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गणितीय नियतांक

सूची गणितीय नियतांक

गणितीय नियतांक (mathematical constant) वह संख्या (प्राय: वास्तविक संख्या) है जो गणित में स्वभावत: उत्पन्न होती हैं। उदाहरण - पाई (π), आयलर संख्या ई (e) आदि। .

9 संबंधों: परिमेय संख्या, पाई, प्रागनुभविक संख्या, समिश्र संख्या, सूत्र, वास्तविक संख्या, वितत भिन्न, गणित, अपरिमेय संख्या

परिमेय संख्या

यदि किसी वास्तविक संख्या को दो पूर्ण संख्याओं के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जा सकता है तो उसे परिमेय संख्या (Rational number) कहते हैं। अर्थात कोई संख्या \frac, जहाँ a और b दोनों पूर्ण संख्याएं हैं और जहाँ b \ne 0, एक परिमेय संख्या है। १, २.५, ३/५, 0.७ आदि परिमेय संख्याओं के कुछ उदाहरण हैं। परिमेय संख्या से संबंधित प्रमेय- यदि x एक परिमेय संख्या है जिसका दशमलवीय विस्तार सांत (terminating) है। तब x को p बटा q के रूप में लिखा जा सकता है, जहाँ p तथा q असहभाज्य संख्याएँ हैं तथा q का अविभाज्य गुणन खंड 2-घात-n गुणे 5-घात-m के रूप में है जहाँ n और m गैर-ऋणात्मक पूर्णांक हैं। जो वास्तविक संख्याएं परिमेय नहीं होतीं, उन्हें अपरिमेय संख्या (Irrational number) कहते हैं; जैसे √२, पाई, e (प्राकृतिक लघुगणक का आधार), ८ का घनमूल आदि। श्रेणी:संख्या सिद्धान्त श्रेणी:प्राथमिक गणित * श्रेणी:भिन्न (गणित) श्रेणी:क्षेत्र सिद्धान्त.

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पाई

ग्रीक अक्षर '''पाई''' यदि किसी वृत्त का व्यास '''१''' हो तो उसकी परिधि '''पाई''' के बराबर होगी. पाई या π एक गणितीय नियतांक है जिसका संख्यात्मक मान किसी वृत्त की परिधि और उसके व्यास के अनुपात के बराबर होता है। इस अनुपात के लिये π संकेत का प्रयोग सर्वप्रथम सन् १७०६ में विलियम जोन्स ने सुझाया। इसका मान लगभग 3.14159 के बराबर होता है। यह एक अपरिमेय राशि है। पाई सबसे महत्वपूर्ण गणितीय एवं भौतिक नियतांकों में से एक है। गणित, विज्ञान एवं इंजीनियरी के बहुत से सूत्रों में π आता है। .

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प्रागनुभविक संख्या

गणित में, प्रागनुभविक संख्या (transcendental number) उन संख्याओं को कहते हैं जो परिमेय गुणांकों वाले किसी भी अशून्य बहुपद समीकरण की मूल न हों। π (पाई) और e दो प्रमुख प्रागनुभविक संख्याएँ हैं। यह सिद्ध करना कि कोई दी हुई संख्या प्रागनुभविक है, आसान नहीं है। फिर भी प्रागनुभविक संख्याएँ विरल (rare) नहीं हैं। सभी वास्तविक प्रागनुभविक संख्याएँ अपरिमेय हैं जबकि सभी अपरिमेय संख्याएँ प्रागनुभविक नहीं होतीं। उदाहरण के लिए '2 का वर्गमूल' एक अपरिमेय संख्या है किन्तु प्रागनुभविक संख्या नहीं है क्योंकि यह बहुपद समीकरण x2 − 2 .

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समिश्र संख्या

किसी समिश्र संख्या का अर्गेन्ड आरेख पर प्रदर्शन गणित में समिश्र संख्याएँ (complex number) वास्तविक संख्याओं का विस्तार है। किसी वास्तविक संख्या में एक काल्पनिक भाग जोड़ देने से समिश्र संख्या बनती है। समिश्र संख्या के काल्पनिक भाग के साथ i जुड़ा होता है जो निम्नलिखित सम्बन्ध को संतुष्ट करती है: किसी भी समिश्र संख्या को a + bi, के रूप में व्यक्त किया जा सकता है जिसमें a और b दोनो ही वास्तविक संख्याएं हैं। a + bi में a को वास्तविक भाग तथा b को काल्पनिक भाग कहते हैं। उदाहरण: 3 + 4i एक समिश्र संख्या है। .

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सूत्र

सूत्र, किसी बड़ी बात को अतिसंक्षिप्त रूप में अभिव्यक्त करने का तरीका है। इसका उपयोग साहित्य, व्याकरण, गणित, विज्ञान आदि में होता है। सूत्र का शाब्दिक अर्थ धागा या रस्सी होता है। जिस प्रकार धागा वस्तुओं को आपस में जोड़कर एक विशिष्ट रूप प्रदान करतअ है, उसी प्रकार सूत्र भी विचारों को सम्यक रूप से जोड़ता है। हिन्दू (सनातन धर्म) में सूत्र एक विशेष प्रकार की साहित्यिक विधा का सूचक भी है। जैसे पतंजलि का योगसूत्र और पाणिनि का अष्टाध्यायी आदि। सूत्र साहित्य में छोटे-छोटे किन्तु सारगर्भित वाक्य होते हैं जो आपस में भलीभांति जुड़े होते हैं। इनमें प्रायः पारिभाषिक एवं तकनीकी शब्दों का खुलकर किया जाता है ताकि गूढ से गूढ बात भी संक्षेप में किन्तु स्पष्टता से कही जा सके। प्राचीन काल में सूत्र साहित्य का महत्व इसलिये था कि अधिकांश ग्रन्थ कंठस्थ किये जाने के ध्येय से रचे जाते थे; अतः इनका संक्षिप्त होना विशेष उपयोगी था। चूंकि सूत्र अत्यन्त संक्षिप्त होते थे, कभी-कभी इनका अर्थ समझना कठिन हो जाता था। इस समस्या के समाधान के रूप में अनेक सूत्र ग्रन्थों के भाष्य भी लिखने की प्रथा प्रचलित हुई। भाष्य, सूत्रों की व्याख्या (commentary) करते थे। बौद्ध धर्म में सूत्र उन उपदेशपरक ग्रन्थों को कहते हैं जिनमें गौतम बुद्ध की शिक्षाएं संकलित हैं। .

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वास्तविक संख्या

गणित में, वास्तविक संख्या सरल रेखा के अनुदिश किसी राशी को प्रस्तुत करने वाला मान है। वास्तविक संख्याओं में सभी परिमेय संख्यायें जैसे -5 एवं भिन्नात्मक संख्यायें जैसे 4/3 और सभी अपरिमेय संख्यायें जैसे √2 (1.41421356…, 2 का वर्गमूल, एक अप्रिमेय बीजीय संख्या) शामिल हैं। वास्तविक संख्याओं में अप्रिमेय संख्याओं को शामिल करने से इन्हें वास्तविक संख्या रेखा के रूप में एक रेखा पर निरुपित किये जा सकने वाले अनन्त बिन्दुओं से प्रस्तुत किया जा सकता है। श्रेणी:गणित *.

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वितत भिन्न

गणित में निम्नलिखित प्रकार के व्यंजक (expression) को वितत भिन्न (continued fraction) कहते हैं। यहाँ, a0 एक पूर्णांक है तथान्य सभी संख्याएँ ai (i ≠ 0) धनात्मक पूर्णांक हैं। यदि उपरोक्त वितत भिन्न में अंश एवं हर का मान कुछ भी होने की स्वतंत्रता दे दी जाय (जैसे फलन होने की छूट) तो इसे 'सामान्यीकृत वितत भिन्न' कह सकते हैं। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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अपरिमेय संख्या

गणित में, अपरिमेय संख्या (irrational number) वह वास्तविक संख्या है जो परिमेय नहीं है, अर्थात् जिसे भिन्न p /q के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता है, जहां p और q पूर्णांक हैं, जिसमें q गैर-शून्य है और इसलिए परिमेय संख्या नहीं है। अनौपचारिक रूप से, इसका मतलब है कि एक अपरिमेय संख्या को एक सरल भिन्न के रूप में प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिये २ का वर्गमूल, और पाई अपरिमेय संख्याएँ हैं। यह साबित हो सकता है कि अपरिमेय संख्याएं विशिष्ट रूप से ऐसी वास्तविक संख्याएं हैं जिन्हें समापक या सतत दशमलव के रूप में नहीं दर्शाया जा सकता है, हालांकि गणितज्ञ इसे परिभाषा के रूप में नहीं लेते हैं। कैंटर प्रमाण के परिणामस्वरूप कि वास्तविक संख्याएं अगणनीय हैं (और परिमेय गणनीय) यह मानता है कि लगभग सभी वास्तविक संख्याएं अपरिमेय हैं। शायद, सर्वाधिक प्रसिद्ध अपरिमेय संख्याएं हैं π, e और √२.

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