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क्षारीय बैटरी

सूची क्षारीय बैटरी

विभिन्न आकार-प्रकार की क्षारीय बैटरियाँ क्षारीय बैटरी (Alkaline batteries) वह प्राथमिक बैटरी है जो जस्ता और मैंगनीज आक्साइड (Zn/MnO2) की रासायनिक अभिक्रिया पर आधारित है। इस प्रकार की पुनर्भरणीय बैटरियाँ भी बनायी जाती हैं। इस प्रकार की बैटरी में विद्युत अपघट्य, अम्ल की जगह क्षार होता है। सर्वाधिक प्रचलित क्षारीय बैटरी एडिसन सेल (Edison) प्रकार की बैटरी है। यह बैटरी निकल-लोह क्षारीय प्रकार का सेल है। एक अन्य बैटरी निकल-कैडमिययम प्रकार की है। इस बैटरी का विद्युत्‌ अपघट्य, पोटैशियम और लीथियम ऑक्साइड का जलीय विलयन है। इस विद्युत्‌ अपघट्य से सक्रिय पदार्थ का किसी भी अवस्था में विघटन या विलयन नहीं होता। उच्च निकाल ऑक्साइड के इलेक्ट्रोड पर पोटैशियम और लीथियम हाइड्रॉक्साइड का अल्प परिमाण में अवशोषण होता है, लेकिन आवेशन तथा विसर्जन के संपर्क के दौरान विद्युत्‌ अपघट्य के संघटन में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। अत: विद्युत्‌ अपघट्य का आपेक्षिक घनत्व एवं चालकता व्यवहारत: स्थिर रहती है। लीथियम हाइड्रॉक्साइड उच्च निकल ऑक्साइड के इलेक्ट्रोड में सक्रिय पदार्थों को अत्यधिक उपयोगी कर देता है। लीथियम हाइड्रॉक्साइड के कारण बैटरी की दक्षता और जीवन में वृद्धि हो जाती है। अत: यह विद्युत्‌ अपघट्य का अत्यावश्यक घटक है। पट्टिकाएँ बनाने के लिए छिद्रित निकल इस्पात की नलियों या खानों (pockets) में सक्रिय पदार्थ भर दिए जाते हैं। धन पट्टिकाएँ, जो एक दूसरे के बगल में रखी रहती है, अनेक ऊर्ध्वाधर नलियों के रूप में रहती हैं। धन पट्टिका में इसके वैद्युत गुण को बढ़ाने के लिए, निकल हाइड्रेट के साथ फ्लेक निकल (flake nickel) एकांतरित स्तरों में भरा रहता है। नलियाँ, जो बिना जोड़ के परिवेष्टित करनेवाले आठ वलयों से प्रबलित रहती है, ग्रिड पर समान अवकाश में आरोपित रहती हैं। ऋण पट्टिका धन पट्टिका के समान रहती है। अंतर केवल यह रहता है कि ऋण पट्टिका में नली के स्थान पर छिद्रित खाने में सूक्ष्म विभाजित लोह ऑक्साइड सक्रिय पदार्थ के रूप में भरा रहता है। ऋण एवं धन पट्टिकाएँ धन और ऋण समूहों में समायोजित रहती हैं। ऐसा ग्रिडों के सिरों के छोदों में से सयोजी दंड डालकर किया जाता है। इस्पात के छल्ले (washer) के उपयोग से उपयुक्त फासला प्राप्त किया जाता है। मध्य अंतरक पोलपीस (pole-piece) का आधार होता है। संयोजी दंड के प्रत्येक सिरे को लॉक वाशर (lock washer) तथा नट से कस देने पर पट्टिकाओं का समूह दृढ़ता से एक दूसरे के साथ बँध जाता है। सब बाशर, नट, संयोजी दंड तथा टरमिनल निकल इस्पात के बने होते हैं। पट्टिका समूहों को पूर्ण एलिमेंट (element) में संयोजित करते हैं। ऋण पट्टिकाओं के समूह में धन पट्टिकाओं के समूह की अपेक्षा एक अधिक एक अधिक पट्टिका होती है। ऊर्ध्वाधर कठोर रबर पिनों (pins) के द्वारा, जो पट्टिकाओं की लंबाई के बराबर होते हैं, प्रत्यावर्ती ऋण एव धन पट्टिकाएँ विद्युत्रोधी बनाई जाती है। रबर की पट्टियाँ ऋण पट्टिकाओं के बाह्य भागों को पात्र के प्रति विद्युत्रोधी बनाती है। कठोर रबर संरचना द्वारा पट्टिकाओं के सिरों तथा किनारों का विद्युत्रोधन होता है। यह संरचना ग्रिडों का पृथक्करण करती है और पट्टिकाओं के पंक्तिबंधन को ठीक रखती है। इस संरचना का अभिकल्प ऐसा होता है कि विद्युत्‌ अपघट्य का परिसंचरण निर्बाध होता है। निकल-लोह-क्षारीय सेल का पात्र निकल इस्पात का बनाया जाता है, क्योंकि इस्पात पर पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड (विद्युत्‌ अपघटय) की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है। सेल संधियाँ वेल्डित की रहती हैं। इस्पात के वलयों से प्रसारित और कठोर रबर के छल्लों या ग्लैंड कैपों (gland caps) से पोल पीस का विद्युत्रोधन उन स्थानों पर होता है जहाँ से पोल आच्छादन से बाहर निकलता है। संपूर्ण सेल को विद्युत्रोधी पेंट से रँग दिया जाता है। सेल के शीर्ष पर रोज़िन पेट्रोलियम जेली का फिल्म चढ़ा दिया जाता है। नट को कसने से संयोजक सुरक्षित हो जाते हैं। नट को ढीला करके जैक द्वारा हटाया जाता है। कठोर लकड़ी की ट्रे में निकल-लोह-क्षारीय सेल को बैटरी के रूप में समायोजित किया जाता है। यह समायोजन प्रत्येक सेल को अपने स्थान पर रखता है और ट्रे तथा संगत सेलों के प्रति सेल को विद्युत्रोधी बनाता है। संचायक सेल के सक्रिय पदार्थ विद्युत्‌ का संचय नहीं करते, पर विद्युत्‌ ऊर्जा के उपयोग से इन सक्रिय पदार्थों में इस प्रकार के भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तन होते हैं जिनसे वे विद्युत्‌ ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम हो जाते हैं। बैटरी को आवेशित करने पर जो रासायनिक परिवर्तन होते हैं, उन्हें समीकरणों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। विद्युत्‌ अपघट्य, पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड KOH, K+ और OH- में आयनित हो जाता है। फेरस ऑक्साइड, और (Fe O), की बनी ऋण पट्टिका पर होनेवाली अभिक्रिया तथा निकल ऑक्साइड की बनी धन पट्टिका पर होनेवाली अभिक्रिया निम्नलिखित समीकरणों से क्रमश: व्यक्त की जा सकती है: 'एक्साइड' (Exide) छाप बैटरियाँ जो १९७२ और १९७५ के बीच निर्मित हुईं, उनका विकास मूलतः थॉमस अल्वा एडीसन ने १९०१ में किया था। जब सेल विसर्जित होता है, तब ऋण एवं धन पट्टिका पर निम्नलिखित रासायनिक परिवर्तन होता है: प्रत्येक सेल की, ५ घंटे में, सामान्य औसत विसर्जन दर लगभग १.२० वोल्ट होती है, जबकि लेड एसिड बैटरी की विसर्जन दर २ वोल्ट है। अत: एक ही वोल्ट की ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए लेड सेल की अपेक्षा ऐडिसन सेल की अधिक आवश्यकता पड़ती है। वैद्युत परीक्षण द्वारा बैटरी का आवेश निर्धारित किया जाता है। हाइड्रोमीटर के पाठ्यांक के द्वारा आवेश निर्धारित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि विद्युत्‌ अपघट्य में आपेक्षिक घनत्व आवेश की अवस्था के साथ साथ परिवर्तित नहीं होता। .

10 संबंधों: पुनर्भरणीय विद्युत्कोष, प्राथमिक सेल, रासायनिक अभिक्रिया, लेड-एसिड बैटरी, जस्ता, विद्युत कोष, विद्युत अपघट्य, वैद्युत-रासायनिक सेल, क्षार, अम्ल

पुनर्भरणीय विद्युत्कोष

तरह-तरह की पुनर्भरणीय बैटरियाँ जिन बैटरियों को पुन: आवेशित करके पुनः विद्युत ऊर्जा ली जा सकती है उन्हें पुनर्भरणीय बैटरी (rechargeable battery) कहते हैं। इन्हें द्वितीयक सेल भी कहते हैं। इनमें होने वाली विद्युतरासायनिक अभिक्रियाएँ विद्युतीय रूप से उत्क्रमणीय (electrically reversible) होती हैं। पुनर्भरणीय बैटरियाँ विभिन्न आकार-प्रकार की होतीं है - बटन सेल से लेकर मेगावाट शक्ति प्रदान करने वाली प्रणालियाँ (विद्युत वितरण को स्थायित्व प्रदान करने के लिये) .

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प्राथमिक सेल

प्राथमिक सेल (primary cell) वे सेल हैं जिनकी डिजाइन ऐसी होती है कि उन्हें प्रयोग करने के बाद पुनः आवेशित नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिये शुष्क सेल एक प्रकार का प्राथमिक सेल है। मानक आकार वाले विभिन्न प्राथमिक सेल; बायें से:4.5V बहुसेल बैटरी, D, C, AA, AAA, AAAA, A23, 9V बहुसेल बैटरी, (ऊपर) LR44, (नीचे) CR2032 .

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रासायनिक अभिक्रिया

लकड़ी का जलना एक रासायनिक अभिक्रिया है। एक बीकर में हाइड्रोजन क्लोराइड की वाष्प में परखनली से अमोनिया की वाष्प मिलाने से एक नया पदार्थ अमोनियम क्लोराइड बनते हुए रासायनिक अभिक्रिया में एक या अधिक पदार्थ आपस में अन्तर्क्रिया (इन्टरैक्शन) करके परिवर्तित होते हैं और एक या अधिक भिन्न रासायनिक गुण वाले पदार्थ बनते हैं। किसी रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों को अभिकारक (रिएक्टैन्ट्स) कहते हैं। अभिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न पदार्थों को उत्पाद (प्रोडक्ट्स) कहते हैं। लैवासिये के समय से ही ज्ञात है कि रासायनिक अभिक्रिया बिना किसी मापने योग्य द्रव्यमान परिवर्तन के होती है। (द्रव्यमान परिवर्तन अत्यन्त कम होता है जिसे मापना कठिन है)। इसी को द्रव्यमान संरक्षण का नियम कहते हैं। अर्थात किसी रासायनिक अभिक्रिया में न तो द्रव्यमान नष्ट होता है न ही बनता है; केवल पदार्थों का परिवर्तन होता है। परम्परागत रूप से उन अभिक्रियाओं को ही रासायनिक अभिक्रिया कहते हैं जिनमें रासायनिक बन्धों को तोडने या बनाने में एलेक्ट्रानों की गति जिम्मेदार होती है। .

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लेड-एसिड बैटरी

कार आदि में प्रयुक्त '''लेड-एसिड बैटरी''' लेड-एसिड बैटरी (Lead-acid batteries) बहुतायत में प्रयोग आने वाली बैटरी है जिसका आविष्कार सन् १८५९ में फ्रांसीसी भौतिकशास्त्री गैस्टन प्लेन्टी (Gaston Planté) ने किया था। पुन: आवेशित (चार्ज) करने योग्य बैटरियों में यह सबसे पुरानी बैटरी है। सबसे कम उर्जा-से-भार के अनुपात की दृष्टि से निकिल-कैडमियम बैटरी के बाद यह दूसरे स्थान पर आती है। इसमें थोड़े समय के लिये उच्च धारा प्रदान करने की क्षमता होती है। उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त यह बहुत ही सस्ती भी होती है जिसके कारण कारों, ट्रकों, अन्य गाड़ियों तथा व्यवधानरहित शक्ति स्रोतों में बहुतायत में प्रयोग की जाती है। .

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जस्ता

जस्ता या ज़िन्क एक रासायनिक तत्व है जो संक्रमण धातु समूह का एक सदस्य है। रासायनिक दृष्टि से इसके गुण मैगनीसियम से मिलते-जुलते हैं। मनुष्य जस्ते का प्रयोग प्राचीनकाल से करते आये हैं। कांसा, जो ताम्बे व जस्ते की मिश्र धातु है, १०वीं सदी ईसापूर्व से इस्तेमाल होने के चिन्ह छोड़ गया है। ९वीं शताब्दी ईपू से राजस्थान में शुद्ध जस्ता बनाये जाने के चिन्ह मिलते हैं और ६ठीं शताब्दी ईपू की एक जस्ते की खान भी राजस्थान में मिली है। लोहे पर जस्ता चढ़ाने से लोहा ज़ंग खाने से बचा रहता है और जस्ते का प्रयोग बैट्रियों में भी बहुत होता है। .

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विद्युत कोष

विभिन्न प्रकार की विद्युत कोष (बांयी तरफ् नीचे से दक्षिणावर्त): दो 9-वोल्ट; दो AA; दो AAA; एक D विद्युत कोष; एक C विद्युत कोष; एक हैम-रेडियो की विद्युत कोष; कार्डलेस फोन की विद्युत कोष; और एक कैमराकार्डर विद्युत कोष (लेटी हुई) विद्युत कोष (Battery) विद्युत ऊर्जा का स्रोत है जिसे रासायनिक उर्जा से प्राप्त किया जाता है। वैद्युत अभियांत्रिकी एवं एलेक्ट्रानिक्स में दो या दो से अधिक विद्युतरासायनिक सेलों के संयोजन को विद्युत कोष कहते हैं। ये रासायनिक उर्जा भण्डारित करते हैं एवं इस उर्जा को विद्युत उर्जा के रूप में उपलब्ध करते हैं। सन १८०० में अलेसान्द्रो वोल्टा द्वारा sabse पहले बैटरी का आविष्कार हुआ। आजकल अधिकांश घरेलू एवं औद्योगिक उपयोगों के लिये विद्युत कोष ही विद्युत उर्जा का प्रमुख साधन है। सन २००५ के एक अनुमान के अनुसार विश्व भर में विद्युत कोष की बिक्री लगभग ४८ बिलियन अमेरिकी डालर के बराबर होता है। .

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विद्युत अपघट्य

एल्युमिनियम के एलेक्ट्रोरोलाइटिक कैपेसिटर रसायन विज्ञान में उन पदार्थों को विद्युत अपघट्य (electrolyte) कहते हैं जिनमें मुक्त एलेक्ट्रॉन होते हैं जो उस पदार्थ को विद्युत चालक बनाते हैं। किसी आयनिक यौगिक का जल में विलयन सबसे साधारण (आम) विद्युत अपघट्य है। इसके अलावा पिघले हुए आयनिक यौगिक तथा ठोस विद्युत अपघट्य भी होते हैं। सामान्यत: विद्युत अपघट्य अम्लों, क्षारों एवं लवणों के विलयन के रूप में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त उच्च ताप एवं कम दाब पर कुछ गैसें भी विद्युत अपघट्य जैसा गुण प्रदर्शित करतीं हैं। कुछ जैविक (जैसे डीएनए, पॉलीपेप्टाइड्स आदि) एवं संश्लेषित बहुलकों (जैसे पॉलीस्टरीन सल्फोनेट) के विलयन भी विद्युत अपघटनीय होते हैं। श्रेणी:भौतिक रसायन श्रेणी:विद्युत चालक.

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वैद्युत-रासायनिक सेल

डेनियल सेल से मिलता-जुलता एक प्रदर्शन विद्युतरासायनिक सेल। इसमें दो अर्ध-सेल हैं जो एक लवण-सेतु से जुड़े हैं जिससे होकर एक अर्श सेल से दूसरे में आयन आते-जाते हैं। इसके द्वारा वाह्य परिपथ में इलेक्ट्रान बहाये जाते हैं। उन सभी युक्तियों को वैद्युत-रासायनिक सेल (electrochemical cell) कहते हैं जो रासायनिक अभिक्रिया के माध्यम से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करते हैं या जिनमें विद्युत ऊर्जा देने से उनके अन्दर रासायनिक अभिक्रिया होने लगती है या उसकी गति बढ़ जाती है। 1.5-वोल्ट का शुष्क सेल इसका एक सर्वसामान्य उदाहरण है। कई सेलों को श्रेणीक्रम या समान्तर क्रम में जोड़ने से बैटरी बनती है। वाहनों की १२ वोल्ट की बैटरी इसका आम उदाहरण है। .

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क्षार

क्षार एक ऐसा पदार्थ है, जिसको जल में मिलाने से जल का pHमान 7.0 से अधिक हो जाता है। ब्रंस्टेड और लोरी के अनुसार, क्षार एक ऐसा पदार्थ है जो अम्लीय पदार्थों को OH- दान करते हैं। क्षारक वास्तव में वे पदार्थ हैं जो अम्ल के साथ मिलकर लवण और जल बनाते हैं। उदाहरणत:, जिंक आॅक्साइड सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर ज़िंक सल्फेट और जल बनाता है। दाहक सोडा (कॉस्टिक सोडा), सल्फ़्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर सोडियम सल्फेट और जल बनाता है। धातुओं के आॅक्साइड सामान्यत: क्षारक हैं। पर इसके अपवाद भी हैं। क्षारकों में धातुओं के आॅक्साइड और हाइड्राॅक्साइड हैं, पर सुविधा के लिए तत्वों के कुछ ऐसे समूह भी रखे गए हैं जो अम्लों के साथ मिलकर बिना जल बने ही लवण बनाते हैं। ऐसे क्षारकों में अमोनिया, हाइड्राॅक्सिलएमीन और फाॅस्फीन हैं। द्रव अमोनिया में घुल जाता है पर फिनोल्फथैलीन से कोई रंग नहीं देता। अत: कहाँ तक यह क्षारक कहा जा सकता है, यह बात संदिग्ध है। यद्यपि ऊपर की क्षारक की परिभाषा बड़ी असंतोषप्रद है, तथापि इससे अच्छी परिभाषा नहीं दी जा सकी है। क्षारक (बेस) और क्षार (ऐल्कैली) पर्यायवाची शब्द नहीं हैं। सब क्षार क्षारक हैं पर सब क्षारक क्षार नहीं हैं। क्षार-धातुओं के आॅक्साइड, जैसे सोडियम आॅक्साइड, जल में घुलकर हाइड्राॅक्साइड बनाते हैं। ये प्रबल क्षारकीय होते हैं। क्षारीय मृदाधातुओं के आक्साइड, जैसे कैल्सियम आॅक्साइड, जल में अल्प विलेय और अल्प क्षारीय होते हैं। अन्य धातुओं के आॅक्साइड जल में नहीं घुलते और उनके हाइड्राॅक्साइड परोक्ष रीतियों से ही बनाए जाते हैं। धातुओं के आॅक्साइड और हाइड्राॅक्साइड क्षारक होते हैं। क्षार धातुओं के आॅक्साइड जल में शीघ्र घुल जाते हैं। कुछ धातुओं के आॅक्साइड जल में कम विलेय होते हैं और कुछ धातुओं के आॅक्साइड जल में ज़रा भी विलेय नहीं हैं। कुछ अधातुओं के हाइड्राइड, जैसे नाइट्रोजन और फाॅस्फोरस के हाइड्राइड (क्रमश: अमोनिया और फाॅस्फीन) भी भस्म होते हैं। .

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अम्ल

अम्ल एक रासायनिक यौगिक है, जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन (H+) देता है। इसका pH मान 7.0 से कम होता है। जोहान्स निकोलस ब्रोंसटेड और मार्टिन लॉरी द्वारा दी गई आधुनिक परिभाषा के अनुसार, अम्ल वह रासायनिक यौगिक है जो प्रतिकारक यौगिक (क्षार) को हाइड्रोजन आयन (H+) प्रदान करता है। जैसे- एसीटिक अम्ल (सिरका में) और सल्फ्यूरिक अम्ल (बैटरी में).

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