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चंद्रवंशी समाज

सूची चंद्रवंशी समाज

चंद्रवंशी समाज भारतवर्ष के प्राचीनतम क्षत्रिय समाजों में से एक है। वर्तमान समय में कर्म संबोधन यह कहार जाति के रूप में जानी जाती है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है। .

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चन्द्रदेव

महाभारत के पश्चात के कुरु वंश के राजा।.

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चन्द्रवंशी

चंद्रवंश एक प्रमुख प्राचीन भारतीय क्षत्रियकुल। आनुश्रुतिक साहित्य से ज्ञात होता है। कि आर्यों के प्रथम शासक (राजा) वैवस्वत मनु हुए। उनके नौ पुत्रों से सूर्यवंशी क्षत्रियों का प्रारंभ हुआ। मनु की एक कन्या भी थी - इला। उसका विवाह बुध से हुआ जो चंद्रमा का पुत्र था। उनसे पुरुरवस्‌ की उत्पत्ति हुई, जो ऐल कहलाया और चंद्रवंशियों का प्रथम शासक हुआ। उसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी, जहाँ आज प्रयाग के निकट झूँसी बसी है। पुरुरवा के छ: पुत्रों में आयु और अमावसु अत्यंत प्रसिद्ध हुए। आयु प्रतिष्ठान का शासक हुआ और अमावसु ने कान्यकुब्ज में एक नए राजवंश की स्थापना की। कान्यकुब्ज के राजाओं में जह्वु प्रसिद्ध हुए जिनके नाम पर गंगा का नाम जाह्नवी पड़ा। आगे चलकर विश्वरथ अथवा विश्वामित्र भी प्रसिद्ध हुए, जो पौरोहित्य प्रतियोगिता में कोसल के पुरोहित वसिष्ठ के संघर्ष में आए।ततपश्चात वे तपस्वी हो गए तथा उन्होंने ब्रह्मर्षि की उपाधि प्राप्त की। आयु के बाद उसका जेठा पुत्र नहुष प्रतिष्ठान का शासक हुआ। उसके छोटे भाई क्षत्रवृद्ध ने काशी में एक राज्य की स्थापना की। नहुष के छह पुत्रों में यति और ययाति सर्वमुख्य हुए। यति संन्यासी हो गया और ययाति को राजगद्दी मिली। ययाति शक्तिशाली और विजेता सम्राट् हुआ तथा अनेक आनुश्रुतिक कथाओं का नायक भी। उसके पाँच पुत्र हुए - यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु, अनु और पुरु। इन पाँचों ने अपने अपने वंश चलाए और उनके वंशजों ने दूर दूर तक विजय कीं। आगे चलकर ये ही वंश यादव, तुर्वसु, द्रुह्यु, आनव और पौरव कहलाए। ऋग्वेद में इन्हीं को पंचकृष्टय: कहा गया है। यादवों की एक शाखा हैहय नाम से प्रसिद्ध हुई और दक्षिणापथ में नर्मदा के किनारे जा बसी। माहिष्मती हैहयों की राजधानी थी और कार्तवीर्य अर्जुन उनका सर्वशक्तिमान्‌ और विजेता राजा हुआ। तुर्वसुके वंशजों ने पहले तो दक्षिण पूर्व के प्रदेशों को अधीनस्थ किया, परंतु बाद में वे पश्चिमोत्तर चले गए। द्रुह्युओं ने सिंध के किनारों पर कब्जा कर लिया और उनके राजा गांधार के नाम पर प्रदेश का नाम गांधार पड़ा। आनवों की एक शाखा पूर्वी पंजाब और दूसरी पूर्वी बिहार में बसी। पंजाब के आनव कुल में उशीनर और शिवि नामक प्रसिद्ध राजा हुए। पौरवों ने मध्यदेश में अनेक राज्य स्थापित किए और गंगा-यमुना-दोआब पर शासन करनेवाला दुष्यंत नामक राजा उनमें मुख्य हुआ। शकुंतला से उसे भरत नामक मेधावी पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने दिग्विजय द्वारा एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की और संभवत: देश को भारतवर्ष नाम दिया। चंद्रवंशियों की मूल राजधानी प्रतिष्ठान में, ययाति ने अपने छोटे लड़के पुरु को उसके व्यवहार से प्रसन्न होकर - कहा जाता है कि उसने अपने पिता की आज्ञा से उसके सुखोपभोग के लिये अपनी युवावस्था दे दी और उसका बुढ़ापा ले लिया - राज्य दे दिया। फिर अयोध्या के ऐक्ष्वाकुओं के दबाव के कारण प्रतिष्ठान के चंद्रवंशियों ने अपना राज्य खो दिया। परंतु रामचंद्र के युग के बाद पुन: उनके उत्कर्ष की बारी आई और एक बार फिर यादवों और पौरवों ने अपने पुराने गौरव के अनुरूप आगे बढ़ना शुरू कर दिया। मथुरा से द्वारका तक यदुकुल फैल गए और अंधक, वृष्णि, कुकुर और भोज उनमें मुख्य हुए। कृष्ण उनके सर्वप्रमुख प्रतिनिधि थे। बरार और उसके दक्षिण में भी उनकी शाखाएँ फैल गई। पांचाल में पौरवों का राजा सुदास अत्यंत प्रसिद्ध हुआ। उसकी बढ़ती हुई शक्ति से सशंक होकर पश्चिमोत्तर भारत के दस राजाओं ने एक संघ बनाया और परुष्णी (रावी) के किनारे उनका सुदास से युद्ध हुआ, जिसे दाशराज्ञ युद्ध कहते हैं और जो ऋग्वेद की प्रमुख कथाओं में एक का विषय है। किंतु विजय सुदास की ही हुई। थोड़े ही दिनों बाद पौरव वंश के ही राजा संवरण और उसके पुत्र कुरु का युग आया। कुरु के ही नाम से कुरु वंश प्रसिद्ध हुआ, उस के वंशज कौरव कहलाए और आगे चलकर दिल्ली के पास इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर उनके दो प्रसिद्ध नगर हुए। कौरवों और पांडवों का विख्यात महाभारत युद्ध भारतीय इतिहास की विनाशकारी घटना सिद्ध हुआ। सारे भारतवर्ष के राजाओं ने उसमें भाग लिया। पांडवों की विजय तो हुई, परंतु वह नि:सार विजय थी। उस युद्ध का समय प्राय: 1400 ई.पू.

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चंद्रवंशी समाज

चंद्रवंशी समाज भारतवर्ष के प्राचीनतम क्षत्रिय समाजों में से एक है। वर्तमान समय में कर्म संबोधन यह कहार जाति के रूप में जानी जाती है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है। .

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झूसी

झूसी इलाहाबाद जिले में एक कस्बा और नगर पंचायत हैं। इसे पूर्व में अंधेरनगरी और प्रतिष्ठानपुर या पुरी नामक नाम दिया गया था। यह स्थान निओलिथिक साइट में से एक होने के लिए भी जाना जाता है, जो कि दक्षिण एशिया में खेती के शुरुआती प्रमाणों में से एक है। कुमाऊँ में चन्द राजवंश के संस्थापक, सोम चन्द, झूसी के मूल निवासी थे। .

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डोली अरमानों की

डोली अरमानों की डोली अरमानों की एक भारतीय धारावाहिक है, जो ज़ी टीवी पर 2 दिसम्बर 2013 से चल रहा है। यह धारावाहिक सोमवार से शुक्रवार तक देता है। इसमें मुख्य किरदार में मोहित मलिक और नेहा मर्दा हैं। .

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पाण्डव

पाण्डव महाभारत के मुख्य पात्र हैं। पाण्डव पाँच भाई थे - युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव। .

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पुराण

पुराण, हिंदुओं के धर्म संबंधी आख्यान ग्रंथ हैं। जिनमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वृत्तात आदि हैं। ये वैदिक काल के बहुत्का बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं। भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण किया गया है। 'पुराण' का शाब्दिक अर्थ है, 'प्राचीन' या 'पुराना'।Merriam-Webster's Encyclopedia of Literature (1995 Edition), Article on Puranas,, page 915 पुराणों की रचना मुख्यतः संस्कृत में हुई है किन्तु कुछ पुराण क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचे गए हैं।Gregory Bailey (2003), The Study of Hinduism (Editor: Arvind Sharma), The University of South Carolina Press,, page 139 हिन्दू और जैन दोनों ही धर्मों के वाङ्मय में पुराण मिलते हैं। John Cort (1993), Purana Perennis: Reciprocity and Transformation in Hindu and Jaina Texts (Editor: Wendy Doniger), State University of New York Press,, pages 185-204 पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएं, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है। विभिन्न पुराणों की विषय-वस्तु में बहुत अधिक असमानता है। इतना ही नहीं, एक ही पुराण के कई-कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं जो परस्पर भिन्न-भिन्न हैं। हिन्दू पुराणों के रचनाकार अज्ञात हैं और ऐसा लगता है कि कई रचनाकारों ने कई शताब्दियों में इनकी रचना की है। इसके विपरीत जैन पुराण जैन पुराणों का रचनाकाल और रचनाकारों के नाम बताए जा सकते हैं। कर्मकांड (वेद) से ज्ञान (उपनिषद्) की ओर आते हुए भारतीय मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ। पुराणों में वैदिक काल से चले आते हुए सृष्टि आदि संबंधी विचारों, प्राचीन राजाओं और ऋषियों के परंपरागत वृत्तांतों तथा कहानियों आदि के संग्रह के साथ साथ कल्पित कथाओं की विचित्रता और रोचक वर्णनों द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलते हैं। पुराण उस प्रकार प्रमाण ग्रंथ नहीं हैं जिस प्रकार श्रुति, स्मृति आदि हैं। पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य और भागवत में ऐतिहासिक वृत्त— राजाओं की वंशावली आदि के रूप में बहुत कुछ मिलते हैं। ये वंशावलियाँ यद्यपि बहुत संक्षिप्त हैं और इनमें परस्पर कहीं कहीं विरोध भी हैं पर हैं बडे़ काम की। पुराणों की ओर ऐतिहासिकों ने इधर विशेष रूप से ध्यान दिया है और वे इन वंशावलियों की छानबीन में लगे हैं। .

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बुंदेलखंड के शासक

' बुंदेलखंड के ज्ञात इतिहास के अनुसार यहां ३०० ई. प सौरभ तिवारी ब्राह्मण सासक मौर्य शासनकाल के साक्ष्‍य उपलब्‍ध है। इसके पश्‍चात वाकाटक और गुप्‍त शासनकाल, कलचुरी शासनकाल, चंदेल शासनकाल, खंगार1खंगार शासनकाल, बुंदेल शासनकाल (जिनमें ओरछा के बुंदेल भी शामिल थे), मराठा शासनकाल और अंग्रेजों के शासनकाल का उल्‍लेख मिलता है। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भोई

भोई क्षत्रिय, भोई राजपूत, भोई आदिवासी भोई भारत की एक प्राचीन जाति है। यह एक आखेटक आदिवासी जाति है जिसका उल्लेख महाभारत और रामायणजैसे भारत के प्राचीनतम महाकाव्यों में मिलता है। भोई समाज शैव धर्म के अंग है। वर्णाश्रम व्यवस्था में वे निषाद अवर्ग रहे हैं। ये मूल रूप से आदिवासी हैं। उड़ीसा में भोई राजवंश के उल्लेख इतिहास में उल्लेखित हैं। से जल जंगल और ज़मीन पर आश्रित होकर अपना जीवन यापन प्राकृतिक संसाधनों की सहायता से करते चले आ रहे हैं। महाभारत के भिष्म पितामह की दुसरी माता सत्यवती एक धीवर(निषाद)पुत्री थी,जरासन्ध भी चंद्रवंशी क्षत्रिय कहार चन्देल राजपूत, व एकलव्य निषाद था...मगर कर्म संबोधन कहार जाति के उपजाति वंश की शाखा के ही भाग है बैसे कर्म संबोधन कहार जाति चंद्रवंशी समाज (रवानी) के लोग स्वयं को कश्यप नाम के एक अति प्राचीन हिन्दू ऋषि के गोत्र से उत्पन्न हुआ बतलाते हैं। इस कारण वे अपने नाम के आगे जातिसूचक शब्द कश्यप लगाने में गर्व अनुभव करते हैं।बैसे महाभारत के भिष्म पितामह की दुसरी माता सत्यवती एक धीवर(निषाद)पुत्री थी,मगध साम्राट बहुबली जरासंध महराज भी चंद्रवंशी क्षत्रिय ही थे!बिहार,झारखंड,पं.बंगाल,आसाम में इस समाज को चंद्रवंशी क्षत्रिय समाज कहते है!रवानी या रमानी चंद्रवंसी समाज या कहार जाति की उपजाति या शाखा है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है।और रामायण मे प्रभु श्रीरामचंद्र और केवट के संवाद का वर्णन है इस बात से यह साबित होता हे की भोई एक आदिम जाती है .

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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महाभारत भाग १

कोई विवरण नहीं।

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महाभारत का रचना काल

सुत जी द्वारा महाभारत ऋषि मुनियो को सुनाना। वेदव्यास जी को महाभारत को पूरा रचने में ३ वर्ष लग गये थे, इसका कारण यह हो सकता है कि उस समय लेखन लिपी कला का इतना विकास नही हुआ था, संस्कृत ऋषियो की भाषा थी और ब्राह्मी आम बोल चाल की भाषा हुआ करती थी। यह सर्वमान्य है कि महाभारत का आधुनिक रूप कई अवस्थाओ से गुजर कर बना है, इसकी रचना की चार प्रारम्भिक अवस्थाए पहचानी गयी है- .

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महाभारत के पात्र

* विदुर: हस्तिनापुर का महामंत्री।.

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मगध महाजनपद

मगध प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। आधुनिक पटना तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे। इसकी राजधानी गिरिव्रज (वर्तमान राजगीर) थी। भगवान बुद्ध के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे। अभी इस नाम से बिहार में एक प्रंमडल है - मगध प्रमंडल। (२) सुमसुमार पर्वत के भाग, (३) केसपुत्र के कालाम, (४) रामग्राम के कोलिय, (५) कुशीमारा के मल्ल, (६) पावा के मल्ल, (७) पिप्पलिवन के मौर्य, (८) आयकल्प के बुलि, (९) वैशाली के लिच्छवि, (१०) मिथिला के विदेह। -- .

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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मेहरा नागरगंज गाँव, आगरा प्रखंड (आगरा)

मेहरा नागरगंज आगरा प्रखंड, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। श्रेणी:आगरा जिले के गाँव.

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राज्य

विश्व के वर्तमान राज्य (विश्व राजनीतिक) पूँजीवादी राज्य व्यवस्था का पिरामिड राज्य उस संगठित इकाई को कहते हैं जो एक शासन (सरकार) के अधीन हो। राज्य संप्रभुतासम्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा किसी शासकीय इकाई या उसके किसी प्रभाग को भी 'राज्य' कहते हैं, जैसे भारत के प्रदेशों को भी 'राज्य' कहते हैं। राज्य आधुनिक विश्व की अनिवार्य सच्चाई है। दुनिया के अधिकांश लोग किसी-न-किसी राज्य के नागरिक हैं। जो लोग किसी राज्य के नागरिक नहीं हैं, उनके लिए वर्तमान विश्व व्यवस्था में अपना अस्तित्व बचाये रखना काफ़ी कठिन है। वास्तव में, 'राज्य' शब्द का उपयोग तीन अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है। पहला, इसे एक ऐतिहासिक सत्ता माना जा सकता है; दूसरा इसे एक दार्शनिक विचार अर्थात् मानवीय समाज के स्थाई रूप के तौर पर देखा जा सकता है; और तीसरा, इसे एक आधुनिक परिघटना के रूप में देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि इन सभी अर्थों का एक-दूसरे से टकराव ही हो। असल में, इनके बीच का अंतर सावधानी से समझने की आवश्यकता है। वैचारिक स्तर पर राज्य को मार्क्सवाद, नारीवाद और अराजकतावाद आदि से चुनौती मिली है। लेकिन अभी राज्य से परे किसी अन्य मज़बूत इकाई की खोज नहीं हो पायी है। राज्य अभी भी प्रासंगिक है और दिनों-दिन मज़बूत होता जा रहा है। यूरोपीय चिंतन में राज्य के चार अंग बताये जाते हैं - निश्चित भूभाग, जनसँख्या, सरकार और संप्रभुता। भारतीय राजनीतिक चिन्तन में 'राज्य' के सात अंग गिनाये जाते हैं- राजा या स्वामी, मंत्री या अमात्य, सुहृद, देश, कोष, दुर्ग और सेना। (राज्य की भारतीय अवधारण देखें।) कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताये हैं और ये उनका "सप्तांग सिद्धांत " कहलाता है - राजा, आमात्य या मंत्री, पुर या दुर्ग, कोष, दण्ड, मित्र । .

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रवानी

रवानी या रमानी चंद्रवंसी समाज या कहार जाति की उपजाति या शाखा है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है। .

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समाज

समाज एक से अधिक लोगों के समुदाय को कहते हैं जिसमें सभी व्यक्ति मानवीय क्रियाकलाप करते है। मानवीय क्रियाकलाप में आचरण, सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि की क्रियाएं सम्मिलित होती है। समाज लोगों का ऐसा समूह होता है जो अपने अंदर के लोगों के मुकाबले अन्य समूहों से काफी कम मेलजोल रखता है। किसी समाज के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति एक दूसरे के प्रति परस्पर स्नेह तथा सहृदयता का भाव रखते हैं। दुनिया के सभी समाज अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए अलग-अलग रस्मों-रिवाज़ों का पालन करते हैं। .

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साम्राज्य

राज्य जहां कई जातियां रहती हैं, जो क्षेत्र में विशाल है और जहां सम्राट के पास समस्त अधिकार हैं, साम्राज्य कहलाता है। यह एक राजनैतिक क्षेत्र है जो किसी एक राजा (जैसे मुग़ल साम्राज्य) अथवा कुछ मुख्य-पतियों (जैसे मराठा साम्राज्य) द्वारा साझेदारी में संभाला जाता है। साम्राज्य छोटे समय के अंतराल में भी हो सकता है परन्तु अधिकाँश वह पीढ़ी दर पीढ़ी कई दशकों या सदियों तक चलता है। भारत का सबसे बडा साम्राज्य सम्राट अशोक का मौर्य साम्राज्य था, जिसकी सिमा 50,00,000 वर्ग किमी में श्रेत्र था। इसे देखिए – भारत में सबसे बडे साम्राज्यों की सूची .

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साम्राज्य का वैभव

कोई विवरण नहीं।

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सुरक्षा

सुरक्षा (security) हानि से बचाव करने की क्रिया और व्यवस्था को कहते हैं। यह व्यक्ति, स्थान, वस्तु, निर्माण, निवास, देश, संगठन या ऐसी किसी भी अन्य चीज़ के सन्दर्भ में प्रयोग हो सकती है जिसे नुकसान पहुँचाया जा सकता हो। .

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जरासन्ध

A painting from the Mahabharata Balabhadra fighting Jarasandha जरासंध महाभारत कालीन मगध राज्य का नरेश था। वह बहुत ही शक्तिशाली राजा था और उसका सपना चक्रवती सम्राट बनने का था। यद्यपि वह एक शक्तिशाली राजा तो था, लेकिन वह था बहुत क्रूर। अजेय हो क अपना सपना पूरा करने के लिए उसने बहुत से राजाओं को अपने कारागार में बंदी बनाकर रखा था। वह मथुरा के यदुवँशी नरेश कंस का ससुर एवं परम मित्र था उसकी दोनो पुत्रियो आसित एव्म प्रापित का विवाह कंस से हुआ था। श्रीकृष्ण से कंस वध का प्रतिशोध लेने के लिए उसने १७ बार मथुरा पर चढ़ाई की लेकिन हर बार उसे असफल होना पड़ा। जरासंध श्री कृष्ण का परम शत्रु और एक योद्धा था। .

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जाति

भारतीय समाज जातीय सामाजिक इकाइयों से गठित और विभक्त है। श्रमविभाजनगत आनुवंशिक समूह भारतीय ग्राम की कृषिकेंद्रित व्यवस्था की विशेषता रही है। यहाँ की सामाजिक व्यवस्था में श्रमविभाजन संबंधी विशेषीकरण जीवन के सभी अंगों में अनुस्यूत है और आर्थिक कार्यों का ताना बाना इन्हीं आनुवंशिक समूहों से बनता है। यह जातीय समूह एक ओर तो अपने आंतरिक संगठन से संचालित तथा नियमित है और दूसरी ओर उत्पादन सेवाओं के आदान प्रदान और वस्तुओं के विनिमय द्वारा परस्पर संबद्ध हैं। समान पंमरागत पेशा या पेशे, समान धार्मिक विश्वास, प्रतीक सामाजिक और धार्मिक प्रथाएँ एवं व्यवहार, खानपान के नियम, जातीय अनुशासन और सजातीय विवाह इन जातीय समूहों की आंतरिक एकता को स्थिर तथा दृढ़ करते हैं। इसके अतिरिक्त पूरे समाज की दृष्टि में प्रत्येक जाति का सोपानवत्‌ सामाजिक संगठन में एक विशिष्ट स्थान तथा मर्यादा है जो इस सर्वमान्य धार्मिक विश्वास से पुष्ट है कि प्रत्येक मनुष्य की जाति तथा जातिगत धंधे दैवी विधान से निर्दिष्ट हैं और व्यापक सृष्टि के अन्य नियमों की भाँति प्रकृत तथा अटल हैं एक गाँव में स्थित परिवारों का ऐसा समूह वास्तव में अपनी बड़ी जातीय इकाई का अंग होता है जिसका संगठन तथा क्रियात्मक संबंधों की दृष्टि से एक सीमित क्षेत्र होता है, जिसकी परिधि सामान्यत: 20-25 मील होती है। उस क्षेत्र में जातिविशेष की एक विशिष्ट आर्थिक तथा सामाजिक मर्यादा होती है जो उसके सदस्यों को, जो जन्मना होते हैं, परंपरा से प्राप्त होती है। यह जातीय मर्यादा जीवन पर्यंत बनी रहती है और जातीय धंधा छोड़कर दूसरा धंधा अपनाने से तथा आमदनी के उतार चढ़ाव से उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह मर्यादा जातीय-पेशा, आर्थिक स्थिति, धार्मिक संस्कार, सांस्कृतिक परिष्कार और राजनीतिक सत्ता से निर्धारित होती है और निर्धारकों में परिवर्तन आने से इसमें परिवर्तन भी संभव है। किंतु एक जाति स्वयं अनेक उपजातियों तथा समूहों में विभक्त रहती है। इस विभाजन का आधार बहुधा एक ही पेशे के अंदर विशेषीकरण के भेद प्रभेद होते हैं। किंतु भौगोलिक स्थानांतरण ने भी एक ही परंपरागत धंधा करनेवाली एकाधिक जातियों को साथ साथ रहने का अवसर दिया है। कभी कभी जब किसी जाति का एक अंग अपने परंपरागत पेशे के स्थान पर दूसरा पेशा अपना लेता है तो कालक्रम में वह एक पृथक्‌ जाति बन जाता है। उच्च हिंदू जातियों में गोत्रीय विभाजन भी विद्यमान हैं। गोत्रों की उपायोगिता मात्र इतनी ही है कि वे किसी जाति के बहिविवाही समूह बनाते हैं। और एक गोत्र के व्यक्ति एक ही पूर्वज के वंशज समझे जाते हैं। यह उपजातियाँ भी अपने में स्वतंत्र तथा पृथक्‌ अंतविवाही इकाइयाँ होती हैं और कभी कभी तो बृहत्तर जाति से उनका संबंध नाम मात्र का होता है (दे. गोत्रीय तथा अन्यगोत्रीय)। इन उपजातियों में भी ऊँच नीच का एक मर्यादाक्रम रहता है। उपजातियाँ भी अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है और इनमें भी उच्चता तथा निम्नता का एक क्रम होता है जो विशेष रूप से विवाह संबंधों में व्यक्त होता है। विवाह में ऊँची पंक्तिवाले नीची पंक्तिवालों की लड़की ले सकते हैं किंतु अपनी लड़की उन्हें नहीं देते। .

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जाति प्रथा का विनाश

जाति प्रथा का विनाश (अंग्रेजी: Annihilation of Caste) डॉ॰ भीमराव आंबेडकर द्वारा लिखे गये श्रेष्ठतम एवं प्रसिद्ध ग्रन्थों में एक है। इसका प्रकाशन वर्ष 1936 में हुआ। इसमें तत्कालीन जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया एवं उस समय के धार्मिक नेताओं का भी विरोध किया गया। यह एक ऐसा भाषण है जिसको सार्वजनिक रूप से पढ़ने का मौका उन्हें नहीं मिला। भाषण लाहौर के जात पात तोड़क मंडल की और से उनकी वार्षिक कान्फ्रेंस में उनको मुख्य भाषण करने के लिए न्यौता मिलने के बाद लिखा गया था। जब डाक्टर साहब ने अपने प्रस्तावित भाषण को लिखकर भेजा तो ब्राह्मणों के प्रभुत्व वाले जात-पात तोड़क मंडल के कर्ताधर्ता, काफी बहस के बाद भी यह भाषण सुनने कौ तैयार नहीं हुए। शर्त लगा दी कि भाषण में आयोजकों की मर्जी के हिसाब से बदलाव किया जाए। अाम्बेडकर ने भाषण बदलने से मना कर दिया और उस सामग्री को पुस्तक के रूप में मई 1936 को खुद छपवा दिया। .

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जातिवाद

जातिवाद दो प्रजातियों में मतभेद के होने की वज़ह से होने वाला विवाद है। भारत में जातिवाद का आरम्भ लगभग ६ठीं शताब्दी से प्रारंभ हुआ। .

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जातिवादी भारत

उच्च जाति के हिंदू बच्चों .

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वंश

Tutankhamun was a member of the Eighteenth dynasty of Egypt. किसी एक ही परिवार से एक के बाद एक शासन करने वाले व्यक्तियों को वंश (dynasty) कहते हैं। .

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खेरवार आंदोलन

खेरवार आंदोलन भारतीय राज्य झारखण्ड में भागीरथ मांझी के नेतृत्व में १९६८ में आरम्भ हुआ आंदोलन था। इसे साफा-हार आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। श्रेणी:झारखंड का इतिहास.

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आदि-द्रविड़ भाषा

आदि-द्रविड़ भाषा (अंग्रेज़ी: Proto-Dravidian language, प्रोटो-ड्रविडियन) द्रविड़ियन भाषाओं का आदी रूप था। .

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इतिहास

बोधिसत्व पद्मपनी, अजंता, भारत। इतिहास(History) का प्रयोग विशेषत: दो अर्थों में किया जाता है। एक है प्राचीन अथवा विगत काल की घटनाएँ और दूसरा उन घटनाओं के विषय में धारणा। इतिहास शब्द (इति + ह + आस; अस् धातु, लिट् लकार अन्य पुरुष तथा एक वचन) का तात्पर्य है "यह निश्चय था"। ग्रीस के लोग इतिहास के लिए "हिस्तरी" (history) शब्द का प्रयोग करते थे। "हिस्तरी" का शाब्दिक अर्थ "बुनना" था। अनुमान होता है कि ज्ञात घटनाओं को व्यवस्थित ढंग से बुनकर ऐसा चित्र उपस्थित करने की कोशिश की जाती थी जो सार्थक और सुसंबद्ध हो। इस प्रकार इतिहास शब्द का अर्थ है - परंपरा से प्राप्त उपाख्यान समूह (जैसे कि लोक कथाएँ), वीरगाथा (जैसे कि महाभारत) या ऐतिहासिक साक्ष्य। इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है। दूसरे शब्दों में मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है। या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है।Whitney, W. D. (1889).

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इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। इलाहाबाद भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। इलाहाबाद में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। .

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कर्मकांड

हिन्दुओं में विभिन्न अवसरों पर की जाने वाली पारम्परिक पूजा-ऋचा का क्रियात्मक रूप कर्मकांड कहलाता है। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने एक पुस्तक में जहाँ कर्मकांडों का महत्व और औचित्य प्रतिपादित किया है वहीं वृन्दवानस्थ पंडित विजय प्रकाश शास्त्री जैसे कुछ विद्वानों के अनुसार वेद में कर्मकांड, उपासनाकांड और ज्ञानकांड - इन तीनों का वर्णन मिलता है। वेद के कुल एक लाख मंत्र हैं- चार हजार ज्ञान कांड के, सोलह हजार उपासना कांड के और सबसे ज्यादा अस्सी हजार कर्मकांड के हैं। इसलिए कर्मकांड को प्रधान स्थान प्राप्त है। इस प्रकार वेद के तीन भाग हैं। ‘‘तीन कांड एकत्व शान - वेद। वेद के कर्मकांड भाग में यज्ञादि विविध अनुष्ठानों का विशेष रूप से वर्णन मिलता है अतः यज्ञ कर्मकांड ही वेदों का मुख्य विषय है। वेदों का मुख्य विषय होने के कारण कर्मकांड में मंत्रों का प्रयोग (उच्चारण) किया जाता है। वेद मंत्रों के बिना कर्मकांड नहीं हो सकता और कर्मकांड के बिना मंत्रों का ठीक-ठीक सदुपयोग नहीं हो सकता। अतः स्पष्ट है कि वेद हैं तो कर्मकांड है और कर्मकांड है तो वेद हैं। विष्णु धर्मोत्तर पुराण (2/04) में वर्णन आता है वेदास्तु यज्ञार्थ मभिप्रवृत्ताः। इस वचन से तथा भगवान मनु के दुदोह यज्ञ सिद्धयमि 1/23 इस वाक्य से स्पष्ट सिद्ध है कि वेदों का प्रादुर्भाव कर्मकांड, यज्ञ, अनुष्ठान के लिए हुआ है। जिस प्रकार वेद दुरूह हैं उसी प्रकार वेदांग भूत कर्मकांड भी अत्यंत दुरूह है। जिस प्रकार वेद में उपास्य देवता हैं उसी प्रकार कर्मकांड में भी उपास्य देवता हैं। जिस प्रकार वेद उपास्य वेद किसी पुरूष के द्वारा न बनाया हुआ। नित्य और अनादि है- पराशर स्मृति में वर्णन आता है। नकश्चिद्वेद च वेदसमन्र्ता चतुर्मुखः। नकश्चिद्वेदकर्ता च वेद स्मर्ता चतुर्मुखः।। वेद को बनाने वाला कोई नहीं है। चतुर्मुख ब्रह्मा ने वेद का स्मरण किया। ठीक उसी प्रकार यज्ञ अनुष्ठान, कर्मकांड भी अपौरूषेय, नित्य और अनादि हैं। ऋग्वेद के प्रथम मंत्र ‘अग्निमीडे पुरोहितम’’ में यज्ञ (कर्मकांड) पद आया है अतः सिद्ध होता है कि वेद से भी प्राचीन कर्मकांड है। कर्मकांड वैदिक संस्कृति का प्रधान अंग है। कर्मकांड से ही समस्त मनुष्यों की कामनायें सिद्ध होती हैं। कर्मकांड, मनुष्यों की इच्छित कामना एवं कल्याण व लौकिक सुख-शांति तथा मन में संकल्पित अनेकानेक इच्छाओं को पूर्ण करता है। हमारे धर्माचार्यों ने मनुष्य के लिए जितने भी धर्म कहे हैं वे सभी कर्मकांड लक्षण से संयुक्त हैं| प्राचीन ऋषि महर्षियों ने शास्त्रों के अनुसार ही अपना जीवन यज्ञमय बनाया था। वे यज्ञ कर्मकांड द्वारा अपना और जगत का कल्याण किया करते थे। वस्तुतः कर्मकांड में अपूर्व शक्ति है। 'कर्मकांड से जो जिस वस्तु की प्राप्ति के लिए इच्छा करता है वह उसको वही वस्तु देता है।' ‘‘यो यदिच्छति तस्य तत्’’। (कठोपनिषद) 12/16 अतः स्पष्ट है कि संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो कर्मकांड के द्वारा प्राप्त न हो सके। कर्मकांड से केवल लौकिक, धनधान्य, संतति आदि वस्तुओं की ही नहीं अपितु पारलौकिक ‘मोक्ष’ आदि पदार्थों की भी प्राप्ति होती है। इस श्रेष्ठ कर्म के विधि-विधान भी अत्यंत कठिन हैं। कर्मकांड के तीन विशेष अंग है। 1.

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कश्यप

आंध्र प्रदेश में कश्यप प्रतिमा वामन अवतार, ऋषि कश्यप एवं अदिति के पुत्र, महाराज बलि के दरबार में। कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षि गणों में की जाती थी। हिन्दू मान्यता अनुसार इनके वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। .

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कहरवा

कहरवा एक भारतीय ताल है, जिसमें आठ मात्राएँ होती हैं जो ४-४ मात्राओं के दो विभागों में बँटी होती हैं। पहली मात्रा पर ताली और पाँचवी पर खाली होती है। इसका ठेका है: X २ ३ ४ | ० २ ३ ४ धा घे ना तिं | ना गा धिं ना.

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कहार

कहार (अंग्रेजी: Kahar) भारतवर्ष में हिन्दू धर्म को मानने वाली एक जाति है। यह जाति यहाँ हिन्दुओं के अतिरिक्त मुस्लिम व सिक्ख सम्प्रदाय में भी होती है। हिन्दू कहार जाति का इतिहास बहुत पुराना है जबकि मुस्लिम सिक्ख कहार बाद में बने। इस समुदाय के लोग बिहार, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही पाये जाते हैं! कहार स्वयं को कश्यप नाम के एक अति प्राचीन हिन्दू ऋषि के गोत्र से उत्पन्न हुआ बतलाते हैं। इस कारण वे अपने नाम के आगे जातिसूचक शब्द कश्यप लगाने में गर्व अनुभव करते हैं।बैसे महाभारत के भिष्म पितामह की दुसरी माता सत्यवती एक धीवर(निषाद)पुत्री थी,मगध साम्राट बहुबली जरासंध महराज भी चंद्रवंशी क्षत्रिय ही थे!बिहार,झारखंड,पं.बंगाल,आसाम में इस समाज को चंद्रवंशी क्षत्रिय समाज कहते है!रवानी या रमानी चंद्रवंसी समाज या कहार जाति की उपजाति या शाखा है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है। श्रेणी:जाति"कहर" शब्द को खंडित कर कहार शब्द बना है।,कहर का एक इतिहास रहा है।महाभारत काल मे जब भारत का क्षेत्र फल अखण्ड आर्यबर्त में हुआ करता था,उस समय डाकूओ का प्रचलन जोरो पर था,आज भी हमलोग देख सकते है,पर नाम बदलकर डाकू के जगह फ्रोड, जालसाज, घोटाले,छिनतई ने ले रखी है।,खैर उस समय डाकुओ द्वरा दुल्हन की डोली के साथ जेवरात लूटना एक आम बात थी,लोग भयभीत थे,अइसे में कहर टीम का गठन किया गया था,डोली लुटेरों के रक्षा हेतुं, दुल्हन की डोली के साथ कहर टीम जाती थी और उनकी रक्षा करते हुवे मंजिल तक पहुँचते थे, आप सब ध्यान दे तो शादी की कार्ड पर डोली के आगे और पीछे तलवार लिए कुछ लोग की चित्रांकन देखने को मिलेगा, समय बीतता गया और शब्दों में परिवर्तन होता गया,कहर से कहार बन गया, कहर टीम को जब डोली के साथ जाना ही था,रोजगार और आर्थिक जरुरतो के पूर्ण के लिए कुछ लोग डोली भी खुद ही उठाने का निर्णय लिए थे यही इतिहास रहा है। कहार को संस्कृत में 'स्कंधहार ' कहते हैं....जिसका तात्पर्य होता है,जो अपने कंधे पर भार ढोता है...अब आप 'डोली' (पालकी) उठाना भी कह सकते हो...जोकि ज्यातर हमारे पुर्वज राजघराने की बहु-बेटी को डोली पे बिठाकर एक स्थान से दुसरे स्थान सुरक्षा के साथ वीहर-जंगलो व डाकुओ व राजाघरानें के दुश्मनों से बचाकर ले जाते थे...कर्म संबोधन कहार जाति कमजोर नहीं है...ये लोग अपनी बाहु-बल पे नाज करता है...और खुद को बिहार,झारखंड,प.बंगाल,आसाम में चंद्रवंशी क्षत्रिय कहलाना पसंद करते है...ये समाज जरासंध के वंसज़ है...

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काल

काल .

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काश्यप संहिता

काश्यपसंहिता कौमारभृत्य का आर्ष व आद्य ग्रन्थ है। इसे 'वृद्धजीवकीयतन्त्र' भी कहा जाता है। महर्षि कश्यप ने कौमारभृत्य को आयुर्वेद के आठ अंगों में प्रथम स्थान दिया है। इसकी रचना ईसापूर्व ६ठी शताब्दी में हुई थी। मध्ययुग में इसका चीनी भाषा में अनुवाद हुआ। कश्यप संहिता आयुर्वेद की अत्यन्त प्राचीन संहिता है और सभी आयुर्वेदीय संहिता ग्रन्थों में प्राचीन है। यह संहिता नेपाल में खंडित रूप में मिली है। उनका समय ६०० ईसापूर्व माना गया है। वर्तमान में प्राप्त काश्यप संहिता अपने में पूर्ण है। महर्षि कश्यप द्वारा प्रोक्त इस विशाल आयुर्वेद का कालक्रम से प्रचार-प्रसार जब कम होने लगा तो ऋचिक मुनि के पचंवर्षीय पुत्र जीवक ने इस विशाल काश्यप संहिता को संक्षिप्त करके हरिद्वार के कनखल में समवेत विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत किया। उपस्थित विद्वानों ने उसे बालभाषित समझकर अस्वीकार कर दिया। तब बालक जीवक ने वहीं उनके सामने गंगा की धारा में डुबकी लगायी। कुछ देर के बाद गंगा की धारा से जीवक अतिवृद्ध के रूप में निकले। उन्हें वृद्ध रूप में देख, चकित विद्वानों ने उन्हें 'वृद्धजीवक' नाम से अभिहित किया और उनके द्वारा प्रतिपादित उस आयुर्वेद तन्त्र कों ‘वृद्धजीवकीय तन्त्र’ के रूप में मान्यता दी। .

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क्षत्रिय

क्षत्रिय (पाली रूप: क्खत्रिय), (बांग्ला रुप:ক্ষত্রিয়), क्षत्र, राजन्य - ये चारों शब्द सामान्यतः हिंदू समाज के द्वितीय वर्ण और जाति के अर्थ में व्यवहृत होते हैं किंतु विशिष्ठ एतिहासिक अथवा सामाजिक प्रसंग में पारिपाश्वों से संबंध होने के कारण इनके अपने विशेष अर्थ और ध्वनियाँ हैं। 'क्षेत्र' का अर्थ मूलतः 'वीर्य' अथवा 'परित्राण शक्ति' था। किंतु बाद में यह शब्द उस वर्ग को अभिहित करने लगा जो शास्त्रास्त्रों के द्वारा अन्य वर्णों का परिरक्षण करता था। वेदों तथा ब्राह्मणों में क्षत्रीय शब्द राजवर्ग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है जातकों और रामायण, महाभारत में क्षत्रीय शब्द से सामंत वर्ग और अनेक युद्धरत जन अभिहित हुए हैं। संस्कृत शब्द "क्षस दस्यों हो पूरा क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र नामक चार वर्गों में विभक्त था। स्मृतियों में कुछ युद्धपरक जनजातियाँ जैसे कि किरात, द्रविड़, आभीर, सबर, मालव, सिवी, त्रिगर्त, यौद्धेय, खस तथा तंगण आदि, व्रात्य क्षत्रीय वर्ग के अंतर्गत अनुसूचित की गई। पारंपरिक रूप से शासक व सैनिक क्षत्रिय वर्ग का हिस्सा होते थे, जिनका कार्य युद्ध काल में समाज की रक्षा हेतु युद्ध करना व शांति काल में सुशासन प्रदान करना था। पाली भाषा में "खत्रिय" क्षत्रिय शब्द का पर्याय है। वर्तमान समय में राजपूत और कुशवाहा जाति की गणना क्षत्रिय के रूप में की जाती है, जो सुर्यवंश के राजा श्रीरामचन्द्र के वंशज माने जाते हैं। .

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कृष्ण

बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

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