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जंगली भैंसा

सूची जंगली भैंसा

एशियाई जंगली भैंसा (Bubalis bubalis arnee or Bubalus arnee) की संख्या आज 4000 से भी कम रह गई है। एक सदी पहले तक पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में बड़ी तादाद में पाये जाने वाला जंगली भैंसा आज केवल भारत, नेपाल, बर्मा और थाईलैंड में ही पाया जाता है। भारत में काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान में ये पाया जाता है। मध्य भारत में यह छ्त्तीसगढ़ में रायपुर संभाग और बस्तर में पाया जाता है। छ्त्तीसगढ़ में इनकी दर्ज संख्या आठ है जिन्हे अब सुरक्षित घेरे में रख कर उनका प्रजनन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। लेकिन उसमें भी समस्या यह है कि मादा केवल एक है और उस मादा पर भी एक ग्रामीण का दावा है, कि वह उसकी पालतू भैंस है। खैर ग्रामीण को तो मुआवजा दे दिया गया पर समस्या फ़िर भी बनी हुई है, मादा केवल नर शावकों को ही जन्म दे रही है, अब तक उसने दो नर बछ्ड़ों को जन्म दिया है। पहले नर शावक के जन्म के बाद ही वन अधिकारिय़ों ने मादा शावक के जन्म के लिये पूजा पाठ और मन्नतों तक का सहारा लिया। और तो और शासन ने तो एक कदम आगे जाकर उद्यान में महिला संचालिका की नियुक्ति भी कर दी, ताकि मादा भैंस को कुछ इशारा तो मिले, पर नतीजा फ़िर वही हुआ मादा ने फ़िर नर शावक को ही जन्म दिया। शायद पालतू भैंसों पर लागू होने वाली कहावत कि भैंस के आगे बीन बजाये भैंस खड़ी पगुरावै जंगली भैंसों पर भी लागू होती है। मादा अपने जीवन काल में 5 शावकों को जन्म देती है, इनकी जीवन अवधि ९ वर्ष की होती है। नर शावक दो वर्ष की उम्र में झुंड छोड़ देते हैं। शावकों का जन्म अक्सर बारिश के मौसम के अंत में होता है। आम तौर पर मादा जंगली भैसें और शावक झुंड बना कर रहती है और नर झुंड से अलग रहते हैं पर यदि झुंड की कोई मादा गर्भ धारण के लिये तैयार होती है तो सबसे ताकतवर नर उसके पास किसी और नर को नहीं आने देता। यह नर आम तौर पर झुंड के आसपास ही बना रहता है। यदि किसी शावक की मां मर जाये तो दूसरी मादायें उसे अपना लेती हैं। इनका स्वभाविक शत्रु बाघ है, पर यदि जंगली भैंसा कमजोर बूढ़ा या बीमार हो तो जंगली कुत्तों और तेंदुओं को भी इनका शिकार करते देखा गया है। वैसे इनको सबसे बड़ा खतरा पालतू मवेशियों की संक्रमित बीमारियों से ही है, इनमें प्रमुख बीमारी फ़ुट एंड माउथ है। रिडंर्पेस्ट नाम की बीमारी ने एक समय इनकी संख्या में बहुत कमी ला दी थी। .

9 संबंधों: प्राणी, बायसन, रज्जुकी, रोमंथक, सम-ऊँगली खुरदार, स्तनधारी, जाति (जीवविज्ञान), गौर, गोवंश

प्राणी

प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .

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बायसन

बायसन (Bison) गोवंश के जीववैज्ञानिक कुल में विशाल समखुरीय प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है। इस वंश में छह ज्ञात जातियाँ हैं, जिनमें से दो अस्तित्व में हैं और चार विलुप्त हो चुकी हैं। .

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रज्जुकी

रज्जुकी (संघ कॉर्डेटा) जीवों का एक समूह है जिसमें कशेरुकी (वर्टिब्रेट) और कई निकट रूप से संबंधित अकशेरुकी (इनवर्टिब्रेट) शामिल हैं। इनका इस संघ मे शामित होना इस आधार पर सिद्ध होता है कि यह जीवन चक्र मे कभी न कभी निम्न संरचनाओं को धारण करते हैं जो हैं, एक पृष्ठ‍रज्जु (नोटोकॉर्ड), एक खोखला पृष्ठीय तंत्रिका कॉर्ड, फैरेंजियल स्लिट एक एंडोस्टाइल और एक पोस्ट-एनल पूंछ। संघ कॉर्डेटा तीन उपसंघों मे विभाजित है: यूरोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व ट्युनिकेट्स द्वारा किया जाता है; सेफालोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व लैंसलेट्स द्वारा किया जाता है और क्रेनिएटा, जिसमे वर्टिब्रेटा शामिल हैं। हेमीकॉर्डेटा को चौथे उपसंघ के रूप मे प्रस्तुत किया जाता है पर अब इसे आम तौर पर एक अलग संघ के रूप में जाना जाता है। यूरोकॉर्डेट के लार्वा में एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है पर वयस्क होने पर यह लुप्त हो जातीं हैं। सेफालोकॉर्डेट एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है लेकिन कोई मस्तिष्क या विशेष संवेदना अंग नहीं होता और इनका एक बहुत ही सरल परिसंचरण तंत्र होता है। क्रेनिएट ही वह उपसंघ है जिसके सदस्यों में खोपड़ी मिलती है। इनमे वास्तविक देहगुहा पाई जाती है। इनमे जनन स्तर सदैव त्री स्तरीय पाया जाता है। सामान्यत लैंगिक जनन पाया जाता है। सामान्यत प्रत्यक्ष विकास होता है। इनमे RBC उपस्थित होती है। इनमे द्वीपार्शविय सममिती पाई जाती है। इसके जंतु अधिक विकसित होते है। श्रेणी:जीव विज्ञान *.

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रोमंथक

कड़ी.

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सम-ऊँगली खुरदार

द्विखुरीयगणों के खुर द्विखुरीयगण या सम-ऊँगली खुरदार (आर्टियोडैक्टाइला, Artiodactyla) गाय, भैंस, सूअर, बकरी, ऊँट, हरिण आदि स्तनियों (mammals) का गण है, जिनमें गर्भनाल (placents), पैर पर सम संख्या की अँगुलियाँ तथा खुर होते हैं। इस गण में खरगोश से लेकर भैंस और दरियाई घोड़े जैसे भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के प्राणी सम्मिलित हैं। .

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स्तनधारी

यह प्राणी जगत का एक समूह है, जो अपने नवजात को दूध पिलाते हैं जो इनकी (मादाओं के) स्तन ग्रंथियों से निकलता है। यह कशेरुकी होते हैं और इनकी विशेषताओं में इनके शरीर में बाल, कान के मध्य भाग में तीन हड्डियाँ तथा यह नियततापी प्राणी हैं। स्तनधारियों का आकार २९-३३ से.मी.

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जाति (जीवविज्ञान)

जाति (स्पीशीज़) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी है जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक नज़रिए से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी संतान स्वयं आगे संतान जनने की क्षमता रखती हो। उदाहरण के लिए एक भेड़िया और शेर आपस में बच्चा पैदा नहीं कर सकते इसलिए वे अलग जातियों के माने जाते हैं। एक घोड़ा और गधा आपस में बच्चा पैदा कर सकते हैं (जिसे खच्चर बुलाया जाता है), लेकिन क्योंकि खच्चर आगे बच्चा जनने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घोड़े और गधे भी अलग जातियों के माने जाते हैं। इसके विपरीत कुत्ते बहुत अलग आकारों में मिलते हैं लेकिन किसी भी नर कुत्ते और मादा कुत्ते के आपस में बच्चे हो सकते हैं जो स्वयं आगे संतान पैदा करने में सक्षम हैं। इसलिए सभी कुत्ते, चाहे वे किसी नसल के ही क्यों न हों, जीववैज्ञानिक दृष्टि से एक ही जाति के सदस्य समझे जाते हैं।, Sahotra Sarkar, Anya Plutynski, John Wiley & Sons, 2010, ISBN 978-1-4443-3785-3,...

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गौर

गौर (Bos gaurus, पहले Bibos gauris) दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया मे पाया जाने वाला एक बड़ा, काले लोम से ढका गोजातीय पशु है। आज इसकी सबसे बड़ी आबादी भारत में पाई जाती हैं। गौर जंगली मवेशियों मे से सबसे बड़ा होता है। पालतू गौर 'गायल' या 'मिथुन' कहलाता है। भारत के भिन्न भिन्न भागों में इसका भिन्न भिन्न स्थानीय नाम है, जैसे गौरी गाय, बोदा, गवली इत्यादि। यह बोविडी कुल (Bavidae Family) के शफ गण (Order Ungulate) का एक जंगली स्तनपोषी शाकाहारी पशु है। गवल भारत प्रायद्वीप, असम, बर्मा, मलाया प्रायद्वीप तथा स्याम के पहाड़ी वनों में पाया जाता है। इसका सर्वोत्तम विकास दक्षिण भारतीय पहाड़ियों तथा असम में होता है। किसी समय यह प्राणी श्रीलंका में भी प्राप्य था, किंतु अब वहां से, संभवत: किसी पशुरोग के ही कारण लुप्त हो गया है। यूरोपीय शिकारी गौर को 'बाइसन' (Bison / एक प्रकार का जंगली भैंसा) कहते हैं, परंतु भारतीय गवल को बाइसन कहना ठीक प्रतीत नहीं होता। वस्तुत: यूरोप तथा उत्तरी अमरीका के बाइसन भारतीय गवल से भिन्न होते हैं। पाश्चात्य बाइसनों की सीगें छोटी और रूक्ष दाढ़ियाँ हाती हैं। .

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गोवंश

गोवंश या बोविनाए (Bovinae) लगभग १४० प्रजातियों वाला जीववैज्ञानिक कुल है। इसमें मवेशी, गौर, भैंस, बायसन, आदि और कुछ चार सींगो वाले व सर्पिल सींगो वाले खुरदार प्राणी आते हैं। गौर इस पूरे कुल का सबसे भीमकाय प्राणी है। ध्यान दें कि सभी हिरण इस कुल का हिस्सा नहीं हैं। .

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जंगली भैसा, जंगली भैंस

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