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कैसियानो बेलिगत्ती

सूची कैसियानो बेलिगत्ती

कैसियानो बेलिगत्ती कैथलिक कैपूचिन मिशनरी इटली के मचेराता नगर के रहने वाले हिन्दी के विद्वान थे। आरम्भ में इन्होंने तिब्बत में कार्य किया था। बाद में नेपाल होकर बिहार के बेतिया नगर में आ बसे। इन्होंने पटना में भी धर्म प्रचार का कार्य किया। पटना में रहकर इन्होंने अल्फाबेतुम ब्रम्हानिकुम का लैटिन भाषा में प्रणयन किया। इसका प्रकाशन सन १७७१ ईस्वी में हुआ। इसकी विशेषता यह है कि इसमें नागरी के अक्षर एवं शब्द सुन्दर टाइपों में मुद्रित हैं। ग्रियर्सन के अनुसार यह हिन्दी वर्णमाला सम्बन्धी श्रेष्ठ रचना है। इस पुस्तक के अध्याय एक में स्वर, अध्याय दो में मूल व्यंजन, अध्याय तीन में व्यंजनों के उच्चारण के विशेष विवरण, अध्याय चार में व्यंजनों के साथ स्वरों का संयोग, अध्याय पाँच में स्वर-संयुक्त व्यंजन, अध्याय छह में संयुक्ताक्षर और उनके नाम, अध्याय सात में संयुक्ताक्षर की तालिका, अध्याय आठ में किस प्रकार हिन्दुस्तानी कुछ अक्षरों की कमी पूरी करते हैं, अध्याय नौ में नागरी या जनता की वर्णमाला, अध्याय दस में हिन्दुस्तानी वर्णमाला की लैटिन वर्णमाला के क्रम और उच्चारण के साथ तुलना, अध्याय ग्यारह में अरबी अंकों के साथ हिन्दुस्तानी अंकों और अक्षरों में संख्याएं तथा अध्याय बारह में अध्येताओं के अभ्यास के लिए कुछ प्रार्थनाएं भी हिन्दुस्तानी लिपि में दी गई हैं। इसमें लैटिन प्रार्थनाओं का हिन्दुस्तानी लिपि में केवल लिप्यंतरण मिलता है। अंत में हिन्दुस्तानी भाषा में हे पिता आदि प्रार्थनाएं अनूदित हैं। अध्याय नौ के अंतर्गत जनता की वर्णमाला पर प्रकाश डालते हुए लेखक ने लिखा है कि इस भाषा का नाम भाखा है और यह जन सामान्य के प्रयोग की भाषा है। इस रचना की भूमिका इटली की राजधानी रोम में क्रिश्चियन धर्म के प्रचारार्थ संस्था प्रोपगन्दा फीदे के अध्यक्ष योहन ख्रिस्तोफर अमादुसी ने लिखी। डॉ॰ जार्ज ग्रियर्सन ने इस भूमिका को बहुत महत्व दिया। भूमिका में हिन्दुस्तानी भाषा की सार्वदेशिक व्यवहार की भूमिका स्पष्ट रूप में प्रतिपादित है। इस भूमिका से यह स्पष्ट होता है कि सन १७७१ ईस्वी में भी नागरी लिपि में लिखी जनभाषा हिन्दी या हिन्दुस्तानी का राष्ट्रव्यापी प्रचार-प्रसार था। जो विदेशी उस समय भारत में व्यापार करने के लिए अथवा घूमने फिरने के लिए आते थे, वे भारत आने के पूर्व इसको सीखते थे तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसके माध्यम से अपना कार्य सम्पन्न करते थे। इन तीन रचनाकृतियों का ऐतिहासिक महत्व बताते हुए इनके समेकित महत्व की डॉ॰ उदय नारायण तिवारी ने सारगर्भित विवेचना की है। इन तीनों रचनाओं को श्री मैथ्यु वेच्चुर ने लैटिन से हिन्दी में अनूदित किया है, जो स्वयं एक भाषाविद थे। .

5 संबंधों: पटना, लातिन भाषा, इटली, कैथोलिक धर्म, अल्फाबेतुम ब्रम्हानिकुम

पटना

पटना (पटनम्) या पाटलिपुत्र भारत के बिहार राज्य की राजधानी एवं सबसे बड़ा नगर है। पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था। आधुनिक पटना दुनिया के गिने-चुने उन विशेष प्राचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। अपने आप में इस शहर का ऐतिहासिक महत्व है। ईसा पूर्व मेगास्थनीज(350 ईपू-290 ईपू) ने अपने भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है। पलिबोथ्रा (पाटलिपुत्र) जो गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) के संगम पर बसा था। उस पुस्तक के आकलनों के हिसाब से प्राचीन पटना (पलिबोथा) 9 मील (14.5 कि॰मी॰) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि॰मी॰) चौड़ा था। पटना बिहार राज्य की राजधानी है और गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है। जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। सोलह लाख (2011 की जनगणना के अनुसार 1,683,200) से भी अधिक आबादी वाला यह शहर, लगभग 15 कि॰मी॰ लम्बा और 7 कि॰मी॰ चौड़ा है। प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थस्थल वैशाली, राजगीर या राजगृह, नालन्दा, बोधगया और पावापुरी पटना शहर के आस पास ही अवस्थित हैं। पटना सिक्खों के लिये एक अत्यंत ही पवित्र स्थल है। सिक्खों के १०वें तथा अंतिम गुरु गुरू गोबिंद सिंह का जन्म पटना में हीं हुआ था। प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों सिक्ख श्रद्धालु पटना में हरमंदिर साहब के दर्शन करने आते हैं तथा मत्था टेकते हैं। पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं तथा नगर की प्राचीन गरिमा को आज भी प्रदर्शित करते हैं। एतिहासिक और प्रशासनिक महत्व के अतिरिक्त, पटना शिक्षा और चिकित्सा का भी एक प्रमुख केंद्र है। दीवालों से घिरा नगर का पुराना क्षेत्र, जिसे पटना सिटी के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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लातिन भाषा

लातीना (Latina लातीना) प्राचीन रोमन साम्राज्य और प्राचीन रोमन धर्म की राजभाषा थी। आज ये एक मृत भाषा है, लेकिन फिर भी रोमन कैथोलिक चर्च की धर्मभाषा और वैटिकन सिटी शहर की राजभाषा है। ये एक शास्त्रीय भाषा है, संस्कृत की ही तरह, जिससे ये बहुत ज़्यादा मेल खाती है। लातीना हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की रोमांस शाखा में आती है। इसी से फ़्रांसिसी, इतालवी, स्पैनिश, रोमानियाई और पुर्तगाली भाषाओं का उद्गम हुआ है (पर अंग्रेज़ी का नहीं)। यूरोप में ईसाई धर्म के प्रभुत्व की वजह से लातीना मध्ययुगीन और पूर्व-आधुनिक कालों में लगभग सारे यूरोप की अंतर्राष्ट्रीय भाषा थी, जिसमें समस्त धर्म, विज्ञान, उच्च साहित्य, दर्शन और गणित की किताबें लिखी जाती थीं। .

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इटली

इटली यूरोप महाद्वीप के दक्षिण में स्थित एक देश है जिसकी मुख्यभूमि एक प्रायद्वीप है। इटली के उत्तर में आल्प्स पर्वतमाला है जिसमें फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया तथा स्लोवेनिया की सीमाएँ आकर लगती हैं। सिसली तथा सार्डिनिया, जो भूमध्य सागर के दो सबसे बड़े द्वीप हैं, इटली के ही अंग हैं। वेटिकन सिटी तथा सैन मरीनो इटली के अंतर्गत समाहित दो स्वतंत्र देश हैं। इटली, यूनान के बाद यूरोप का दूसरा का दूसरा प्राचीनतम राष्ट्र है। रोम की सभ्यता तथा इटली का इतिहास देश के प्राचीन वैभव तथा विकास का प्रतीक है। आधुनिक इटली 1861 ई. में राज्य के रूप में गठित हुआ था। देश की धीमी प्रगति, सामाजिक संगठन तथा राजनितिक उथल-पुथल इटली के 2,500 वर्ष के इतिहास से संबद्ध है। देश में पूर्वकाल में राजतंत्र था जिसका अंतिम राजघराना सेवाय था। जून, सन् 1946 से देश एक जनतांत्रिक राज्य में परिवर्तित हो गया। इटली की राजधानी रोम प्राचीन काल के एक शक्ति और प्रभाव से संपन्न रोमन साम्राज्य की राजधानी रहा है। ईसा के आसपास और उसके बाद रोमन साम्राज्य ने भूमध्य सागर के क्षेत्र में अपनी प्रभुता स्थापित की थी जिसके कारण यह संस्कृति और अन्य क्षेत्रों में आधुनिक यूरोप की आधारशिला के तौर पर माना जाता है। तथा मध्यपूर्व (जिसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में मध्य-पश्च भी कह सकते हैं) के इतिहास में भी रोमन साम्राज्य ने अपना प्रभाव डाला था और उनसे प्रभावित भी हुआ था। आज के इटली की संस्कृति पर यवनों (ग्रीक) का भी प्रभाव पड़ा है। इटली की जनसंख्या २००८ में ५ करोड़ ९० लाख थी। देश का क्षेत्रफल ३लाख वर्ग किलोमीटर के आसपास है। १९९१ में यहाँ की सरकार के शीर्ष पदस्थ अधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ जिसके बाद यहाँ की राजनैतिक सत्ता और प्रशासन में कई बदलाव आए हैं। रोम यहाँ की राजधानी है और अन्य प्रमुख नगरों में वेनिस, मिलान इत्यादि का नाम लिया जा सकता है। .

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कैथोलिक धर्म

"बिशप" नामक उच्च पद पर नियुक्त एक कैथोलिक पादरी स्पेन में चलती दो ननें कैथोलिक धर्म या रोमन कैथोलिक धर्म ईसाई धर्म की एक मुख्य शाखा है जिसके अनुयायी रोम के वैटिकन नगर में स्थित पोप को अपना धर्माध्यक्ष मानते हैं। ईसाई धर्म की दूसरी मुख्य शाखा प्रोटेस्टैंट कहलाती है और उसके अनुयायी पोप के धार्मिक नेतृत्व को नहीं स्वीकारते। कैथोलिकों और प्रोटेस्टैंटों की धार्मिक मान्यताओं में और भी बड़े अंतर हैं। .

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अल्फाबेतुम ब्रम्हानिकुम

अल्फाबेतुम ब्रम्हानिकुम कैसियानो बेलिगत्ती द्वारा लैटिन भाषा में लिखा हुआ हिंदी व्याकरण का ग्रंथ है। इसका प्रकाशन सन १७७१ ईस्वी में हुआ। इसकी विशेषता यह है कि इसमें नागरी के अक्षर एवं शब्द सुन्दर टाइपों में मुद्रित हैं। ग्रियर्सन के अनुसार यह हिन्दी वर्णमाला सम्बन्धी श्रेष्ठ रचना है। अल्फाबेतुम यूनानी भाषा का शब्द है जिससे अंग्रेज़ी का अलफ़ाबेट शब्द बना है। इसका अर्थ अक्षरमाला है। इस पुरस्तक के अध्याय एक में स्वर, अध्याय दो में मूल व्यंजन, अध्याय तीन में व्यंजनों के उच्चारण के विशेष विवरण, अध्याय चार में व्यंजनों के साथ स्वरों का संयोग, अध्याय पाँच में स्वर-संयुक्त व्यंजन, अध्याय छह में संयुक्ताक्षर और उनके नाम, अध्याय सात में संयुक्ताक्षर की तालिका, अध्याय आठ में किस प्रकार हिन्दुस्तानी कुछ अक्षरों की कमी पूरी करते हैं, अध्याय नौ में नागरी या जनता की वर्णमाला, अध्याय दस में हिन्दुस्तानी वर्णमाला की लैटिन वर्णमाला के क्रम और उच्चारण के साथ तुलना, अध्याय ग्यारह में अरबी अंकों के साथ हिन्दुस्तानी अंकों और अक्षरों में संख्याएं तथा अध्याय बारह में अध्येताओं के अभ्यास के लिए कुछ प्रार्थनाएं भी हिन्दुस्तानी लिपि में दी गई हैं। इसमें लैटिन प्रार्थनाओं का हिन्दुस्तानी लिपि में केवल लिप्यंतरण मिलता है। अंत में हिन्दुस्तानी भाषा में हे पिता आदि प्रार्थनाएं अनूदित हैं। इस रचना की भूमिका इटली की राजधानी रोम में ईसाई धर्म के प्रचारार्थ संस्था प्रोपगन्दा फीदे के अध्यक्ष योहन ख्रिस्तोफर अमादुसी ने लिखी थी। इस पुस्तक की भूमिका से यह स्पष्ट होता है कि सन १७७१ ईस्वी में भी नागरी लिपि में लिखी जनभाषा हिन्दी या हिन्दुस्तानी का राष्ट्रव्यापी प्रचार-प्रसार था। जो विदेशी उस समय भारत में व्यापार करने के लिए अथवा घूमने फिरने के लिए आते थे, वे भारत आने के पूर्व इसको सीखते थे तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसके माध्यम से अपना कार्य सम्पन्न करते थे। .

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