4 संबंधों: पटियाला, पंजाबी विश्वविद्यालय, ज़ाकिर हुसैन (राजनीतिज्ञ), गुरु गोबिन्द सिंह।
पटियाला
पटियाला भारत के पंजाब प्रांत का एक नगर और भूतपूर्व राज्य है। पटियाला जिला पूर्ववर्ती पंजाब की एक प्रमुख रियासत थी। आज यह पंजाब राज्य का पांचवा सबसे बड़ा जिला है। पटियाला की सीमाएं उत्तर में फतेहगढ़, रूपनगर और चंडीगढ़ से, पश्चिम में संगरूर जिले से, पूर्व में अंबाला और कुरुक्षेत्र से और दक्षिण में कैथल से मिलती हैं। पटियाला पैग के लिए मशहूर यह स्थान शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा। देश का पहला डिग्री कॉलेज मोहिंदर कॉलेज की स्थापना 1870 में पटियाला में ही हुई थी। पटियाला की अपनी एक अलग संस्कृति है जो यहां के लोगों की विशेषता को दर्शाती है। यहां के वास्तुशिल्प में राजपूत शैली का पुट दिखाई पड़ता है लेकिन यह शैली भी स्थानीय परंपराओं में ढ़लकर एक नया रूप ले चुकी है। पटियाला का किला मुबारक परिसर तो जैसे सुंदरता की खान है। एक ही जगह पर कई खूबसूरत इमारतों को देखना अपने आप के अनोखा अनुभव है। .
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पंजाबी विश्वविद्यालय
पंजाबी विश्वविद्यालय, (पंजाबी:ਪੰਜਾਬੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ, अंग्रेजी:Punjabi University) भारत के पंजाब राज्य के शहर पटियाला में स्थित एक विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना 30 अप्रैल 1962 को हुई थी। इस विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य पंजाबी भाषा के विकास और पंजाबी संस्कृति के प्रसार को प्रोत्साहित करना था। यह विश्व का दूसरा ऐसा विश्वविद्यालय है जिसका नाम किसी भाषा के नाम पर रखा गया है, पहला विश्वविद्यालय, इब्रानी (हिब्रू) विश्वविद्यालय, इस्राइल है। पंजाबी विश्वविद्यालय का परिसर 316 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैला है और बागों के शहर पटियाला से ७ किलोमीटर दूर चंडीगढ़ रोड पर स्थित है। विश्वविद्यालय में 55 विभाग कार्यरत हैं। विश्वविद्यालय में मानविकी और विज्ञान के क्षेत्र में, ललित कला, कम्प्यूटर विज्ञान और व्यवसायिक प्रबंधन जैसे विषयों के अध्ययन की व्यवस्था है। यहाँ लगभग 15000 छात्र शिक्षा प्राप्त करते हैं। शिवराज पाटिल विश्वविद्यालय के कुलपति और डाक्टर जसपाल सिंह उपकुलपति हैं। .
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ज़ाकिर हुसैन (राजनीतिज्ञ)
डाक्टर ज़ाकिर हुसैन (8 फरवरी, 1897 - 3 मई, 1969, indiapress.org पर भारत के पूर्व राष्ट्रपतियों की जीवनी) भारत के तीसरे राष्ट्रपति थे जिनका कार्यकाल 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक था। डा.
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गुरु गोबिन्द सिंह
गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: २२ दिसम्बर १६६६, मृत्यु: ७ अक्टूबर १७०८) सिखों के दसवें गुरु थे। उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त ११ नवम्बर सन १६७५ को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। बिचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ, गुरू गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है। उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ १४ युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें 'सर्वस्वदानी' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं। गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। उन्होंने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। .
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