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गोरक्षा आन्दोलन

सूची गोरक्षा आन्दोलन

वर्ष १८८२ में स्वामी दयानन्द सरस्वती के गोरक्षिणी सभा की स्थापना के बाद भारत में गोरक्षा आंदोलन शुरू हुआ।अक्‍तूबर-नवम्बर १९६६ ई० में अखिल भारतीय स्तर पर गोरक्षा आन्दोलन चला। भारत साधु-समाज, आर्यसमाज, सनातन धर्म, जैन धर्म आदि सभी भारतीय धार्मिक समुदायों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। ७ नवम्बर १९६६ को संसद् पर हुये ऐतिहासिक प्रदर्शन में देशभर के लाखों लोगों ने भाग लिया। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने निहत्थे हिंदुओं पर गोलियाँ चलवा दी थी जिसमें अनेक गौ भक्तों का बलिदान हुआ था। इस आन्दोलन में चारों शंकराचार्य तथा स्वामी करपात्री जी भी जुटे थे। जैन मुनि सुशीलकुमार जी तथा सार्वदेशिक सभा के प्रधान लाला रामगोपाल शालवाले और हिन्दू महासभा के प्रधान प्रो॰ रामसिंह जी भी बहुत सक्रिय थे। श्री संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी तथा पुरी के जगद्‍गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी निरंजनदेव तीर्थ तथा महात्मा रामचन्द्र वीर के आमरण अनशन ने आन्दोलन में प्राण फूंक दिये थे किन्तु जनसंघ इसका प्रारम्भ से अपने राजनैतिक लाभ के लिये एक हथियार के रूप में प्रयोग कर रहा था। उसका उद्देश्य मात्र कांग्रेस सरकार के खिलाफ इस आन्दोलन के द्वारा असन्तोष फैलाकर राजनैतिक उल्लू सीधा करना था। इसलिये उसने प्रभुदत्त ब्रह्मचारी से पहले तो अनशन कराया और फिर जब आन्दोलन का उद्देश्य प्राप्‍त होने का समय आया तो उनका अनशन तुड़वा दिया। इसी प्रकार शंकराचार्य जी का अनशन समाप्‍त कराने के लिए स्वामी करपात्री जी को तैयार किया। वे वायुयान से उनके पास गये और अनशन खुलवा आये जबकि सरकार की ओर से गोरक्षा के संबन्ध में कोई आश्वासन तक भी नहीं मिल पाया था। जनसंघियों ने सन् १९६७ के आम चुनाव निकट देख, सरसंघ चालक गुरु गोलवरकर को बीच में डाल, यह सब खेल खेला। वहां तो जनता द्वारा किये कराये पर पानी फेरने के लिये पहले से ही दुरभिसन्धि हो चुकी थी। इसलिए सभी नेताओं को इकट्ठा कर बातचीत की गई। परन्तु जनसंघियों को चुनाव लड़ने की जल्दी थी। अतः उन्होंने जनता के साथ विश्वासघात कर समझौता कर सत्याग्रह बन्द कर दिया। साधु संन्यासी सादे होते ही हैं, वे इनके बहकावे में आ गये और अनेक लोगों का बलिदान व्यर्थ गया। मवेशी वध, विशेष रूप से गाय वध, भारत में एक विवादास्पद विषय है क्योंकि इस्लाम में कई लोगों द्वारा मांस के स्वीकार्य स्रोत के रूप में माना जाने वाला मवेशियों के विपरीत हिंदू धर्म, सिख धर्म, जैन धर्म में कई लोगों के लिए एक सम्मानित और सम्मानित जीवन के रूप में मवेशी की पारंपरिक स्थिति के रूप में, ईसाई धर्म के साथ-साथ भारतीय धर्मों के कुछ अनुयायियों। अधिक विशेष रूप से, हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण से जुड़े होने के कई कारणों से गाय की हत्या को छोड़ दिया गया है, मवेशियों को ग्रामीण आजीविका का एक अभिन्न हिस्सा और एक आवश्यक आर्थिक आवश्यकता के रूप में सम्मानित किया जा रहा है। अहिंसा (अहिंसा) के नैतिक सिद्धांत और पूरे जीवन की एकता में विश्वास के कारण विभिन्न भारतीय धर्मों द्वारा मवेशी वध का भी विरोध किया गया है। इसको रोकने के लिये भारत के विभिन्न राज्यों में कानून भी बनाये गये हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्यों को गायों और बछड़ों और अन्य दुश्मनों और मसौदे के मवेशियों की हत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया गया है। 26 अक्टूबर 2005 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में भारत में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अधिनियमित विरोधी गाय हत्या कानूनों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। भारत में 29 राज्यों में से 20 में वर्तमान में हत्या या बिक्री को प्रतिबंधित करने वाले विभिन्न नियम हैं गायों का केरल, पश्चिम बंगाल, गोवा, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा ऐसे राज्य हैं जहां गाय वध पर कोई प्रतिबंध नहीं है। भारत में मौजूदा मांस निर्यात नीति के अनुसार, गोमांस (गाय, बैल का मांस और बछड़ा) का निर्यात प्रतिबंधित है। मांस, शव, बफेलो के आधे शव में भी हड्डी निषिद्ध है और इसे निर्यात करने की अनुमति नहीं है। केवल भैंस के बेनालेस मांस, बकरी और भेड़ों और पक्षियों के मांस को निर्यात के लिए अनुमति है। .

18 संबंधों: दिलीप, पंचगव्य, भारतीय जनसंघ, महात्मा रामचन्द्र वीर, शंकराचार्य, सनातन धर्म, संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी आनन्दबोध, स्वामी करपात्री, जैन धर्म, गौ हत्या, गोमूत्र, गोवा, आर्य समाज, इन्दिरा गांधी, कांग्रेस, अखिल भारतीय हिन्दू महासभा

दिलीप

पूरु कुल के राजा।.

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पंचगव्य

गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का पानी को सामूहिक रूप से पंचगव्य कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे औषधि की मान्यता है। हिन्दुओं के कोई भी मांगलिक कार्य इनके बिना पूरे नहीं होते। .

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भारतीय जनसंघ

'''दीपक''' या '''दीया''' - भारतीय जनसंघ का चुनावचिह्न था। भारतीय जनसंघ के संस्थापक '''डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ भारत का एक पुराना राजनैतिक दल था जिससे १९८० में भारतीय जनता पार्टी बनी। इस दल का आरम्भ श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में की गयी थी। इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था। इसने 1952 के संसदीय चुनाव में २ सीटें प्राप्त की थी जिसमे डाक्टर मुखर्जी स्वयं भी शामिल थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल (1975-1976) के बाद जनसंघ सहित भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय कर के एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया गया। आपातकाल से पहले बिहार विधानसभा के भारतीय जनसंघ के विधायक दल के नेता लालमुनि चौबे ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में बिहार विधानसभा से अपना त्यागपत्र दे दिया। जनता पार्टी 1980 में टूट गयी और जनसंघ की विचारधारा के नेताओं नें भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। भारतीय जनता पार्टी 1998 से 2004 तक राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार की सबसे बड़ी पार्टी रही थी। 2014 के आम चुनाव में इसने अकेले अपने दम पर सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की। .

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महात्मा रामचन्द्र वीर

रामचन्द्र वीर (जन्म १९०९ - मृत्यु २००९) एक लेखक, कवि तथा वक्ता और धार्मिक नेता थे। उन्होंने 'विजय पताका', 'हमारी गोमाता', 'वीर रामायण' (महाकाव्य), 'हमारा स्वास्थ्य' जैसी कई पुस्तकें लिखीं। भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन, गोरक्षा तथा अन्य विविध आन्दोलनों में कई बार जेल गये। विराट नगर के पंचखंड पीठाधीश्वर आचार्य धर्मेन्द्र उनके पुत्र हैं। .

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शंकराचार्य

शंकराचार्य आम तौर पर अद्वैत परम्परा के मठों के मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है। शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है जो कि बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है। इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरम्भ की। यह उपाधि आदि शंकराचार्य, जो कि एक हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे एवं जिन्हें हिन्दुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में से एक के तौर पर जाना जाता है, के नाम पर है। उन्हें जगद्गुरु के तौर पर सम्मान प्राप्त है एक उपाधि जो कि पहले केवल भगवान कृष्ण को ही प्राप्त थी। उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा हेतु भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया। तबसे इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है। यह पद अत्यंत गौरवमयी माना जाता है। चार मठ निम्नलिखित हैं.

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सनातन धर्म

सनातन धर्म: (हिन्दू धर्म, वैदिक धर्म) अपने मूल रूप हिन्दू धर्म के वैकल्पिक नाम से जाना जाता है।वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये 'सनातन धर्म' नाम मिलता है। 'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।सनातन धर्म मूलत: भारतीय धर्म है, जो किसी ज़माने में पूरे वृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है। विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मान्तरण के बाद भी विश्व के इस क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी इसी धर्म में आस्था रखती है। सिन्धु नदी के पार के वासियो को ईरानवासी हिन्दू कहते, जो 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे। उनकी देखा-देखी अरब हमलावर भी तत्कालीन भारतवासियों को हिन्दू और उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहने लगे। भारत के अपने साहित्य में हिन्दू शब्द कोई १००० वर्ष पूर्व ही मिलता है, उसके पहले नहीं। हिन्दुत्व सनातन धर्म के रूप में सभी धर्मों का मूलाधार है क्योंकि सभी धर्म-सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था। .

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संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी

संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी संस्कृत, हिंदी, ब्रजभाषा के प्रकाण्ड विद्वान तथा आध्यात्म के पुरोधा थे। ब्रह्मचारी जी साधना, समाज सेवा, संस्कृति, साहित्य, स्वाधीनता, शिक्षा के समर्पित पोषक एवं प्रेरणा-स्रोत थे। बलदेव, बरसाना, खुर्जा, नरवर एवं वाराणसी में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया। स्वामी करपात्रीजी एवं साहित्यकार कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' उनके सहपाठी थे। वे ' श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव ' मंत्र के द्रष्टा थे। उनके जीवन के चार संकल्प थे - दिल्ली में हनुमान जी की ४० फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना, राजधानी स्थित पांडवों के किले (इन्द्रप्रस्थ) में भगवान विष्णु की ६० फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना, गोहत्या पर प्रतिबंध तथा श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति। वे इस सदी के महान संत थे। उन्होंने सतत्‌ नाम संकीर्तन की ज्योति जलाकर सदैव देश और समाज की समृद्धि की कामना की थी। गोरक्षा, गंगा की पवित्रता, हिन्दी भाषा, भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म की सेवा उनके जीवन के लक्ष्य थे। उन्होंने गोरक्षा के मुद्दे पर अनशन, आन्दोलन तथा यात्राएं भी कीं। .

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स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्वामी दयानन्द सरस्वती महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (१८२४-१८८३) आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे। उनका बचपन का नाम 'मूलशंकर' था। उन्होंने ने 1874 में एक महान आर्य सुधारक संगठन - आर्य समाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक महान चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। स्वामीजी ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले १८७६ में 'स्वराज्य' का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। स्वामी दयानन्द के विचारों से प्रभावित महापुरुषों की संख्या असंख्य है, इनमें प्रमुख नाम हैं- मादाम भिकाजी कामा, पण्डित लेखराम आर्य, स्वामी श्रद्धानन्द, पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, श्यामजी कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद 'बिस्मिल', महादेव गोविंद रानडे, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय इत्यादि। स्वामी दयानन्द के प्रमुख अनुयायियों में लाला हंसराज ने १८८६ में लाहौर में 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना की तथा स्वामी श्रद्धानन्द ने १९०१ में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की। .

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स्वामी आनन्दबोध

स्वामी आनन्दबोध सरस्वती (१९०९ - अक्टूबर १९९४) आर्यसमाज के नेता तथा संसद सदस्य थे। उनका मूल नाम 'रामगोपाल शालवाले' था। श्री आनन्दगोपाल शालवाले का जन्म कश्मीर के अनन्तनाग में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री लाला नन्दलाल था जो मूलतः अमृतसर के निवासी थे। .

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स्वामी करपात्री

श्रीमज्जगद्गुरु हरिहरानन्दसरस्वती जी 'धर्मसम्राट स्वामी करपात्री'। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री (१९०७ - १९८२) भारत के एक महान सन्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राजनेता थे। उनका मूल नाम हरि नारायण ओझा था। वे हिन्दू दसनामी परम्परा के संन्यासी थे। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम " हरिहरानन्द सरस्वती" था किन्तु वे "करपात्री" नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुली का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे। उन्होने अखिल भारतीय राम राज्य परिषद नामक राजनैतिक दल भी बनाया था। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें 'धर्मसम्राट' की उपाधि प्रदान की गई। जीवनी - स्वामी श्री का जन्म संवत् 1964 विक्रमी (सन् 1907 ईस्वी) में श्रावण मास, शुक्ल पक्ष, द्वितीया को ग्राम भटनी, ज़िला प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में सनातन धर्मी सरयूपारीण ब्राह्मण स्व.

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जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

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गौ हत्या

मवेशी वध, विशेष रूप से गाय वध, भारत में एक विवादास्पद विषय है क्योंकि इस्लाम में कई लोगों द्वारा मांस के स्वीकार्य स्रोत के रूप में माना जाने वाला मवेशियों के विपरीत हिंदू धर्म, सिख धर्म, जैन धर्म में कई लोगों के लिए एक सम्मानित और सम्मानित जीवन के रूप में मवेशी की पारंपरिक स्थिति के रूप में, ईसाई धर्म के साथ-साथ भारतीय धर्मों के कुछ अनुयायियों। अधिक विशेष रूप से, हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण से जुड़े होने के कई कारणों से गाय की हत्या को छोड़ दिया गया है, मवेशियों को ग्रामीण आजीविका का एक अभिन्न हिस्सा और एक आवश्यक आर्थिक आवश्यकता के रूप में सम्मानित किया जा रहा है। अहिंसा (अहिंसा) के नैतिक सिद्धांत और पूरे जीवन की एकता में विश्वास के कारण विभिन्न भारतीय धर्मों द्वारा मवेशी वध का भी विरोध किया गया है। इसको रोकने के लिये भारत के विभिन्न राज्यों में कानून भी बनाये गये हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्यों को गायों और बछड़ों और अन्य दुश्मनों और मसौदे के मवेशियों की हत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया गया है। 26 अक्टूबर 2005 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में भारत में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अधिनियमित विरोधी गाय हत्या कानूनों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। भारत में 29 राज्यों में से 20 में वर्तमान में हत्या या बिक्री को प्रतिबंधित करने वाले विभिन्न नियम हैं गायों का केरल, पश्चिम बंगाल, गोवा, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा ऐसे राज्य हैं जहां गाय वध पर कोई प्रतिबंध नहीं है। भारत में मौजूदा मांस निर्यात नीति के अनुसार, गोमांस (गाय, बैल का मांस और बछड़ा) का निर्यात प्रतिबंधित है। मांस, शव, बफेलो के आधे शव में भी हड्डी निषिद्ध है और इसे निर्यात करने की अनुमति नहीं है। केवल भैंस के बेनालेस मांस, बकरी और भेड़ों और पक्षियों के मांस को निर्यात के लिए अनुमति है। भारत में मवेशी वध को नियंत्रित करने वाले कानून राज्य से राज्य में काफी भिन्न होते हैं। "संरक्षण, सुरक्षा और पशु रोगों, पशु चिकित्सा प्रशिक्षण और अभ्यास की रोकथाम" संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची का प्रवेश 15 है, जिसका अर्थ है कि राज्य विधायिकाओं में वध और संरक्षण की रोकथाम को कानून बनाने के लिए विशेष शक्तियां हैं मवेशियों का कुछ राज्य मवेशियों की वध को "फिट-फॉर-कत्तल" प्रमाणपत्र जैसे प्रतिबंधों के साथ अनुमति देते हैं, जिन्हें मवेशियों की उम्र और लिंग, निरंतर आर्थिक व्यवहार्यता आदि जैसे कारकों के आधार पर जारी किया जा सकता है। अन्य लोग पूरी तरह से मवेशी वध पर प्रतिबंध लगाते हैं, जबकि इसमें कोई प्रतिबंध नहीं है कुछ राज्यों। 26 मई 2017 को, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व में भारतीय केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने पूरे विश्व में पशु बाजारों में वध के लिए मवेशियों की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाया, जिसमें पशु विधियों की क्रूरता की रोकथाम के तहत हालांकि जुलाई 2017 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मवेशियों की बिक्री पर प्रतिबंध को निलंबित कर दिया, बहु अरब डॉलर के गोमांस और चमड़े के उद्योगों को राहत दे रही है। .

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गोमूत्र

'''जीवामृत''': गोमूत्र, गाय के गोबर, गुड़, बेसन, तथा मूल परिवेश (राइजोस्फीयर मिट्टी) से निर्मित जैविक खाद गोमूत्र (गाय का मूत्र) पंचगव्यों में से एक है। हिन्दू धर्म एवं संस्कृति में इसका बहुत महत्व है। प्राचीन हिन्दू शास्त्रों में इसकी महत्ता का वर्णन मिलता है। वर्तमान विज्ञान में गोमूत्र के दैवीय गुणों को स्वीकार किया है और गोमूत्र के महत्व को समझाया है। कुछ आधुनिक शोधों में इसके अत्यन्त गुणकारी औषधीय गुण बताये जा रहे हैं। .

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गोवा

right गोवा या गोआ (कोंकणी: गोंय), क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे छोटा और जनसंख्या के हिसाब से चौथा सबसे छोटा राज्य है। पूरी दुनिया में गोवा अपने खूबसूरत समुंदर के किनारों और मशहूर स्थापत्य के लिये जाना जाता है। गोवा पहले पुर्तगाल का एक उपनिवेश था। पुर्तगालियों ने गोवा पर लगभग 450 सालों तक शासन किया और दिसंबर 1961 में यह भारतीय प्रशासन को सौंपा गया। .

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आर्य समाज

आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आंदोलन है जिसकी स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने १८७५ में बंबई में मथुरा के स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से की थी। यह आंदोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू धर्म में सुधार के लिए प्रारंभ हुआ था। आर्य समाज में शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे तथा मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अंधविश्वासों को अस्वीकार करते थे। इसमें छुआछूत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्त्रियों व शूद्रों को भी यज्ञोपवीत धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया था। स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है। आर्य समाज का आदर्श वाक्य है: कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, जिसका अर्थ है - विश्व को आर्य बनाते चलो। प्रसिद्ध आर्य समाजी जनों में स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय, भाई परमानन्द, पंडित गुरुदत्त, स्वामी आनन्दबोध सरस्वती, स्वामी अछूतानन्द, चौधरी चरण सिंह, पंडित वन्देमातरम रामचन्द्र राव, बाबा रामदेव आदि आते हैं। .

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इन्दिरा गांधी

युवा इन्दिरा नेहरू औरमहात्मा गांधी एक अनशन के दौरान इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (जन्म उपनाम: नेहरू) (19 नवंबर 1917-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। .

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कांग्रेस

कांग्रेस का आशय इन सब से है।.

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अखिल भारतीय हिन्दू महासभा

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का ध्वज अखिल भारत हिन्दू महासभा भारत का एक राजनीतिक दल है। यह एक भारतीय राष्ट्रवादी संगठन है। इसकी स्थापना सन १९१५ में हुई थी। विनायक दामोदर सावरकर इसके अध्यक्ष रहे। केशव बलराम हेडगेवार इसके उपसभापति रहे तथा इसे छोड़कर सन १९२५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। भारत के स्वतन्त्रता के उपरान्त जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तब इसके बहुत से कार्यकर्ता इसे छोड़कर भारतीय जनसंघ में भर्ती हो गये। .

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