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खरपतवार

सूची खरपतवार

गेहूँ के खेत में खरपतवार (फूल लगे हुए) ऐसे पौधों एवं वनस्पतियों को खरपतवार (weed) कहा जाता है जो किसी संदर्भ में अवांछित होते हैं। ये फसलों में, घास के मैदान (लान) में, बागों में हो सकते हैं। प्रायः निराई करके इन्हें निकाल दिया जाता है। खरपतवार फसलों से तीव्र प्रतिस्पर्धा करके भूमि में निहित नमी एवं पोषक तत्वों के अधिकांश भाग को शोषित कर लेते हैं, फलस्वरूप फसल की विकास गति धीमी पड़ जाती है तथा पैदावार कम हो जाती है। खरपतवारों की रोकथाम से न केवल फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है, बल्कि उसमें निहित प्रोटीन, तेल की मात्रा एवं फसलों की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। .

15 संबंधों: चौलाई, दूब घास, पथरचटा (खरपतवार), फुलवारी, बड़ी दुधी, भूमि, भूरा, महकुआ, मोथा, शाकनाशक, जलकुम्भी, खरीफ फसलों के खर-पतवार, कटीली चौलाई, कनकउआ, छोटी दुद्धी

चौलाई

चौलाई (अंग्रेज़ी: आमारान्थूस्), पौधों की एक जाति है जो पूरे विश्व में पायी जाती है। bhiअब तक इसकी लगभग ६० प्रजातियां पाई व पहचानी गई हैं, जिनके पुष्प पर्पल एवं लाल से सुनहरे होते हैं। गर्मी और बरसात के मौसम के लिए चौलाई बहुत ही उपयोगी पत्तेदार सब्जी होती है। अधिकांश साग और पत्तेदार सब्जियां शित ऋतु में उगाई जाती हैं, किन्तु चौलाई को गर्मी और वर्षा दोनों ऋतुओं में उगाया जा सकता है। इसे अर्ध-शुष्क वातावरण में भी उगाया जा सकता है पर गर्म वातावरण में अधिक उपज मिलती है। इसकी खेती के लिए बिना कंकड़-पत्थर वाली मिट्टी सहित रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। इसकी खेती सीमांत भूमियों में भी की जा सकती है। .

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दूब घास

जमीन पर पसरी '''दूब''' घास हरी भरी '''दूब''' घास दूब या दुर्वा (वानस्पतिक नाम: Cynodon dactylon) एक घास है जो जमीन पर पसरती है। हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग किया जाता है। मारवाडी भाषा में इसे ध्रो कहा जाता हैँ। शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो दूब को नहीं जानता होगा। हाँ यह अलग बात है कि हर क्षेत्रों में तथा भाषाओँ में यह अलग अलग नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे दूब, दुबडा, संस्कृत में दुर्वा, सहस्त्रवीर्य, अनंत, भार्गवी, शतपर्वा, शतवल्ली, मराठी में पाढरी दूर्वा, काली दूर्वा, गुजराती में धोलाध्रो, नीलाध्रो, अंग्रेजी में कोचग्रास, क्रिपिंग साइनोडन, बंगाली में नील दुर्वा, सादा दुर्वा आदि नामों से जाना जाता है। इसके आध्यात्मिक महत्वानुसार प्रत्येक पूजा में दूब को अनिवार्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है। इसके औषधीय गुणों के अनुसार दूब त्रिदोष को हरने वाली एक ऐसी औषधि है जो वात कफ पित्त के समस्त विकारों को नष्ट करते हुए वात-कफ और पित्त को सम करती है। दूब सेवन के साथ यदि कपाल भाति की क्रिया का नियमित यौगिक अभ्यास किया जाये तो शरीर के भीतर के त्रिदोष को नियंत्रित कर देता है, यह दाह शामक, रक्तदोष, मूर्छा, अतिसार, अर्श, रक्त पित्त, प्रदर, गर्भस्राव, गर्भपात, यौन रोगों, मूत्रकृच्छ इत्यादि में विशेष लाभकारी है। यह कान्तिवर्धक, रक्त स्तंभक, उदर रोग, पीलिया इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है। श्वेत दूर्वा विशेषतः वमन, कफ, पित्त, दाह, आमातिसार, रक्त पित्त, एवं कास आदि विकारों में विशेष रूप से प्रयोजनीय है। सेवन की दृष्टि से दूब की जड़ का 2 चम्मच पेस्ट एक कप पानी में मिलाकर पीना चाहिए। .

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पथरचटा (खरपतवार)

पत्थरचट्टा (वानस्पतिक नाम: ट्राइन्थिमा मोनोगाइना / Trianthema monogyna) खरीफ ऋतु का एकवर्षीय खरपतवार है। वर्षा ऋतु में यह बहुत बढता हैं व फूलता-फलता है। इसकी वृद्धि उपजाऊ तथा नम भूमि में बहुत अधिक होती है। भूमि में जड़ें गहराई तक जाती हैं। इसके तने फैलने वाले, बहुशाखीय व सरस होते हैं जिनकी लम्बाई २५-३० सेमी होती है। पत्तियां विभिन्न आकार की रसदार व मोटी होती हैं। पुष्प सलिटरी व्रत्तहीन, सफेद अथवा लालिमा युक्त होते हैं। फूल कैप्सूल के आकार का होता हैं तथा फल काले अनेक रखाओं से युक्त होते हैं। .

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फुलवारी

जिस उद्यान में केवल पुष्प हो उसे फुलवारी कहते है। राजा जनक के फुलवारी में हर प्रकार के फूल थे। और उनके बाग में बारहों मास वसन्त विराजता था। .

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बड़ी दुधी

बड़ी दुधी बड़ी दुधी (वानस्पतिक नाम:Euphorbia hirta) एक खरपतवार है। बडी दुद्धी एकवर्षीय खरपतवार है। यह ऊँची भूमि में उगता है। वर्षा ऋतु में अधिक वृद्धि होती है। पत्तियां व तना तोड़ने पर दूध के रंग जैसा तरल पदार्थ निकलता हैं। जडें मूसला होती हैं लेकिन अधिक गहराई तक भूमि में नहीं जाती हैं। तना कमजोर होता है जो भूमि पर फैलकर बढता है तथा तने पर छोटे-छोटे बाल होते हैं। पत्तियां दीर्घायत (ओबलांग), लाल रंग लिए हुए तथा सिरा नुकीला होता है। फूल कम्पोजिट, फल कैप्सूल बाल युक्त, ०.१२५ सेमी लम्बे होते हैं। .

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भूमि

भूमि, पृथ्वी की ठोस सतह को कहते है जो स्थायी रूप से पानी नहीं होता। इतिहास में मानव गतिविधियाँ अधिकतर उन भूमि क्षेत्रों में हुई है जहाँ कृषि, निवास और विभिन्न प्राकृतिक संसाधन होते हैं।.

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भूरा

भूरा एक रंग है। यह लाल, नारंगी एवं पीले रंग के गहरे शेड में होता है। .

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महकुआ

महकुआ सामान्य नाम: गो़ट खरपतवार (Goat weed) वैज्ञानिक नाम:अजेरेटम कोनीजोइडस(Ageratum conyzoides L.) विवरण: चौड़ी पत्ती वाली श्रेणी का वार्षिक पौधा है, जो फूल आने पर एक मीटर लम्बा हो जाता है। इसमें बहुशाकीय व्यवस्था है, जिसके तने पर काफी रोएं होते हैं। यह बीज द्वारा संचरण करता है। बीज गिरने के २ सप्ताह बाद, लगभग ५०% बीज जमाव क्षमता के होते हैं, परन्तु कुछ स्थानों पर १% बीज ही जम पाते हैं (अर्थात धान की उच्च भूमियों) में बहुलता से पाए जाते हैं तथा तेजी से अपनी कालोनी बनाते है। इस खरपतवार की जीवन-अवधि कम होने से इसकी एक वर्ष में कई पीढ़ियां पूरी हो जाती हैं, जिससे फसल की तुलना में प्रतिस्पर्धा क्षमता बहुत अधिक बढ़ जाती है। बीज अत्याधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं, जो पानी से फैलते हैं। इसके बीज में विभिन्न परिस्थितियों में जमाव क्षमता होती है। एक बार काटने पर दूसरी बार फुटाव हो जाता है। इससे कभी-कभी ४०% तक धान की फसल को क्षति हो जाती है।.

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मोथा

मोथा का पौधा मोथा की जड़ (गांठ) मोथा (वैज्ञानिक नाम: साइप्रस रोटडंस / Cyperus rotundus L.) एक बहुवर्षीय सेज़ वर्गीय पौधा है, जो ७५ सें.मी.

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शाकनाशक

शाकनाशक से नष्ट किये गये खरपतवार शाकनाशक, शाकनाशी या खरपतवारनाशक (अंग्रेजी: herbicide) ऐसे रसायन या कीटनाशक होते हैं, जिनका प्रयोग कृषि क्षेत्र में अवांछित खरपतवारों weed को नष्ट करने के लिये किया जाता है। विशेष शाकनाशक से सिर्फ चुने हुए खरपतवार ही नष्ट होते हैं जबकि शेष फसल को कोई नुकसान नहीं होता। अधिकतर शाकनाशक पौधे के प्राकृतिक हार्मोनों की नकल कर उसकी वृद्धि को अवरोधित करते हैं। बेकार पड़ी जमीन, औद्योगिक स्थलों, रेलवे और रेलवे तटबंध आदि को पादपमुक्त करने में प्रयुक्त शाकनाशक कुछ खास खरपतवारों को नष्ट करने की बजाए इनके संपर्क में आने वाली समूची वनस्पति का नाश कर देते हैं। कम मात्रा में शाकनाशकों को वानिकी, चारागाहों और वन्यजीवन के संरक्षण-क्षेत्र के प्रबंधन में भी इस्तेमाल किया जाता है। .

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जलकुम्भी

जलकुम्भी जलकुम्भी एक एकबीजपत्री, सपुष्पक जलीय पौधा है। जल की सतह पर तैरने वाले इस पौधे की प्रत्येक पत्ती का वृन्त फूला हुआ एवं स्पंजी होता है। इसमें पर्वसन्धियों से झुंड में रेशेदार जड़े लगी रहती हैं। इसका तना खोखला और छिद्रदार होता है। इसके फूलों को मंजरी कहते हैं। यह दक्षिण अमेरिका का मूल-निवासी है। यह दुनिया के सबसे तेज बढ़ने वाले पौधे में से एक है। यह अपनी संख्या को २ सप्ताह में ही देगुना करने की क्षमता रखता है। यह बहुत अधिक परिमाण में बीज उत्पन्न करता है तथा इसके बीजों में अंकुरण की क्षमता ३० वर्षों तक होती है। श्रेणी:वनस्पति विज्ञान.

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खरीफ फसलों के खर-पतवार

आज खाद्यान्नों की कमी के कारणों का विश्लेषण करें तो हमें पता चलेगा कि फसलों में विभिन्न नाशकों द्वारा लगभग 1,07,000 करोड़ रूपये के बराबर की वार्षिक हानि होती है। जिसमें अकेले खरपतवारों के कारण 37 प्रतिशत हानि होती है जबकि कीड़ों से 22 प्रतिशत व बीमारियों से 29 प्रतिशत होती है। खरपतवार हमारी भूमि से पानी को भी अवशोषित कर लेते हैं, जिसके कारण जहां 5 सिंचाई की आवश्यकता होती है वहां किसान को ज्यादा पानी देना पड़ता है, इसलिए सतय पर खरपतवार नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है। खरीफ फसलों का भारतीय कृषि व देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाये रखने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों के आधार पर ये फसलें औसतन 72.6 मिलियन हैक्टर भूमि पर उगायी जा रही हैं और लगभग 105.9 मिलियन टन खाद्यान्नों का उत्पादन 95.7 मिलियन टन है। अगर दोनों मौसमों की फसलों की उत्पादकता की ओर देखें तों काफी अंतर दिखाई पड़ता है। खरीफ फसलों की उत्पादकता 1458 कि.ग्रा./हैक्टर है जो कि देश की रबी फसलों की उत्पादकता (2005 कि.ग्रा/हैक्टर) से काफी पीछे है। खरीफ फसलों में महत्वपूर्ण फसलें धान, मक्का, बाजरा, मूंगफली, तिल, अरहर तथा सोयाबीन इत्यादि हैं। इन फसलों में धान मुख्य खाद्य फसल है जो कि पूरे देश में उगाई जातीहै और विश्व भर में इसकी अग्रणी खपत है। खरीफ मौसम मे उगाई जाने वाली फसलों में धान मुख्य खा़द्य फसल है जो कि पूरे देश में उगाई जाती है और विश्व भर में इसकी अग्रणी खपत है खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में उत्पादकता में कमी के अनेक कारण हैं। इस मौसम में सिंचाई की कमी तथा कभी पानी की अधिकता का फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा मौसम में अधिक शुष्कता तथा तापमान में लगातार उतार-चढाव खरवतवारों, कीड़ों तथा बीमारियों को न्यौता देता है। जिसके कारण फसलों को सुरक्षित रखना किसान के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है। .

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कटीली चौलाई

300px कटीली चौलाई (वानस्पतिक नाम: अमेरेन्थस स्पिनोसस (Amaranthus spinosus L); सामान्य नाम: स्पाईन अमेरेन्थस) एक खरपतवार है। यह एकबीजपत्री, वार्षिक पौधा है। इसका प्रजनन बीज से होता है। इसकी पत्तियां पतली लम्बी नीचे की तरफ लाल होतीं हैं। फूल हरा, हरा-सफेद १ मिमी.

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कनकउआ

कनकउआ या केना घास कनकउआ (वानस्पतिक नाम:Commelina benghalensis / कोमेलिना बेघालेंसिस; अंग्रेजी: Tropical prider wort) एक खरपतवार है। इसे केना या 'कृष्ण घास' भी कहते हैं। इसे असम में 'कोनासियोलू', महाराष्ट्र में 'केना' तथा उड़ीसा में 'कंचारा कांकु' से जाना जाता है यह वार्षिक या बहुवर्षीय चौड़ी पत्ती श्रेणी की लता है, जो अधिकतम ४० सें.मी.

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छोटी दुद्धी

छोटी दुद्धी (वानस्पतिक नाम: यूफोरबिया मैक्रोफाइली (Euphorbia macrophyllae)) एक खरपतवार है। .

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