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चेर राजवंश

सूची चेर राजवंश

संगम काल में चेर राज्य का विस्तार चेर (तमिल - சேரர்) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। इसको यदा कदा केरलपुत्र नाम से भी जाना जाता है। इसका विस्तार आधुनिक कोयम्बटूर, सलेम तथा करूर जिले तथा पास के केरल के पर्वतीय क्षेत्रों के पास केन्द्रित था। चेरों का शासन काल संगम साहित्य युग के पूर्व आरंभ हुआ था। इसी काल के उनके पड़ोसी शासक थे - चोल तथा पांड्य। इनके काल में तमिल भाषा का बहुत उत्थान हुआ था। .

9 संबंधों: चेर, चोल राजवंश, तमिल भाषा, पाण्ड्य राजवंश, संगम साहित्य, सेलम, करूर, केरल, कोयंबतूर

चेर

चेर, केरल का प्राचीन नाम था। इन्हें केरल पुत्र भी कहते है। उसमें आधुनिक त्रावणकोर, कोचीन, मलाबार, कोयंबत्तूर और सलेम (दक्षिणी) जिलों के प्रदेश सम्मिलित थे1 द्रविड़ अथवा तमिल कहलानेवाले पांड्य, चोल और चेर नाम के तीन क्षेत्र दक्षिण भारत की सर्वप्रथम राजनीतिक शक्तियों के रूप में दिखाई देते हैं। अत्यंत प्रारंभिक चेर राजाओं को वानवार जाति का कहा गया है। अशोक ने अपने साम्राज्य के बाहर दक्षिण की ओर के जिन देशों में धर्मप्रचार के लिए अपने महामात्य भेजे थे, उनमें एक था केरलपुत्र अर्थात् चेर (देखिए शिलाभिलेख द्वितीय और त्रयोदश)। संगम युग (लगभग 100 ई. से 250 ई. तक) का सबसे पहला चेर शासक था उदियंजेराल (130 ई.) जिसे संगम साहित्य में बहुत बड़ा विजेता कहा गया है। उसे अथवा उसके वंश को महाभारत की घटनाओं से जोड़ा गया है। उसका पुत्र नेडुंजेराल आदन भी शक्तिशाली था। उसने कुछ यवन (रोमक) व्यापारियों को बलात् रोककर धन वसूल किया, अपने सात समकालिक राजाओं पर विजय प्राप्त की और अधिराज (इमयवरंबन) की उपाधि धारण की। उसका छोटा भाई कुट्टुवन भी बड़ा भारी विजेता था, जिसने अपनी विजयों द्वारा चेर राज्य की सीमा को पश्चिमी पयोधि से पूर्वी पयोधि तक फैला दिया। आदन के पुत्र शेंगुट्टुवन के अनेक विवरण सुप्रसिद्ध संगम कवि परणर की कविताओं में मिलते हैं। वह एक कुशल अश्वारोही था तथा उसके पास संभवत: एक जलबेड़ा भी था। इस वंश के कुडड्की इरंजेराल इरुंपोडई (190 ई.) ने चोलों और पांड्यों से युद्ध के कई दुर्गों को जीता तथा उनकी धन-संपत्ति भी लूटी किंतु उसके बाद के मांदरजेराल इरुंपोडई नामक एक राजा को (210 ई.) पांड्यों से मुँह की खानी पड़ी। इन चेर राजाओं की राजधानी वेंगि थी, जिसके आधुनिक स्थान की ठीक-ठीक पहचान कर सकना कठिन है। विद्वानों में इस विषय में इस विषय पर बड़ मतभेद है। आदन उदियंजेराल का वंश कौटिल्य अर्थशास्त्र में वर्णित कुलसंघ का एक उदाहरण माना जाता है। कुलसंघ में एक राजा मात्र का नहीं अपितु राजपरिवार के सभी सदस्यों का राज्य पर शासन होता है। तीसरी शती के मध्य से आगे लगभग 300 वर्षों का चेर इतिहास अज्ञात है। पेरुमल उपाधिधारी जिन राजाओं ने वहाँ शासन किया, वे भी चेर के निवासी नहीं, अपितु बाहरी थे। सातवीं आठवीं शती के प्रथम चरण में पांड्यों ने चेर के कोंगु प्रदेश पर अधिकार कर लिया। अन्य चेर प्रदेशों पर भी उनके तथा अन्य समकालिक शक्तियों के आक्रमण होते रहे। चेर राजाओं ने पल्लवों से मित्रता कर ली और इस प्रकार अपने को पांड्यों से बचाने की कोशिश की। आठवीं नवीं शती का चेर राजा चेरमान् पेरुमाल अत्यंत धर्मसहिष्णु और कदाचित् सर्वधर्मोपासक था। अनेक विद्वानों के मत में उसके शासनकाल के अंत के साथ कोल्लम अथवा मलयालम् संवत् का प्रारंभ हुआ (824-24 ई.)। उसके समय में अरबी मुसलमानों ने मलाबार के तटों पर अपनी बस्तियाँ बसा लीं और वहाँ की स्त्रियों से विवाह भी किया, जिनसे मोपला लोगों की उत्पत्ति हुई। चेरमान् पेरुमाल स्वयं भी लेखक और कवि था। उसके समकालिक लेखकों में प्रसिद्ध थे शंकराचार्य, जो भारतीय धर्म और दर्शन के इतिहास में सर्वदा अमर रहेंगे। पेरुमल ने अपने मरने के पूर्व संभवत: अपना राज्य अपने सभी संबंधियों में बाँट दिया था। नवीं शतीं के अंत में चेर शासक स्थाणुरवि ने चोलराज आदित्य के पुत्र परांतक से अपनी पुत्री का विवाह कर चोलों से मित्रता कर ली। स्थाणुवि का पुत्र था विजयरागदेव। उसके वंशजों में भास्कर रविवर्मा (1047-1106) प्रसिद्ध हुआ। किंतु राजरा प्रथम और उसके उत्तराधिकारी चोलों ने चेर का अधिकांश भाग जीत लिया। मदुरा के पांड्यों की भी उसपर दृष्टि थी। आगे रविवर्मा कुलशेखर नामक एक चेर राजा ने थोड़े समय के लिए अपने वंश की खोई हुई कुछ शक्ति पुन: अर्जित कर ली, पांड्य-पल्लव क्षेत्रों को रौंदा तथा अपने को सम्राट कहा। वह एक कुशल शासक और विद्वानों का अश्रयदाता था1 कोल्लम् (क्विलॉन) उसकी राजधानी थी। मध्ययुग और उसके बाद का चेर इतिहास बहुत स्पष्ट नहीं है। कालांतर में वह पुर्तगाली, अन्य यूरोपीय आक्रमणकारियों, ईसाई धर्म-प्रचारकों और भारतीय रजवाड़ों की आपसी प्रतिस्पर्धा का विषय बन गया। अंग्रेजी युग में ट्रावणकोर और कोचीन जैसे देशी राज्य बचे तो रहे किंतु उनके पास अपनी कोई स्वतंत्र राजनीतिक शक्ति नहीं थी। विद्या और साहित्य की सेवा में चेरदेश के नंबूदरी ब्राह्मण परंपरया अग्रणी थे। उनमें यह प्रथा थी कि केवल जेठा भाई विवाह कर घरबार की चिंता करता था। शेष सभी छोटे भाई पारिवारिक चिंताओं से मुक्त होकर साधारण जनता में विद्या का प्रचार और स्वयं विद्याध्ययन में लगे रहते थे। आर्यवंशी कुरुनंदडक्कन (नवीं शती) नामक वहाँ के शासक ने वैदिक विद्याओं के प्रचार के लिए एक विद्यालय और छात्रावास की स्थापना हेतु एक निधि स्थापित की थी। वह विद्यालय दक्षिणी त्रावणकोर में पार्थिवशेखरपुरम् के एक विष्णुमंदिर में लगता था। वास्तव में उस क्षेत्र के सभी मठ और सत्र अपने अपने ढंग से गुरुकुलों का काम करते थे। .

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चोल राजवंश

चोल (तमिल - சோழர்) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में तमिल चोल शासकों ने 9 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया। 'चोल' शब्द की व्युत्पत्ति विभिन्न प्रकार से की जाती रही है। कर्नल जेरिनो ने चोल शब्द को संस्कृत "काल" एवं "कोल" से संबद्ध करते हुए इसे दक्षिण भारत के कृष्णवर्ण आर्य समुदाय का सूचक माना है। चोल शब्द को संस्कृत "चोर" तथा तमिल "चोलम्" से भी संबद्ध किया गया है किंतु इनमें से कोई मत ठीक नहीं है। आरंभिक काल से ही चोल शब्द का प्रयोग इसी नाम के राजवंश द्वारा शासित प्रजा और भूभाग के लिए व्यवहृत होता रहा है। संगमयुगीन मणिमेक्लै में चोलों को सूर्यवंशी कहा है। चोलों के अनेक प्रचलित नामों में शेंबियन् भी है। शेंबियन् के आधार पर उन्हें शिबि से उद्भूत सिद्ध करते हैं। 12वीं सदी के अनेक स्थानीय राजवंश अपने को करिकाल से उद्भत कश्यप गोत्रीय बताते हैं। चोलों के उल्लेख अत्यंत प्राचीन काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। कात्यायन ने चोडों का उल्लेख किया है। अशोक के अभिलेखों में भी इसका उल्लेख उपलब्ध है। किंतु इन्होंने संगमयुग में ही दक्षिण भारतीय इतिहास को संभवत: प्रथम बार प्रभावित किया। संगमकाल के अनेक महत्वपूर्ण चोल सम्राटों में करिकाल अत्यधिक प्रसिद्ध हुए संगमयुग के पश्चात् का चोल इतिहास अज्ञात है। फिर भी चोल-वंश-परंपरा एकदम समाप्त नहीं हुई थी क्योंकि रेनंडु (जिला कुडाया) प्रदेश में चोल पल्लवों, चालुक्यों तथा राष्ट्रकूटों के अधीन शासन करते रहे। .

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तमिल भाषा

तमिल (தமிழ், उच्चारण:तमिऴ्) एक भाषा है जो मुख्यतः तमिलनाडु तथा श्रीलंका में बोली जाती है। तमिलनाडु तथा पुदुचेरी में यह राजभाषा है। यह श्रीलंका तथा सिंगापुर की कई राजभाषाओं में से एक है। .

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पाण्ड्य राजवंश

पाण्ड्य राजवंश (तमिल: பாண்டியர்) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। इसने भारत में 560 से 1300 ई तक राज किया। .

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संगम साहित्य

संगम संगम के अन्य अर्थों के लिये यहां जाएं - संगम (बहुविकल्पी) ---- ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर ईसा के पश्चात दूसरी शताब्दी तक (लगभग) लिखे गए तमिल साहित्य को संगम साहित्य कहते हैं। लोककथाओं के अनुसार तमिल शासकों ने कुछ समयान्तरालों की अवधि में सम्मेलनों का आयोजन किया जिसमें लेखक अपने ज्ञान की चर्चा तर्क-वितर्क के रूप में करते थे। ऐसा करने से तमिल साहत्य का उत्तरोत्तर विकास हुआ। संगम साहित्य के अन्तर्गत ४७३ कवियों द्वारा रचित २३८१ पद्य हैं। इन कवियों में से कोई १०२ कवि अनाम हैं। दक्षिण भारत के प्राचीन इतिहास के लिये संगम साहित्य की उपयोगिता अनन्य है। इस साहित्य में उस समय के तीन राजवंशों का उल्लेख मिलता है: चोल, चेर और पाण्ड्य। संगम तमिल कवियों का संघ था जो पाण्ड्य शासको के संरक्षण में हुए थे। कुल तीन संगमों का जिक्र हुआ है।प्रथम संगम मदुरा में अगस्त्य ऋषि के अध्यक्षता में हुआ था। शिलप्पादिकारम, जीवक चिन्तामणि, तोल्क्पियम, मणिमेखले कुछ महत्वपूर्ण संगम महाकाव्य हैं। जैसा कि प्राचीन भारतीय इतिहास ग्रंथो में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णनों की भरमार मिलती है, संगम साहित्य भी इसका अपवाद नहीं है। इसलिए इन ग्रंथो को आधार मानकर इतिहास लिखना उचित नही माना गया है फिर भी दक्षिण भारत के प्राचीन समय के इतिहास की रुपरेखा जानने में यह बहुत सहायक है। .

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सेलम

सेलम (तमिल:சேலம்) या सलेम भारत के तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। .

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करूर

करूर भारत के तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। यह करूर जिले का मुख्यालय है। करूर अमरावती नदी के तट पर बसा हुआ है। संगम काल के दौरान इस जगह को आनपोरूमई के नाम से जाना जाता था। इस जगह पर चोल राजाओं, मदुरै के नायक और अंग्रेजों ने सफलतापूर्वक यहां शासन किया। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने इस स्थान की सृष्टि की थी। करूर नमक्कल के उत्तर, दिन्दीगुल जिले के दक्षिण, तिरूचिरपल्ली जिले के पूर्व और इरोड जिले की दक्षिण सीमा से लगा हुआ है। यह शहर कुटीर उद्योग के लिए भी विशेष रूप से प्रसिद्ध है। .

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केरल

केरल (मलयालम: കേരളം, केरळम्) भारत का एक प्रान्त है। इसकी राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) है। मलयालम (മലയാളം, मलयाळम्) यहां की मुख्य भाषा है। हिन्दुओं तथा मुसलमानों के अलावा यहां ईसाई भी बड़ी संख्या में रहते हैं। भारत की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य एक खूबसूरत भूभाग स्थित है, जिसे केरल के नाम से जाना जाता है। इस राज्य का क्षेत्रफल 38863 वर्ग किलोमीटर है और यहाँ मलयालम भाषा बोली जाती है। अपनी संस्कृति और भाषा-वैशिष्ट्य के कारण पहचाने जाने वाले भारत के दक्षिण में स्थित चार राज्यों में केरल प्रमुख स्थान रखता है। इसके प्रमुख पड़ोसी राज्य तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। पुदुच्चेरी (पांडिचेरि) राज्य का मय्यष़ि (माहि) नाम से जाता जाने वाला भूभाग भी केरल राज्य के अन्तर्गत स्थित है। अरब सागर में स्थित केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का भी भाषा और संस्कृति की दृष्टि से केरल के साथ अटूट संबन्ध है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व केरल में राजाओं की रियासतें थीं। जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को जोड़कर 'तिरुकोच्चि' राज्य का गठन किया गया। उस समय मलाबार प्रदेश मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु) का एक जिला मात्र था। नवंबर 1956 में तिरुकोच्चि के साथ मलाबार को भी जोड़ा गया और इस तरह वर्तमान केरल की स्थापना हुई। इस प्रकार 'ऐक्य केरलम' के गठन के द्वारा इस भूभाग की जनता की दीर्घकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई। * केरल में शिशुओं की मृत्यु दर भारत के राज्यों में सबसे कम है और स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है (2001 की जनगणना के आधार पर)।.

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कोयंबतूर

कोयंबतूर या कोयंबटूर तमिलनाडु प्रान्त का एक शहर है। कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर बसा शहर मुख्य रूप से एक औद्योगिक नगरी है। शहर रेल और सड़क और वायु मार्ग से अच्छी तरह पूरे भारत से जुड़ा है। कोयंबटूर एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर है। दक्षिण भारत के मैनचेस्टर के नाम से प्रसिद्ध कोयंबटूर एक प्रमुख कपड़ा उत्पादन केंद्र है। नीलगिरी की तराई में स्थित यह शहर पूरे साल सुहावने मौसम का अहसास कराता है। दक्षिण से नीलगिरी की यात्रा करने वाले पर्यटक कोयंबटूर को आधार शिविर की तरह प्रयोग करते हैं। कपड़ा उत्पादन कारखानों के अतिरिक्त भी यहां बहुत कुछ है जहां सैलानी घूम-फिर सकते हैं। यहां का जैविक उद्यान, कृषि विश्‍वविद्यालय संग्रहालय और वीओसी पार्क विशेष रूप से पर्यटकों को आकर्षित करता है। कोयंबटूर में बहुत सारे मंदिर भी हैं जो इस शहर के महत्व को और भी बढ़ाते हैं। .

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चेर साम्राज्य, केरलपुत्रों

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