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गोपाष्ठमी

सूची गोपाष्ठमी

अंगूठाकार कार्तिक मास की शुुुकल अष्टमी को गो पूजा का शास्त्रीय पर्व मनाया जाता है। भारत में गो ही धर्म अर्थ काम और मोक्ष है गो जननी धात्री माता सरस्वती व विद्या कहि गई गो में सर्व देवी देवताओं का वास कहा गया उसके मूत्र में गंगा व गोबर में लक्ष्मी का वास है भारतीय संस्कृति में गाय को माता का स्थान दिया गया है। जिस प्रकार माँ अपने बच्चे का लालन-पालन व सुरक्षा करती है, उसी प्रकार गौ का दूध आदि भी मनुष्य का लालन-पालन तथा स्वास्थ्य व सदगुणों की सुरक्षा करते हैं। गाय की पूजा, परिक्रमा व स्पर्श स्वास्थ्य, आर्थिक व आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। गाय को श्रद्धा व प्रेमपूर्वक सहलाते रहने से कुछ महीनों में असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। अर्थशास्त्र का मूलाधारः देशी गाय गौ-विज्ञान सम्पूर्ण विश्व को भारत की अनुपम देन है। भारतीय मनीषियों ने सम्पूर्ण गोवंश को मानव के अस्तित्व, रक्षण, पोषण, विकास और संवर्धन के लिए अनिवार्य पाया। गोदुग्ध ने जन-समाज को विशिष्ट शक्ति, बल व सात्त्विक बुद्धि प्रदान की। गोबर व गोमूत्र खेती के लिए पोषक हैं, साथ ही ये रोगाणुनाशक, विषनाशक व रक्तशोधक भी हैं। मृत पशुओं से प्राप्त चर्म से चर्मोद्योग सहित अनेक हस्तोद्योगों का विकास हुआ। अतः प्राचीन काल से ही गोपालन भारतीय जीवन-शैली व अर्थव्यवस्था का सदैव केन्द्रबिन्दु रहा है। जीवन के समस्त महत्त्वपूर्ण कार्यों के समय पंचगव्य का उपयोग किया जाता था। विज्ञान व कम्पयूटर के युग में भी गौ की महत्ता यथावत् बनी हुई है। गाय परम उपयोगी कैसे ? मानव-जाति की समृद्धि गाय की समृद्धि के साथ जुड़ी है। देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व मूत्र सम्पूर्ण मानव जाति के लिए वरदानरूप हैं। गाय के दूध से निकला घी ‘अमृत’ कहलाता है। स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी राजा पुरुरवा के पास गयी तो उसने अमृत की जगह गाय का घी पीना ही स्वीकार कियाः घृतं में वीर भक्ष्यं स्यात्। (श्रीमद्भागवतः 9.14.22) गाय की महिमा बताते हुए पूज्य बापू जी कहते हैं- “गाय के शरीर में ही ‘सूर्यकेतु नाड़ी’ होती है जिससे वह सूर्य की गो किरणों को शोषित करके स्वर्णक्षार में बदल सकती है। स्वर्णक्षार जीवाणुनाशक हैं और रोगप्रतिकारक शक्ति की वृद्धि करते हैं। गाय के दूध व घी में स्वर्णक्षार पाये जाते हैं, जो भैंस, बकरी, ऊँट के दूध में नहीं मिलते। गोबर और गोझरण मिलाकर महीने में एकाध बार रगड़-रगड़कर नहाने से शरीर में जो तेजस्विता आती है, वह तो आजमा के देख लें, बहुत स्वास्थ्य-लाभ होता है। गोमूत्र अवश्य पीना चाहिए। यह बीमारियों की जड़ें काट के निकाल देता है। यकृत व गुर्दे (किडनी) की खराबी, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कोल्स्ट्रोल-वृद्धि, पाचन आदि सब ठीक कर देगा गोमूत्र। अब सब लोग गोमूत्र कहाँ ढूँढने जायें इसलिए 7800 गौओं की सेवा व निवास के लिए अलग-अलग गौशालाएँ बनायीं और वहाँ विधिपूर्वक गोमूत्र से उसका अर्क बनता है। 20-30 मि.ली.

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