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जनसांख्यिकी

सूची जनसांख्यिकी

आबादी के अनुसार देशों के मानचित्र इस सदी के उत्तरार्ध के लिए मानव जनसंख्या वृद्धि को दर्शाते हुए अनुमान (चार्ट के वैकल्पिक दृश्य भी देखें). जनसांख्यिकी, मानव जनसंख्या का सांख्यिकीय अध्ययन है। यह एक बहुत सामान्य विज्ञान हो सकता है जिसे किसी भी तरह की गतिशील मानव आबादी पर लागू किया जा सकता है, अर्थात् ऐसी आबादी जो समय और स्थान के साथ-साथ परिवर्तित होती है (जनसंख्या गतिशीलता देखें).

29 संबंधों: चीन, धर्म, प्रवास, भारत, मिशिगन विश्वविद्यालय, म्यान्मार, मृत्यु, राष्ट्रीयता, राज्य, शिशु मृत्यु दर, शिक्षा, समाजशास्त्र, सामाजिक, संचार, संयुक्त राष्ट्र, होमो सेपियन्स, जनन, जनसांख्यिकी, जनसंख्या, जनसंख्या भूगोल, जनगणना, जन्म, जैक, जीवन प्रत्याशा, विपणन, इतिहास, कौल (उपनाम), अधिप्रचार, अर्थशास्त्र

चीन

---- right चीन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो एशियाई महाद्वीप के पू‍र्व में स्थित है। चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। चीन की लिखित भाषा प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी है जो आज तक उपयोग में लायी जा रही है और जो कई आविष्कारों का स्रोत भी है। ब्रिटिश विद्वान और जीव-रसायन शास्त्री जोसफ नीधम ने प्राचीन चीन के चार महान अविष्कार बताये जो हैं:- कागज़, कम्पास, बारूद और मुद्रण। ऐतिहासिक रूप से चीनी संस्कृति का प्रभाव पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर रहा है और चीनी धर्म, रिवाज़ और लेखन प्रणाली को इन देशों में अलग-अलग स्तर तक अपनाया गया है। चीन में प्रथम मानवीय उपस्थिति के प्रमाण झोऊ कोऊ दियन गुफा के समीप मिलते हैं और जो होमो इरेक्टस के प्रथम नमूने भी है जिसे हम 'पेकिंग मानव' के नाम से जानते हैं। अनुमान है कि ये इस क्षेत्र में ३,००,००० से ५,००,००० वर्ष पूर्व यहाँ रहते थे और कुछ शोधों से ये महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली है कि पेकिंग मानव आग जलाने की और उसे नियंत्रित करने की कला जानते थे। चीन के गृह युद्ध के कारण इसके दो भाग हो गये - (१) जनवादी गणराज्य चीन जो मुख्य चीनी भूभाग पर स्थापित समाजवादी सरकार द्वारा शासित क्षेत्रों को कहते हैं। इसके अन्तर्गत चीन का बहुतायत भाग आता है। (२) चीनी गणराज्य - जो मुख्य भूमि से हटकर ताईवान सहित कुछ अन्य द्वीपों से बना देश है। इसका मुख्यालय ताइवान है। चीन की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है। प्राचीन चीन मानव सभ्यता के सबसे पुरानी शरणस्थलियों में से एक है। वैज्ञानिक कार्बन डेटिंग के अनुसार यहाँ पर मानव २२ लाख से २५ लाख वर्ष पहले आये थे। .

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धर्म

धर्मचक्र (गुमेत संग्रहालय, पेरिस) धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को गुण भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश, उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए पानी, अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। (पालि: धम्म) भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में कोई तुल्य शब्द पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। .

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प्रवास

पर्यावरण और प्राणी व्यवहार में प्रवास (migration) या प्रवास व्यवहार के कई अर्थ हो सकते हैं.

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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मिशिगन विश्वविद्यालय

कोई विवरण नहीं।

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म्यान्मार

म्यांमार यो ब्रह्मदेश दक्षिण एशिया का एक देश है। इसका आधुनिक बर्मी नाम 'मयन्मा' (မြန်မာ .

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मृत्यु

मानव खोपड़ी मौत के लिए एक सार्वभौमिक प्रतीक है। किसी प्राणी के जीवन के अन्त को मृत्यु कहते हैं। मृत्यु सामान्यतः दुर्घटना, चोट, बीमारी, कुपोषण के परिणामस्वरूप होती है। आँख "अनन्त जीवन के लिए प्राचीन मिस्र के प्रतीक है।" वे और कई अन्य संस्कृतियों के बाद से एक पोर्टल के रूप में एक जीवन के बाद में जैविक मौत देखी है। .

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राष्ट्रीयता

राष्ट्रीयता (Nationality) किसी व्यक्ति और किसी संप्रभु राज्य (अक्सर देश) के बीच के क़ानूनी सम्बन्ध को बोलते हैं। राष्ट्रीयता उस राज्य को उस व्यक्ति के ऊपर कुछ अधिकार देती है और बदले में उस व्यक्ति को राज्य सुरक्षा व अन्य सुविधाएँ लेने का अधिकार देता है। इन लिये व दिये जाने वाले अधिकारों की परिभाषा अलग-अलग राज्यों में भिन्न होती है। आम तौर पर परम्परा व अंतरराष्ट्रीय समझौते हर राज्य को यह तय करने का अधिकार देते हैं कि कौन व्यक्ति उस राज्य की राष्ट्रीयता रखता है और कौन नहीं। साधारणतया राष्ट्रीयता निर्धारित करने के नियम राष्ट्रीयता क़ानून (nationality law) में लिखे जाते हैं। स्थानीयता, राष्ट्रीयता और वैश्विकता के आयाम परस्पर पूरक भूमिका निभाते चलते हैं। अथर्ववेद का सूत्र ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ प्रत्येक व्यक्ति के सामने पृथ्वीपुत्र होने का प्रादर्श रखता है। इसी बात को रामायणकार वाल्मीकि राम के मुख से कुछ इस तरह कहलवाते हैं, ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’ अपनी जन्मभूमि या भूखण्ड के प्रति प्रेम की इसी अभिव्यक्ति से ‘राष्ट्र’ की अवधारणा ने जन्म लिया। ‘राष्ट्र’ का प्रयोग हमारी परम्परा में तीन परस्पर सम्बद्ध अर्थों में होता आ रहा है। पहला राज्य, देश या साम्राज्य के अर्थ में, जैसे राष्ट्रदुर्गबलानि-अमरकोश, मनुस्मृति, (7/109, 10/61), दूसरा जिले, देश, प्रदेश या मंडल (मनु 7/73) के अर्थ में, जैसा आज भी सौराष्ट्र या महाराष्ट्र जैसे शब्दों में होता है, तथा तीसरा प्रजा, जनता या अधिवासी के अर्थ में (मनु. 9/254)। जाहिर है, जब हम ‘राष्ट्र’ की बात करते हैं, तब उसमें भूमि, जन और उनकी संस्कृति - सब कुछ समाहित हो जाते हैं। यजुर्वेद इसी राष्ट्र के प्रति जागरूक होने का आह्वान करता है, ‘व्यं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहितः।’ स्थानीयता के आग्रहों के बावजूद भारतीय जनमानस में ‘आसेतुहिमालय’ जैसे विस्तृत भूभाग के प्रति गहरा अनुराग सहस्राब्दियों से रहा है। यज्ञानुष्ठानों में ‘जम्बूदीपे भरतखण्डे आर्यावर्तदेशान्तर्गते’ कहकर अपनी भूमि के प्रति लगाव की अभिव्यक्ति कई शताब्दियों से जारी है। पुराणकालीन भारत का चित्र समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण के भूभाग को समेटता है, जिसकी प्रजा या संतति को भारती की संज्ञा मिली हुई है - उत्तरैण समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणे। वर्षं तद्भारतं नाम भारती यत्रा संततिः।।(ब्रह्मपुराण) विष्णु पुराण (20/3/24) तो इसे स्वर्ग से भी बेहतर ठहराता है - ‘‘गायन्ति देवाः किल गीतिकानि धन्यास्तु ते भारतभूमि भागे। स्वर्गापर्गास्पद हेतुभूते भवन्ति भूयः पुरुषः सुरत्वात्।।’’ अर्थात् भारत में जन्म लेना सौभाग्य की बात है, तभी देवगण स्वर्ग का सुख भोगते हुए भी मोक्ष साधना के लिए कर्मभूमि भारत में जन्म लेने की कामना करते हैं। राष्ट्र-निर्माण के लिए जरूरी घटकों में देश, जाति, धर्म, संस्कृति और भाषा को मान्यता दी जाती है। देश से आशय उसके अपने भूगोल से है, जाति वहाँ रहने वाले जनसमुदाय की बोधक है और फिर सबको धारण करने वाले धर्म का होना भी जरूरी है। यहाँ धर्म संकीर्ण अर्थ का वाचक नहीं है। संस्कृति उस राष्ट्र के जन-समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति यदि उच्चतम चिंतन का मूर्त रूप है तो है तो भाषा उसका माध्यम है। जाहिर है किसी भी राष्ट्र की एकता इन सभी घटकों के प्रति गहरी आत्मीयता पर निर्भर करती है। राष्ट्रीयता के लिए बेहद जरूरी है बाहरी तौर पर दिखाई देने वाले अंतर के बावजूद आंतरिक समभावना और संगठन। .

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राज्य

विश्व के वर्तमान राज्य (विश्व राजनीतिक) पूँजीवादी राज्य व्यवस्था का पिरामिड राज्य उस संगठित इकाई को कहते हैं जो एक शासन (सरकार) के अधीन हो। राज्य संप्रभुतासम्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा किसी शासकीय इकाई या उसके किसी प्रभाग को भी 'राज्य' कहते हैं, जैसे भारत के प्रदेशों को भी 'राज्य' कहते हैं। राज्य आधुनिक विश्व की अनिवार्य सच्चाई है। दुनिया के अधिकांश लोग किसी-न-किसी राज्य के नागरिक हैं। जो लोग किसी राज्य के नागरिक नहीं हैं, उनके लिए वर्तमान विश्व व्यवस्था में अपना अस्तित्व बचाये रखना काफ़ी कठिन है। वास्तव में, 'राज्य' शब्द का उपयोग तीन अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है। पहला, इसे एक ऐतिहासिक सत्ता माना जा सकता है; दूसरा इसे एक दार्शनिक विचार अर्थात् मानवीय समाज के स्थाई रूप के तौर पर देखा जा सकता है; और तीसरा, इसे एक आधुनिक परिघटना के रूप में देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि इन सभी अर्थों का एक-दूसरे से टकराव ही हो। असल में, इनके बीच का अंतर सावधानी से समझने की आवश्यकता है। वैचारिक स्तर पर राज्य को मार्क्सवाद, नारीवाद और अराजकतावाद आदि से चुनौती मिली है। लेकिन अभी राज्य से परे किसी अन्य मज़बूत इकाई की खोज नहीं हो पायी है। राज्य अभी भी प्रासंगिक है और दिनों-दिन मज़बूत होता जा रहा है। यूरोपीय चिंतन में राज्य के चार अंग बताये जाते हैं - निश्चित भूभाग, जनसँख्या, सरकार और संप्रभुता। भारतीय राजनीतिक चिन्तन में 'राज्य' के सात अंग गिनाये जाते हैं- राजा या स्वामी, मंत्री या अमात्य, सुहृद, देश, कोष, दुर्ग और सेना। (राज्य की भारतीय अवधारण देखें।) कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताये हैं और ये उनका "सप्तांग सिद्धांत " कहलाता है - राजा, आमात्य या मंत्री, पुर या दुर्ग, कोष, दण्ड, मित्र । .

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शिशु मृत्यु दर

विश्व मे 2007 मे शिशु मृत्यु दर शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मे शिशुओं मे से एक वर्ष या इससे कम उम्र मे मर गये शिशुओं की संख्या है। परंपरागत रूप से दुनिया भर में शिशु मृत्यु का सबसे आम कारण दस्त से हुआ निर्जलीकरण है। दुनिया भर में माताओं को नमक और चीनी के घोल के बारे में दी गयी जानकारी की वजह से शिशुओं के निर्जलीकरण से मरने की दर में और कमी की दर्ज की गई है। 1990 के दशक के अंत तक निर्जलीकरण से शिशुओं की मृत्यु, शिशु मृत्यु की दूसरी सबसे आम वजह थी। वर्तमान में सबसे आम कारण न्यूमोनिया है। अधिक विकसित देशों में शिशु मृत्यु के प्रमुख कारणों जन्मजात विकृति, संक्रमण और एस आई डी एस शामिल हैं। शिशुहत्या, शोषण, परित्याग और उपेक्षा जैसे कारण भी शिशु मृत्यु संबंधित सांख्यिकीय श्रेणियों में योगदान करते हैं: .

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शिक्षा

अफगानिस्तान के एक विद्यालय में वृक्ष के नीचे पढ़ते बच्चे शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है। शिक्षा, समाज की एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, दूरदर्शन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है। यही सीखना-सिखाना शिक्षा के व्यापक तथा विस्तृत रूप में आते हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों (विद्यालय, महाविद्यालय) में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्र निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर अनेक परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है। शिक्षा एक गतिशील प्रकिया है निखिल .

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समाजशास्त्र

समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। यह सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से संबंधित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, अनुभवजन्य विवेचनगिडेंस, एंथोनी, डनेर, मिशेल, एप्पल बाम, रिचर्ड.

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सामाजिक

सामाजिक शब्द का शाब्दिक अर्थ सजीव से है चाहे वो मानव जनसंख्या हों अथवा पशु। यह एक सजीव का अन्य सजीवों के साथ सह-अस्तित्व तथा निरपेक्षता का सूचक शब्द है कि उनमें इस तरह की अन्योन्य क्रियाएं होती हैं अथवा नहीं। निरपेक्षता उनकी इच्छा अथवा स्वैच्छा पर निर्भर करती है। .

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संचार

संचार प्रेषक का प्राप्तकर्ता को सूचना भेजने की प्रक्रिया है जिसमे जानकारी पहुंचाने के लिए ऐसे माध्यम (medium) का प्रयोग किया जाता है जिससे संप्रेषित सूचना प्रेषक और प्राप्तकर्ता दोनों समझ सकें यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिस के द्वारा प्राणी विभिन्न माध्यमों के द्वारा सूचना का आदान प्रदान कर सकते हैं संचार की मांग है कि सभी पक्ष एक समान भाषा का बोध कर सकें जिस का आदान प्रदान हुआ हो, श्रावानिक (auditory) माध्यम हैं (जैसे की) बोली, गान और कभी कभी आवाज़ का स्वर एवं गैर मौखिक (nonverbal), शारीरिक माध्यम जैसे की शारीरिक हाव भाव (body language), संकेत बोली (sign language), सम भाषा (paralanguage), स्पर्श (touch), नेत्र संपर्क (eye contact) अथवा लेखन (writing) का प्रयोग संचार की परिभाषा है - एक ऐसी क्रिया जिस के द्वारा अर्थ का निरूपण एवं संप्रेषण (convey) सांझी समझ पैदा करने का प्रयास में किया जा सके इस क्रिया में अंख्या कुशलताओं के रंगपटल की आवश्यकता है अन्तः व्यक्तिगत (intrapersonal) और अन्तर व्यक्तिगत (interpersonal) प्रक्रमण, सुन अवलोकन, बोल, पूछताछ, विश्लेषण और मूल्यांकनइन प्रक्रियाओं का उपयोग विकासात्मक है और जीवन के सभी क्षेत्रों के लिए स्थानांतरित है: घर, स्कूल, सामुदायिक, काम और परे.संचार के द्बारा ही सहयोग और पुष्टिकरण होते हैं संचारण विभिन्न माध्यमों द्बारा संदेश भेजने की अभिव्यक्ति है चाहे वह मौखिक अथवा अमौखिक हो, जब तक कोई विचारोद्दीपक विचार संचारित (transmit) हो भाव (gesture) क्रिया इत्यादि संचार कई स्तरों पर (एक एकल कार्रवाई के लिए भी), कई अलग अलग तरीकों से होता है और अधिकतम प्राणियों के लिए, साथ ही कुछ मशीनों के लिए भी.यदि समस्त नहीं तो अधिकतम अध्ययन के क्षेत्र संचार करने के लिए ध्यान के एक हिस्से को समर्पित करते हैं, इसलिए जब संचार के बारे में बात की जाए तो यह जानना आवश्यक है कि संचार के किस पहलू के बारे में बात हो रही है। संचार की परिभाषाएँ श्रेणी व्यापक हैं, कुछ पहचानती हैं कि पशु आपस में और मनुष्यों से संवाद कर सकते हैं और कुछ सीमित हैं एवं केवल मानवों को ही मानव प्रतीकात्मक बातचीत के मापदंडों के भीतर शामिल करते हैं बहरहाल, संचार आमतौर पर कुछ प्रमुख आयाम साथ में वर्णित है: विषय वस्तु (किस प्रकार की वस्तुएं संचारित हो रहीं हैं), स्रोत, स्कंदन करने वाला, प्रेषक या कूट लेखक (encoder) (किस के द्वारा), रूप (किस रूप में), चैनल (किस माध्यम से), गंतव्य, रिसीवर, लक्ष्य या कूटवाचक (decoder) (किस को) एवं उद्देश्य या व्यावहारिक पहलू.पार्टियों के बीच, संचार में शामिल है वेह कर्म जो ज्ञान और अनुभव प्रदान करें, सलाह और आदेश दें और सवाल पूछें यह कर्म अनेक रूप ले सकते है, संचार के विभिन्न शिष्टाचार के कई रूपों में से उस का रूप समूह संप्रेषण की क्षमता पर निर्भर करता हैसंचार, तत्त्व और रूप साथ में संदेश (message) बनाते हैं जो गंतव्य (destination) की ओर भेजा जाता हैलक्ष्य ख़ुद, दूसरा व्यक्ति (person) या हस्ती, दूसरा अस्तित्व (जैसे एक निगम या हस्ती के समूह) हो सकते हैं संचार प्रक्रियासूचना प्रसारण (information transmission) के तीन स्तरों द्वारा नियंत्रित शब्दार्थ वैज्ञानिक (semiotic) नियमों के रूप में देखा जा सकता है.

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संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसके उद्देश्य में उल्लेख है कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने के सहयोग, अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शांति के लिए कार्यरत है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना २४ अक्टूबर १९४५ को संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर होने के साथ हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र को अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से स्थापित किया था। वे चाहते थे कि भविष्य में फ़िर कभी द्वितीय विश्वयुद्ध की तरह के युद्ध न उभर आए। संयुक्त राष्ट्र की संरचना में सुरक्षा परिषद वाले सबसे शक्तिशाली देश (संयुक्त राज्य अमेरिका, फ़्रांस, रूस और संयुक्त राजशाही) द्वितीय विश्वयुद्ध में बहुत अहम देश थे। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में १९३ देश है, विश्व के लगभग सारे अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त देश। इस संस्था की संरचन में आम सभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद, सचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय सम्मिलित है। .

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होमो सेपियन्स

होमो सेपियन्स/आधुनिक मानव स्तनपायी सर्वाहारी प्रधान जंतुओं की एक जाति, जो बात करने, अमूर्त्त सोचने, ऊर्ध्व चलने तथा परिश्रम के साधन बनाने योग्य है। मनुष्य की तात्विक प्रवीणताएँ हैं: तापीय संसाधन के द्वारा खाना बनाना और कपडों का उपयोग। मनुष्य प्राणी जगत का सर्वाधिक विकसित जीव है। जैव विवर्तन के फलस्वरूप मनुष्य ने जीव के सर्वोत्तम गुणों को पाया है। मनुष्य अपने साथ-साथ प्राकृतिक परिवेश को भी अपने अनुकूल बनाने की क्षमता रखता है। अपने इसी गुण के कारण हम मनुष्यों नें प्रकृति के साथ काफी खिलवाड़ किया है। आधुनिक मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले, सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे। होमो इरेक्टस के बाद विकास दो शाखाओं में विभक्त हो गया। पहली शाखा का निएंडरथल मानव में अंत हो गया और दूसरी शाखा क्रोमैग्नॉन मानव अवस्था से गुजरकर वर्तमान मनुष्य तक पहुंच पाई है। संपूर्ण मानव विकास मस्तिष्क की वृद्धि पर ही केंद्रित है। यद्यपि मस्तिष्क की वृद्धि स्तनी वर्ग के अन्य बहुत से जंतुसमूहों में भी हुई, तथापि कुछ अज्ञात कारणों से यह वृद्धि प्राइमेटों में सबसे अधिक हुई। संभवत: उनका वृक्षीय जीवन मस्तिष्क की वृद्धि के अन्य कारणों में से एक हो सकता है। .

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जनन

जनन (Reproduction) द्वारा कोई जीव (वनस्पति या प्राणी) अपने ही सदृश किसी दूसरे जीव को जन्म देकर अपनी जाति की वृद्धि करता है। जन्म देने की इस क्रिया को जनन कहते हैं। जनन जीवितों की विशेषता है। जीव की उत्पत्ति किसी पूर्ववर्ती जीवित जीव से ही होती है। निर्जीव पिंड से सजीव की उत्पत्ति नहीं देखी गई है। संभवत: विषाणु (Virus) इसके अपवाद हों (देखें, स्वयंजनन, Abiogenesis)। जनन के दो उद्देश्य होते हैं एक व्यक्तिविशेष का संरक्षण और दूसरा जाति की शृंखला बनाए रखना। दोनों का आधार पोषण है। पोषण से ही संरक्षण, वृद्धि और जनन होते हैं। जीवधारियों के अंतअंतहेलनस्पति और प्राणी दोनों आते हैं। दोनों में ही जैविक घटनाएँ घटित होती है। दोनों की जननविधियों में समानता है, पर सूक्ष्म विस्तार में अंतर अवश्य है। अत: उनका विचार अलग अलग किया जा रहा है। .

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जनसांख्यिकी

आबादी के अनुसार देशों के मानचित्र इस सदी के उत्तरार्ध के लिए मानव जनसंख्या वृद्धि को दर्शाते हुए अनुमान (चार्ट के वैकल्पिक दृश्य भी देखें). जनसांख्यिकी, मानव जनसंख्या का सांख्यिकीय अध्ययन है। यह एक बहुत सामान्य विज्ञान हो सकता है जिसे किसी भी तरह की गतिशील मानव आबादी पर लागू किया जा सकता है, अर्थात् ऐसी आबादी जो समय और स्थान के साथ-साथ परिवर्तित होती है (जनसंख्या गतिशीलता देखें).

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जनसंख्या

1994 में विश्व की जनसंख्या का वितरण. विश्व की कुल जनसँख्या में एक अरब लोगों के जुड़ने में लगने वाला समय. (जिसमें भविष्य की गणना भी शामिल है) वैकल्पिक चार्ट भी देखें. जीव विज्ञान में, विशेष प्रजाति के अंत: जीव प्रजनन के संग्रह को जनसंख्या कहते हैं; समाजशास्त्र में इसे मनुष्यों का संग्रह कहते हैं। जनसँख्या के अन्दर आने वाला प्रत्येक व्यक्ति कुछ पहलू एक दुसरे से बांटते हैं जो कि सांख्यिकीय रूप से अलग हो सकता है, लेकिन अगर आमतौर पर देखें तो ये अंतर इतने अस्पष्ट होते हैं कि इनके आधार पर कोई निर्धारण नहीं किया जा सकता.

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जनसंख्या भूगोल

जनसंख्या भूगोल मानव भूगोल की एक प्रमुख शाखा हैं। इसमें स्वंय मानव की जनसंख्या, लोगो का वितरण, आयु संरचना, घनत्व, व्रधि, लिंग अनुपात, स्थानान्तरण, व्यावसायिक संरचना तथा उनके आवासों का अध्ययन किया जाता हैं। .

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जनगणना

किसी देश अथवा किसी भी क्षेत्र में लोगों के बारे में विधिवत रूप से सूचना प्राप्त करना एवं उसे रेकार्ड करना जनगणना (census) कहलाती है। यह एक निश्चित समान्तराल के बाद की जाती है और शासकीय आदेश के तहत की जाती है। .

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जन्म

जीवों के शरीर बहुत छोटी-छोटी काशिकाओं से बने हैं। सरलतम एक-कोशिकाई (unicellular) जीव को लें। कोशिका की रासायनिक संरचना हम जानते हैं। कोशिकाऍं प्रोटीन (protein) से बनी हैं और उनके अंदर नाभिक में नाभिकीय अम्ल (nuclear acid) है। ये प्रोटीन केवल २० प्रकार के एमिनो अम्‍ल (amino acids) की श्रृंखला-क्रमबद्धता से बनते हैं और इस प्रकार २० एमिनो अम्ल से तरह-तरह के प्रोटीन संयोजित होते हैं। अमेरिकी और रूसी वैज्ञानिकां ने प्रयोग से सिद्ध किया कि मीथेन (methane), अमोनिया (ammonia) और ऑक्सीजन (oxygen) को काँच के खोखले लट्टू के अंदर बंद कर विद्युत चिनगारी द्वारा एमिनो अम्ल का निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने कहना प्रारंभ किया कि अत्यंत प्राचीन काल में जीवविहीन पृथ्वी पर मीथेन, अमोनिया तथा ऑक्सीजन से भरे वातावरण में बादलों के बीच बिजली की गड़गड़ाहट से एमिनो अम्ल बने, जिनसे प्रोटीन योजित हुए। अपने प्राचीन ग्रंथों में सूर्य को जीवन का दाता कहा गया है। इसीसे प्रेरित होकर भारत में (जो जीवोत्पत्ति के शोधकार्य में सबसे आगे था) प्रयोग हुए कि जब पानी पर सूर्य का प्रकाश फॉरमैल्डिहाइड (formaldehyde) की उपस्थिति में पड़ता है तो एमिनो अम्ल बनते हैं। इसमें फॉरमैल्डिहाइड उत्प्रेरक (catalyst) का कार्य करती है। इसके लिए किसी विशेष प्रकार के वायुमंडल में विद्युतीय प्रक्षेपण की आवश्यकता नहीं। अब कोशिका का नाभिकीय अम्ल ? इमली के बीज से इमली का ही पेड़ उत्पन्न होगा, पशु का बच्चा वैसा ही पशु बनेगा, यह नाभिकीय अम्ल की माया है। यही नाभिकीय अम्ल जीन (gene) के नाभिक को बनाता है, जिससे शरीर एवं मस्तिष्क की रचना तथा वंशानुक्रम में प्राप्त होनेवाले गुण—सभी पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी को प्राप्त होते हैं। जब प्रजनन के क्रम में एक कोशिका दो कोशिका में विभक्त होती है तो दोनो कोशिकायें जनक कोशिका की भाँति होंगी, यह नाभिकीय अम्ल के कारण है। पाँच प्रकार के नाभिकीय अम्ल को लेकर सीढ़ी की तरह अणु संरचना से जितने प्रकार के नाभिकीय अम्ल चाहें, बना सकते हैं। नाभिकीय अम्ल में अंतर्निहित गुण है कि वह उचित परिस्थिति में अपने को विभक्त कर दो समान गुणधर्मी स्वतंत्र अस्तित्व धारणा करता है। दूसरे यह कि किस प्रकार का प्रोटीन बने, यह भी नाभिकीय अम्ल निर्धारित करता है। एक से उसी प्रकार के अनेक जीव बनने के जादू का रहस्य इसी में है। क्या किसी दूरस्थ ग्रह के देवताओं ने, प्रबुद्ध जीवो ने ये पाँच नाभिकीय अम्ल के मूल यौगिक (compound) इस पृथ्वी पर बो दिए थे? एक कोशिका में लगभग नौ अरब (९x१०^९) परमाणु (atom) होते हैं। कैसे संभव हुआ कि इतने परमाणुओं ने एक साथ आकर एक जीवित कोशिका का निर्माण किया। विभिन्न अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रोटीन या नाभिकीय अम्ल बनने के पश्चात भी यह प्रश्न शेष रहता है कि इन्होंने किस परिस्थिति में संयुक्त होकर जीवन संभव किया। भारत में डॉ॰ कृष्ण बहादुर ने प्रकाश-रासायनिक प्रक्रिया (photo-chemical process) द्वारा जीवाणु बनाए। फॉरमैल्डिहाइड की उत्प्रेरक उपस्थिति में सूर्य की किरणों से प्रोटीन तथा नाभिकीय अम्ल एक कोशिकीय जीवाणु मे संयोजित हुए। ये जीवाणु अपने लिए पोषक आहार अंदर लेकर, उसे पचाकर और कोशिका का भाग बनाकर बढ़ते हैं। जीव विज्ञान (biology) में इस प्रकार स्ववर्धन की क्रिया को हम उपापचय (metabolism) कहते हैं। ये जीवाणु अंदर से बढ़ते हैं, रसायनशाला में घोल के अंदर टँगे हुए सुंदर कांतिमय रवा (crystal) की भाँति बाहर से नहीं। जीवाणु बढ़कर एक से दो भी हो जाते हैं, अर्थात प्रजनन (reproduction) भी होता है। और ऐसे जीवाणु केवल कार्बन के ही नहीं, ताँबा, सिलिकन (silicon) आदि से भी निर्मित किए, जिनमें जीवन के उपर्युक्त गुण थे। कहते हैं कि जीव के अंदर एक चेतना होती है। वह चैतन्य क्या है? यदि अँगुली में सुई चुभी तो अँगुली तुरंत पीछे खिंचती है, बाह्य उद्दीपन के समक्ष झुकती है। मान लो कि एक संतुलित तंत्र है। उसमें एक बाहरी बाधा आई तो एक इच्छा, एक चाह उत्पन्न हुई कि बाधा दूर हो। निराकरण करने के लिए किसी सीमा तक उस संतुलित तंत्र में परिवर्तन (बदल) भी होता है। यदि यही चैतन्य है तो यह मनुष्य एवं जंतुओं में है ही। कुछ कहेंगे, वनस्पतियों, पेड़-पौधों में भी है। पर एक परमाणु की सोचें—उसमें हैं नाभिक के चारों ओर घूमते विद्युत कण। पास के किसी शक्ति-क्षेत्र (fore-field) की छाया के रूप में कोई बाह्य बाधा आने पर यह अणु अपने अंदर कुछ परिवर्तन लाता है और आंशिक रूप में ही क्यों न हो, कभी-कभी उसे निराकृत कर लेता है। बाहरी दबाव को किसी सीमा तक निष्प्रभ करने की इच्छा एवं क्षमता—आखिर यही तो चैतन्य है। यह चैतन्य सर्वव्यापी है। महर्षि अरविंद के शब्दों में, ‘चराचर के जीव (वनस्पति और जंतु) और जड़, सभी में निहित यही सर्वव्यापी चैतन्य (cosmic consciousness) है।‘ पर जीवन जड़ता से भिन्न है, आज यह अंतर स्पष्ट दिखता है। सभी जीव उपापचय द्वारा अर्थात बाहर से योग्य आहार लेकर पचाते हुए शरीर का भाग बनाकर, स्ववर्धन करते तथा ऊर्जा प्राप्त करते हैं। जड़ वस्तुओं में इस प्रकार अंदर से बढ़ने की प्रक्रिया नहीं दिखती। फिर मोटे तौर पर सभी जीव अपनी तरह के अन्य जीव पैदा करते हैं। निरा एक- कोशिक सूक्ष्मदर्शीय जीव भी; जैसे अमीबा (amoeba) बढ़ने के बाद दो या अनेक अपने ही तरह के एक-कोशिक जीवों में बँट जाता है। कभी-कभी अनेक अवस्थाओं से गुजरकर जीव प्रौढ़ता को प्राप्त होते हैं और तभी प्रजनन से पुन: क्रम चलता है। किसी-न-किसी रूप में प्रजनन जीवन की वृत्ति है, मानो जीव-सृष्टि इसी के लिए हो। पर ये दोनों गुण‍ जीवाणु में भी हैं। यदि यही वृत्तिमूलक परिभाषा (functional definition) जीवन की लें तो जीवाणु उसकी प्राथमिक कड़ी है। कोशिका में ये वृत्तियाँ क्यों उत्पन्न हुई ? इसका उत्तर दर्शन, भौतिकी तथा रसायन के उस संधि-स्थल पर है जहां जीव विज्ञान प्रारंभ होता है। यहां सभी विज्ञान धुँधले होकर एक-दूसरे में मिलते हैं, मानों सब एकाकार हों। इसके लिये दो बुनियादी भारतीय अभिधारणाएँ हैं—(1) यह पदार्थ (matter) मात्र का गुण है कि उसकी टिकाऊ इकाई में अपनी पुनरावृत्ति करनेकी प्रवृत्ति है। पुरूष सूक्त ने पुनरावृत्ति को सृष्टि का नियम कहा है। (2) हर जीवित तंत्र में एक अनुकूलनशीलता है; जो बाधाऍं आती हैं उनका आंशिक रूप में निराकरण, अपने को परिस्थिति के अनुकूल बनाकर, वह कर सकता है। इन गुणों का एक दूरगामी परिणाम जीव की विकास-यात्रा है। चैतन्य सर्वव्यापी है और जीव तथा जड़ सबमें विद्यमान है, यह विशुद्ध भारतीय दर्शन साम्यवादियों को अखरता था। उपर्युक्त दोनों भारतय अभिधारणाओं ने, जो जीवाणु का व्यवहार एवं जीव की विकास-यात्रा का कारण बताती हैं, उन्हें झकझोर डाला। यह विश्वास अनेक सभ्यताओं में रहा है कि ईश्वर ने सृष्टि की रचना की। भारतीय दर्शन में ईश्वर की अनेक कल्पनाऍं हैं। ऐसा समझना कि वे सारी कल्पनाऍं सृष्टिकर्ता ईश्वर की हैं, ठीक न होगा। ईश्वर के विश्वास के साथ जिसे अनीश्वरवादी दर्शन कह सकते हैं, यहाँ पनपता रहा। कणाद ऋषि ने कहा कि यह सारी सृष्टि परमाणु से बनी है। सांख्य दर्शन को भी एक दृष्टि से अनीश्वरवादी दर्शन कह सकते हैं। सांख्य की मान्यता है कि पुरूष एवं प्रकृति दो अलग तत्व हैं और दोनों के संयोग से सृष्टि उत्पन्न हुई। पुरूष निष्क्रिय है और प्रकृति चंचल; वह माया है और हाव-भाव बदलती रहती है। पर बिना पुरूष के यह संसार, यह चराचर सृष्टि नहीं हो सकती। उपमा दी गई कि पुरूष सूर्य है तो प्रकृति चंद्रमा, अर्थात उसी के तेज से प्रकाशवान। मेरे एक मित्र इस अंतर को बताने के लिए एक रूपक सुनाते थे। उन्होंने कहा कि उनके बचपन में बिजली न थी और गैस लैंप, जिसके प्रकाश में सभा हो सके, अनिवार्य था। पर गैस लैंप निष्क्रिय था। न वह ताली बजाता था, न वाह-वाह करता था, न कार्यवाही में भाग लेता था, न प्रेरणा दे सकता था और न परामर्श। पर यदि सभा में मार-पीट भी करनी हो तो गैस लैंप की आवश्यकता थी, कहीं अपने समर्थक ही अँधेरे में न पिट जाऍं। यह गैस लैंप या प्रकाश सांख्य दर्शन का ‘पुरूष’ है। वह निष्क्रिय है, कुछ करता नहीं। पर उसके बिना सभा भी तो नहीं हो सकती थी। इसी प्रकार प्रसिद्ध नौ उपनिषदों में पाँच उपनिषदों को, जिस अर्थ में बाइबिल ने सृष्टिकर्ता ईश्वर की महिमा कही, उस अर्थ में अनीश्वरवादी कह सकते हैं। जो ग्रंथ ईश्वर को सृष्टिकर्ता के रूप में मानते हैं उनमें एक प्रसिद्ध वाक्य आता है, ‘एकोअहं बहुस्यामि’। ईश्वर के मन में इच्छा उत्पन्न हुई कि मैं एक हूँ, अनेक बनूँ और इसलिए अपनी ही अनेक अनुकृतियाँ बनाई—ऐसा अर्थ उसमें लगाते हैं। पर एक से अनेक बनने का तो जीव का गुण है। यही नहीं, यह तो पदार्थ मात्र की भी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। भारतीय दर्शन के अनुसार यह सृष्टि किसी की रचना नहीं है, जैसा कि ईसाई या मुसलिम विश्वास है। यदि ईश्वर ने यह ब्रम्हाण्ड रचा तो ईश्वर था ही, अर्थात कुछ सृष्टि थी। इसलिए ईश्वर स्वयं ही भौतिक तत्व अथवा पदार्थ था, ऐसा कहना पड़ेगा। (उसे किसने बनाया?) इसी से कहा कि यह अखिल ब्रम्हांड केवल उसकी अभिव्यक्ति अथवा प्रकटीकरण (manifestation) है, रचना अथवा निर्मित (creation) नहीं। उसी प्रकार जैसे आभूषण स्वर्ण का आकार विशेष में प्रकटीकरण मात्र है। इसी रूप में भारतीय दर्शन ने सृष्टि को देखा। धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को यह विचार कि जीवन इस पृथ्वी पर स्वाभाविक और अनिवार्य रासायनिक- भौतिक प्रक्रिया द्वारा बिना किसी चमत्कारी शक्ति के उत्पन्न हुआ, इसलिए प्रतिकूल पड़ता है कि वे जीव का संबंध आत्मा से जोड़ते हैं। उनका विश्वास है कि बिना आत्मा के जीवन संभव नहीं और इसलिए कोई परमात्मा है जिसमें अंततोगत्वा सब आत्माऍं विलीन हो जाती हैं। पर जड़ प्रकृति का स्वाभाविक सौंदर्य, वह स्फटिक (crystal), वह हिमालय की बर्फानी चोटियों पर स्वर्ण-किरीट रखता सूर्य, वह उष:काल की लालिमा या कन्याकुमारी का तीन महासागरों के संधि-स्थल का सूर्यास्त, अथवा झील के तरंगित जल पर खेलती प्रकाश-रश्मियाँ- ये सब कीड़े-मकोडों से या कैंसर की फफूँद से या अमरबेल या किसी क्षुद्र जानवर से निम्न स्तर की हैं क्या? पेड़-पौधे और उनमें उगे कुकुरमुत्ते में आत्मा है क्या ? एक बात जो मुसलमान या ईसाई नहीं मानते। सृष्टि में इस प्रकार के जीवित तथा जड़ वस्तुओं में भेदभाव भला क्यों ? शायद हम सोचें, सभी जीवधारियों का अंत होता है। ‘केहि जग काल न खाय।‘ वनस्पति और जंतु सभी मृत्यु को प्राप्त होते हैं और उनका शरीर नष्ट हो जाता है। परंतु यदि एक-कोशिक जीव बड़ा होकर अपने ही प्रकार के दो या अधिक जीवों में बँट जाता है तो इस घटना को पहले जीव की मृत्यु कहेंगे क्या ? वैसे तो संतति भी माता-पिता के जीवन का विस्तार ही है, उनका जीवनांश एक नए शरीर में प्रवेश करता है। श्रेणी:ज्योतिष श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:दर्शन.

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जैक

200 जैक (Jack) एक यांत्रिक युक्ति है जो भारी वस्तुओं को उठाने या अधिक बल लगाने के लिये प्रयुक्त होता है। यांत्रिक जैक में भारी चीजों को उठाने के लिये स्क्रू चूड़ियाँ (थ्रेड) का उपयोग किया जाता है। कार, ट्रक आदि के पहिये निकालने के लिये प्रयुक्त जैक इसका उदाहरण है। यांत्रिक जैक की एक निर्धारित लोड उठाने की क्षमता होती है, जैसे, 1.5 टन या 3 टन आदि। अधिक बल लगाने तथा अधिक दूरी तक उठाने के लिये द्रवचालित जैक (हाइड्रालिक जैक) का प्रयोग किया जाता है। श्रेणी:यांत्रिक युक्ति.

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जीवन प्रत्याशा

जीवन प्रत्याशा एक दी गयी उम्र के बाद जीवन में शेष बचे वर्षों की औसत संख्या है। यह एक व्यक्ति के औसत जीवनकाल का अनुमान है। जीवन प्रत्याशा इसकी गणना के इस मानदंड कि किस समूह का चयन किया जाता है पर बहुत अधिक निर्भर करती है। उच्च शिशु मृत्यु दर वाले देशों में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा जीवन के पहले कुछ वर्षों में होने वाली उच्च मृत्यु की दर के प्रति अति संवेदनशील होती है। इन मामलों में, जीवन प्रत्याशा की गणना के लिए अन्य उपाय है कि इसे पाँच वर्ष की उम्र से मापा जाये जिससे शिशु मृत्यु दर के प्रभाव को अलग कर अन्य कारणों से हुई मौत के कारणों को उजागर किया जा सके। .

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विपणन

विपणन (marketing) एक सतत प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत मार्केटिंग मिक्स (उत्पाद, मूल्य, स्थान, प्रोत्साहन जिन्हें प्रायः ४ Ps कहा जाता है) की योजना बनाई जाती है एवं कार्यान्वयन किया जाता है। यह प्रक्रिया व्यक्तियों और संगठनों के बीच उत्पादों, सेवाओं या विचारों के विनिमय हेतु की जाती है। विपणन को एक रचनात्मक उद्योग के रूप में देखा जाता है, जिसमें शामिल हैं विज्ञापन (advertising), वितरण (distribution) और बिक्री (selling) इसका सम्बन्ध ग्राहकों की भावी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं का पूर्व विचार करने से भी है, जो प्रायः बाज़ार शोध के माध्यम से पता लगाई जाती हैं। मूलतः, विपणन किसी संगठन को बनाने या निर्देशित करने करने की प्रक्रिया है, ताकि लोगों को सफलतापूर्वक वह उत्पाद या सेवा बेची जा सके जिसकी न केवल उन्हें ज़रूरत है बल्कि वे उसे खरीदने के इच्छुक भी हैं। इसलिए अच्छा विपणन इस काबिल होना चाहिए कि वह उपभोक्ताओं हेतु एक "प्रस्ताव" या लाभों का सेट बना सके, ताकि उत्पादों या सेवाओं के माध्यम से ग्राहक को उसके पैसे का मूल्य अदा किया जा सके.

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इतिहास

बोधिसत्व पद्मपनी, अजंता, भारत। इतिहास(History) का प्रयोग विशेषत: दो अर्थों में किया जाता है। एक है प्राचीन अथवा विगत काल की घटनाएँ और दूसरा उन घटनाओं के विषय में धारणा। इतिहास शब्द (इति + ह + आस; अस् धातु, लिट् लकार अन्य पुरुष तथा एक वचन) का तात्पर्य है "यह निश्चय था"। ग्रीस के लोग इतिहास के लिए "हिस्तरी" (history) शब्द का प्रयोग करते थे। "हिस्तरी" का शाब्दिक अर्थ "बुनना" था। अनुमान होता है कि ज्ञात घटनाओं को व्यवस्थित ढंग से बुनकर ऐसा चित्र उपस्थित करने की कोशिश की जाती थी जो सार्थक और सुसंबद्ध हो। इस प्रकार इतिहास शब्द का अर्थ है - परंपरा से प्राप्त उपाख्यान समूह (जैसे कि लोक कथाएँ), वीरगाथा (जैसे कि महाभारत) या ऐतिहासिक साक्ष्य। इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है। दूसरे शब्दों में मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है। या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है।Whitney, W. D. (1889).

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कौल (उपनाम)

कौल (कश्मीरी: کول) एक कश्मीरी पण्डित उपनाम है। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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अधिप्रचार

सैम चाचा के बाहों में बाहें डाले ब्रितानिया: प्रथम विश्वयुद्ध में अमेरिकी-ब्रितानी सन्धि का प्रतीकात्मक चित्रण अधिप्रचार (Propaganda) उन समस्त सूचनाओं को कहते हैं जो कोई व्यक्ति या संस्था किसी बड़े जन समुदाय की राय और व्यवहार को प्रभावित करने के लिये संचारित करती है। सबसे प्रभावी अधिप्रचार वह होता है जिसकी सामग्री प्रायः पूर्णतः सत्य होती है किन्तु उसमें थोडी मात्रा असत्य, अर्धसत्य या तार्किक दोष से पूर्ण कथन की भी हो। अधिप्रचार के बहुत से तरीके हैं। दुष्प्रचार का उद्देश्य सूचना देने के बजाय लोगों के व्यवहार और राय को प्रभावित करना (बदलना) होता है। .

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अर्थशास्त्र

---- विश्व के विभिन्न देशों की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर (सन २०१४) अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है। अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है। अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य, कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि। प्रो.

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