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चित्रगुप्त

सूची चित्रगुप्त

चित्रगुप्त एक प्रमुख हिन्दू देवता हैं। मिथकों और पुराणों के अनुसार धर्मराज चित्रगुप्त अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा कर के न्याय करने वाले बताए गये हैं। मान्यताओं के अनुसार कायस्थों को चित्रगुप्त का वंशज बताया जाता है। .

5 संबंधों: एरावती/शोभावति, पुराण, सूर्यदक्षिणा/नंदनी, हिन्दू देवी देवताओं की सूची, कायस्थ

एरावती/शोभावति

नागमाता कद्रि का पुत्र एरावत नागवन्श का महाप्रतापी राजा हुआ, उसकी पत्नी का नाम शोभा था, दोनो भगवान शन्कर के परम भक्त थे, लेकिन दोनों की एक भी सन्तान नही थी, एक दिन भगवान शन्कर नें उन्हे दर्शन दिए और कहा कि तुम्हे एक पुत्री रत्न की प्राप्ती होगी जो आठ महाप्रतापी पुत्रों को जन्म देगी। शने: शने: समय बीतता गया फिर वह दिन भी आ गया जब उनके यहां एक पुत्री नें जन्म लिया, जिसका नाम एरावती/शोभावति पड़ा। समय आने पर इनका विवाह चित्रगुप्तजी से हुआ, जिससे इनके आठ पुत्रों नें जन्म लिया जो चारु, चितचारु, मतिभान, सुचारु, चारुण, हिमवान, चित्र और अतिन्द्रिय कहलाए। श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:हिन्दू कथाएं.

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पुराण

पुराण, हिंदुओं के धर्म संबंधी आख्यान ग्रंथ हैं। जिनमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वृत्तात आदि हैं। ये वैदिक काल के बहुत्का बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं। भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण किया गया है। 'पुराण' का शाब्दिक अर्थ है, 'प्राचीन' या 'पुराना'।Merriam-Webster's Encyclopedia of Literature (1995 Edition), Article on Puranas,, page 915 पुराणों की रचना मुख्यतः संस्कृत में हुई है किन्तु कुछ पुराण क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचे गए हैं।Gregory Bailey (2003), The Study of Hinduism (Editor: Arvind Sharma), The University of South Carolina Press,, page 139 हिन्दू और जैन दोनों ही धर्मों के वाङ्मय में पुराण मिलते हैं। John Cort (1993), Purana Perennis: Reciprocity and Transformation in Hindu and Jaina Texts (Editor: Wendy Doniger), State University of New York Press,, pages 185-204 पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएं, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है। विभिन्न पुराणों की विषय-वस्तु में बहुत अधिक असमानता है। इतना ही नहीं, एक ही पुराण के कई-कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं जो परस्पर भिन्न-भिन्न हैं। हिन्दू पुराणों के रचनाकार अज्ञात हैं और ऐसा लगता है कि कई रचनाकारों ने कई शताब्दियों में इनकी रचना की है। इसके विपरीत जैन पुराण जैन पुराणों का रचनाकाल और रचनाकारों के नाम बताए जा सकते हैं। कर्मकांड (वेद) से ज्ञान (उपनिषद्) की ओर आते हुए भारतीय मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ। पुराणों में वैदिक काल से चले आते हुए सृष्टि आदि संबंधी विचारों, प्राचीन राजाओं और ऋषियों के परंपरागत वृत्तांतों तथा कहानियों आदि के संग्रह के साथ साथ कल्पित कथाओं की विचित्रता और रोचक वर्णनों द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलते हैं। पुराण उस प्रकार प्रमाण ग्रंथ नहीं हैं जिस प्रकार श्रुति, स्मृति आदि हैं। पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य और भागवत में ऐतिहासिक वृत्त— राजाओं की वंशावली आदि के रूप में बहुत कुछ मिलते हैं। ये वंशावलियाँ यद्यपि बहुत संक्षिप्त हैं और इनमें परस्पर कहीं कहीं विरोध भी हैं पर हैं बडे़ काम की। पुराणों की ओर ऐतिहासिकों ने इधर विशेष रूप से ध्यान दिया है और वे इन वंशावलियों की छानबीन में लगे हैं। .

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सूर्यदक्षिणा/नंदनी

कस्यप ऋषि के पोते श्राद्धदेव नन्दन वन में अपनें आश्रम में भगवान की पूजा अर्चना ध्यान व तपस्या किया करते थे। एक दिन सुर्य देव उनके पास आए और उनसे प्रार्थना की, कि वे उनके लिए एक महायज्ञ करें। महायज्ञ की समाप्ति पस्चात सूर्य देव नें उन्हें दक्षिणा स्वरूप एक कन्या दी और कहा आप इसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार करें। भविश्य में यह आपका नाम बढ़ाएगी और इस पर आप गर्व करेंगें। इस कन्या को अपनी पुत्री रूप में स्वीकार कर श्राद्धदेव अपनें आश्रम नन्दन वन में आए तब वहां रहनें वाले अन्य ऋषि मुनियों नें पूंछा यह कन्या कौन है तो श्राद्धदेव नें कहा यह सूर्य दक्षिणा है। नन्दन वन में उस कन्या के आ जानें से वहां खुशी की एक लहर सी दौड़ गई और लोग उसे प्यार से नन्दनी कहनें लगे। इस प्रकार उस कन्या के दो नाम प्रचलन में आ गए, कोई उसे प्यार से सुदक्षिणा (सूर्यदक्षिणा) कहता तो कोई नन्दनी। श्राद्धदेव ब्राम्हण थे, इसलिए उनकी यह कन्या, ब्राम्हण कन्या कहलाई। धीरे धीरे जब यह कन्या बड़ी होनें लगी तो श्राद्धदेव को उसकी शादी की चिन्ता सतानें लगी, तब श्राद्धदेव अपनी चिन्ता लेकर ब्रम्हाजी के समीप पहुंचे और नन्दनी के लिए उचित वर की चाहत प्रकट की, तब ब्रम्हाजी नें नन्दनी के विवाह हेतु चित्रगुप्तजी को चुना और नन्दनी का विवाह चित्रगुप्तजी से करवा दिया। इससे इनके चार पुत्र उत्पन्न हुए जो भानु, विभानु, विश्वभानु और वीर्यभानु कहलाए।.

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हिन्दू देवी देवताओं की सूची

यह हिन्दू देवी देवताओं की सूची है। हिन्दू लेखों के अनुसार, धर्म में तैंतीस कोटि (कोटि के अर्थ-प्रकार और करोड़) देवी-देवता बताये गये हैं। इनमें स्थानीय व क्षेत्रीय देवी-देवता भी शामिल हैं)। वे सभी तो यहां सम्मिलित नहीं किये जा सकते हैं। फिर भी इस सूची में तीन सौ से अधिक संख्या सम्मिलित है। .

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कायस्थ

कायस्थ भारत में रहने वाले सवर्ण हिन्दू समुदाय की एक जाति है। गुप्तकाल के दौरान कायस्थ नाम की एक उपजाति का उद्भव हुआ। पुराणों के अनुसार कायस्थ प्रशासनिक कार्यों का निर्वहन करते हैं। हिंदू धर्म की मान्यता है कि कायस्थ धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी की संतान हैं तथा देवता कुल में जन्म लेने के कारण इन्हें ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों धर्मों को धारण करने का अधिकार प्राप्त है। वर्तमान में कायस्थ मुख्य रूप से बिसारिया, श्रीवास्तव, सक्सेना,निगम, माथुर, भटनागर, लाभ, लाल, कुलश्रेष्ठ, अस्थाना, कर्ण, वर्मा, खरे, राय, सुरजध्वज, विश्वास, सरकार, बोस, दत्त, चक्रवर्ती, श्रेष्ठ, प्रभु, ठाकरे, आडवाणी, नाग, गुप्त, रक्षित, बक्शी, मुंशी, दत्ता, देशमुख, पटनायक, नायडू, सोम, पाल, राव, रेड्डी, दास, मेहता आदि उपनामों से जाने जाते हैं। वर्तमान में कायस्थों ने राजनीति और कला के साथ विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक विद्यमान हैं। वेदों के अनुसार कायस्थ का उद्गम ब्रह्मा ही हैं। उन्हें ब्रह्मा जी ने अपनी काया की सम्पूर्ण अस्थियों से बनाया था, तभी इनका नाम काया+अस्थि .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

चित्रगुप्त देवता, चित्रगुप्तजी

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