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जाल नियतकालिक

सूची जाल नियतकालिक

जाल नियतकालिक छापेखाने में परंपरागत रूप से कागज़ पर छापे जाने की बजाय अंतर्जाल (world wide web) पर इलेक्ट्रानिक माध्यम से स्थापित की जाती है। अंतर्जाल पर स्थित होने के कारण इसको दुनिया के किसी भी कोने से अपने कंप्यूटर पर पढ़ा जा सकता है। इसमें आलेख और चित्रों के साथ-साथ ध्वनि और चलचित्रों का भी समावेश किया जा सकता है। इसकी देखभाल के लिए एक संपादक मंडल भी होता है। इसके प्रकाशन का समय निर्धारित होता है जैसे साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक या द्विमासिक। जो साहित्य आंतरजालपर नियमित रूप से प्रकाशित होता हैं, उसे जाल नियतकालिक कहते हैं। इसीलिए हिंदी चिठ्ठे भी जाल पत्रिका कहलवाते हैं। निरंतर नामक जाल नियतकालिक के उदय के पश्चात शब्दावली का भी प्रयोग होने लगा है जिसका आशय है पत्रिका और ब्लॉग के तत्वों, जैसे पाठक का किसी लेख पर फार्म का उपयोग कर टिप्पणी कर पाना, का मिलाप। कुछ जाल नियतकालिक परंपरागत रूप से मुद्रित भी होते हैं, जैसे हंस और वागार्थ, यानि इनका प्रिंट एडीशन या अंक भी निकलता है। कई जाल नियतकालिक अपने अंतर्जाल और छपे अंकों की सामग्री में फर्क भी रखते हैं क्योंकि दोनों माध्यमों के पाठकों के पठन का ढंग अलग होता है। माईक्रोसॉफ्ट फ्रंटपेज जैसे वेब पब्लिशिंग के औजारों के अलावा अंतर्जाल पत्रिकाएं प्रकाशित करने के लिये संप्रति ड्रीम वीवर और या जैसे भी बाज़ार में उपलब्ध हैं। .

3 संबंधों: निरन्तर, हंस (पक्षी), इलेक्ट्रानिक पत्रिका

निरन्तर

right निरंतर हिन्दी चिट्ठाकारों के एक समूह द्वारा प्रकाशित विश्व की पहली ज्ञात हिन्दी ब्लॉगज़ीन और जाल-पत्रिका थी। गैरपेशेवर प्रकाशकों द्वारा निकाली जाने वाली इस पत्रिका के प्रकाशकों का दावा था कि यह पाठकों को प्रकाशित लेखों पर त्वरित टिप्पणी करने का मौका देती है। निरंतर की स्थापना 2005 में की गई, पहले यह पंकज नरूला द्वारा स्थापित अक्षरग्राम डोमेन के अंतर्गत प्रकाशित होती थी परंतु बाद में अपने ही डोमेन से प्रकाशित होने लगी। जाल पर हिन्दी के बढ़ते प्रयोग के मद्देनज़र यह प्रयास शुरु किया गया था। निरंतर से जुड़े लोग वैसे तो चिट्ठाकारी से जुड़े थे पर यह पत्रिका उनके औपचारिक लेखन को प्रस्तुत करने का एक मंच बनी। अगस्त 2005 में निरंतर का प्रकाशन 6 अंकों के उपरांत बंद हो गया था। 1 साल बाद अगस्त 2006 में इसका प्रकाशन नये कलेवर में दुबारा शुरु हुआ और अगस्त, अक्टूबर व दिसम्बर में तीन अंक प्रकाशित होने के बाद बंद हो गया। मई 2007 से जुलाई 2008 के मध्य इसके अंक यदा कदा पुनः प्रकाशित हुये। पत्रिका के कुल दस अंक प्रकाशित हुये हैं। जनवरी 2009 में निरंतर पत्रिका को बंद कर इसके प्रकाशन मंडल ने इसे एक नई जालपत्रिका सामयिकी में सामहित करने की घोषणा की। निरंतर के मानद मुख्य संपादक हैं अनूप शुक्ला। पत्रिका का प्रकाशन व प्रबंध संपादन इसके संस्थापक देबाशीष चक्रवर्ती करते हैं। निरंतर के कोर संपादन टीम में शामिल हैं डॉ सुनील दीपक, रविशंकर श्रीवास्तव, रमण कौल, अतुल अरोरा, प्रत्यक्षा, शशि सिंह, ईस्वामी, पंकज नरूला, जीतेन्द्र चौधरी और आलोक कुमार। .

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हंस (पक्षी)

हंस हंस एक पक्षी है। भारतीय साहित्य में इसे बहुत विवेकी पक्षी माना जाता है। और ऐसा विश्वास है कि यह नीर-क्षीर विवेक (पानी और दूध को अलग करने वाला विवेक) से युक्त है। यह विद्या की देवी सरस्वती का वाहन है। ऐसी मान्यता है कि यह मानसरोवर में रहते हैं। यह पानी मे रहता है। श्रेणी:पक्षी.

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इलेक्ट्रानिक पत्रिका

जो पत्रिका कंप्यूटर पर लिखी जाए और कंप्यूटर पर ही पढ़ी जाए उसको जाल-नियतकालिक या इलेक्ट्रानिक पत्रिका (e-zine) कह सकते हैं। इस दृष्टि से जाल-पत्रिका को भी इलेक्ट्रानिक पत्रिका कहा जा सकता है। लेकिन हर इलेक्ट्रानिक पत्रिका जाल-पत्रिका हो वह ज़रूरी नहीं है। बहुत सी इलेक्ट्रानिक पत्रिकाएं पीडीएफ प्रारूप में तैयार की जाती हैं और बहुत सी एम एस वर्ड में। ये ई-मेल से पाठकों के पास भेजी जाती हैं या फिर डाउनलोड के लिए भी उपलब्ध होती हैं। बहुत सी कंपनियां अपने न्यूज़-लेटर इलेक्ट्रानिक-पत्रिका के रूप में प्रकाशित करती हैं। इनके प्रकाशन की तिथि निश्चित होती है और इनका संपादक मंडल भी होता है। .

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