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चयापचय की अंतर्जात त्रुटि

सूची चयापचय की अंतर्जात त्रुटि

आनुवंशिक रोग जिस में चयापचय संबंधी विकार शामिल है के संक्या के भीतर, '''चयापचय की अंतर्जात त्रुटियों ''' का एक बड़ा वर्ग गिना जाता है। अधिकांश, एकल जीन दोष के कारण होते हैं, जो एंजाइम की कोड में सहायता करता है - ताकि विभिन्न पदार्थ (सब्सट्रेट) के रूपांतरण कोई दूसरे (उत्पाद) में हो जाय.

25 संबंधों: ऊतक परीक्षा, चिकित्सकीय परीक्षण, तिल्ली, निम्न रक्तचाप, पक्षाघात, पेशी, मधुमेह, मध्यलिंगता, मनस्ताप, मस्तिष्क, यकृत, रक्ताल्पता, शर्करा, शरीर का निर्जलीकरण, हृदयाघात, जीन, विटामिन बी१, कर्कट रोग, अतिसार, अधोमधुरक्तता, अन्धता, अमीनो अम्ल, अवटु अल्पक्रियता, उच्च रक्तचाप, उल्टी

ऊतक परीक्षा

मस्तिष्क की बायॉप्सी ऊतक परीक्षा (अंग्रेज़ी: बाइऑप्सी) निदान के लिए जीवित प्राणियों के शरीर से ऊतक (टिशू) को अलग कर जो परीक्षण किया जाता है उसे कहते हैं। अर्बुद (ट्यूमर) के निदान की अन्य विधियाँ उपलब्ध न होने पर, संभावित ऊतक के अपेक्षाकृत एक बड़े टुकड़े का सूक्ष्म अध्ययन ही निदान की सर्वोत्तम रीति है। शल्य चिकित्सा में इसकी महत्ता अधिक है, क्योंकि इसके द्वारा ही निदान निश्चित होता है तथा शल्य चिकित्सक को आँख बंदकर करने के बदले उचित उपचार करने का मार्ग मिल जाता है। .

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चिकित्सकीय परीक्षण

विल्हेल्म रोएन्टजन द्वारा लिया गया अल्बर्ट फॉन कोल्लिकर के हाथ का एक्स-रे आयुर्विज्ञान में मानव शरीर का स्वास्थ्य और उपचार मुख्यतः देखा जाता है। इसके लिये शरीर के कई परीक्षण किये जाते हैं। इन्हें चिकित्सकीय परीक्षण (Medical test) कहा जाता है। ये कई प्रकार के होते हैं.

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तिल्ली

प्लीहा या तिल्ली (Spleen) एक अंग है जो सभी रीढ़धारी प्राणियों में पाया जाता है। मानव में तिल्ली पेट में स्थित रहता है। यह पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने का कार्य करता है तथा रक्त का संचित भंडार भी है। यह रोग निरोधक तंत्र का एक भाग है। प्लीहा शरीर की सबसे बड़ी वाहिनीहीन ग्रंथि (ductless gland) है, जो उदर के ऊपरी भाग में बाईं ओर आमाशय के पीछे स्थित रहती है। इसकी आंतरिक रचना संयोजी ऊतक (connective tissue) तथा स्वतंत्र पेशियों से होती है। इसके अंदर प्लीहावस्तु भरी रहती है, जिसमें बड़ी बड़ी प्लीहा कोशिकाएँ तथा जालक कोशिकाएँ रहती हैं। इनके अतिरिक्त रक्तकरण तथा लसीका कोशिकाएँ भी मिलती हैं। .

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निम्न रक्तचाप

निम्न रक्तचाप (अंग्रेज़ी:हाइपोटेंशन) वह दाब है जिससे धमनियों और नसों में रक्त का प्रवाह कम होने के लक्षण या संकेत दिखाई देते हैं। जब रक्त का प्रवाह काफी कम होता हो तो मस्तिष्क, हृदय तथा गुर्दे जैसे महत्वपूर्ण इंद्रियों में ऑक्सीजन और पौष्टिक पदार्थ नहीं पहुंच पाते जिससे ये इंद्रियां सामान्य रूप से काम नहीं कर पाती और इससे यह स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती है। उच्च रक्तचाप के विपरीत, निम्न रक्तचाप की पहचान मूलतः लक्षण और संकेत से होती है, न कि विशिष्ट दाब संख्या के। किसी-किसी का रक्तचाप ९०/५० होता है लेकिन उसमें निम्न रक्त चाप के कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं और इसलिए उन्हें निम्न रक्तचाप नहीं होता तथापि ऐसे व्यक्तियों में जिनका रक्तचाप उच्च है और उनका रक्तचाप यदि १००/६० तक गिर जाता है तो उनमें निम्न रक्तचाप के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। यदि किसी को निम्न रक्तचाप के कारण चक्कर आता हो या मितली आती हो या खड़े होने पर बेहोश होकर गिर पड़ता हो तो उसे आर्थोस्टेटिक उच्च रक्तचाप कहते हैं। खड़े होने पर निम्न दाब के कारण होने वाले प्रभाव को सामान्य व्यक्ति शीघ्र ही काबू में कर लेता है। लेकिन जब पर्याप्त रक्तचाप के कारण चक्रीय धमनी में रक्त की आपूर्ति नहीं होती है तो व्यक्ति को सीने में दर्द हो सकता है या दिल का दौरा पड़ सकता है। जब गुर्दों में अपर्याप्त मात्रा में खून की आपूर्ति होती है तो गुर्दे शरीर से यूरिया और क्रिएटाइन जैसे अपशिष्टों को निकाल नहीं पाते जिससे रक्त में इनकी मात्रा अधिक हो जाती है। स्टेथोस्कोप सहित एक अएनेरॉयड स्फाइगनोमैनोमीटर;चक्रीय धमनी कोरोनरी आर्टेरी यानि वह धमनी जो हृदय के मांस पेशियों को रक्त की आपूर्ति करती है।;आघात यह एक ऐसी स्थिति है जिससे जीवन को खतरा हो सकता है। निम्न रक्तचाप की स्थिति में गुर्दे, हृदय, फेफड़े तथा मस्तिष्क तेजी से खराब होने लगते हैं। .

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पक्षाघात

पक्षाघात या लकवा मारना (Paralysis) एक या एकाधिक मांसपेशी समूह की मांसपेशियों के कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ होने की स्थिति को कहते हैं। पक्षाघात से प्रभावी क्षेत्र की संवेदन-शक्ति समाप्त हो सकती है या उस भाग को चलना-फिरना या घुमाना असम्भव हो जाता है। यदि दुर्बलता आंशिक है तो उसे आंशिक पक्षाघात कहते हैं। .

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पेशी

पेशी की संरचना पेशी (Muscle) प्राणियों का आकुंचित होने वाला (contractile) ऊतक है। इनमें आंकुंचित होने वाले सूत्र होते हैं जो कोशिका का आकार बदल देते हैं। पेशी कोशिकाओं द्वारा निर्मित उस ऊतक को पेशी ऊतक कहा जाता है जो समस्त अंगों में गति उत्पन्न करता है। इस ऊतक का निर्माण करने वाली कोशिकाएं विशेष प्रकार की आकृति और रचना वाली होती हैं। इनमें कुंचन करने की क्षमता होती है। पेशिया रेखित, अरेखित एवं हृदय तीन प्रकार की होती हैं। मनुष्य के शरीर में 40 प्रतिशत भाग पेशियों का होता है। मानव शरीर में 693 मांसपेशियां पाई जाती हैं। इनमें से 400 पेशियाँ रेखित होती है। शरीर में सर्वाधिक पेशियां पीठ में पाई जाती है। पीठ में 180 पेशियां पाई जाती हैं। पेशियां तीन प्रकार की होती हैं। ऐच्छिक मांसपेशियाँ, अनैच्छिक मांसपेशियाँ और हृदय मांसपेशियाँ। .

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मधुमेह

डायबिटीज मेलेटस (डीएम), जिसे सामान्यतः मधुमेह कहा जाता है, चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक उच्च रक्त शर्करा का स्तर होता है। उच्च रक्त शर्करा के लक्षणों में अक्सर पेशाब आना होता है, प्यास की बढ़ोतरी होती है, और भूख में वृद्धि होती है।  यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, मधुमेह कई जटिलताओं का कारण बन सकता है।  तीव्र जटिलताओं में मधुमेह केटोएसिडोसिस, नॉनकेटोटिक हाइपरोस्मोलर कोमा, या मौत शामिल हो सकती है। गंभीर दीर्घकालिक जटिलताओं में हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक किडनी की विफलता, पैर अल्सर और आंखों को नुकसान शामिल है। मधुमेह के कारण है या तो अग्न्याशय  पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता या शरीर की कोशिकायें इंसुलिन को ठीक से जवाब नहीं करती। मधुमेह के तीन मुख्य प्रकार हैं.

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मध्यलिंगता

'''मध्यलिंगता''' से युक्त एक मनुष्य: एक पुरुष, जिसका शिश्न अतिलघु आकार का है किन्तु स्तन अतिविकसित हैं। मध्यलिंगता (Intersexuality) एक लैंगिक विकृति है। यह वह स्थिति है जब कोई प्राणी किसी एक लिंग की ओर विकसित होते-होते सहसा, किसी कारणवश, दूसरे लिंग को भी धारण कर ले। मनुष्यों में हिजड़ों (eunuchs) की यही अवस्था होती है। मनुष्यों में मध्यलिंगता की स्थिति में पुरुष एवं स्त्री का भेद करने वाले शरीरांगों एवं लक्षणों का विचित्र मिश्रण पाया जा सकता है। आनुवंशिकविज्ञान के अनुसार ऐसी अवस्था का कारण तीन कायिक, या दैहिक क्रोमसोम समूह के साथ दो एक्स (X) क्रोमोसोमों का होना है। (गोल्डश्मिट्)। इस अनुपात के कारण मक्खियों की बाहरी आकृति नर तथा मादा का मिश्रण होती है, यद्यपि जनन से उनके शरीर में नर तथा मादा ऊतक (tissues) नहीं पाए जाते। वे आकृति में या तो नर ही होंगी, या मादा ही। ऐसे प्राणी वंध्या होते हैं। ब्रैवेल ने बतलाया है कि अंतर्लिगी की जनन ग्रंथियाँ तो एक ही प्रकार की होती हैं, किंतु कुछ या सभी सहायक अंग तथा गौण लक्षण दूसरे लिंग का निर्णय मात्र कर देते हैं उनका वास्तविक विकास हार्मोनों के प्रभाव से ही होता है। सन् 1923 में क्रिउ ने कुछ घरेलू पशुओं (बकरे, सूअर, घोड़े, चौपाए, भेड़ तथा ऊँट) की जाँच की और पाया कि उनमें मिथ्या मध्यलिंगता (pseudo-intersexuality) थी, अर्थात् कुछ में तो नारी जननांग अत्यंत संकुचित थे, कुछ में सीधे और स्पष्ट, किंतु अनपेक्षित लंबे थे, तथा कुछ में स्पष्टत: नर के समान, किंतु अपूर्ण नलिकायुक्त थे। कुछ में वृषण तथा डिंब ग्रंथियाँ भी उपस्थित थीं। पुरुषों (मनुष्यों) में कुछ को मासिक धर्म होते तथा कुछ को दूध पिलाते हुए पाया गया है। जननांग में घाव, या शल्यक्रिया, या हार्मोन प्रयोग द्वारा माध्यलिंगता उत्पन्न हो सकती हैं। .

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मनस्ताप

मनस्ताप (Psychosis) मन की वह दशा है जिसमें मन संसार के साधारण व्यवहार करने में असमर्थ रहता है। मनोविक्षिप्ति और पागलपन दोनों शब्द असाधारण मनोदशा के बोधक है, परंतु जहाँ पागलपन एक साधारण प्रयोग का शब्द है, जिसका कानूनी उपयोग भी किया जाता है, वहाँ मनोविक्षिप्ति चिकित्साशास्त्र का शब्द है जिसका चिकित्सा में विशेष अर्थ है। पागल व्यक्ति को प्राय: अपने शरीर एवं कामों की सुध-बुध नहीं रहती। उसकी हिफाजत दूसरे लोगों को करनी पड़ती है। अतएव यदि वह कोई अपराध का काम कर डाले, तो उसे दंड का भागी नहीं माना जाता। इससे मिलता-जुलता, परंतु इससे पृथक, अर्थ मनोविक्षिप्ति का है। मनोविक्षिप्त व्यक्ति में साधारण असामान्यता से लेकर बिल्कुल पागलपन जैसे व्यवहार देखे जाते हैं। कुछ मनोविक्षिप्त व्यक्ति थोड़ी ही चिकित्सा से अच्छे हो जाते हैं। ये समाज में रहते हैं और समाज का कोई भी अहित नहीं करते। उनमें अपराध की प्रवृत्ति नहीं रहती। इसके विपरीत, कुछ मनोविक्षिप्त व्यक्तियों में प्रबल अपराध की प्रवृत्ति रहती है। वे अपने भीतरी मन में बदले की भावना रखते हैं, जिसे विक्षिप्त व्यवहारों में प्रकट करते हैं। कुछ ऐसे विक्षिप्त भी होते हैं जिनसे अच्छे और बुरे व्यवहार में अंतर समझने की क्षमता ही नहीं रहती। वे हँसते-हँसते किसी व्यक्ति का गला घोट दे सकते हैं, पर उन्हें ऐसा नहीं जान पड़ता कि उन्होंने कोई जघन्य अपराध का डाला है। इस तरह मनोविक्षिप्ति में पागलपन का समावेश होता है, परंतु सभी मनोविक्षिप्त व्यक्तियों को पागल नहीं कहा जा सकता है। .

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मस्तिष्क

मानव मस्तिष्क मस्तिष्क जन्तुओं के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण केन्द्र है। यह उनके आचरणों का नियमन एंव नियंत्रण करता है। स्तनधारी प्राणियों में मस्तिष्क सिर में स्थित होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है। यह मुख्य ज्ञानेन्द्रियों, आँख, नाक, जीभ और कान से जुड़ा हुआ, उनके करीब ही स्थित होता है। मस्तिष्क सभी रीढ़धारी प्राणियों में होता है परंतु अमेरूदण्डी प्राणियों में यह केन्द्रीय मस्तिष्क या स्वतंत्र गैंगलिया के रूप में होता है। कुछ जीवों जैसे निडारिया एंव तारा मछली में यह केन्द्रीभूत न होकर शरीर में यत्र तत्र फैला रहता है, जबकि कुछ प्राणियों जैसे स्पंज में तो मस्तिष्क होता ही नही है। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव में मस्तिष्क अत्यंत जटिल होते हैं। मानव मस्तिष्क में लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिका कोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है। मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। तंत्रिका विज्ञान का क्षेत्र पूरे विश्व में बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। बडे-बड़े तंत्रिकीय रोगों से निपटने के लिए आण्विक, कोशिकीय, आनुवंशिक एवं व्यवहारिक स्तरों पर मस्तिष्क की क्रिया के संदर्भ में समग्र क्षेत्र पर विचार करने की आवश्यकता को पूरी तरह महसूस किया गया है। एक नये अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि मस्तिष्क के आकार से व्यक्तित्व की झलक मिल सकती है। वास्तव में बच्चों का जन्म एक अलग व्यक्तित्व के रूप में होता है और जैसे जैसे उनके मस्तिष्क का विकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यक्तित्व भी तैयार होता है। मस्तिष्क (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों - नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा - से आवेग यहीं पर आते हैं, जिनको समझना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम्र है। पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं, यद्यपि ये क्रियाएँ मेरूरज्जु में स्थित भिन्न केन्द्रो से होती रहती हैं। अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंग का है। .

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यकृत

यकृत की स्थिति (4) यकृत या जिगर या कलेजा (Liver) शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो पित्त (Bile) का निर्माण करती है। पित्त, यकृती वाहिनी उपतंत्र (Hepatic duct system) तथा पित्तवाहिनी (Bile duct) द्वारा ग्रहणी (Duodenum), तथा पित्ताशय (Gall bladder) में चला जाता है। पाचन क्षेत्र में अवशोषित आंत्ररस के उपापचय (metabolism) का यह मुख्य स्थान है। .

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रक्ताल्पता

रक्ताल्पता (रक्त+अल्पता), का साधारण मतलब रक्त (खून) की कमी है। यह लाल रक्त कोशिका में पाए जाने वाले एक पदार्थ (कण) रूधिर वर्णिका यानि हीमोग्लोबिन की संख्या में कमी आने से होती है। हीमोग्लोबिन के अणु में अनचाहे परिवर्तन आने से भी रक्ताल्पता के लक्षण प्रकट होते हैं। हीमोग्लोबिन पूरे शरीर मे ऑक्सीजन को प्रवाहित करता है और इसकी संख्या मे कमी आने से शरीर मे ऑक्सीजन की आपूर्ति मे भी कमी आती है जिसके कारण व्यक्ति थकान और कमजोरी महसूस कर सकता है। .

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शर्करा

डेट्राइट, मिशिगनआवर्धित रूप में चीनी के दाने शक्कर, शर्करा या चीनी (Sugar) एक क्रिस्टलीय खाद्य पदार्थ है। इसमें मुख्यत: सुक्रोज, लैक्टोज एवं फ्रक्टोज उपस्थित होता है। मानव की स्वाद ग्रन्थियाँ मस्तिष्क को इसका स्वाद मीठा बताती हैं। चीनी मुख्यत: गन्ना (या ईख) एवं चुकन्दर से तैयार की जाती है। यह फलों, मधु एवं अन्य कई स्रोतों में भी पायी जाती है। इसे मारवाडी भाषा में 'खोड' अथवा ' मुरस ' कहा जाता है। चीनी की अत्यधिक मात्रा खाने से प्रकार-२ का मधुमेह होने की घटनाएँ अधिक देखी गयीं हैं। इसके अलावा मोटापा और दाँतों का क्षरण भी होता है। विश्व में ब्राजील में प्रति व्यक्ति चीनी की खपत सर्वाधिक होती है। भारत में एक देश के रूप में सर्वाधिक चीनी का खपत होती है। .

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शरीर का निर्जलीकरण

मनुष्य शरीर का वितरन पानी शरीर से अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थ समाप्त हो जाना जल्ह्रास या निर्जलीकरण (अंग्रेज़ी:डी-हाइड्रेशन) कहलाता है। मानव शरीर को कार्य करने के लिए निर्धारित मात्रा में कम से कम ८ गिलास के बराबर (एक लीटर या सवा लीटर) तरल पदार्थ शरीर के लिए आवश्यक होता है जो व्यक्ति के कार्य करने की क्षमता और आयु पर निर्भर करता है। परंतु अधिक कार्यशील व्यक्ति को इससे दो या तीन गुना अधिक तरल पदार्थ की आवश्यकता होती है। साधारण मानव जो तरल पदार्थ लेते हैं, वह उस तरल पदार्थ का स्थान ले लेती है जो शारीरिक कार्य को करने के लिए आवश्यक होता है। यदि कोई शरीर की आवश्यकता से कम तरल पदार्थ लेते हैं, तब निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) हो जाता है। .

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हृदयाघात

रोधगलन (MI) या तीव्र रोधगलन (AMI) को आमतौर पर हृदयाघात (हार्ट अटैक) या दिल के दौरे के रूप में जाना जाता है, जिसके तहत दिल के कुछ भागों में रक्त संचार में बाधा होती है, जिससे दिल की कोशिकाएं मर जाती हैं। यह आमतौर पर कमजोर धमनीकलाकाठिन्य पट्टिका के विदारण के बाद परिहृद्-धमनी के रोध (रूकावट) के कारण होता है, जो कि लिपिड (फैटी एसिड) का एक अस्थिर संग्रह और धमनी पट्टी में श्वेत रक्त कोशिका (विशेष रूप से बृहतभक्षककोशिका) होता है। स्थानिक-अरक्तता के परिणामस्वरूप (रक्त संचार में प्रतिबंध) और ऑक्सीजन की कमी होती है, अगर लम्बी अवधि तक इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो हृदय की मांसपेशी ऊतकों (मायोकार्डियम) की क्षति या मृत्यु (रोधगलन) हो सकती है। तीव्र रोधगलन के शास्त्रीय लक्षणों में अचानक छाती में दर्द, (आमतौर पर बाएं हाथ या गर्दन के बाएं ओर), सांस की तकलीफ, मिचली, उल्टी, घबराहट, पसीना और चिंता (अक्सर कयामत आसन्न भावना के रूप में वर्णित) शामिल हैं.

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जीन

गुणसूत्रों पर स्थित डी.एन.ए. (D.N.A.) की बनी वो अति सूक्ष्म रचनाएं जो अनुवांशिक लक्षणों का धारण एवं उनका एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण करती हैं, जीन (gene) वंशाणु या पित्रैक कहलाती हैं। जीन, डी एन ए के न्यूक्लियोटाइडओं का ऐसा अनुक्रम है, जिसमें सन्निहित कूटबद्ध सूचनाओं से अंततः प्रोटीन के संश्लेषण का कार्य संपन्न होता है। यह अनुवांशिकता के बुनियादी और कार्यक्षम घटक होते हैं। यह यूनानी भाषा के शब्द जीनस से बना है। जीन आनुवांशिकता की मूलभूत शारीरिक इकाई है। यानि इसी में हमारी आनुवांशिक विशेषताओं की जानकारी होती है जैसे हमारे बालों का रंग कैसा होगा, आंखों का रंग क्या होगा या हमें कौन सी बीमारियां हो सकती हैं। और यह जानकारी, कोशिकाओं के केन्द्र में मौजूद जिस तत्व में रहती है उसे डी एन ए कहते हैं। जब किसी जीन के डीएनए में कोई स्थाई परिवर्तन होता है तो उसे म्यूटेशन याउत्परिवर्तन कहा जाता है। यह कोशिकाओं के विभाजन के समय किसी दोष के कारण पैदा हो सकता है या फिर पराबैंगनी विकिरण की वजह से या रासायनिक तत्व या वायरस से भी हो सकता है। .

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विटामिन बी१

विटामिन बी१ एक विटामिन है। विटामिन “बी1” का वैज्ञानिक नाम थायमिन हाइड्रोक्लोराइड है। वयस्को को प्रतिदिन विटामिन “बी1” की एक मिलीग्राम मात्रा आवश्यक होती है। गर्भवती स्त्रियो को संपूर्ण काल तक विटामिन “बी1” की 5 मिलीग्राम आवश्यक होती है। आवश्यकता से अधिक हो जाने पर विटामिन “बी1” मूत्र से बाहर हो जाता है। आयु बढ़ाने के लिए विटामिन “बी1” का महत्वपूर्ण योगदान होता है। विटामिन “बी1” की कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है अतः इसलिए इसको वैज्ञानिक बेरी-बेरी विटामिन भी कहते है। यदि भोजन मे विटामिन “बी1” की कमी हो जाए तो शरीर कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का संपूर्ण प्रयोग कर पाने मे समर्थ नही हो पता। इससे एक विषैल एसिड जमा होकर रक्त मे मिल जाता है और मस्तिष्क के तंत्रिका संस्थान को हानि पहुंचाने लगता है। विटामिन “बी1” की कमी से होने वाले बेरी-बेरी रोग मे रोगी की मांसपेशियो को जहा भी छुआ जाए वहां वेदना होती है तथा उसके पश्चात स्पर्श शुन्यता का आभास होता है। वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन विटामिन “बी1” 900 युनिट अ. ई. की आवश्यकता पड़ती है। विटामिन “बी1” मूलांकुरो मे अधिक पाया जाता है। दूध पीते बच्चो का विटामिन “बी1” की कमी से कै (उलटी) और पेट दर्द जैसे विकार हो जाते है। विटामिन “बी1” निशास्ता युक्त भोजन को पचाने मे सहयोग करता है। विटामिन “बी1” की कमी हो जाने से रोगी की भूख मर जाती है तथा वजन तेजी से गिरने लगता है। विटामिन “बी1” की कमी से ह्रदय और मस्तिष्क मे कमजोरी तथा अन्य अनेक दोष हो जाते है। विटामिन “बी1” की कमी से पाचनांगो को भारी हानि पहुंचती है जो पहले रोगी को समझ मे नही आती लेकिन बाद मे जब उसके भयंकर परिणाम सामने आते है तब तक काफी देर हो चुकी होती है और सामने मृत्यु का संकट आ खड़ा होता है। कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का शरीर मे पूर्ण उपयोग तभी हो सकता है। जब शरीर मे पर्याप्त मात्रा मे विटामिन “बी1” हाजिर हो। विटामिन “बी1” की कमी से बेरी-बेरी रोग का रोगी इतना शक्तिहीन हो चुका होता है कि जहां एक बार बैठ जाता है दुबारा उठने का साहस अपने अंदर नही संजो पाता है। कठोर परिश्रम करने वाले लोगो का सामान्य मनुष्यो की अपेक्षा विटामिन “बी1” की मात्रा अधिक आवश्यक होती है। विटामिन “बी1” की कमी से रोगी थोड़ा सा काम करके थक जाता है। विटामिन “बी1” की कमी का रोगी अक्सर अजीर्ण का रोगी रहता है। बेरी-बेरी रोग विशेष रूप से उन लोगो को होता है जो मशीन से पिसा हुआ गेहुं तथा मशीन से पालिश किया हुआ चावल ज्यादा मात्रा मे खाते है। बेरी- बेरी रोग दो प्रकार के होते है पहला शुष्क तथा दूसरा आर्द्र। आर्द्र बेरी-बेरी रोग के रोगियो की नाड़ी तीव्र गति से चलती है तथा उसका ह्रदय कमजोर हो जाता है। शुष्क बेरी-बेरी का रोगी दिन प्रतिदिन कमजोर, कृषकाय, हीन, असहाय, दुर्बल और असमर्थ होता चला जाता है। कभी-कभी, किसी-किसी रोगी मे शुष्क और आर्द्र दोनो प्रकार के बेरी-बेरी के लक्षण मिलते है। शुष्क एवं आर्द्र लक्षणयुकत रोगी को ह्रदय संबंधी अनेक विकार होते है। उनका ह्रदय जांच करने पर फुटबाल के ब्लैडर जैसा फैला हुआ अनुभव होता है। शुष्क एवं आर्द्र बेरी-बेरी के लक्षण यदि किसी रोगी मे एक साथ दिखे तो उसकी चिकित्सा जितनी जल्दी हो सके आरम्भ कर देनी चाहिए। लापरवाही और गैर जिम्मेदरी जान का खतरा पैदा कर सकती है। विटामिन “बी1” की कमी से वात संस्थान प्रभावित होता है। इसीलिए वात नाड़ियो मे वेदना होती है। गर्भावस्था की वमन (उल्टी) विटामिन “बी1” की कमी का सूचक कहा जा सकता है। गर्भावस्था की विषममयता विटामिन “बी1” की कमी से होती है अतः विटामिन “बी1” की पूर्ति हो जाने पर गर्भावस्था की विषममयता नष्ट हो जाती है। अनेक चर्म रोग विटामिन “बी1” की कमी की वजह से भोगने पड़ते है। विटामिन “बी1” की कमी का प्रथम लक्षण बिना किसी कारण के भूख लगना बंद हो जाना है। ध्यान रहे बेरी-बेरी रोग मारक भी सिद्ध हो सकता है। वनस्पतियो, पत्तेदार शाक तथा खमीर मे विटामिन “बी1” अधिक मात्रा मे विद्यमान रहता है। पाण्डु रोग के पीछे भी विटामिन “बी1” की कमी होती है। विटामिन “बी1” की कमी से पतले वस्तु वमन तथा मितली जैसे उपद्रव हो जाते है। विटामिन “बी1” की कमी से पर्यूदर्या मे जल भर जाता है। मोटे मनुष्यो को विटामिन “बी1” की अधिक आवश्यकता होती है। विटामिन “बी1” की कमी से ह्र्दय बड़ा हो जाना मृत्यु का सूचक कहलाता है। सुखे किण्व मे विटामिन “बी1” सबसे अधिक 9000 अ. ई. युनिट होता है। मटर मे विटामिन “बी1” सबसे कम 100 युनिट अ. ई. होता है। विटामिन “बी1” की कमी से फेफ्ड़ो की झिल्ली मे तरल पदार्थ जमा हो जाता है। इसकी कमी से अण्डाकोश मे भी तरल पदार्थ जमा हो जाता है। आंतड़ियो की मांसपेशियो को शक्तिशाली बनाने मे इस विटामिन का विशेष योगदान रहता है। विटामिन “बी1” की प्रयाप्त मात्रा शरीर मे रहने पर मांसपेशियां पुष्ट रहती है। विटामिन “बी1” की प्रयाप्त भाग से आंतो के संक्रमण सुरक्षा बनी रहती है। इससे आंतो की झिल्ली मजबूत बनी रहती है। इसी मजबूती के कारण इस पर कीटाणु हमला नही कर पाते है। यह विटामिन यकृत की कार्य पणाली को स्वस्थ रखता है। यदि पाचन संस्थान स्वस्थ और शक्तिशाली है तो समझना चाहिए कि शरीर मे विटामिन “बी1” की पर्याप्त मात्रा विद्यमान है। जो लोग हरी साग-सब्जी नही खाते वे निश्चय ही विटामिन “बी1” की कमी के शिकार हो जाते है। मस्तिष्क तथा तंत्रिका संस्थान के सूत्रो को स्वस्थ रखना इसी विटामिन के जिम्मे है। यह विटामिन मानव रक्त के तरल भाग मे प्रोटीन को यथाचित मात्रा मे संतुलित रखता है। .

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कर्कट रोग

कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक.

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अतिसार

अतिसार या डायरिया (अग्रेज़ी:Diarrhea) में या तो बार-बार मल त्याग करना पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं। पतले दस्त, जिनमें जल का भाग अधिक होता है, थोड़े-थोड़े समय के अंतर से आते रहते हैं। .

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अधोमधुरक्तता

रक्त में जब ग्लूकोज़ का स्तर सामान्य से कम हो जाता है, तो उस अवस्था को अधोमधुरक्तता (Hypoglycemia) कहते हैं। यह चिकित्साशास्त्र का शब्द है। भोजन करने के 8 घंटे पश्चात या खाली पेट में रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर 80 मिली ग्राम प्रति डेसी लिटर रहता है। साधारणतः जब यह स्तर 70 मिली ग्राम प्रति डेसी लिटर से कम हो जाता है तो अधोमधुरक्तता कहलाता है। हमारे शरीर की सभी कोशिकाएं उर्जा प्राप्त करने के लिये ग्लूकोज़ का ही उपयोग करती है। अधोमधुरक्तता अधोमधुरक्तता अधोमधुरक्तता श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अन्धता

अंधता या अंधापन, देख न सकने की दशा का नाम है। जो बालक अपनी पुस्तक के अक्षर नहीं देख सकता, वह इस दशा से ग्रस्त कहा जा सकता है। दृष्टिहीनता भी इसी का नाम है। प्रकाश का अनुभव कर सकने की अशक्यता से लेकर ऐसे कार्य करने तक की अशक्यता जो देखे बिना नहीं किए जा सकते, अंधता कही जाती है। .

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अमीनो अम्ल

फिनाइल एलानिन, एक सामान्य अमीनो अम्ल अमीनो अम्ल, वे अणु हैं जिनमें अमाइन तथा कार्बोक्सिल दोनों ही ग्रुप पाएं जाते हैं। इनका साधारण सुत्र H2NCHROOH है। इसमें R एक पार्श्व कड़ी है। जो परिवर्तनशील विभिन्न अणुओं का ग्रूप होता है। कार्बोक्सिल (-COOH) तथा अमाइन (-NH2) ग्रूप कार्बन परमाणु से लगा रहता है। अमीनो अम्ल प्रोभूजिन के गठनकर्ता अणु हैं। बहुत सारे अमीनो अम्ल पेप्टाइड बंधन द्वारा युक्त होकर प्रोभूजिन बनाते हैं। प्रोभूजिन बनाने में 20 अमीनो अम्ल भाग लेते हैं। यह प्रोभूजिन निर्माण के कर्णधार होते हैं। प्रकृति में लगभग बीस अमीनों अम्लों का अस्तित्व है। प्रोभूजिन अणुओं में सैंकड़ों या हजारों अमीनो अम्ल एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक प्रोभूजिन में प्रायः सभी अमीनो अम्ल एक विशेष अनुक्रम से जुड़े रहते हैं। विभिन्न अमीनो अम्लों का यही अनुक्रम प्रत्येक प्रोभूजिन को उसकी विशेषताएं प्रदान करता है। अमीनो अम्लों का यही विशिष्ट अनुक्रम डी एन ए के न्यूक्लोटाइडस के क्रम से निर्धारित होता है। श्रेणी:जैवरसायनिकी श्रेणी:शब्दावली श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी श्रेणी:जैव प्रौद्योगिकी श्रेणी:आण्विक जैविकी श्रेणी:अनुवांशिकी *.

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अवटु अल्पक्रियता

हाइपोथायरायडिज्म या अवटु अल्पक्रियता मनुष्य और जानवरों में एक रोग की स्थिति है जो थायरॉयड ग्रंथि से थायरॉयड हॉर्मोन के अपर्याप्त उत्पादन के कारण होती है। अवटुवामनता (Cretinism) हाइपोथायरायडिज्म का ही एक रूप है जो छोटे बच्चों में पाया जाता है। .

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उच्च रक्तचाप

(HTN) हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप, जिसे कभी कभी धमनी उच्च रक्तचाप भी कहते हैं, एक पुरानी चिकित्सीय स्थिति है जिसमें धमनियों में रक्त का दबाव बढ़ जाता है। दबाव की इस वृद्धि के कारण, रक्त की धमनियों में रक्त का प्रवाह बनाये रखने के लिये दिल को सामान्य से अधिक काम करने की आवश्यकता पड़ती है। रक्तचाप में दो माप शामिल होती हैं, सिस्टोलिक और डायस्टोलिक, जो इस बात पर निर्भर करती है कि हृदय की मांसपेशियों में संकुचन (सिस्टोल) हो रहा है या धड़कनों के बीच में तनाव मुक्तता (डायस्टोल) हो रही है। आराम के समय पर सामान्य रक्तचाप 100-140 mmHg सिस्टोलिक (उच्चतम-रीडिंग) और 60-90 mmHg डायस्टोलिक (निचली-रीडिंग) की सीमा के भीतर होता है। उच्च रक्तचाप तब उपस्थित होता है यदि यह 90/140 mmHg पर या इसके ऊपर लगातार बना रहता है। हाइपरटेंशन प्राथमिक (मूलभूत) उच्च रक्तचाप तथा द्वितीयक उच्च रक्तचाप के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 90-95% मामले "प्राथमिक उच्च रक्तचाप" के रूप में वर्गीकृत किये जाते हैं, जिसका अर्थ है स्पष्ट अंतर्निहित चिकित्सीय कारण के बिना उच्च रक्तचाप। अन्य परिस्थितियां जो गुर्दे, धमनियों, दिल, या अंतःस्रावी प्रणाली को प्रभावित करती हैं, शेष 5-10% मामलों (द्वितीयक उच्च रक्तचाप) का कारण होतीं हैं। हाइपरटेंशन स्ट्रोक, मायोकार्डियल रोधगलन (दिल के दौरे), दिल की विफलता, धमनियों की धमनी विस्फार (उदाहरण के लिए, महाधमनी धमनी विस्फार), परिधीय धमनी रोग जैसे जोखिमों का कारक है और पुराने किडनी रोग का एक कारण है। धमनियों से रक्त के दबाव में मध्यम दर्जे की वृद्धि भी जीवन प्रत्याशा में कमी के साथ जुड़ी हुई है। आहार और जीवन शैली में परिवर्तन रक्तचाप नियंत्रण में सुधार और संबंधित स्वास्थ्य जटिलताओं के जोखिम को कम कर सकते हैं। हालांकि, दवा के माध्यम से उपचार अक्सर उन लोगों के लिये जरूरी हो जाता है जिनमें जीवन शैली में परिवर्तन अप्रभावी या अपर्याप्त हैं। .

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उल्टी

200px आमाशय के अन्दर के पदार्थों को बलपूर्वक शरीर के बाहर निकालने की क्रिया को उल्टी या वमन (Vomiting) कहते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि गैस्ट्रीक, जहर या मस्तिष्क का ट्यूमर इत्यादि.

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