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बृहदांत्र कैन्सर

सूची बृहदांत्र कैन्सर

कोलोरेक्टल कैंसर में जिसे बृहदांत्र कैंसर या बड़ी आंत का कैंसर भी कहा जाता है, बृहदांत्र, मलाशय या उपांत्र में कैंसर का विकास शामिल होता है। इससे दुनिया भर में प्रतिवर्ष 655,000 मौतें होती हैं, संयुक्त राज्य में कैंसर का यह चौथा सबसे सामान्य प्रकार है और पश्चिमी दुनिया में कैंसर से होने वाली मौतों का तीसरा प्रमुख कारण है। कोलोरेक्टल कैंसर, बृहदांत्र में एडिनोमेटस पौलिप से पैदा होता है। मशरूम के आकार की ये वृद्धि आमतौर पर सामान्य होती है, पर समय बीतते-बीतते इनमे से कुछ कैंसर में बदल जाती हैं। स्थानीयकृत बृहदान्त्र कैंसर का आमतौर पर बृहदांत्रोस्कोपी के माध्यम से निदान किया जाता है। तेजी से बढ़ने वाले वे कैंसर जो बृहदांत्र की दीवार तक सीमित रहते हैं (TNM चरण I और II), सर्जरी द्वारा ठीक किये जा सकते हैं। यदि इस चरण में चिकित्सा नहीं हुई तो वे स्थानीय लिम्फ नोड तक फ़ैल जाते हैं (चरण III), जहां 73% को सर्जरी और कीमोथिरेपी द्वारा ठीक किया जा सकता है। दूरवर्ती अंगो को प्रभावित करने वाला मेटास्टैटिक कैंसर (चरण IV) का इलाज सामान्यतया संभव नहीं है, हालांकि कीमोथेरेपी जिन्दगी बढ़ा देती है और कुछ बेहद बिरले उदाहरणों में सर्जरी और कीमोथिरेपी दोनों से रोगियो को ठीक होते देखा गया है। रेक्टल कैंसर में रेडिऐशन का इस्तेमाल किया जाता है। कोशिकीय और आणविक स्तर पर, कोलोरेक्टल कैंसर Wnt सिग्नलिंग पाथवे में परिवर्तन के साथ शुरू होता है। जब Wnt (डब्लूएनटी) एक ग्राही को कोशिका पर बांध देता है तो इससे आणवीय घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो जाती है। इस श्रृंखला का अंत β- कैटेनिन के केन्द्रक में जाने और DNA पर जीन को सक्रिय करने में होता है। कोलोरेक्टल कैंसर में इस श्रृंखला के साथ जीन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। प्रायः APC नाम का जीन जो Wnt पाथवे में "अवरोध" होता है, क्षतिग्रस्त हो जाता है। बिना क्रियाशील APC ब्रेक के Wnt पाथवे "चालू" स्थिति में अटक जाता है। .

39 संबंधों: ऊतक परीक्षा, एस्पिरिन, थकान, द्वार, न्यूमोनिया, परामर्श, प्रधानमन्त्री, प्रोटीन, पीलिया, फ़िलीपीन्स, फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता, ब्रिटेन, बृहदान्त्र, बेरियम सल्फेट, मल, मलाशय, मैलकम मार्शल, मूत्राशय, राष्ट्रपति, रक्त, रक्त परीक्षण, रोनाल्ड विलसन रीगन, लसीका, शल्यचिकित्सा, संयुक्त राज्य, संक्रमण, सेलेनियम, सीटी स्कैन, हेरोल्ड विल्सन, ज्वर, घनास्रता, ओंकोजीन, आनुवांशिक परामर्श, कब्ज, कर्कट रोग, कीमोथेरेपी, अतिसार, अर्बुद, उल्टी

ऊतक परीक्षा

मस्तिष्क की बायॉप्सी ऊतक परीक्षा (अंग्रेज़ी: बाइऑप्सी) निदान के लिए जीवित प्राणियों के शरीर से ऊतक (टिशू) को अलग कर जो परीक्षण किया जाता है उसे कहते हैं। अर्बुद (ट्यूमर) के निदान की अन्य विधियाँ उपलब्ध न होने पर, संभावित ऊतक के अपेक्षाकृत एक बड़े टुकड़े का सूक्ष्म अध्ययन ही निदान की सर्वोत्तम रीति है। शल्य चिकित्सा में इसकी महत्ता अधिक है, क्योंकि इसके द्वारा ही निदान निश्चित होता है तथा शल्य चिकित्सक को आँख बंदकर करने के बदले उचित उपचार करने का मार्ग मिल जाता है। .

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एस्पिरिन

एस्पिरिन (यूएसएएन)(USAN), जिसे एसिटाइलसैलिसाइलिक एसिड (संक्षिप्त में एएसए), भी कहते हैं, एक सैलिसिलेट औषधि है, जो अकसर हल्के दर्दों से छुटकारा पाने के लिये दर्दनिवारक के रूप में, ज्वर कम करने के लिये ज्वरशामक के रूप में और शोथ-निरोधी दवा के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। एस्पिरिन का एक प्लेटलेट-विरोधी प्रभाव भी होता है, जो थ्राम्बाक्सेन उत्पादन के अवरोध से उत्पन्न होता है, जो सामान्य परिस्थितियों में प्लेटलेटों के अणुओं को आपस में बांधकर रक्त नलिकाओं के भीतर की भित्तियों पर हुई चोट पर एक चकत्ते का निर्माण करता है। चूंकि प्लेटलेटों का चकत्ता काफी बड़ा होकर रक्त-प्रवाह में उस स्थान पर या आगे कहीं भी रूकावट पैदा कर सकता है, इसलिये रक्त के थक्कों के विकास के अधिक जोखम वाले लोगों में एस्पिरिन का प्रयोग लंबे समय के लिये कम मात्रा में हृदयाघात, मस्तिष्क-आघात और रक्त के थक्कों की रोकथाम के लिये भी किया जाता है। यह भी पाया गया है कि हृदयाघात के तुरंत बाद थोड़ी मात्रा में एस्पिरिन देकर एक और हृदयाघात या हृदय के ऊतक की मृत्यु का जोखम कम किया जा सकता है। एस्पिरिन के, विशेषकर अधिक मात्रा में लेने पर, मुख्य अवांछित दुष्प्रभावों में आमाशय व आंतों में छाले, आमाशय में रक्तस्राव और कानों में आवाज आना शामिल हैं। बच्चों और किशोरों में रेइज़ सिंड्रोम के जोखम के कारण, फ्लू जैसे लक्षणों या छोटी चेचक (चिकनपॉक्स) या अन्य वाइरस रोगों के लक्षणों के नियंत्रण के लिये अब एस्पिरिन का इस्तेमाल नहीं किया जाता.

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थकान

परंपरागत परिभाषा के अनुसार लंबे समय तक कार्य करने के फलस्वरूप घटी हुई क्षमता को ही थकान या श्रांति (fatigue/फैटिग) की संज्ञा दी जाती है। किसी कार्य को लगातार करने से उत्पादन गति का ह्रास होना ही थकान है। थकान को साधारणतया सभी लोग जानते हैं, फिर भी इसके स्वरूप को पहचानना बहुत कठिन है। थकान की वैज्ञानिक परिभाषा गिलब्रैथ (Gilbreth) ने दी है। इनकी परिभाषा तीन तथ्यों पर आधारित है-.

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द्वार

दक्षिण भारत में स्थित एक बौद्धमठ का कपाट वास्तुकला में द्वार या दरवाज़ा एक ऐसा हिल सकने वाला ढांचा होता है जिस से किसी कमरे, भवन या अन्य स्थान के प्रवेश-स्थल को खोला और बंद किया जा सके। अक्सर यह एक चपटा फट्टा होता है जो अपने कुलाबे पर घूम सकता है। जब दरवाज़ा खुला होता है तो उस से बाहर की हवा, रोशनी और आवाज़ें अन्दर प्रवेश करती हैं। द्वारों को बंद करने के लिए उनपर अक्सर तालों, ज़ंजीरों या कुण्डियों का बंदोबस्त किया जाता है। आने जाने की सुविधा या रोक के लिए लगाए गए लकड़ी, धातु या पत्थर के एक टुकड़े, या जोड़े हुए कई टुकड़ों, के पल्लों को द्वारकपाट, कपाट या किवाड़ कहते हैं।, West Publishing Company, 1904,...

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न्यूमोनिया

फुफ्फुसशोथ या फुफ्फुस प्रदाह (निमोनिया) फेफड़े में सूजन वाली एक परिस्थिति है—जो प्राथमिक रूप से अल्वियोली(कूपिका) कहे जाने वाले बेहद सूक्ष्म (माइक्रोस्कोपिक) वायु कूपों को प्रभावित करती है। यह मुख्य रूप से विषाणु या जीवाणु और कम आम तौर पर सूक्ष्मजीव, कुछ दवाओं और अन्य परिस्थितियों जैसे स्वप्रतिरक्षित रोगों द्वारा संक्रमण द्वारा होती है। आम लक्षणों में खांसी, सीने का दर्द, बुखार और सांस लेने में कठिनाई शामिल है। नैदानिक उपकरणों में, एक्स-रे और बलगम का कल्चर शामिल है। कुछ प्रकार के निमोनिया की रोकथाम के लिये टीके उपलब्ध हैं। उपचार, अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करते हैं। प्रकल्पित बैक्टीरिया जनित निमोनिया का उपचार प्रतिजैविक द्वारा किया जाता है। यदि निमोनिया गंभीर हो तो प्रभावित व्यक्ति को आम तौर पर अस्पताल में भर्ती किया जाता है। वार्षिक रूप से, निमोनिया लगभग 450 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है जो कि विश्व की जनसंख्या का सात प्रतिशत है और इसके कारण लगभग 4 मिलियन मृत्यु होती हैं। 19वीं शताब्दी में विलियम ओस्लर द्वारा निमोनिया को "मौत बांटने वाले पुरुषों का मुखिया" कहा गया था, लेकिन 20वीं शताब्दी में एंटीबायोटिक उपचार और टीकों के आने से बचने वाले लोगों की संख्या बेहतर हुई है।बावजूद इसके, विकासशील देशों में, बहुत बुज़ुर्गों, बहुत युवा उम्र के लोगों और जटिल रोगियों में निमोनिया अभी मृत्यु का प्रमुख कारण बना हुआ है। .

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परामर्श

किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्याओं एवं कठिनाइयों को दूर करने के लिये दी जाने वाली सहायता, सलाह और मार्गदर्शन, परामर्श (Counseling) कहलाता है। परामर्श देने वाले व्यक्ति को परामर्शदाता (काउन्सलर) कहते हैं। निर्देशन (गाइडेंस) के अन्तर्गत परामर्श एक आयोजित विशिष्ट सेवा है। यह एक सहयाेगी प्रक्रिया है। इसमें परामर्शदाता साक्षात्कार एवं प्रेक्षण के माध्यम से सेवार्थी के निकट जाता है उसे उसकी शक्ति व सीमाओं के बारे में उसे सही बोध कराता है। सभी समाजों में परामर्श देने और परामर्श प्राप्त करने की परम्परा पायी जाती है। चाहे दो विकल्पों में एक चयन की समस्या हो, किसी भी प्रकार के भ्रम की स्थिति हो, अथवा मानसिक तनाव हो, परामर्श आवश्यक और अपरिहार्य हो जाता है। परामर्श में कम से कम दो व्यक्तियों की लिप्तता अवश्य होती है, एक परामर्शक या परामर्श दाता और दूसरा परामर्श प्राप्त करने वाला। व्यक्ति अपनी निजी समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श चाहता है। व्यक्तिगत समस्या शारीरिक, मानसिक, व्यवसाय सम्बन्धी तथा समाज सम्बन्धी हो सकती है जिसके लिए उसे परामर्शक की आवश्यकता होती है। परामर्श मूलतः पारस्परिक होता है। इसका आधार परम्परा विश्वास है। व्यक्ति परामर्श उसी से लेता है जिसमें उसका विश्वास होता है और यदि परामर्शक सच्चा, ईमानदार और सन्निष्ठ है तो वह उसी व्यक्ति को परामर्श देता है जिसे वह समझता है कि वह परामर्श को स्वीकार करेगा और यथा सम्भव इसका पालन करेगा। व्यावसायिक निर्देशन (प्रोफेशनल गाइडेंस) के क्षेत्र में प्रमुख योगदान करने वाले विख्यात लेखक ई॰ डब्ल्यू॰ मायस ने लिखा है कि परामर्श देना एक महान कला है इस प्रकार परामर्शक को बहुत ही सावधानी तथा सतर्कता से परामर्श देना चाहिए। परामर्शक को अनुभवी, सुधी, सजग और परिपक्व होना चाहिए जिसका लाभ प्रत्याशी को मिल सके। समाज-गठन के आरम्भिक दिनों में परामर्श न तो व्यवस्थित था और न वैज्ञानिक। इसकी कोई प्रक्रिया नहीं थी। इसका कोई स्वरूप भी नहीं था। परामर्शक परामर्श देने के पूर्व किसी प्रकार की तैयारी भी नहीं करता था और न किसी निश्चित लक्ष्य को ध्यान में रख कर परामर्शेच्छु परामर्श की आकांक्षा करता था। समय के अनुसार परामर्श का स्वरूप भी बदलता गया। जिस प्रकार से विभिन्न शास्त्रों एवं विज्ञानों, में नवीन अवधारणा, प्रक्रिया तथा व्यवस्था का समावेश हुआ उसी प्रकार परामर्श भी उससे अछूता नहीं रहा है। हैरमिन के अनुसार- परामर्श मनोपचारात्मक सम्बन्ध है जिसमें एक प्रार्थी एक सलाहकार से प्रत्यक्ष सहायता प्राप्त करता है या नकारात्मक भावनाओं को कम करने का अवसर और व्यक्तित्व में सकारात्मक वृद्धि के लिये मार्ग प्रशस्त होता है। मायर्स ने लिखा है- परामर्श से अभिप्राय दो व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को एक विशेष प्रकार की सहायता करता है। विलि एवं एण्ड्र ने कहा कि परामर्श पारस्परिक रूप से सीखने की प्रक्रिया है। इसमें दो व्यक्ति सम्मिलित होते है सहायता प्राप्त करने वाला और दूसरा प्रशिक्षित व्यक्ति जो प्रथम व्यक्ति की सहायता इस प्रकार करता है कि उसका अधिकतम विकास हो सकें। ब्रीवर ने परामर्श को बातचीत करना, विचार-विमर्श करना तथा मित्रतापूर्वक वार्तालाप करना बताया है। .

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प्रधानमन्त्री

प्रधानमंत्री एक ऐसा राजनेता होता है जो कि सरकार की कार्यकारिणी शाखा का संचालन करता है। सामान्यतः, प्रधानमंत्री अपने देश की संसद का सदस्य भी होता है। भारत में प्रधानमन्त्री या अन्य कोई मन्त्री छः माह तक बिना संसद सदस्य रहते हुए भी पद पर बने रह सकते हैं लेकिन उन्हे छः महीने के अन्दर संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनना पडेगा। अगर प्रधानमन्त्री या मन्त्री इस अवधि में संसद के सदस्य बनने में विफल रहते हैं तो उन्हे त्यागपत्र देना पडेगा। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि हर बार छ: माह के लिए आप सदन के सदस्य न रहते हुए भी मन्त्री पद पर आसीन रहे। इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यालय का निर्णय अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री वर्ष २०१४ में निर्वाचित श्री नरेन्द्र मोदी हैं जो भारतीय जनता पार्टी के सदस्य तथा वाराणसी से सांसद हैं। .

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प्रोटीन

रुधिरवर्णिका(हीमोग्लोबिन) की संरचना- प्रोटीन की दोनो उपइकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखाया गया है। प्रोटीन या प्रोभूजिन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है। ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल प्रोटीन का गठन केवल अमीनो अम्ल द्वारा होता है एवं संयुक्त प्रोटीन के गठन में अमीनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन हैं जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं। अमीनो अम्ल के पॉलीमराईजेशन से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा १०,००० से अधिक होती है। प्राथमिक स्वरूप, द्वितीयक स्वरूप, तृतीयक स्वरूप और चतुष्क स्वरूप प्रोटीन के चार प्रमुख स्वरुप है। प्रोटीन त्वचा, रक्त, मांसपेशियों तथा हड्डियों की कोशिकाओं के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। जन्तुओं के शरीर के लिए कुछ आवश्यक प्रोटीन एन्जाइम, हार्मोन, ढोने वाला प्रोटीन, सिकुड़ने वाला प्रोटीन, संरचनात्मक प्रोटीन एवं सुरक्षात्मक प्रोटीन हैं। प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं इन्जाइम के रूप में शरीर की जैवरसायनिक क्रियाओं का संचालन करना है। आवश्यकतानुसार इससे ऊर्जा भी मिलती है। एक ग्राम प्रोटीन के प्रजारण से शरीर को ४.१ कैलीरी ऊष्मा प्राप्त होती है। प्रोटीन द्वारा ही प्रतिजैविक (एन्टीबॉडीज़) का निर्माण होता है जिससे शरीर प्रतिरक्षा होती है। जे.

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पीलिया

रक्तरस में पित्तरंजक (Billrubin) नामक एक रंग होता है, जिसके आधिक्य से त्वचा और श्लेष्मिक कला में पीला रंग आ जाता है। इस दशा को कामला या पीलिया (Jaundice) कहते हैं। सामान्यत: रक्तरस में पित्तरंजक का स्तर 1.0 प्रतिशत या इससे कम होता है, किंतु जब इसकी मात्रा 2.5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब कामला के लक्षण प्रकट होते हैं। कामला स्वयं कोई रोगविशेष नहीं है, बल्कि कई रोगों में पाया जानेवाला एक लक्षण है। यह लक्षण नन्हें-नन्हें बच्चों से लेकर 80 साल तक के बूढ़ों में उत्पन्न हो सकता है। यदि पित्तरंजक की विभिन्न उपापचयिक प्रक्रियाओं में से किसी में भी कोई दोष उत्पन्न हो जाता है तो पित्तरंजक की अधिकता हो जाती है, जो कामला के कारण होती है। रक्त में लाल कणों का अधिक नष्ट होना तथा उसके परिणामस्वरूप अप्रत्यक्ष पित्तरंजक का अधिक बनना बच्चों में कामला, नवजात शिशु में रक्त-कोशिका-नाश तथा अन्य जन्मजात, अथवा अर्जित, रक्त-कोशिका-नाश-जनित रक्ताल्पता इत्यादि रोगों का कारण होता है। जब यकृत की कोशिकाएँ अस्वस्थ होती हैं तब भी कामला हो सकता है, क्योंकि वे अपना पित्तरंजक मिश्रण का स्वाभाविक कार्य नहीं कर पातीं और यह विकृति संक्रामक यकृतप्रदाह, रक्तरसीय यकृतप्रदाह और यकृत का पथरा जाना (कड़ा हो जाना, Cirrhosis) इत्यादि प्रसिद्ध रोगों का कारण होती है। अंतत: यदि पित्तमार्ग में अवरोध होता है तो पित्तप्रणाली में अधिक प्रत्यक्ष पित्तरंजक का संग्रह होता है और यह प्रत्यक्ष पित्तरंजक पुन: रक्त में शोषित होकर कामला की उत्पत्ति करता है। अग्नाशय, सिर, पित्तमार्ग तथा पित्तप्रणाली के कैंसरों में, पित्ताश्मरी की उपस्थिति में, जन्मजात पैत्तिक संकोच और पित्तमार्ग के विकृत संकोच इत्यादि शल्य रोगों में मार्गाविरोध यकृत बाहर होता है। यकृत के आंतरिक रोगों में यकृत के भीतर की वाहिनियों में संकोच होता है, अत: प्रत्यक्ष पित्तरंजक के अतिरिक्त रक्त में प्रत्यक्ष पित्तरंजक का आधिक्य हो जाता है। वास्तविक रोग का निदान कर सकने के लिए पित्तरंजक का उपापचय (Metabolism) समझना आवश्यक है। रक्तसंचरण में रक्त के लाल कण नष्ट होते रहते हैं और इस प्रकार मुक्त हुआ हीमोग्लोबिन रेटिकुलो-एंडोथीलियल (Reticulo-endothelial) प्रणाली में विभिन्न मिश्रित प्रक्रियाओं के उपरांत पित्तरंजक के रूप में परिणत हो जाता है, जो विस्तृत रूप से शरीर में फैल जाता हैस, किंतु इसका अधिक परिमाण प्लीहा में इकट्ठा होता है। यह पित्तरंजक एक प्रोटीन के साथ मिश्रित होकर रक्तरस में संचरित होता रहता है। इसको अप्रत्यक्ष पित्तरंजक कहते हैं। यकृत के सामान्यत: स्वस्थ अणु इस अप्रत्यक्ष पित्तरंजक को ग्रहण कर लेते हैं और उसमें ग्लूकोरॉनिक अम्ल मिला देते हैं यकृत की कोशिकाओं में से गुजरता हुआ पित्तमार्ग द्वारा प्रत्यक्ष पित्तरंजक के रूप में छोटी आँतों की ओर जाता है। आँतों में यह पित्तरंजक यूरोबिलिनोजन में परिवर्तित होता है जिसका कुछ अंश शोषित होकर रक्तरस के साथ जाता है और कुछ भाग, जो विष्ठा को अपना भूरा रंग प्रदान करता है, विष्ठा के साथ शरीर से निकल जाता है। प्रत्येक दशा में रोगी की आँख (सफेदवाला भाग Sclera) की त्वचा पीली हो जाती है, साथ ही साथ रोगविशेष काभी लक्षण मिलता है। वैसे सामान्यत: रोगी की तिल्ली बढ़ जाती है, पाखाना भूरा या मिट्टी के रंग का, ज्यादा तथा चिकना होता है। भूख कम लगती है। मुँह में धातु का स्वाद बना रहता है। नाड़ी के गति कम हो जाती है। विटामिन 'के' का शोषण ठीक से न हो पाने के कारण तथा रक्तसंचार को अवरुद्ध (haemorrhage) होने लगता है। पित्तमार्ग में काफी समय तक अवरोध रहने से यकृत की कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं। उस समय रोगी शिथिल, अर्धविक्षिप्त और कभी-कभी पूर्ण विक्षिप्त हो जाता है तथा मर भी जाता है। कामला के उपचार के पूर्व रोग के कारण का पता लगाया जाता है। इसके लिए रक्त की जाँच, पाखाने की जाँच तथा यकृत-की कार्यशक्ति की जाँच करते हैं। इससे यह पता लगता है कि यह रक्त में लाल कणों के अधिक नष्ट होने से है या यकृत की कोशिकाएँ अस्वस्थ हैं अथवा पित्तमार्ग में अवरोध होने से है। पीलिया की चिकित्सा में इसे उत्पन्न करने वाले कारणों का निर्मूलन किया जाता है जिसके लिए रोगी को अस्पताल में भर्ती कराना आवश्यक हो जाता है। कुछ मिर्च, मसाला, तेल, घी, प्रोटीन पूर्णरूपेण बंद कर देते हैं, कुछ लोगों के अनुसार किसी भी खाद्यसामग्री को पूर्णरूपेण न बंद कर, रोगी के ऊपर ही छोड़ दिया जाता है कि वह जो पसंद करे, खा सकता है। औषधि साधारणत: टेट्रासाइक्लीन तथा नियोमाइसिन दी जाती है। कभी-कभी कार्टिकोसिटरायड (Corticosteriod) का भी प्रयोग किया जाता है जो यकृत में फ़ाइब्रोसिस और अवरोध उत्पन्न नहीं होने देता। यकृत अपना कार्य ठीक से संपादित करे, इसके लिए दवाएँ दी जाती हैं जैसे लिव-52, हिपालिव, लिवोमिन इत्यादि। कामला के पित्तरंजक को रक्त से निकालने के लिए काइनेटोमिन (Kinetomin) का प्रयोग किया जाता है। कामला के उपचार में लापरवाही करने से जब रोग पुराना हो जाता है तब एक से एक बढ़कर नई परेशानियाँ उत्पन्न होती जाती हैं और रोगी विभिन्न स्थितियों से गुजरता हुआ कालकवलित हो जाता है। पीलिया रोग वायरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस को साधारणत: लोग पीलिया के नाम से जानते हैं। यह रोग बहुत ही सूक्ष्‍म विषाणु (वाइरस) से होता है। शुरू में जब रोग धीमी गति से व मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं पडते हैं, परन्‍तु जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है तो रोगी की आंखे व नाखून पीले दिखाई देने लगते हैं, लोग इसे पीलिया कहते हैं। जिन वाइरस से यह होता है उसके आधार पर मुख्‍यतः पीलिया तीन प्रकार का होता है वायरल हैपेटाइटिस ए, वायरल हैपेटाइटिस बी तथा वायरल हैपेटाइटिस नान ए व नान बी। रोग का प्रसार कैसे? यह रोग ज्‍यादातर ऐसे स्‍थानो पर होता है जहाँ के लोग व्‍यक्तिगत व वातावरणीय सफाई पर कम ध्‍यान देते हैं अथवा बिल्‍कुल ध्‍यान नहीं देते। भीड-भाड वाले इलाकों में भी यह ज्‍यादा होता है। वायरल हैपटाइटिस बी किसी भी मौसम में हो सकता है। वायरल हैपटाइटिस ए तथा नाए व नान बी एक व्‍यक्ति से दूसरे व्‍यक्ति के नजदीकी सम्‍पर्क से होता है। ये वायरस रोगी के मल में होतें है पीलिया रोग से पीडित व्‍यक्ति के मल से, दूषित जल, दूध अथवा भोजन द्वारा इसका प्रसार होता है। ऐसा हो सकता है कि कुछ रोगियों की आंख, नाखून या शरीर आदि पीले नही दिख रहे हों परन्‍तु यदि वे इस रोग से ग्रस्‍त हो तो अन्‍य रोगियो की तरह ही रोग को फैला सकते हैं। वायरल हैपटाइटिस बी खून व खून व खून से निर्मित प्रदार्थो के आदान प्रदान एवं यौन क्रिया द्वारा फैलता है। इसमें वह व्‍यक्ति हो देता है उसे भी रोगी बना देता है। यहाँ खून देने वाला रोगी व्‍यक्ति रोग वाहक बन जाता है। बिना उबाली सुई और सिरेंज से इन्‍जेक्‍शन लगाने पर भी यह रोग फैल सकता है। पीलिया रोग से ग्रस्‍त व्‍यक्ति वायरस, निरोग मनुष्‍य के शरीर में प्रत्‍यक्ष रूप से अंगुलियों से और अप्रत्‍यक्ष रूप से रोगी के मल से या मक्खियों द्वारा पहूंच जाते हैं। इससे स्‍वस्‍थ्‍य मनुष्‍य भी रोग ग्रस्‍त हो जाता है। रोग कहाँ और कब? ए प्रकार का पीलिया तथा नान ए व नान बी पीलिया सारे संसार में पाया जाता है। भारत में भी इस रोग की महामारी के रूप में फैलने की घटनायें प्रकाश में आई हैं। हालांकि यह रोग वर्ष में कभी भी हो सकता है परन्‍तु अगस्‍त, सितम्‍बर व अक्‍टूबर महिनों में लोग इस रोग के अधिक शिकार होते हैं। सर्दी शुरू होने पर इसके प्रसार में कमी आ जाती है। रोग के लक्षण:- पीलिया रोग के कारण हैः- रोग किसे हो सकता है? यह रोग किसी भी अवस्‍था के व्‍यक्ति को हो सकता है। हाँ, रोग की उग्रता रोगी की अवस्‍था पर जरूर निर्भर करती है। गर्भवती महिला पर इस रोग के लक्षण बहुत ही उग्र होते हैं और उन्‍हे यह ज्‍यादा समय तक कष्‍ट देता है। इसी प्रकार नवजात शिशुओं में भी यह बहुत उग्र होता है तथा जानलेवा भी हो सकता है। बी प्रकार का वायरल हैपेटाइटिस व्‍यावसायिक खून देने वाले व्‍यक्तियों से खून प्राप्‍त करने वाले व्‍यक्तियों को और मादक दवाओं का सेवन करने वाले एवं अनजान व्‍यक्ति से यौन सम्‍बन्‍धों द्वारा लोगों को ज्‍यादा होता है। रोग की जटिलताऍं:- ज्‍यादातार लोगों पर इस रोग का आक्रमण साधारण ही होता है। परन्‍तु कभी-कभी रोग की भीषणता के कारण कठिन लीवर (यकृत) दोष उत्‍पन्‍न हो जाता है। बी प्रकार का पीलिया (वायरल हैपेटाइटिस) ज्‍यादा गम्‍भीर होता है इसमें जटिलताएं अधिक होती है। इसकी मृत्‍यु दर भी अधिक होती है। उपचार:- रोग की रोकथाम एवं बचाव पीलिया रोग के प्रकोप से बचने के लिये कुछ साधारण बातों का ध्‍यान रखना जरूरी हैः- स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता ध्‍यान दें यदि आपके क्षेत्र में किसी परिवार में रोग के लक्षण वाला व्‍यक्ति हो तो उसे डॉक्‍टर के पास जाने की सलाह दें। क्षेत्र में व्‍यक्तिगत सफाई व तातावरणीय स्‍वच्‍छता के बारे में बताये तथा पंचायत आदि से कूडा, कचरा, मल, मूत्र आदि के निष्‍कासन का इन्‍तजाम कराने का प्रयास करें। रोगी की देखभाल ठीक हो, ऐसा परिवार के सदस्‍यों को समझायें। रोगी की सेवा करने वाले को समझायें कि हाथ अच्‍छी तरह धोकर ही सब काम करें। स्‍वास्‍थ्‍या कार्यकर्ता सीरिंज व सुई 20 मिनिट तक उबाल कर अथवा डिसपोजेबल काम में लें। रोगी का रक्‍त लेते समय व सर्जरी करते समय दस्‍ताने पहनें व रक्‍त के सम्‍पर्क में आने वाले औजारों को अच्‍छी तरह उबालें। रक्‍त व सम्‍बन्धित शारीरिक द्रव्‍य प्रदार्थो पर कीटाणुनाशक डाल कर ही उन्‍हे उपयुक्‍त स्‍थान पर फेंके अथवा नष्‍ट करें। जरा सी सावधानी-पीलिया से बचाव .

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फ़िलीपीन्स

फिलीपींस के प्रमुख नगर फ़िलीपीन्स दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित एक देश है। इसका आधिकारिक नाम 'फिलीपीन्स गणतंत्र' है और राजधानी मनीला है। पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित ७१०७ द्वीपों से मिलकर यह देश बना है। फिलीपीन द्वीप-समूह पूर्व में फिलीपीन्स महासागर से, पश्चिम में दक्षिण चीन सागर से और दक्षिण में सेलेबस सागर से घिरा हुआ है। इस द्वीप-समूह से दक्षिण पश्चिम में देश बोर्नियो द्वीप के करीबन सौ किलोमीटर की दूरी पर बोर्नियो द्वीप और सीधे उत्तर की ओर ताइवान है। फिलीपींस महासागर के पूर्वी हिस्से पर पलाऊ है। पूर्वी एशिया में दक्षिण कोरिया और पूर्वी तिमोर के बाद फिलीपीन्स ही ऐसा देश है, जहां ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। ९ करोड़ से अधिक की आबादी वाला यह विश्व की 12 वीं सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। यह देश स्पेन (१५२१ - १८९८) और संयुक्त राज्य अमरीका (१८९८ - १९४६) का उपनिवेश रहा और फिलीपीन्स एशिया में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। .

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फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता

फुफ्फुसीय अन्त: शल्यता (PE) फेफड़े की मुख्य धमनी या इसके किसी भाग में किसी पदार्थ के द्वारा होने वाला एक रूकावट है जो शरीर के किसी अन्य भाग से रक्त प्रवाह (इंबोलिज्म) के माध्यम से आता है। यह आमतौर पर पैर के गहरे नसों सेथ्रंबस(रक्त थक्का) के एंबोलिज्म को कारण होता है, इस प्रक्रिया को शिरापरक थ्रंबोइंबोलिज्म कहते हैं। इसका एक छोटा अनुपात हवा, वसा या उल्बीय तरल के इंबोलाइजेशन के कारण होता है। फेफड़े में रक्त प्रवाह की रूकावट और परिणामस्वरूप हृदय केदाहिने सुराग में दबाव पीई के लक्षण और संकेत को दिशा देता है। विभिन्न अवस्थाओं में पीई का खतरा बढ़ जाता है, जैसेकिकैंसर और लंबे समय का आराम.

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ब्रिटेन

ब्रिटेन शब्द का प्रयोग हालाँकि आम तौर पर हिंदी में संयुक्त राजशाही अर्थात् यूनाइटेड किंगडम देश का बोध करने के लिए होता है, परंतु इसका उपयोग अन्य सन्दर्भों के लिए भी हो सकता है.

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बृहदान्त्र

बृहदान्त्र (large intestine या large bowel), जठरांत्र क्षेत्र तथा पाचन तंत्र का अंतिम भाग है। इस भाग में जल का शोषण करके बचे हुए अपशिष्ट को मल के रूप में भण्डारित किया जाता है जो मल विसर्जन द्वारा गुदा मार्ग से बाहर आता है। .

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बेरियम सल्फेट

बेरियम सल्फेट (Barium sulfate) एक अकार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र BaSO4 है। यह सफेद क्रिस्टलीय ठोस है। यह गंधहीन तथा जल में अविलेय है। यह बैराइट (barite) नामक खनिज के रूप में पाया जाता है जो बेरियम का मुख्य स्रोत भी है। इसका सफेद अपारदर्शी रूप तथा उच्च घनत्व इसको कई कार्यों के लिये उपयोगी बनाते हैं।.

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मल

घोड़े की लीद (मल) एवं घोड़ा मल (Feces, faeces, or fæces) वह वर्ज्य पदार्थ (waste product) है जिसे जानवर अपने पाचन नली से मलद्वार के रास्ते निकलते हैं। .

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मलाशय

बृहदान्त्र के अन्तिम भाग को मलाशय (rectum) कहते हैं। मानव और कुछ अन्य स्तनधारियों का मलाशय सीधा (स्ट्रेट) होता है। मानव का मलाशय लगभग 12 सेमी.

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मैलकम मार्शल

मैलकम मार्शल (18 अप्रैल 1958 - 4 नवंबर 1999, Malcolm Marshall) ब्रिजटाउन, बारबाडोस से वेस्टइंडीज़ क्रिकेट टीम के खिलाड़ी थे जिन्हें क्रिकेट इतिहास के सबसे अच्छे तेज गेंदबाजों में से एक माना जाता है। वह 1970-80 के दशक की अजेय वेस्टइंडीज टीम के तेज गेंदबाज थे। वह 80 के दशक के सबसे सफल गेंदबाज थे और उस अवधि में वेस्टइंडीज की सफलता के मुख्य बिंदु थे। मैलकम का काउंटी चैम्पियनशिप में हैम्पशायर की तरफ से भी सफल क्रिकेट करियर रहा। .

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मूत्राशय

मूत्राशय शरीर रचना विज्ञान मूत्राशय (urinary bladder) वह आन्तरिक अंग है जो मूत्र विसर्जन के पहले वृक्कों द्वारा निर्मित मूत्र को इकट्ठा रखता है। .

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राष्ट्रपति

राष्ट्रपति किसी देश की सरकार का सांवैधानिक प्रमुख होता है। .

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रक्त

मानव शरीर में लहू का संचरण लाल - शुद्ध लहू नीला - अशु्द्ध लहू लहू या रक्त या खून एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं। मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली (Phagocytosis) में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है (In 7 steps)। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती। मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दुसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है कार्य.

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रक्त परीक्षण

right रक्त-परीक्षण रक्त के नमूनों पर किया जाने वाला एक प्रयोगशाला विश्लेषण है, जो कि सामान्यतः सुई या फिन्गार्प्रिक की सहायता से बांह के रग से लिया जाता है। रक्त परीक्षण का उपयोग शारीरिक और जैव रासायनिक, जैसे रोग, खनिज सामग्री, दवा प्रभावशीलता और इन्द्रिय प्रकार्य का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। इनका उपयोग दवा परीक्षण के लिए भी किया जाता है। हालांकि अधिकांशतः रक्त परीक्षण शब्द का प्रयोग किया जाता है, लेकिन अधिकांश नियमित परीक्षण (रुधिरविज्ञान को छोड़कर) रक्त कोशिकाओं के बजाय प्लाज्मा या सीरम पर किए जाते हैं। .

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रोनाल्ड विलसन रीगन

रोनाल्ड विलसन रीगन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति थे। इनका कार्यकाल १९८१ से १९८९ तक था। ये रिपब्लिकन पार्टी से थे। श्रेणी:अमेरिका के राष्ट्रपति श्रेणी:अमेरिकी राजनीतिज्ञ श्रेणी:1911 में जन्मे लोग.

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लसीका

इस चित्र में लसिका का निर्माण उत्तक द्रव से होते दर्शाया गया है। लसिका (Lymph) एक अन्त:स्रवित द्रव है जो मानव की कोशिकाओं के बीच में पाया जाता है। यह लसिका पात्रों में कैपिलरी छिद्रों से होकर छनता हुआ प्रवेश करता है। .

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शल्यचिकित्सा

अति प्राचीन काल से ही चिकित्सा के दो प्रमुख विभाग चले आ रहे हैं - कायचिकित्सा (Medicine) एवं शल्यचिकित्सा (Surgery)। इस आधार पर चिकित्सकों में भी दो परंपराएँ चलती हैं। एक कायचिकित्सक (Physician) और दूसरा शल्यचिकित्सक (Surgeon)। यद्यपि दोनों में ही औषधो पचार का न्यूनाधिक सामान्यरूपेण महत्व होने पर भी शल्यचिकित्सा में चिकित्सक के हस्तकौशल का महत्व प्रमुख होता है, जबकि कायचिकित्सा का प्रमुख स्वरूप औषधोपचार ही होता है। .

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संयुक्त राज्य

संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) (यू एस ए), जिसे सामान्यतः संयुक्त राज्य (United States) (यू एस) या अमेरिका कहा जाता हैं, एक देश हैं, जिसमें राज्य, एक फ़ेडरल डिस्ट्रिक्ट, पाँच प्रमुख स्व-शासनीय क्षेत्र, और विभिन्न अधिनस्थ क्षेत्र सम्मिलित हैं। 48 संस्पर्शी राज्य और फ़ेडरल डिस्ट्रिक्ट, कनाडा और मेक्सिको के मध्य, केन्द्रीय उत्तर अमेरिका में हैं। अलास्का राज्य, उत्तर अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है, जिसके पूर्व में कनाडा की सीमा एवं पश्चिम मे बेरिंग जलसन्धि रूस से घिरा हुआ है। वहीं हवाई राज्य, मध्य-प्रशान्त में स्थित हैं। अमेरिकी स्व-शासित क्षेत्र प्रशान्त महासागर और कॅरीबीयन सागर में बिखरें हुएँ हैं। 38 लाख वर्ग मील (98 लाख किमी2)"", U.S. Census Bureau, database as of August 2010, excluding the U.S. Minor Outlying Islands.

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संक्रमण

रोगों में कुछ रोग तो ऐसे हैं जो पीड़ित व्यक्तियों के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संपर्क, या उनके रोगोत्पादक, विशिष्ट तत्वों से दूषित पदार्थों के सेवन एवं निकट संपर्क, से एक से दूसरे व्यक्तियों पर संक्रमित हो जाते हैं। इसी प्रक्रिया को संक्रमण (Infection) कहते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में ऐसे रोगों को छुतहा रोग या छूआछूत के रोग कहते हैं। रोगग्रस्त या रोगवाहक पशु या मनुष्य संक्रमण के कारक होते हैं। संक्रामक रोग तथा इन रोग के संक्रमित होने की क्रिया समाज की दृष्टि से विशेष महत्व की है, क्योंकि विशिष्ट उपचार एवं अनागत बाधाप्रतिषेध की सुविधाओं के अभाव में इनसे महामारी (epidemic) फैल सकती है, जो कभी-कभी फैलकर सार्वदेशिक (pandemic) रूप भी धारण कर सकती है। .

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सेलेनियम

सेलेनियम (Selenium, संकेत Se) एक रासायनिक तत्त्व है जिसका परमाणु क्रमांक ३४ है। प्रकृति में यह अपने तत्त्व रूप में बहुत कम पाया जाता है। इसकी खोज १८१७ में बर्जीलियस ने किया था। .

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सीटी स्कैन

सीटी स्कैन या कंप्यूटर असिस्टेड टोमोग्राफी एक विशेष एक्सरे तकनीक है जिसमें संबंधित अंग की पतली पतली तहों के कई एक्सरे लिए जाते हैं। श्रेणी:चिकित्सकीय परीक्षण.

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हेरोल्ड विल्सन

इंग्लैंड के प्रधान मन्त्री।.

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ज्वर

जब शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाये तो उस दशा को ज्वर या बुख़ार (फीवर) कहते है। यह रोग नहीं बल्कि एक लक्षण (सिम्टम्) है जो बताता है कि शरीर का ताप नियंत्रित करने वाली प्रणाली ने शरीर का वांछित ताप (सेट-प्वाइंट) १-२ डिग्री सल्सियस बढा दिया है। मनुष्य के शरीर का सामान्‍य तापमान ३७°सेल्सियस या ९८.६° फैरेनहाइट होता है। जब शरीर का तापमान इस सामान्‍य स्‍तर से ऊपर हो जाता है तो यह स्थिति ज्‍वर या बुखार कहलाती है। ज्‍वर कोई रोग नहीं है। यह केवल रोग का एक लक्षण है। किसी भी प्रकार के संक्रमण की यह शरीर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया है। बढ़ता हुआ ज्‍वर रोग की गंभीरता के स्‍तर की ओर संकेत करता है। .

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घनास्रता

दाएँ पैर का तीव्र धमनीजन्य घनास्रता किसी रक्तवाहिका के अन्दर रक्त के जम जाने (तरल के बजाय ठोस बन जाने (clotting)) फलस्वरूप रक्त के प्रवाह को बाधित करने को 'घनास्रता' (थ्रोम्बोसिस/Thrombosis) कहते हैं। जब कहीं कोई रक्तवाहिका क्षतिग्रस्त हो जाती है तो प्लेटलेट्स और फाइब्रिन मिलकर रक्त का थक्का बनाकर रक्त की हानि को रोक देते हैं। किन्तु घनास्रता इससे अलग है। रक्तवाहिनियों के बिना क्षतिग्रस्त हुए भी कुछ स्थितियों में वाहिकाओं के अन्दर रक्त का थक्का बन सकता है। यदि थक्का बहुत तीव्र है और वह वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर गतिमान है तो ऐसे थक्के को वाहिकारोधी (embolus) कहते हैं। घनास्रता और वाहिकारोधी दोनो विद्यमान हों तो इसे 'थ्रोम्बोइम्बोलिज्म' (Thromboembolism) कहते हैं। .

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ओंकोजीन

कोशिका विज्ञान, रोगविज्ञान और अनुवांशिकी में ओंकोजीन (oncogene) ऐसी जीन होती है जिसमें कर्करोग (कैंसर) उत्पन्न करने की क्षमता हो। फुलाव (ट्यूमर) की कोशिकाओं में यह ओंकोजीन अक्सर उत्परिवर्तित होते हैं और साथ ही असाधारण स्तरों का जीन व्यवहार दर्शाते हैं। "Oncogenes" Free full text साधारण कोशिकाओं में यदि कोई विकार आ जाए तो वे एपोप्टोसिस नामक प्रक्रिया द्वारा स्वहत्या कर लेते हैं, जिस से जीव को हानि न पहुँचे, लेकिन सक्रीय ओंकोजीन इस एपोप्टोसिस को रोक देते हैं और इन विकृत कोशिकाओं को फैलने का मौका दे देते हैं। .

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आनुवांशिक परामर्श

आजकल बहुत वैज्ञानिकों ने ये आविष्कार किया है कि ऐसे कई रोग है जो आनुवांशिक है | यह रोग बहुत खतरनाक होते हैं | इसलिए बेहतर है कि इनकी चिकित्सा पहले ही हो जाए| ऐसे रोगों के चिकित्सा करने वाले को बोलते है जेनेटिक काउंसलर या आनुवांशिक परामर्श| ये लोगों को सलाह देते है कि आनुवांशिक रोग क्या है और इसका इलाज कैसे करते है| खास करके उन दांपत्तियों के लिए जिनका नई नई विवाह हुई है| आनुवांशिक परामर्श के कई तरीके है। एक है यह कि म्ररीज़ों को समझाना कि उनकी बीमारी क्या है और कैसे होता है? इस बीमारी को दूर कैसे किया जा सके | एक जेनेटिक काउंसलर को विज्ञान में मास्टर होना चाहिए | एक गर्भवती महिला को आनुवांशिक परामर्श के लिए सूचित किया जाता है जब जन्म के पूर्व का परीक्षण में कोई भी आनुवांशिक रोग की संभावना हैं। परीक्षा के बाद महिला एव्ं उनके घरवालों के आज्ञा के अनुसार यह सोचा जाता है कि गर्भावस्था को जारी रखना है या नहीं | कभी-कभी यह भी होता है कि बच्चे के जन्म क बाद लोग आनुवांशिक परामर्श के लिए जाते है अगर बच्चे में कोई समस्या हो तो| ऐसे हालत में काउंसलर बताता है कि इस बच्चे की यह हालत है तो अगले बच्चों में क्या समस्याए हो सकता है और तब उसे क्या करना है| वे पारिवारिक इतिहास देखकर बता सकता है कि इस परिवार में कोई खतरनाक रोग है या नहीं और अगर है तो उस परिवार को क्या करना चाहिए| आनुवांशिक परामर्श तब किया जाता है जब परिवार में कोई भय्ंकर रोग की संभावना हो, अगर मातृ उम्र ३५ से ज़्यादा हो और पितृ उम्र ४० से ज़्यादा हो, अल्ट्रासाउंड में गलती हो या परिवार इतिहास में कैंसर की प्र्बलता हो| कुछ बीमारिया जैसे टे सेक्स रोग,डाउन सिंड्रोम,सिस्टिक फाइब्रोसिस, रक्त की लाल कोशिकाओं की कमी और मांसपेशीय दुर्विकास जैसे रोग माता-पिता से ही आते हैं| इसलिए इनकी चिकित्सा करना बहुत ज़रूरी हैं | कभी-कभी कैंसर भी आनुवांशिक होता है| यह सब कुछ बताते है एक आनुवांशिक परामर्श| यह पेशा बहुत ही नोबेल है| यह अनेक जान बचाते है और लोगों का ज्ञान ज़्यादा कर देता है | दुख की बात यह है कि अभी भी हमारे देश में इसकी ज़्यादा चाल नहीं है | अच्छा यहीं होगा कि लोग शादी के पहले एक जेनेटिक काउंसलर से मिलले | हमारे देश में ज़्यादातर लोग शादी के पहले ज्योतिषियों के पास जाते है यह देखने के लिए कि तारे सही है या नहीं, लेकिन हम सेहत के बारे में सोचते नहीं है| बेहतर यह होगा कि हम भारतीय नागरिक भी आनुवांशिक रोगों के बारे में सोचे और समय पर सही कदम ले| यह पेशा अमरीका में बहुत नाम हैं | श्रेणी:अनुवांशिकी श्रेणी:रोगी रक्षा.

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कब्ज

कब्ज पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है। करने के लिए कई नुस्खे व उपाय यहां जोड़ें गए हैं। पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज है। यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है। नित्य कम से कम सुबह मल त्याग न कर पाना अस्वस्थता की निशानी है। .

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कर्कट रोग

कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक.

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कीमोथेरेपी

रसोचिकित्सा (Chemotherapy) या रासाय चिकित्सा या रसायन चिकित्सा या कीमोथेरेपी एक ऐसा औषधीय उपचार है जो कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए दिया जाता है। कीमोथेरेपी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - कैमिकल अर्थात् रसायन और थेरेपी अर्थात् उपचार। क्सी को किस प्रकार की कीमोथेरेपी दी जाए, इसका निर्णय इस बात पर निर्भर करेगा कि आपको किस प्रकार का कैंसर है। कीमोथेरेपी अकेले भी दी जा सकती है या सर्जरी अथवा रेडियोथेरेपी के साथ भी। .

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अतिसार

अतिसार या डायरिया (अग्रेज़ी:Diarrhea) में या तो बार-बार मल त्याग करना पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं। पतले दस्त, जिनमें जल का भाग अधिक होता है, थोड़े-थोड़े समय के अंतर से आते रहते हैं। .

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अर्बुद

अर्बुद, रसौली, गुल्म या ट्यूमर, कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि द्वारा हुई, सूजन या फोड़ा है जिसे चिकित्सीय भाषा में नियोप्लास्टिक कहा जाता है। ट्यूमर कैंसर का पर्याय नहीं है। एक ट्यूमर बैनाइन (मृदु), प्री-मैलिग्नैंट (पूर्व दुर्दम) या मैलिग्नैंट (दुर्दम या घातक) हो सकता है, जबकि कैंसर हमेशा मैलिग्नैंट होता है। .

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उल्टी

200px आमाशय के अन्दर के पदार्थों को बलपूर्वक शरीर के बाहर निकालने की क्रिया को उल्टी या वमन (Vomiting) कहते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि गैस्ट्रीक, जहर या मस्तिष्क का ट्यूमर इत्यादि.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

गुदा कैंसर, कोलन कैन्सर, कोलोरेक्टल कैंसर

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