्त्र के जन्मदाता रहे हैं। इसी हेतु उनका ग्रंथ 'सामान्य सिद्धांत' इतना लोकप्रिय हुआ। वैसे भी इस ग्रंथ में उन्होंने व्यापक आर्थिक विश्लेषण को स्पष्ट किया। उन्होंने अर्थशास्त्र को कुल आय तथा प्रभावी मांग का सिद्धांत दिया। उनके अनुसार रोजगार प्रभावी माँग पर निर्भर करता है। प्रभावी माँग स्वयं उपयोग तथा विनियोग पर निर्भर करती है। उपभोग का निर्धारण आय के आकार और समाज की उपभोग प्रवृत्ति के अनुसार होता है। अत: यदि रोजगार बढ़ाना है तो उपभोग तथा विनियोग दोनों में वृद्धि करना चाहिए। कीन्स ने मार्शल, पीगू, फिशर द्वारा दी गई आय की स्थैतिक परिभाषाओं में से किसी को भी स्वीकार नहीं किया क्योंकि कीन्स कें अनुसार वे उन तत्वों पर कोई प्रकाश नहीं डालतीं जो किसी विशेष समय में अर्थव्यवस्था में रोजगार और आय के स्तर को निर्धारित करते हैं। कीन्स ने सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय की परिभाषा इस प्रकार दी जिससे उसे समाज में रोजगार का निर्धारण करने में सहायता मिले। मार्शल के मूल्य सिद्धांत का आधार जिस प्रकार 'कीमत' है, वैसे ही कीन्स के रोजगार सिद्धांत का आधार 'आय' है। उनके अनुसार 'कुल आय.

7 संबंधों: निवेश, विचारधारा, व्यष्टि अर्थशास्त्र, आर्थिक मंदी, कींस का सिद्धांत, अर्थशास्त्र, उपयोग

निवेश

निवेश या विनियोग (investment) का सामान्य आशय ऐसे व्ययों से है जो उत्पादन क्षमता में वृद्धि लायें। यह तात्कालिक उपभोग व्यय या ऐसे व्ययों संबंधित नहीं है जो उत्पादन के दौरान समाप्त हो जाए। निवेश शब्द का कई मिलते जुलते अर्थों में अर्थशास्त्र, वित्त तथा व्यापार-प्रबन्धन आदि क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। यह पद बचत करने और उपभोग में कटौती या देरी के संदर्भ में प्रयुक्त होता है। निवेश के उदाहरण हैं- किसी बैंक में पूंजी जमा करना, या परिसंपत्ति खरीदने जैसे कार्य जो भविष्य में लाभ पाने की दृष्टि से किये जाते हैं। सामान्यतः इसे किसी वर्ष में पूँजी स्टॉक में होने वाली वृद्धि के रूप में परिभाषित करते हैं। संचित निवेश या विनियोग ही पूँजी है। .

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विचारधारा

विचारधारा, सामाजिक राजनीतिक दर्शन में राजनीतिक, कानूनी, नैतिक, सौंदर्यात्मक, धार्मिक तथा दार्शनिक विचार चिंतन और सिद्धांत प्रतिपादन की व्यवस्थित प्राविधिक प्रक्रिया है। विचारधारा का सामान्य आशय राजनीतिक सिद्धांत रूप में किसी समाज या समूह में प्रचलित उन विचारों का समुच्चय है जिनके आधार पर वह किसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संगठन विशेष को उचित या अनुचित ठहराता है। विचारधारा के आलोचक बहुधा इसे एक ऐसे विश्वास के विषय के रूप में व्यवहृत करते हैं जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता। तर्क दिया जाता है कि किसी विचारधारा विशेष के अनुयायी उसे अपने आप में सत्य मानकर उसका अनुसरण करते हैं, उसके सत्यापन की आवश्यकता नहीं समझी जाती। वस्तुतः प्रत्येक विचारधारा के समर्थक उसकी पुष्टि के लिए किंचित सिद्धांत और तर्क अवश्य प्रस्तुत करते हैं और दूसरे के मन में उसके प्रति आस्था और विश्वास पैदा करने का प्रयत्न करते हैं। .

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व्यष्टि अर्थशास्त्र

आपूर्ति और मांग मॉडल का वर्णन कैसे मूल्य भिन्न प्रत्येक (कीमत आपूर्ति) और प्रत्येक (कीमत मांग में क्रय शक्ति के साथ उन लोगों की इच्छाओं पर उत्पाद की उपलब्धता के बीच एक संतुलन का एक परिणाम के रूप में). ग्राफ एक सही-D1 से मांग में कीमत में वृद्धि और फलस्वरूप मात्रा की आपूर्ति वक्र (एस) पर एक नया बाजार समाशोधन संतुलन बिंदु तक पहुँचने के लिए आवश्यक के साथ D2 में जाने के लिए दर्शाया गया है। सूक्ष्मअर्थशास्त्र (ग्रीक उपसर्ग माइक्रो - अर्थ "छोटा" + "अर्थशास्त्र") अर्थशास्त्र की एक शाखा है जो यह अध्ययन करता है कि किस प्रकार अर्थव्यवस्था के व्यक्तिगत अवयव, परिवार एवं फर्म, विशिष्ट रूप से उन बाजारों में सीमित संसाधनों के आवंटन का निर्णय करते हैं, जहां वस्तुएं एवं सेवाएं खरीदी एवं बेचीं जाती हैं। सूक्ष्म अर्थशास्त्र यह परीक्षण करता है कि ये निर्णय एवं व्यवहार किस प्रकार वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति एवं मांगों को प्रभावित करते हैं, जो मूल्यों का निर्धारण करती हैं और किस प्रकार, इसके बदले में, मूल्य, वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति एवं मांगों को निर्धारित करती है। वृहतअर्थशास्त्र में इसके विपरीत होता है, जिसमें वृद्धि, मुद्रास्फीति, एवं बेरोजगारी से संबंधित क्रियाकलापों का कुल योग शामिल होता है। सूक्ष्मअर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था के पूर्व में बताये गए पहलुओं पर राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों (जैसे कि कराधान के बदलते स्तरों) के प्रभावों की भी चर्चा करता है। विशेष रूप से लुकास की आलोचना के मद्देनजर, अधिकांश आधुनिक वृहत आर्थिक सिद्धांत का निर्माण 'सूक्ष्मआधारशिला' - अर्थात् सूक्ष्म-स्तर व्यवहार के संबंध में बुनियादी पूर्वधारणाओं के आधार पर किया गया है। सूक्ष्मअर्थशास्त्र का एक लक्ष्य बाजार तंत्र का विश्लेषण करना है जो वस्तुओं एवं सेवाओं के बीच सापेक्ष मूल्य की स्थापना और कई वैकल्पिक उपयोगों के बीच सीमित संसाधनों का आवंटन करता है। सूक्ष्मअर्थशास्त्र बाजार की विफलता का विश्लेषण करता है, जहां बाजार प्रभावशाली परिणाम उत्पन्न करने में विफल रहते हैं और यह पूर्ण प्रतियोगिता के लिए आवश्यक सैद्धांतिक अवस्थाओं का वर्णन करता है। सूक्ष्मअर्थशास्त्र में अध्ययन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सामान्य संतुलन, असममित जानकारी के अंतर्गत बाजार, अनिश्चितता के अंतर्गत विकल्प और खेल सिद्धांत के आर्थिक अनुप्रयोग शामिल हैं। बाजार व्यवस्था के भीतर उत्पादों के लोच पर भी विचार किया जाता है। .

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आर्थिक मंदी

जब वस्तुओ ओर सेवाओ के उत्पादन मै निरन्तर गिरावत हो रही हो ओर सकल घरेलू उत्पाद कम से कम तीन महीने डाउन ग्रोव्थ मै हो तो इस स्थिति को आर्थिक मन्दी कहते हैं। .

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कींस का सिद्धांत

कींस का सिद्धांत या कींस का रोजगार सिद्धांत मंदी अथवा अवसाद की स्थिति में रोजगार से संबंधित है। जॉन मेनार्ड कीन्स ने अपने रोजगार सिद्धांत का प्रतिपादन अपनी प्रसिद्ध पुस्तक जनरल थ्योरी ऑफ इम्प्लॉयमेंट में १९३६ के दौरान किया था। कींस के अनुसार मंदी या अवसाद की स्थिति में बेरोजगारी अर्थव्यवस्था में समग्र माँग या समग्र व्यय की कमी के कारण होती है। इस प्रकार समग्र व्यय की वृद्धि के द्वारा बेरोजगारी में कमी लायी जा सकती है। अर्थव्यवस्था में व्यय की वृद्धि तथा अर्थव्यवस्था की अवसाद से बाहर निकालने के लिए कींस पहले अर्थशास्त्री थे जिन्होंने सरकारी व्यय पर बल दिया। .

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अर्थशास्त्र

---- विश्व के विभिन्न देशों की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर (सन २०१४) अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है। अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है। अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य, कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि। प्रो.

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उपयोग

उपयोग का अर्थ काम में लाना। .

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