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क्रिप्टॉन

सूची क्रिप्टॉन

क्रिप्टॉन एक रासायनिक तत्व है जो निष्क्रिय गैसों के समूह में आता है। इसका परमाणु क्रमांक 36 है। यह एक रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन गैस है जो बहुत ही छोटी मात्रा में हमारे वायुमंडल में पाई जाती है। इसका प्रयोग बिजली के बल्ब बनाने में और फ़ोटोग्राफ़ी में किया जाता है। जब इसे प्लाज़्मा स्थिति में लाया जाता है तो यह बहुत तरंगदैर्ध्यों (वेवलेन्थ) पर प्रकाश उत्पन्न करती है। इस वजह से इसे लेज़र बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। .

8 संबंधों: तरंगदैर्घ्य, निष्क्रिय गैस, परमाणु क्रमांक, प्लाज़्मा (भौतिकी), पृथ्वी का वायुमण्डल, रासायनिक तत्व, लेसर किरण, छायाचित्र

तरंगदैर्घ्य

साइन-आकारीय अनुप्रस्थ तरंग का तरंगदैर्घ्य, '''λ''' भौतिकी में, कोई साइन-आकार की तरंग, जितनी दूरी के बाद अपने आप को पुनरावृत (repeat) करती है, उस दूरी को उस तरंग का तरंगदैर्घ्य (wavelength) कहते हैं। 'दीर्घ' (.

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निष्क्रिय गैस

निष्क्रिय गैसें (inert gases) ऐसे रासायनिक तत्व हैं जो साधारण परिस्थितियों में बिना किसी रंग, गंध या स्वाद के गैस रूप में रहते हैं। इस गैस में केवल एक परमाणु वाले कण होते हैं क्योंकि निष्क्रिय रासायनिक तत्व आमतौर पर किसी भी तत्व के साथ रासायनिक अभिक्रिया (रियैक्शन) करके अणु नहीं बनाते हैं। ऐसे तत्वों को शाही गैस (noble gas) भी कहा जाता है। प्रकृति में छह निष्क्रिय गैसें मिलती हैं: हिलियम (He), नियोन (Ne), आर्गन (Ar), क्रिप्टोन (Kr), ज़ीनोन (Xe) और रेडोन (Rn)। यह गैसें आवर्त सारणी (पीरियोडिक टेबल) के १८वें स्त्म्भ में मिलती हैं। .

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परमाणु क्रमांक

रसायन विज्ञान एवं भौतिकी में सभी तत्वों का अलग-अलग परमाणु क्रमांक (atomic number) है जो एक तत्व को दूसरे तत्व से अलग करता है। किसी तत्व का परमाणु क्रमांक उसके तत्व के नाभिक में स्थित प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होता है। इसे Z प्रतीक से प्रदर्शित किया जाता है। किसी आवेशरहित परमाणु पर एलेक्ट्रॉनों की संख्या भी परमाणु क्रमांक के बराबर होती है। रासायनिक तत्वों को उनके बढते हुए परमाणु क्रमांक के क्रम में विशेष रीति से सजाने से आवर्त सारणी का निर्माण होता है जिससे अनेक रासायनिक एवं भौतिक गुण स्वयं स्पष्ट हो जाते हैं।, American Institute of Physics .

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प्लाज़्मा (भौतिकी)

प्लाज्मा दीप भौतिकी और रसायन शास्त्र में, प्लाज्मा आंशिक रूप से आयनीकृत एक गैस है, जिसमें इलेक्ट्रॉनों का एक निश्चित अनुपात किसी परमाणु या अणु के साथ बंधे होने के बजाय स्वतंत्र होता है। प्लाज्मा में धनावेश और ऋणावेश की स्वतंत्र रूप से गमन करने की क्षमता प्लाज्मा को विद्युत चालक बनाती है जिसके परिणामस्वरूप यह दृढ़ता से विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों से प्रतिक्रिया कर पाता है। प्लाज्मा के गुण ठोस, द्रव या गैस के गुणों से काफी विपरीत हैं और इसलिए इसे पदार्थ की एक भिन्न अवस्था माना जाता है। प्लाज्मा आमतौर पर, एक तटस्थ-गैस के बादलों का रूप ले लेता है, जैसे सितारों में। गैस की तरह प्लाज्मा का कोई निश्चित आकार या निश्चित आयतन नहीं होता जब तक इसे किसी पात्र में बंद न कर दिया जाए लेकिन गैस के विपरीत किसी चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव में यह एक फिलामेंट, पुंज या दोहरी परत जैसी संरचनाओं का निर्माण करता है। प्लाज़्मा ग्लोब एक सजावटी वस्तु होती है, जिसमें एक कांच के गोले में कई गैसों के मिश्रण में इलेक्ट्रोड द्वारा गोले तक कई रंगों की किरणें चलती दिखाई देती हैं। प्लाज्मा की पहचान सबसे पहले एक क्रूक्स नली में १८७९ मे सर विलियम क्रूक्स द्वारा की गई थी उन्होंने इसे “चमकते पदार्थ” का नाम दिया था। क्रूक्स नली की प्रकृति "कैथोड रे" की पहचान इसके बाद ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी सर जे जे थॉमसन द्वारा १८९७ में द्वारा की गयी। १९२८ में इरविंग लैंगम्युइर ने इसे प्लाज्मा नाम दिया, शायद इसने उन्हें रक्त प्लाविका (प्लाज्मा) की याद दिलाई थी। .

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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रासायनिक तत्व

रासायनिक तत्वों की आवर्त सारणी रासायनिक तत्व (या केवल तत्व) ऐसे उन शुद्ध पदार्थों को कहते हैं जो केवल एक ही तरह के परमाणुओं से बने होते हैं। या जो ऐसे परमाणुओं से बने होते हैं जिनके नाभिक में समान संख्या में प्रोटॉन होते हैं। सभी रासायनिक पदार्थ तत्वों से ही मिलकर बने होते हैं। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन, तथा सिलिकॉन आदि कुछ तत्व हैं। सन २००७ तक कुल ११७ तत्व खोजे या पाये जा चुके हैं जिसमें से ९४ तत्व धरती पर प्राकृतिक रूप से विद्यमान हैं। कृत्रिम नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप उच्च परमाणु क्रमांक वाले तत्व समय-समय पर खोजे जाते रहे हैं। .

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लेसर किरण

कुहरे में लेज़र किरण एक कार के शीशे से परावर्तित होती हुई। लेजर (विकिरण के उद्दीप्त उत्सर्जन द्वारा प्रकाश प्रवर्धन) (अंग्रेज़ी:लाइट एंप्लीफिकेशन बाई स्टीमुलेटेड एमिशन ऑफ रेडिएशन) का संक्षिप्त नाम है। प्रत्यक्ष वर्णक्रम की विद्युतचुम्बकीय तरंग, यानि प्रकाश उत्तेजित उत्सर्जन की प्रक्रिया द्वारा संवर्धित कर एक सीधी रेखा की किरण में बदल कर उत्सर्जित करने का तरीक होता है। इस प्रका निकली प्रकाश किरण को भी लेज़र किरण ही कहा जाता है। ये किरण प्रायः आकाशीय रूप से कोहैरेन्ट (सरल रैखिक व एक स्रोतीय), संकरी अविचलित होती है, जिसे किसी लेन्स द्वारा परिवर्तित भी किया जा सकता है। ये किरणें संकरी वेवलेन्थ, विद्युतचुम्बकीय वर्णक्रम की एकवर्णीय प्रकाश किरणें होती है। हालांखि बहुवर्णीय प्रकाशधारिणी लेज़र किरणें या बहु वेवलेन्थ लेज़र भी निर्मित की जाती हैं। एक पदार्थ (सामान्यत: एक गैस और क्रिस्टल) को ऊर्जा, जैसे प्रकाश या विद्युत से टकराने के बाद वह अणु को विद्युतचुम्बकीय विकिरण (एक्सरे, पराबैंगनी किरणें) उत्सर्जित करने के लिए उत्तेजित करता है जिसको बाद में संवर्धित किया जाता है और एक किरण के रूप में इसे छोड़ा जाता है। लेजर एक ऐसी तकनीक के रूप में विकसित हुई है जिसके सहारे आज आधुनिक जगत के अनेक कार्य सिद्ध होते हैं। लेज़र का आविष्कार लगभग ५० वर्ष पहले हुआ था। आधुनिक जगत में लेजर का प्रयोग हर जगह मिलता है – वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं, सुपरमार्केट और शॉपिंग मॉल्स से लेकर अस्पतालों तक में भी। मनोरंजन के संसार में डीवीडी के प्रकार्य में लेज़र ही सहायक होता है, सुरक्षा और सैन्य क्षेत्र में वायुयानों को गाइड करने में, तोप और बंदूकों को लक्ष्य लॉक करने में, आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में दंत चिकित्सा और लेज़र से आंख के व अन्य शारीरिक ऑपरेशन, कार्यालयों के कार्य में लेज़र प्रिंटर द्वारा डाक्यूमेंट प्रिंटिंग, संचा क्षेत्र में ऑप्टिकल फाइबर केबलों तक में लेज़र ही चलती है। पिछले ५० वषों में लेजर ने अपनी उपयोगिता को व्यापक तौर पर सिद्ध कर दिखाया है। लेजर किरण का आविष्कार थिओडोर मैमेन द्वारा हुआ मात्र एक संयोग ही था। थिओडोर मैमेन के कैमरे के लैंस की कुण्डली के ऊपर माणिक्य (रूबी) का एक टुकड़ा संयोग से रखने पर एक लाल रंग की प्रकाश किरण निकली। थिओडोर ने ह्यूज़स शोध प्रयोगशाला में इस पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने वहां देखा कि किसी बल्ब के फ्लैश से माणिक्य के पतले से बेलन को आवेशित करना संभव है और फिर इससे ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। इससे शुद्ध लाल रंग का प्रकाश उत्सर्जित होता है जिसकी तरंगें एक समान रूप और अंतराल से प्रवाहित होती हैं और एक सीधी रेखा में चलती हैं। चूंकि ये किरणें अत्यंत शक्तिशाली थीं और परीक्षण के दौरान सर्वप्रथम एक रेजर के ब्लेड में भी छेद बना सकती थी, इसलिए तत्कालीन भौतिकशास्त्रियों ने इसकी शक्ति को जिलेट में मापना शुरू किया। .

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छायाचित्र

किसी भौतिक वस्तु से निकलने वाले विकिरण को किसी संवेदनशील माध्यम (जैसे फोटोग्राफी की फिल्म, एलेक्ट्रानिक सेंसर आदि) के उपर रेकार्ड करके जब कोई स्थिर या चलायमान छबि (तस्वीर) बनायी जाती है तो उसे छायाचित्र (फोटोग्रफ) कहते हैं। छायाचित्रण (फोटोग्राफी) की प्रकिया कुछ सीमा तक कला भी है। इस कार्य के लिये यो युक्ति प्रयोग की जाती है उसे कैमरा कहते हैं। व्यापार, विज्ञान, कला एवं मनोरंजन आदि में छायाचित्रकारी के बहुत से उपयोग हैं। thumb SLR. Nikon F of 1959 — the first 35mm film system camera. Late Production Minox B camera with later style "honeycomb" selenium light meter .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

Kr, क्रिप्टन, क्रिप्टान, क्रिप्टोन, कृप्टन

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