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चम्पारण सत्याग्रह

सूची चम्पारण सत्याग्रह

गांधीजी १९१७ मेंगांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् १९१७-१८ में एक सत्याग्रह हुआ। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। .

15 संबंधों: चंपारण, नरहरि परीख, नील, नील विद्रोह, बिहार, भारत, महात्मा गांधी, महादेव देसाईं, राजेन्द्र प्रसाद, लोमराज सिंह, सत्याग्रह, खेड़ा सत्याग्रह, आचार्य कृपलानी, किसान, अनुग्रह नारायण सिंह

चंपारण

चंपारण बिहार प्रान्त का एक जिला था। अब पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण नाम के दो जिले हैं। भारत और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। महात्मा गाँधी ने अपनी मशाल यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से जलायी थी। बेतियापश्चिमी चंपारण का जिला मुख्यालय है और मोतिहारी पूर्वी चम्पारण का। चंपारण से ३५ किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है प्राचीन ऐतिहासिक स्थल केसरिया। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है। .

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नरहरि परीख

नरहरि द्वारकादास परीख (નરહરિ દ્રારકાદાસ પરીખ) भारत के एक लेखक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाजसुधारक थे। गांधीजी के कार्यों और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्होने अपना सारा जीवन गांधीजी से जुड़े संस्थानों के साथ बिताया। .

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नील

नील के अधिक विकल्पों के लिए यहां जाएं - नील (बहुविकल्पी) ---- भारतीय नील की एक टिकिया नील (Indigo) एक रंजक है। यह सूती कपड़ो में पीलेपन से निज़ात पाने के लिए प्रयुक्त एक उपादान है। यह चूर्ण (पाउडर) तथा तरल दोनो रूपों में प्रयुक्त होता है। यह पादपों से तैयार किया जाता है किन्तु इसे कृत्रिम रूप से भी तैयार किया जाता है। भारत में नील की खेती बहुत प्राचीन काल से होती आई है। इसके अलावा नील रंजक का भी सबसे पहले से भारत में ही निर्माण एवं उपयोग किया गया। .

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नील विद्रोह

बंगाल में नील के एक कारखाने का दृष्य (१८६७) नील विद्रोह किसानों द्वारा किया गया एक आन्दोलन था जो बंगाल के किसानों द्वारा सन् १८५९ में किया गया था। किन्तु इस विद्रोह की जड़ें आधी शताब्दी पुरानी थीं, अर्थात् नील कृषि अधिनियम (indigo plantation act) का पारित होना। इस विद्रोह के आरम्भ में नदिया जिले के किसानों ने 1859 के फरवरी-मार्च में नील का एक भी बीज बोने से मना कर दिया। यह आन्दोलन पूरी तरह से अहिंसक था तथा इसमें भारत के हिन्दू और मुसलमान दोनो ने बराबर का हिस्सा लिया। सन् १८६० तक बंगाल में नील की खेती लगभग ठप पड़ गई। सन् १८६० में इसके लिए एक आयोग गठित किया गया। .

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बिहार

बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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महात्मा गांधी

मोहनदास करमचन्द गांधी (२ अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था।। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है। सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना शुरू किया। १९१५ में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में १९३० में नमक सत्याग्रह और इसके बाद १९४२ में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे। .

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महादेव देसाईं

महादेव देसाईं (गुजराती: મહાદેવ દેસાઈ) (१ जनवरी १८९२ - १५ अगस्त १९४२) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी एवं राष्ट्रवादी लेखक थे। किन्तु उनकी प्रसिद्धि इस कारण से ज्यादा है कि वे लम्बे समय (लगभग २५ वर्ष) तक गांधीजी के निज सचिव रहे। .

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राजेन्द्र प्रसाद

राजेन्द्र प्रसाद (3 दिसम्बर 1884 – 28 फरवरी 1963) भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था जिसकी परिणति २६ जनवरी १९५० को भारत के एक गणतंत्र के रूप में हुई थी। राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने स्वाधीन भारत में केन्द्रीय मन्त्री के रूप में भी कुछ समय के लिए काम किया था। पूरे देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था। .

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लोमराज सिंह

लोमराज सिंह (१८३२ - १९२८) चंपारण सत्याग्रह के पुरोधा तथा किसान नेता थे। उनके अदम्य साहस, आशा, जुझारूपन के कारण ही पीपरा व तुरकौलिया की नीलही कोठियों के हजारों-हजार किसान अत्याचार, अनाचार और शोषण के विरुद्ध आंदोलन पर उतर गये थे। लोमराज सिंह जगीरहां कोठी के जमादार थे। नीलहों द्वारा किसानों व मजदूरों के साथ अत्याचार होता को देख लोमराज सिंह ने नीलहों की नौकरी को लात मार दी थी। भारतीय स्वातंत्र्य का महत्वपूर्ण अध्याय चम्पारण सत्याग्रह के महत्वपूर्ण पुरोधा थे बाबू लोमराज सिंह और इनके अदम्य उत्साह, अप्रतिम आष्तां और जुझारु संघर्ष का ही प्रतिफल हूआ कि चम्पारण सत्याग्रह का केन्द्र बिन्दु बना इनका गाँव जसौली जो आज जसौली पट्टी के नाम से जाना जाता है। ये सच्चे अर्थ में किसान नेता थे जिनकी अगुआइ में पीपरा एवं तुरकौलिया नीलही कोठियों से सम्बद्ध हजारों किसान नीलहे साहबों के अत्याचार, अनाचार और षोषण के विरुद्ध निर्णायक आन्दोलन पर उतर गये थे। उक्त आन्दोलन को ही निर्णायक मोड़ तक पहुँचाने के लिए 1917 में कांग्रेस नेता मोहनदास करमचंद गाँधी चंपारण आये थे, जो यहाँ ‘ बाबा ’ कहलाये और महात्मा गाँधी बन कर लौटे। गाँधी जी ने 15 अप्रैल 1917 को चंपारण आगमन के बाद अपना कार्य प्रारंभ करने के लिए बाबू साहेब को ही चूना था। 16 अप्रैल की सुबह जसौली के लिए चल पडे़ जहाँ किसान आंदोलन को कुचलने के लिए इनके साथ दमनात्मक कारवाई की गई थी। गाँधी जी के लिए उस समय चंपारण में जसौली से अधिक उपयुक्त धरती नहीं थी जहाँ वे सत्याग्रह का बीज डाल सकें। गाँधी जी की जसौली यात्रा से नीलीहों के ही नहीं जिला प्रशासन तथा तत्कालीन ब्रिटीश सरकार के कान खड़े हो गए तथा उनके भ्रमण पर प्रतिबन्ध लगाते हुए तत्कालीन कलक्टर मि0 हेकौक ने उन्हें जिला छोड़ने का आदेश दिया। गाँधी जी अपने धुन के पक्के थे तथा बाबू लोमराज सिंह भी अपने इरादे के मजबूत। सरकारी प्रतिबंध से दोनो में किसी का उद्देश्य बाधित नहीं हुआ। गाँधी जी रास्ते में चंद्रहिया के पास से स्वयं सरकार से निबटने के लिए जिला मुख्यालय मोतिहारी लौट गए लेकिन उन्होंने अपने सहयोगी रामनवमी प्रसाद, धरनीधर प्रसाद दोनों वकील तथा अन्य को चंपारण सत्याग्रह का सूत्रपात करने के लिए जसौली भेजा। बाबू साहेब ने उन्हें लेकर जसौली आए। जहाँ उनलोगों ने बाबू साहेब के विरुद्ध की गइ दमनात्मक कारवाइयों को देखा तथा चंपारण सत्याग्रह का सूत्रपात करते हुए उन्हीं के दरवाजे पर किसानो का पहला बयान दर्ज कर एक पोथी बनाइ जो आगे चलकर महीने भर में चंपारण सत्याग्रह का पोथा हो गयी। जिसमें किसानों पर अत्याचार कि करुण कथा दर्ज थी। बाबू लोमराज सिंह ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ”सिपाही विद्रोह“ को उभरते तथा विफल होते देखा था। बेतिया राज को पराभूत होते तथा उससे पट्टे पर जमीन लेकर नीलहें साहबों को उभरते, निरीह किसानो को उनकी दमन चक्की में पिसते तथा इस अन्याय के साथ सरकार की शक्ति को सहयोग करते देखा था और उनकी आत्मा चित्कार कर उठी थी। उनके अन्दर विरोध की चिनगारी फूट रही थी लेकिन वे उसे शोला बनाने का अवसर देख रहे थे। वे शक्ति संग्रह कर रहे थे तथा लोक विश्वास जुटा रहे थे। इस बीच अंग्रजों से लोहा लेने के लिए वर्तमान पश्चिमी चम्पारण के किसान शेख गुलाब और शीतल राय, पीरमोहम्मद मुनिश आदि उठे लेकिन उन्हें दबा दिया गया। उस समय चंपारण में शिक्षा की बेहद कमी थी तथा उनके अभाव में संघर्ष सफल नहीं हो रहा था। कोइ पढ़ा-लिखा व्यक्ति अंग्रेजों के खिलाफ आगे नहीं आ रहा था। इसी बीच अंग्रेज साहब मि0 एमन के दमन के शिकार पं0 राजकुमार शुक्ला हुए। पं0 शुक्ला ने जब विरोध का झंडा उठाया तो उन्हें बाबू लोमराज सिंह की शक्ति मिल गयी। बाबू साहेब तो लम्बे समय से अंग्रेजों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन इन्हें समुचित सफलता नहीं मिल रही थी। मुकदमें में धन का अपव्यय भी सीमा छू रही थी जिसमें बाबू साहेब को अपने मोतिहारी के वकील टोली का शहरी आवास वकील साहेब की फीस में ही गंवाना पड़ा था। लेकिन इस बीच वे तुरकौलीया तथा पीपरा कोठी क्षेत्र के किसानों को एक जुट कर कोटवा गाँव के मिठुआ वर के पास एक बड़ी सभा करने में सफल रहे थे। उन्होंने तिरहुत कमिश्नर को सात सौ किसानों के हस्ताक्षर के युक्त बढ़े हुए लगान (सहरबेसी) के विरुद्ध चिनगारी को शोला बना लिया लेकिन वह तब धधका जब आन्दोलन में पं0 राज कुमार शुक्ला शामिल हो गये तथा बाबू साहेब के वकील बाबू गोरख प्रसाद की बुद्धि उसमें मिल गयी। गोरख बाबू ने ही इन लोगों को गाँधी द्वारा द0 अफ्रिका में किये गये कार्यों की जानकारी तथा सुझाव दिया की अगर वे चम्पारण की स्थिति आकर देख लें तो यहाँ का भी उद्धार हो जाय। इसके लिए पं0 शुक्ला के नेतृत्व में किसानों का एक जत्था चम्पारण से लखनऊ कांग्रेस में भाग लेने गया जिसमें बाबू लोमराज सिंह ने तन-मन-धन से सहयोग किया। गाँधी जी चम्पारण कैसे आये यह तो सर्वविदित है लेकिन यह इतिहास के पन्नों में दब कर रह गया है कि पटने की तकलीफ के बाद जब गाँधी जी मगन लाल को पत्र लिख कर अपना कार्यक्रम बदल कर लौटने की तैयारी कर रहे थे तो बाबू लोमराज सिंह ही ऐसे आदमी थे जिन्होंने गाँधी जी से कहा था कि उन्होंने अपना सब कुछ गंवाया है गाँधी की आशा और विश्वास पर अगर गाँधी चंपारण नहीं गए तो वे गंगा नदी में कूद कर आत्महत्या कर लेंगे परन्तु लोक विश्वास गंवाने चंपारण नहीं जायेंगे और गाँधी जी को अपना मन बदल कर चम्पारण आना पड़ा था फिर जो हुआ यह भी सभी जानते हैं। चंपारण एग्रेरीयन एक्ट गाँधी के चंपारण सत्याग्रह के साथ बाबू लोमराज सिंह के किसान आन्दोलन की सफलता थी। बाबू लोमराज सिंह के बड़े मददगार उनके चचेरे भाई भिखु सिंह थे जो अंग्रेजों की जमादारी छोड़कर किसान आन्दोलन में कुद पड़े थे। अंग्र्रेज साहबों के पत्र तथा सरकारी प्रतिवेदनों से ज्ञात होता है कि पीपरा और तुरकौलीया कोठी के साहबों पर इन दोनो भाईयों का खौफ था। अपनी जनता में ये इतना लोकप्रिय थे कि लोमराज सिंह को लोग सोराज (स्वराज) सिंह पुकारने लगे थे। पीपरा के साहेब मि0 नॉरमेन ने कलेक्टर मि0 हेकौक को बताया था कि सोराज (लोमराज) के विरुद्ध कोई गवाह मिलना मुश्किल है और कलक्टर लोमराज सिंह की इतनी लोकप्रियता की जानकारी अपने पत्र द्वारा अधिकारियों को दी थी तथा चम्पारण में किसान आन्दोलन भड़कने की स्थिति को रेखांकित किया था। बाबू साहेब का मनोबल तब उच्च हो गया जब पं0 राजकुमार शुक्ला समय से कलकते गाँधी जी को लाने प्रस्थान कर गये। इसी समय जगिरहाँ कोठी का साहब मि0 कौम्प भी इनका मनोबल तोड़ने इनके सामने आ गया। तब अपनी बंसवारी से अंग्रेजों के आदमियों को बाँस काटने कि सूचना मिलते ही बाबू साहेब उन्हें रोकने के लिए निहत्थे चल दिये और इनके पीछे पड़ा जन सैलाब। जिसपर मि0 कैम्प घोड़े दौड़ा-दौड़ा कोड़े बरसाने लगा। बाबू साहेब ने ललकारा तो लोगों ने उसे घोड़े पर से गिरा कर उसकी भोजपुरीया पिटाइ कर दी, उसके शरीर में लाठी धांस दी। इसमें अंग्रेजों ने अपने अस्तित्व के विरोद्ध चुनौती मानी तथा जसौली में पलटन भेज कर तबाही मचायी, मुकदमें किये। मुकदमें में बाबू साहेब तो रिहा हुए लेकिन उस मुकदमें में मखन सिंह, विसुन सिंह, त्रिवेणी सिंह, राजाधरी राय, रामफल राय, महींगन कुवर सहीत अनेक लोग बक्सर जेल से सजा काट कर आये। बाबू साहेब के अच्छे सहयोगी बारा (चकिया) का देव परिवार था। बाबू साहेब तथा उनके भाई भिखु सिंह स्वयं ही अंग्रजों से नहीं लड़ते अन्य लड़ाकू किसानों की आर्थिक मदद करने का प्रणाम मिला है। बाबू लोमराज सिंह ने पटने में गाँधी जी को किया गया वादा 18 अप्रौल 1917 को मोतिहारी के कचहरी में मुकदमें की सुनवाई के दौरान पीपरा और तुरकौलीया क्षेत्र के 10 हजार किसानों को समर्थन में जमा कर निभाया। बाबू साहेब की यहीं साख थी कि महात्मा गाँधी 1934 में भूकंप की बर्वादी देखने आये तो उन्होंने उनकी तथा पं0 शुक्ला की खोज की लेकिन तब तक वे लोग दिवेगत हो गये थे। बाबू साहेब ने स्वतंत्रता तो नहीं देखी लेकिन उनके किसान आन्दोलन का प्रभाव हुआ कि नीलहों को बेतिया राज को लीज लौटा कर भागना पड़ा। मि0 कैम्प ने उनका घर तो तोड़वा दिया लेकिन उनकी इंर्ट से अपना घोड़सार नहीं बनवा सका पर बाबू लोमराज सिंह ने मरने के पहले उसकी कोठी तोड़वा कर उसकी ईंट से अपना शौचालय बनवा लिया। .

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सत्याग्रह

सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य के लिये आग्रह करना होता है। सत्याग्रह, उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून भंग शुरु करने तक संसार" नि:शस्त्र पतिकार' अथवा निष्क्रिय प्रतिरोध (पैंसिव रेजिस्टेन्स) की युद्धनीति से ही परिचित था। यदि प्रतिपक्षी की शक्ति हमसे अधिक है तो सशस्त्र विरोध का कोई अर्थ नहीं रह जाता। सबल प्रतिपक्षी से बचने के लिए "नि:शस्त्र प्रतिकार' की युद्धनीति का अवलंबन किया जाता था। इंग्लैंड में स्त्रियों ने मताधिकार प्राप्त करने के लिए इसी "निष्क्रिय प्रतिरोध' का मार्ग अपनाया था। इस प्रकार प्रतिकार में प्रतिपक्षी पर शस्त्र से आक्रमण करने की बात छोड़कर उसे दूसरे हर प्रकार से तंग करना, छल कपट से उसे हानि पहुँचाना, अथवा उसके शत्रु से संधि करके उसे नीचा दिखाना आदि उचित समझा जाता था। गांधी जी को इस प्रकार की दुर्नीति पसंद नहीं थी। दक्षिण अफ्रीका में उनके आंदोलन की कार्यपद्धति बिल्कुल भिन्न थी उनका सारा दर्शन ही भिन्न था अत: अपनी युद्धनीति के लिए उनको नए शब्द की आवश्यकता महसूस हुई। सही शब्द प्राप्त करने के लिए उन्होंने एक प्रतियोगिता की जिसमें स्वर्गीय मगनलाल गांधी ने एक शब्द सुझाया "सदाग्रह' जिसमें थोड़ा परिवर्तन करके गांधी जी ने "सत्याग्रह' शब्द स्वीकार किया। अमरीका के दार्शनिक थोरो ने जिस सिविल डिसओबिडियेन्स (सविनय अवज्ञा) की टेकनिक का वर्णन किया है, "सत्याग्रह' शब्द उस प्रक्रिया से मिलता जुलता था। "सत्याग्रह' का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह (सत्य अ आग्रह) सत्य को पकड़े रहना। अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना, सत्याग्रह का मूल लक्षण है। हमें सत्य का पालन करते हुए निर्भयतापूर्वक मृत्य का वरण करना चाहिए और मरते मरते भी जिसके विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे हैं, उसके प्रति वैरभाव या क्रोध नहीं करना चाहिए।' "सत्याग्रह' में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करना चाहिए, क्योंकि जो एक को सत्य प्रतीत होता है, वहीं दूसरे को गलत दिखाई दे सकता है। धैर्य का तात्पर्य कष्टसहन से है। इसलिए इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, "विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।' महात्मा गांधी ने कहा था कि सत्याग्रह में एक पद "प्रेम' अध्याहत है। सत्याग्रह मध्यमपदलोपी समास है। सत्याग्रह यानी सत्य के लिए प्रेम द्वारा आग्रह (सत्य + प्रेम + आग्रह .

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खेड़ा सत्याग्रह

गांधीजी खेड़ा सत्याग्रह गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह (आन्दोलन) था। यह महात्मा गांधी की प्रेरणा से वल्लभ भाई पटेल एवं अन्य नेताओं की अगुवाई में हुआ था। इस सत्याग्रह के फलस्वरूप गुजरात के जनजीवन में एक नया तेज और उत्साह उत्पन्न हुआ और आत्मविश्वास जागा। यह सत्याग्रह यद्यपि साधारण सा था तथापि भारतीय चेतना के इतिहास में इसका महत्व चंपारन के सत्याग्रह से कम नहीं है। .

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आचार्य कृपलानी

आचार्य कृपलानी (11 नवम्बर 1888 – 19 मार्च 1982) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी, गांधीवादी समाजवादी, पर्यावरणवादी तथा राजनेता थे। उनका वास्तविक नाम जीवटराम भगवानदास था। वे सन् 1947 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जब भारत को आजादी मिली। जब भावी प्रधानमंत्री के लिये कांग्रेस में मतदान हुआ तो तो सरदार पटेल के बाद सबसे अधिक मत उनको ही मिले थे। किन्तु गांधीजी के कहने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया। .

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किसान

किसान उन्हें कहा जाता है, जो खेती का काम करते हैं। इन्हें कृषक और खेतिहर के नाम से भी जाना जाता है। ये बाकी सभी लोगो के लिए खाद्य सामग्री का उत्पादन करते है। इसमें फसलों को उगाना, बागों में पौधे लगाना, मुर्गियों या इस तरह के अन्य पशुओं की देखभाल कर उन्हें बढ़ाना भी शामिल है। कोई भी किसान या तो खेत का मालिक हो सकता है या उस कृषि भूमि के मालिक द्वारा काम पर रखा गया मजदूर हो सकता है। अच्छी अर्थव्यवस्था वाले जगहों में किसान ही खेत का मालिक होता है और उसमें काम करने वाले उसके कर्मचारी या मजदूर होते हैं। हालांकि इससे पहले तक केवल वही किसान होता था, जो खेत में फसल उगाता था और पशुओं, मछलियों आदि की देखभाल कर उन्हें बढ़ाता था। .

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अनुग्रह नारायण सिंह

डा अनुग्रह नारायण सिंह एक भारतीय राजनेता और बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री (1946-1957) थे। अनुग्रह बाबू (1887-1957) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक तथा राजनीतिज्ञ रहे हैं।उन्होंने महात्मा गांधी एवं डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद के साथ चंपारण सत्याग्रह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। वे आधुनिक बिहार के निर्माताओं में से एक थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें बिहार विभूति के रूप में जाना जाता था। उनका सौभ्य, स्निग्ध, शीतल, परोपकारी, अहंकारहीन और दर्पोदीप्त शख़्सियत बिहार के जन गण मन पर अधिकार किए हुए था।वे देश के स्वाधीनता-संग्राम के महान नायकों में एक और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पद चिह्नों पर चलने वाले उनके प्रिय अनुयायी थे। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

चम्पारण आन्दोलन, चंपारण सत्याग्रह, चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह

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