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गलतुंडिका

सूची गलतुंडिका

गलतुण्डिका या टान्सिल गलतुंडिका (tonsils) मानव के गले के पिछले हिस्से में स्थित एक अंग है। यह एक प्रकार का ऊतक हैं जो बाहरी रोगाणुओं से आक्रमण के विरुद्ध पहली रक्षा-पंक्ति की तरह काम करता है। .

5 संबंधों: ऊतक, पृथ्वी का वायुमण्डल, संक्रमण, गला, गलगुटिकाशोथ

ऊतक

ऊतक (tissue) किसी जीव के शरीर में कोशिकाओं के ऐसे समूह को कहते हैं जिनकी उत्पत्ति एक समान हो तथा वे एक विशेष कार्य करती हो। अधिकांशतः ऊतको का आकार एंव आकृति एक समान होती है। परंतु कभी कभी कुछ उतकों के आकार एंव आकृति में असमानता पाई जाती है, मगर उनकी उत्पत्ति एंव कार्य समान ही होते हैं। कोशिकाएँ मिलकर ऊतक का निर्माण करती हैं। ऊतक के अध्ययन को ऊतक विज्ञान (Histology) के रूप में जाना जाता है। .

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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संक्रमण

रोगों में कुछ रोग तो ऐसे हैं जो पीड़ित व्यक्तियों के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संपर्क, या उनके रोगोत्पादक, विशिष्ट तत्वों से दूषित पदार्थों के सेवन एवं निकट संपर्क, से एक से दूसरे व्यक्तियों पर संक्रमित हो जाते हैं। इसी प्रक्रिया को संक्रमण (Infection) कहते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में ऐसे रोगों को छुतहा रोग या छूआछूत के रोग कहते हैं। रोगग्रस्त या रोगवाहक पशु या मनुष्य संक्रमण के कारक होते हैं। संक्रामक रोग तथा इन रोग के संक्रमित होने की क्रिया समाज की दृष्टि से विशेष महत्व की है, क्योंकि विशिष्ट उपचार एवं अनागत बाधाप्रतिषेध की सुविधाओं के अभाव में इनसे महामारी (epidemic) फैल सकती है, जो कभी-कभी फैलकर सार्वदेशिक (pandemic) रूप भी धारण कर सकती है। .

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गला

गले के अंदरूनी अंगों का चित्र मनुष्यों व कुछ अन्य जीवों में गला गर्दन के आगे के हिस्से को कहते हैं। मनुष्यों के गले में कई अंग होते हैं, जैसे - स्वरग्रंथि, श्वासनली, ग्रासनाल और कंठच्छद। .

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गलगुटिकाशोथ

लाल गलगुटिका पर सफेद रंग के शोथ मनुष्य के तालु के दोनों ओर बादाम के आकार की दो ग्रंथियाँ होती है, जिन्हें हम गलगुटिका, तुंडिका या टॉन्सिल कहते हैं। इन ग्रंथियों के रोग को गलगुटिकाशोथ (तालुमूलप्रदाह Tonsilitis) कहते हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

तुंडिकेरी, टांसिल, गलगुटिका

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