10 संबंधों: चन्देल, चार्ल्स एलियट, परमर्दिदेव, परमाल रासो, फ़र्रूख़ाबाद, भाट, महोबा, लोक, आल्हा-ऊदल, कन्नौजी भाषा।
चन्देल
खजुराहो का कंदरीय महादेव मंदिर चन्देल वंश मध्यकालीन भारत का प्रसिद्ध राजवंश, जिसने 08वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से यमुना और नर्मदा के बीच, बुंदेलखंड तथा उत्तर प्रदेश के दक्षिणी-पश्चिमी भाग पर राज किया। चंदेल वंश के शासकों का बुंदेलखंड के इतिहास में विशेष योगदान रहा है। उन्होंने लगभग चार शताब्दियों तक बुंदेलखंड पर शासन किया। चन्देल शासक न केवल महान विजेता तथा सफल शासक थे, अपितु कला के प्रसार तथा संरक्षण में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। चंदेलों का शासनकाल आमतौर पर बुंदेलखंड के शांति और समृद्धि के काल के रूप में याद किया जाता है। चंदेलकालीन स्थापत्य कला ने समूचे विश्व को प्रभावित किया उस दौरान वास्तुकला तथा मूर्तिकला अपने उत्कर्ष पर थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं खजुराहो के मंदिर। .
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चार्ल्स एलियट
चार्ल्स एलियट(1801-75), एक अंग्रेज़ कप्तान था जिसने अफ़ीम युद्धों में सेनापति की भूमिका निभाई थी। 1841 में, युद्धों के व्पारिक परिणाम न निकल पाले की वजह से उसे वापस इंग्लैंड बुला लिया गया था। श्रेणी:अफ़ीम युद्ध.
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परमर्दिदेव
परमर्दिदेव (शासनकाल ११६५--१२०३) सल्तनतकालीन भारत में कालिंजर तथा महोबा के शासक थे। इन्हें राजा परमाल भी कहा जाता है। जगनिक इन्हीं के दरबारी कवि थे जिन्होंने परमाल रासो की रचना की थी। परमाल रासो में राजा परमाल के यश और वीरता का वर्णन वीरगाथात्मक रासो काव्य शैली में किया गया है। वर्तमान समय में इसके उपलब्ध हिस्से 'आल्ह खंड' में राजा परमाल के ही दो दरवारी वीरों की वीरता का वर्णन मिलता है। इसमें परमाल की पुत्री चंद्रावती का भी उल्लेख मिलता है। .
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परमाल रासो
परमाल रासो आदिकालीन हिंदी साहित्य का प्रसिद्ध वीरगाथात्मक रासोकाव्य है। वर्तमान समय में इसका केवल आल्ह खंड उपलब्ध है जो वीरगाथात्मक लोकगाथा के रूप में उत्तर भारत में बेहद लोकप्रिय रहा है। इसके रचयिता जगनिक हैं। वे कालिंजर तथा महोबा के शासक परमाल (परमर्दिदेव) के दरबारी कवि थे। आल्ह खंड में महोबा के दो प्रसिद्ध वीरों आल्हा और ऊदल के वीर चरित का विस्तृत वर्णन किया गया था। आल्हखण्ड की जगनिक द्वारा लिखी गई कोई भी प्रति अभी तक उपलब्ध नहीं हुई है। अभी इसकी संकलित की गई प्रति ही उपलब्ध है जिसका संकलन विभिन्न विद्वानों ने अनेक क्षेत्रों में गाये जाने वाले आल्हा गीतों के आधार पर किया है। इसलिए इसके विभिन्न संकलनों में पाठांतर मिलता है और कोइ भी प्रति पूर्णतः प्रमाणिक नहीं मानी गई है। इस काव्य का प्रचार-प्रसार समस्त उत्तर भारत में है। उसके आधार पर प्रचलित गाथा हिन्दी भाषा भाषी प्रान्तों के गाँव-गाँव में सुनी जा सकती है। आल्हा लोकगाथा वर्षा ऋतु में विशेष रूप से गाई जाती है। .
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फ़र्रूख़ाबाद
फ़र्रूख़ाबाद भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। फ़र्रूख़ाबाद जिला, उत्तर प्रदेश की उत्तर-पश्चिमी दिशा में स्थित है। इसका परिमाप १०५ किलो मीटर लम्बा तथा ६० किलो मीटर चौड़ा है। इसका क्षेत्रफल ४३४९ वर्ग किलो मीटर है, गंगा, रामगंगा, कालिन्दी व ईसन नदी इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां हैं। यहाँ गंगा के पश्चिमी तट पर आबादी बहुत समय पहले से पायी जाती है। .
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भाट
पूर्वी सरयूपार क्षेत्र तथा बिहार के मध्य पश्चिमी भाग मे मिलने वाली चूना-प्रधान कलोढ मिट्टी को भाट के नाम से जाना जाता हैं। इस मिट्टी में चूना-पदार्थों के साथ-साथ जैव पदार्थों तथा नाइट्रोजन की भी अधिकता होती हैं। श्रेणी:भूगोल शब्दावली श्रेणी:भौतिक भूगोल शब्दावली.
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महोबा
उत्तर प्रदेश के महोबा जिला का मुख्यालय, महोबा जहां एक ओर विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के लिए प्रसिद्ध है वहीं दूसरी ओर गोरखगिरी पर्वत, ककरामठ मंदिर, सूर्य मंदिर, चित्रकूट और कालिंजर आदि के लिए भी विशेष रूप से जाना जाता है। महोबा झांसी से १४० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। महोबा उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। काफी समय तक चन्देलों ने यहां शासन किया है। अपने काल के दौरान चंदेल राजाओं ने कई ऐतिहासिक किलों और मंदिरों आदि का निर्माण करवाया था। इसके पश्चात् इस जगह पर प्रतिहार राजाओं ने शासन किया। महोबा सांस्कृतिक दृष्टि से काफी प्रमुख माना जाता है। पहले इस जगह को महोत्सव नगर के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में इसका नाम बदल कर महोबा रख दिया गया। .
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लोक
लोक एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है 'संसार'। जैन ग्रन्थ और हिन्दू साहित्य में इसका प्रयोग होता है। जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार इस ब्रह्माण्ड में तीन लोक है। लोक मनुष्य समाज का वह वर्ग है जो आभिजात्य संस्कार, शास्त्रीयता और पांडित्य की चेतना अथवा अहंकार से शून्य है और जो एक परंपरा के प्रवाह में जीवित रहता है। .
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आल्हा-ऊदल
आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड (महोबा) के वीर योद्धा थे। इनकी वीरता की कहानी आज भी उत्तर-भारत के गाँव-गाँव में गायी जाती है। जगनिक ने आल्ह-खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। पं० ललिता प्रसाद मिश्र ने अपने ग्रन्थ आल्हखण्ड की भूमिका में आल्हा को युधिष्ठिर और ऊदल को भीम का साक्षात अवतार बताते हुए लिखा है - "यह दोनों वीर अवतारी होने के कारण अतुल पराक्रमी थे। ये प्राय: १२वीं विक्रमीय शताब्दी में पैदा हुए और १३वीं शताब्दी के पुर्वार्द्ध तक अमानुषी पराक्रम दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये।ऐसा प्रचलित है की ऊदल की पृथ्वीराज चौहान द्वारा हत्या के पश्चात आल्हा ने संन्यास ले लिया और जो आज तक अमर है और गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था,पृथ्वीराज चौहान के परम मित्र संजम भी महोबा की इसी लड़ाई में आल्हा उदल के सेनापति बलभद्र तिवारी जो कान्यकुब्ज और कश्यप गोत्र के थे उनके द्वारा मारा गया था l वह शताब्दी वीरों की सदी कही जा सकती है और उस समय की अलौकिक वीरगाथाओं को तब से गाते हम लोग चले आते हैं। आज भी कायर तक उन्हें (आल्हा) सुनकर जोश में भर अनेकों साहस के काम कर डालते हैं। यूरोपीय महायुद्ध में सैनिकों को रणमत्त करने के लिये ब्रिटिश गवर्नमेण्ट को भी इस (आल्हखण्ड) का सहारा लेना पड़ा था।" जन्मऊदल का जन्म 12 वी सदी में जेठ दशमी दशहरा के दिन दसपुरवा महोबा में हुुुआ था इनके पिता देशराज थे जिन्हें जम्बे भी कहा गया है (1142-1160) माडोगढ़ वर्तमान मांडू जो नर्मदा नदी के किनारे मध्य प्रदेश स्थित है के पुत्र कीर्तवर्मनके द्वारा यूुुद्व में मारे गये थे जिनकी मा का नाम देवल था जी अहीर यादव जाति के थी बड़ी बहादुर और ज्ञानी महिला थी जिनकी मृत्यु पर आल्हा ने विलाप करते हुए कहा कि"मैय्या देवे सी ना मिलिहै भैया न मिले वीर मलखान पीठ परन तो उदय सिंह है जिन जग जीत लई किरपान" राजा परिमाल की रानी मल्हना ने ऊदल का पालन पोषण पुत्र की तरह किया इनका नाम उदय सिंह रखा ऊदल बचपन से ही युद्ध के प्रति उन्मत्त रहता था इसलिए आल्हखण्ड में लिखा है "कलहा पूत देवल क्यार " अस्तु जब उदल का जन्म हुआ उस समय का वृत्तान्त आल्ह खण्ड में दिया है जब ज्योतिषों ने बताया "जौन घड़ी यहु लड़िका जन्मो दूसरो नाय रचो करतार सेतु बन्ध और रामेश्वर लै करिहै जग जाहिर तलवार किला जीत ले यह माडू का बाप का बदला लिहै चुकाय जा कोल्हू में बाबुल पेरे जम्बे को ठाडो दिहे पिराय किला किला पर परमाले की रानी दुहाई दिहे फिराय बावन गढ़ पर विजय करिके जीत का झंडा दिहे गडाय तीन बार गढ दिल्ली दाबे मारे मान पिथौरा क्यार नामकरण जाको ऊदल है भीमसेन क्यार अवतार" .
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कन्नौजी भाषा
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