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जड़त्वीय फ्रेम

सूची जड़त्वीय फ्रेम

जड़त्वीय फेम तथा घूर्णी फ्रेम (दाहिने) भौतिकी में जड़त्वीय फ्रेम (inertial frame या inertial frame of reference) वह संदर्भ विन्यास (फ्रेम ऑफ रिफरेन्स) है जो समय तथा स्पेस को समांग, समदैशिक और समय-निरपेक्ष (time-independent) मानता है। इसको 'गैलीली फ्रेम' भी कहते हैं। जड़त्वीय फ्रेम में जड़त्व का नियम (न्यूटन की गति का प्रथम नियम) वैध है। (जबकि अजड़त्वीय फ्रेम में यह वैध नहीं है।) सारे जड़त्वीय निर्देश तंत्र एक दूसरे से परस्पर सरल रेखीय और एकसामान दर की गति में होते हैं; वह त्वरित नहीं होते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी जड़त्वीय फ्रेम के सापेक्ष सरल रेखीय और एकसामान गति करने वाला फ्रेम भी जड़त्वीय होगा। इसका अर्थ यह है कि त्वरणमापी यन्त्र अगर इनमें स्थिर रखा जाये तो वह शून्य त्वरण मापेगा। पूर्णतः जड़त्वीय फ्रेम प्राप्त करना एक कठिन काम है। सभी जड़त्वीय फ्रेम 'लगभग' जड़त्वीय होते हैं। धरती भी पूर्णतः जडत्वीय फ्रेम नहीं है, बल्कि 'लगभग जड़त्वीय फ्रेम' है। .

8 संबंधों: त्वरण, त्वरणमापी, न्यूटन के गति नियम, भौतिक शास्त्र, समय, संदर्भ विन्यास, घूर्णी सन्दर्भ फ्रेम, छद्म बल

त्वरण

विभिन्न प्रकार के त्वरण के अन्तर्गत गति में वस्तु की समान समयान्तराल बाद स्थितियाँ दोलन करता हुआ लोलक: इसका वेग एवं त्वरण तीर द्वारा दर्शाया गया है। वेग एवं त्वरण दोनों का परिमाण एवं दिशा हर क्षण बदल रही है। किसी वस्तु के वेग परिवर्तन की दर को त्वरण (Acceleration) कहते हैं। इसका मात्रक मीटर प्रति सेकेण्ड2 होता है तथा यह एक सदिश राशि हैं। या, उदाहरण: माना समय t.

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त्वरणमापी

कोई भी ऐसी युक्ति जो त्वरण मापने के काम आती है, त्वरणमापी (accelerometer) कहलाती है। प्रायः ये विद्युतयांत्रिक (एलेक्ट्रोमेकैनिकल) युक्तियाँ होती हैं जो त्वरण के संगत उपयुक्त वैद्युत संकेत (विभवान्तर या धारा) प्रदान करती हैं। .

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न्यूटन के गति नियम

न्यूटन के गति के प्रथम एवं द्वितीय नियम, सन १६८७ में लैटिन भाषा में लिखित न्यूटन के '''प्रिन्सिपिया मैथेमेटिका''' से न्यूटन के गति नियम तीन भौतिक नियम हैं जो चिरसम्मत यांत्रिकी के आधार हैं। ये नियम किसी वस्तु पर लगने वाले बल और उससे उत्पन्न उस वस्तु की गति के बीच सम्बन्ध बताते हैं। इन्हें तीन सदियों में अनेक प्रकार से व्यक्त किया गया है। न्यूटन के गति के तीनों नियम, पारम्परिक रूप से, संक्षेप में निम्नलिखित हैं-.

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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समय

समय मापने की प्राचीन (किन्तु मेधापूर्ण) तरीका: '''रेतघड़ी''' समय (time) एक भौतिक राशि है। जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानांतरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल (प्रतीक्षानुभूति) को समय कहते हैं। समय नापने के यंत्र को घड़ी अथवा घटीयंत्र कहते हैं। इस प्रकार हम यह भी कह सकते हैं कि समय वह भौतिक तत्व है जिसे घटीयंत्र से नापा जाता है। सापेक्षवाद के अनुसार समय दिग्देश (स्पेस) के सापेक्ष है। अत: इस लेख में समयमापन पृथ्वी की सूर्य के सापेक्ष गति से उत्पन्न दिग्देश के सापेक्ष समय से लिया जाएगा। समय को नापने के लिए सुलभ घटीयंत्र पृथ्वी ही है, जो अपने अक्ष तथा कक्ष में घूमकर हमें समय का बोध कराती है; किंतु पृथ्वी की गति हमें दृश्य नहीं है। पृथ्वी की गति के सापेक्ष हमें सूर्य की दो प्रकार की गतियाँ दृश्य होती हैं, एक तो पूर्व से पश्चिम की तरफ पृथ्वी की परिक्रमा तथा दूसरी पूर्व बिंदु से उत्तर की ओर और उत्तर से दक्षिण की ओर जाकर, कक्षा का भ्रमण। अतएव व्यावहारिक दृष्टि से हम सूर्य से ही काल का ज्ञान प्राप्त करते हैं। .

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संदर्भ विन्यास

संदर्भ विन्यास (फ्रेम ऑफ रिफरेन्स) एक ऐसी निर्देशांक पद्धति या अक्षों का समूह है जिनमे किसी वस्तु का स्थान, अभिविन्यास और अन्य गुणों को मापा जा सकता है। .

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घूर्णी सन्दर्भ फ्रेम

<math>\left (\dfracd\mathbfrdt\right)_S.

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छद्म बल

छद्म बल (fictitious force या pseudo force या d'Alembert force एक आभासी बल है जो उन सभी द्रव्यमानों पर लगता है जिनकी गति को किसी अजड़त्वीय सन्दर्भ फ्रेम का उपयोग करके वर्णित किया गया हो। उदाहरण के लिये, घूर्णी फ्रेम (rotating reference frame) में यदि किसी पिण्ड की गति का वर्णन करना हो तो उस पर लगने वाले वास्तविक बलों के अलावा आभासी बल या बलों को भी उस पिण्ड पर लगाना पड़ेगा। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

जड़त्वीय निर्देश तन्त्र, जड़त्वीय निर्देश तंत्र

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