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जल संरक्षण

सूची जल संरक्षण

1960 अमरीका चार प्रतिशत डाक टिकट: जल संरक्षण. जल संरक्षण का अर्थ है जल के प्रयोग को घटाना एवं सफाई, निर्माण एवं कृषि आदि के लिए अवशिष्ट जल का पुनःचक्रण (रिसाइक्लिंग) करना।.

5 संबंधों: द्रप्स सिंचाई, पर्यावरण संरक्षण, वाष्पीकरण, कम्पोस्टकारी शौचालय, अपवाह

द्रप्स सिंचाई

द्रप्स सिंचाई का योजना-चित्र भारत के छिनवाल में केले की टपक सिंचाई की व्यवस्था द्रप्स सिंचाई या 'ड्रिप इर्रिगेशन' (Drip irrigation या trickle irrigation या micro irrigation या localized irrigation), सिंचाई की एक विशेष विधि है जिसमें पानी और खाद की बचत होती है। इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बूँद-बूंद करके टपकाया जाता है। इस कार्य के लिए वाल्व, पाइप, नलियों तथा एमिटर का नेटवर्क लगाना पड़ता है। इसे 'टपक सिंचाई' या 'बूँद-बूँद सिंचाई' भी कहते हैं। टपक या बूंद-बूंद सिंचाई एक ऐसी सिंचाई विधि है जिसमें पानी थोड़ी-थोड़ी मात्र में, कम अन्तराल पर, प्लास्टिक की नालियों द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। परम्परागत सतही सिंचाई (conventional irrigation) द्वारा जल का उचित उपयोग नहीं हो पाता, क्योंकि अधिकतर पानी, जोकि पौधों को मिलना चाहिए, जमीन में रिस कर या वाष्पीकरण द्वारा व्यर्थ चला जाता है। अतः उपलब्ध जल का सही और पूर्ण उपयोग करने के लिए एक ऐसी सिंचाई पद्धति अनिवार्य है जिसके द्वारा जल का रिसाव कम से कम हो और अधिक से अधिक पानी पौधे को उपलब्ध हो पाये। कम दबाव और नियंत्रण के साथ सीधे फसलों की जड़ में उनकी आवश्यकतानुसार पानी देना ही टपक सिंचाई है। टपक सिंचाई के माध्यम से पौधों को उर्वरक आपूर्ति करने की प्रक्रिया फर्टिगेशन कहलाती है, जो कि पोषक तत्वों की लीचिंग व वाष्पीकरण नुकसान पर अंकुश लगाकर सही समय पर उपयुक्त फसल पोषण प्रदान करती है। .

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पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना है। 'परि' का आशय चारों ओर तथा 'आवरण' का आशय परिवेश है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों,प्राणियों,और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं वास्तव में पर्यावरण में वायु,जल,भूमि,पेड़-पौधे, जीव-जन्तु,मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं। .

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वाष्पीकरण

अवस्था परिवर्तन के विभिन्न रूप किसी तत्त्व या यौगिक का द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तन वाष्पीकरण (Vaporization या vaporisation) कहलाता है। वाष्पीकरण दो प्रकार का होता है- वाष्पन, तथा क्वथन। .

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कम्पोस्टकारी शौचालय

कम्पोस्टकारी शौचालय में मल को शीघ्र विघटित करने के लिये कई पदार्थ उपयोग किये जा सकते हैं। इनमें लकड़ी का बुरादा प्रमुख है। मूत्र को अलग रखकर निर्जलीकरण करने वाला कम्पोस्टिंग शौचालय 1: ह्यूमस विभाग, 2: संवातन (Ventilation) पाइप, 3: शौचालय की सीट, 4:मूत्रालय, 5:मूत्र संग्रह एवं निर्जलीकरण, A:दूसरी मंजिल, B:पहली मंजिल, C:भूतल कंपोस्टकारी शौचालय (composting toilet) मानव मल के ट्रीटमेंट का सवायु (aerobic) विधि है जिसमें कंपोस्टिंग प्रक्रिया का उपयोग करने के फलस्वरूप बहुत कम (या बिल्कुल नहीं) जल डालना पड़ता है। यह विधि प्राय वायुहीन विनष्टन (decomposition) से तीव्र होती है। ज्ञातव्य है कि सेप्टिक तंत्रों में वायुहीन विनष्टन पद्धति ही ही प्रयुक्त होती है। कम्पोस्टकारी शौचालय प्रायः केन्दीकृत जलमल ट्रीटमेन्ट संयंत्रों (सीवर) के विकल्प के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। इनके निम्नलिखित लाभ हैं- ये शौचालय, गड्ढा शौचालय से भिन्न हैं जिससे भूजल के प्रदूषित होने का खतरा बना रहता है। .

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अपवाह

अपवाह या धरातलीय अपवाह (अंग्रेज़ी: Surface runoff) जल की वह मात्रा है जो पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में ढाल का अनुसरण करते हुए जलधाराओं, सरिताओं, नालों और नदियों के रूप में प्रवाहित होता है।सविन्द्र सिंह, भौतिक भूगोल की रूपरेखा, प्रयाग पुस्तक भवन, इलाहाबाद किसी नदी बेसिन या किसी भी भौगोलिक इकाई का अपवाह उस इकाई में होने वाले वर्षण में से निस्यन्दन, वाष्पीकरण, मृदा-जल-धारण इत्यादि द्वारा होने वाले क्षय को घटा कर निकाला जा सकता है। सरिताओं और नदियों का अपवाह उनके बेसिन के आकार पर भी निर्भर करता है। अपवाह का मापन और इसके प्रतिरूपों का अध्ययन किसी भौगोलिक क्षेत्र के जल तन्त्र या जल चक्र को समझने के लिये अत्यंत आवश्यक है। इसी लिये जल संसाधनों के क्षेत्रीय अथवा वैश्विक अध्ययन में अपवाह का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। बहता हुआ जल कई प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण भी करता है जिन्हें जलीय स्थलरूप कहते हैं। इनमें प्रमुख हैं वी-आकार की घाटी, जलप्रपात, क्षिप्रिका, बाढ़ मैदान, विसर्प, डेल्टा इत्यादि। निर्धारित जलमार्गों का अनुसरण करता हुआ बहता जल इनके जाल द्वारा जो तंत्र बनाता है उसे अपवाह तन्त्र कहते हैं।सोनल गुप्ता - इस अपवाह तंत्र का ज्यामितीय विन्यास यह बताता है कि यह किस प्रकार का अपवाह तंत्र है या इसका अपवाह प्रतिरूप क्या है। किसी क्षेत्र का अपवाह तंत्र उस क्षेत्र की स्थलाकृति और जलवायु पर निर्भर होता है .

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