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चंद्रवल्ली

सूची चंद्रवल्ली

चंद्रवल्ली कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में चित्रदुर्ग पहाड़ी के पश्चिम में स्थित है। यह दीर्घकाल से किंवंदंतियों का विषय एवं सातवाहन (आंध्र) मुद्राओं का स्रोत रहा है। पुरातत्ववेत्ताओं के उत्खनन से यहाँ दो सांस्कृतिक स्तर प्राप्त हुए हैं। प्रारंभिक स्तरों की संस्कृति मेगालिथ कब्रों की सभ्यता के निकट है। यह सभ्यता की प्रथम अवस्था है जिसमें सिक्के या चित्रित मृण्पात्र नहीं मिलते। उत्तर पाषाणकाल के प्रामाणिक अवशेषों का यहाँ अभाव है। इस संस्कृति के अंतिम दिनों में आंध्र सभ्यता के चिह्न मिलने लगते हैं। इसकी सूचना काँच की चूड़ियों, श्वेत या पीले रंग से चित्रित पात्रों एवं आंध्र सिक्कों से मिलती है। रोमन सम्राट् आगस्टस (28 ई.पू. - 14 ई.) और टाइबेरियस (14ई.-37ई.) के दीनार, यूनानी ऐंफोरा (amphora) एवं रुलेटेड (rouletted) मृद्भांड भी यहाँ मिले हैं, जिससे इनके भूमध्यसागरीय प्रदेशों से संबंध प्रमाणित होते हैं। स्पष्ट है, यह नगर आंध्र सभ्यता के प्रमुख केंद्रों एवं रोमन व्यापारिक क्षेत्र में विशिष्ट स्थान रखता रहा होगा। चंद्रवल्ली की कहान समीपवर्ती ब्रह्मगिरि की संस्कृति से पर्याप्त साम्य रखती है। श्रेणी:कर्नाटक के शहर.

4 संबंधों: चित्रदुर्ग, ब्रह्मगिरि, संस्कृति, कर्नाटक

चित्रदुर्ग

चित्रदुर्ग, भारत के कर्नाटक प्रदेश का एक नगर एवं जिला मुख्यालय है। इसे 'दुर्ग' नाम से भी जाना जाता है। यह कर्नाटक के दक्षिणी भाग से बहने वाली वेदवती नदी की घाटी में स्थित है। चित्रदुर्ग, कर्नाटक की राजधानोई बंगलुरु से २०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह कर्नाटक का सबसे छोटा नगर है। चित्रदुर्ग का विहंगम दृष्य .

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ब्रह्मगिरि

ब्रह्मगिरि वन्यजीव अभयारण्य के भीतर एक पर्वत-घाटी का दृष्य ब्रह्मगिरि वन्यजीव अभयारण्य, कर्नाटक के कोडगु जिले में स्थित अभयारण्य है जो पश्चिमी घाट का भाग है। यह 181 वर्ग किलोमीटर में फैला है और कुट्टा से माकुट्टा के बीच बना हुआ है। यह अभयारण्य केरल के अरलम वन्यजीव अभयारण्य के निकट है। ये जंगल गौर, भालू, हाथी, हिरन, चीते, जंगली बिल्ली, शेर जैसी पूंछ वाला बंदर और नीलगिरी लंगूर का घर है। ब्रह्मगिरि अभरारण्य विभिन्न प्रकार के पक्षी देखने के लिए भी उचित जगह है। इस अभयारण्य में आने का सही समय अक्टूबर से मई है। यहाँ आने से पहले अनुमति लेना आवश्यक है। .

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संस्कृति

संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है, जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनायी गयी पद्धतियों का परिणाम होता है। ‘संस्कृति’ शब्द संस्कृत भाषा की धातु ‘कृ’ (करना) से बना है। इस धातु से तीन शब्द बनते हैं ‘प्रकृति’ (मूल स्थिति), ‘संस्कृति’ (परिष्कृत स्थिति) और ‘विकृति’ (अवनति स्थिति)। जब ‘प्रकृत’ या कच्चा माल परिष्कृत किया जाता है तो यह संस्कृत हो जाता है और जब यह बिगड़ जाता है तो ‘विकृत’ हो जाता है। अंग्रेजी में संस्कृति के लिये 'कल्चर' शब्द प्रयोग किया जाता है जो लैटिन भाषा के ‘कल्ट या कल्टस’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है जोतना, विकसित करना या परिष्कृत करना और पूजा करना। संक्षेप में, किसी वस्तु को यहाँ तक संस्कारित और परिष्कृत करना कि इसका अंतिम उत्पाद हमारी प्रशंसा और सम्मान प्राप्त कर सके। यह ठीक उसी तरह है जैसे संस्कृत भाषा का शब्द ‘संस्कृति’। संस्कृति का शब्दार्थ है - उत्तम या सुधरी हुई स्थिति। मनुष्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। यह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है। ऐसी प्रत्येक जीवन-पद्धति, रीति-रिवाज रहन-सहन आचार-विचार नवीन अनुसन्धान और आविष्कार, जिससे मनुष्य पशुओं और जंगलियों के दर्जे से ऊँचा उठता है तथा सभ्य बनता है, सभ्यता और संस्कृति का अंग है। सभ्यता (Civilization) से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति (Culture) से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है। मनुष्य केवल भौतिक परिस्थितियों में सुधार करके ही सन्तुष्ट नहीं हो जाता। वह भोजन से ही नहीं जीता, शरीर के साथ मन और आत्मा भी है। भौतिक उन्नति से शरीर की भूख मिट सकती है, किन्तु इसके बावजूद मन और आत्मा तो अतृप्त ही बने रहते हैं। इन्हें सन्तुष्ट करने के लिए मनुष्य अपना जो विकास और उन्नति करता है, उसे संस्कृति कहते हैं। मनुष्य की जिज्ञासा का परिणाम धर्म और दर्शन होते हैं। सौन्दर्य की खोज करते हुए वह संगीत, साहित्य, मूर्ति, चित्र और वास्तु आदि अनेक कलाओं को उन्नत करता है। सुखपूर्वक निवास के लिए सामाजिक और राजनीतिक संघटनों का निर्माण करता है। इस प्रकार मानसिक क्षेत्र में उन्नति की सूचक उसकी प्रत्येक सम्यक् कृति संस्कृति का अंग बनती है। इनमें प्रधान रूप से धर्म, दर्शन, सभी ज्ञान-विज्ञानों और कलाओं, सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं और प्रथाओं का समावेश होता है। .

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कर्नाटक

कर्नाटक, जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का गठन १ नवंबर, १९५६ को राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अधीन किया गया था। पहले यह मैसूर राज्य कहलाता था। १९७३ में पुनर्नामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया। इसकी सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। इसका कुल क्षेत्रफल ७४,१२२ वर्ग मील (१,९१,९७६ कि॰मी॰²) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५.८३% है। २९ जिलों के साथ यह राज्य आठवां सबसे बड़ा राज्य है। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है कन्नड़। कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई व्याख्याओं में से सर्वाधिक स्वीकृत व्याख्या यह है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात काली या ऊंची और नाडु अर्थात भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयालुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्कन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिये कार्नेटिक शब्द का प्रयोग किया जाता था, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिये प्रयुक्त है और मूलतः कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है। प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन साम्राज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक ज्ञानपीठ सम्मान मिले हैं। राज्य की राजधानी बंगलुरु शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है। .

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