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कैशिकी नाट्य वृत्ति

सूची कैशिकी नाट्य वृत्ति

एक अभिनेता कूडियाट्टम् प्रदर्शन (संस्कृत थिएटर के फार्म)। संस्कृत काव्यशास्त्र में गिनाए गए चार नाट्य वृत्तियों में से एक कैशिकि है। इसका संबंध केश से है। भरत मुनि ने कैशिकी की पौराणिक व्याख्या की है और अभिनव गुप्त ने वैज्ञानिक। इसके अतिरिक्त मल्लिनाथ, रामचंद्र, राघवन् आदि ने अपने-अपने मतानुसार इसकी व्याख्या की है। भरत ने केश बाँधते समय विष्णु के अंग- विक्षेप से कैशिकी का संबंध मानकर इसे कोमल, सुकुमार शरीर चेष्टाओं के रूप में ग्रहण किया है। अभिनव गुप्त ने पौराणिक आधार न लेते हुए यह माना है कि केश जिस प्रकार अर्थ और भाव से संबंध न रखते हुए भी शरीर की शोभा बढ़ाते हैं, उसी प्रकार यह वृत्ति भी नाट्य में शरीर चेष्टाओं द्वारा शोभा बढ़ाती है। इसी प्रकार केश की शोभा स्त्रियों में होती है। अतः स्त्रियों की चेष्टाओं के समान चेष्टा या स्त्री-चेष्टा प्रधान होने से यह कैशिकी कही जाती है, यह मत है नाट्यदर्पणकार का है। कैशिकी की कथा का कैशिक से संबंध मानक राघवन ने इसे विदर्भ देश से संबंधित ललित वैदर्भी रमणीयता से संबंधित माना है। शैव मत के आधार पर इस वृत्ति का संबंध तांडव से न होकर लास्य से है। भरत मानते हैं कि इस वृत्ति का प्रयोग नाटक में स्त्री पात्रोंको करना चाहिए। इसके अंतर्गत नृत्य, गीत, कामोद्भव, मृदुल, सुकुमार चेष्टाएं रहती है। इस वृत्ति का प्रयोग शृंगार आदि रसों के प्रसंग में किया जाता है। स्त्रियों से युक्त अनेक नृत्य गीतों वाली, नेपथ्य की स्निग्धता- विचित्रता और आकर्षण से संपन्न कैशिकी वृत्ति के चार भेद हैं- नर्म, नर्मस्फूर्ज, नर्मस्फोट और नर्मगर्भ। ईर्ष्या, क्रोध, उपालंभ-वचन से युक्त, विप्रलंभ आदि से संपन्न नर्म कैशिकी वृत्ति होती है। नव मिलन वाले संभोग, तथा के प्रेरक वचन, वेष आदि से युक्त जो भय में अवसान रखती हो वह वृत्ति नर्म स्फूर्ज है। नर्मस्फोट विविध भावों के क्षण-क्षण में विभूषित होने वाली विशिष्ट रूप वाली वृत्ति होती है। जो समग्रतया रसत्व में परिणत न हो जहाँ नायक कार्य वश विशेष ज्ञान युक्त संभावनादि गुणों से पूर्ण प्रच्छन्न व्यवहार करता है वहाँ नर्मगर्भ वृत्ति होती है। .

6 संबंधों: ताण्डव, भरत, मल्लिनाथ, राम, विदर्भ, अभिनवगुप्त

ताण्डव

ताण्डव करते हुए शिव ताण्डव अथवा ताण्डव नृत्य शंकर) भगवान द्वारा किया जाने वाला अलौकिक नृत्य है। ऐसा माना जाता है कि इसके अंदर भगवान की शक्तियां त्राहि मचाती हैं यह नृत्य शिव काली जैसे देव करती हैं शिव की तीसरी आंख के खुलने से हाहाकार हो जाता है। तांडव के संस्कृत में कई अर्थ होते हैं। इसके प्रमुख अर्थ हैं उद्धत नृत्य करना, उग्र कर्म करना, स्वच्छन्द हस्तक्षेप करना आदि। भारतीय संगीत में चौदह प्रमुख तालभेद में वीर तथा बीभत्स रस के सम्मिश्रण से बना तांडवीय ताल का वर्णन भी मिलता है। वनस्पति शास्त्र में एक प्रकार की घास को भी तांडव कहा गया है।  शास्त्रों में प्रमुखता से भगवान् शिव को ही तांडव स्वरूप का प्रवर्तक बताया गया है। परंतु अन्य आगम तथा काव्य ग्रंथों में दुर्गा, गणेश, भैरव, श्रीराम आदि के तांडव का भी वर्णन मिलता है। लंकेश रावण विरचित शिव ताण्डव स्तोत्र के अलावा वैश्यवर समाधि रचित दुर्गा तांडव (महिषासुर मर्दिनी संकटा स्तोत्र), गणेश तांडव, भैरव तांडव एवं श्रीभागवतानंद गुरु रचित श्रीराघवेंद्रचरितम् में राम तांडव स्तोत्र भी प्राप्त होता है। मान्यता है कि रावण के भवन में पूजन के समाप्त होने पर शिव जी ने, महिषासुर को मारने के बाद दुर्गा माता ने, गजमुख की पराजय के बाद गणेश जी ने, ब्रह्मा के पंचम मस्तक के च्छेदन के बाद आदिभैरव ने एवं रावण के वध के समय श्रीरामचंद्र जी ने तांडव किया था। .

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भरत

कोई विवरण नहीं।

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मल्लिनाथ

मल्लिनाथ, संस्कृत के सुप्रसिद्ध टीकाकार। इनका पूरा नाम कोलाचल मल्लिनाथ था। पेड्ड भट्ट भी इन्हीं का नाम था। ये संभावत: दक्षिण भारत के निवासी थे। इनका समय प्राय: 14वीं या 15वीं शती माना जाता है। ये काव्य, अलंकार, व्याकरण, स्मृति, दर्शन, ज्योतिष आदि के विद्वान् थे। व्याकरण, व्युत्पत्ति एवं अर्थ-विवेचन आदि की दृष्टि से इनकी टीकाएँ विशेष प्रशंसनीय हैं। टीकाकार के रूप में इनका सिद्धांत था कि "मैं ऐसी कोई बात न लिखूँगा जो निराधार हो अथवा अनावश्यक हो।" इन्होंने पंचमहाकाव्यों (अभिज्ञानशाकुन्तलम्, रघुवंश, शिशुपालवध, किरातार्जुनीय, नैषधीयचरित) तथा मेघदूत, कुमारसंभव, अमरकोष आदि ग्रंथों की टीकाएँ लिखीं जिनमें उक्त सिद्धांत का भलीभाँति पालन किया गया है। श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार श्रेणी:संस्कृत टीकाकार.

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राम

राम (रामचन्द्र) प्राचीन भारत में अवतार रूपी भगवान के रूप में मान्य हैं। हिन्दू धर्म में राम विष्णु के दस अवतारों में से सातवें अवतार हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य श्री रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अनेक भारतीय भाषाओं में अनेक रामायणों की रचना हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय हैं और हिन्दुओं के आदर्श पुरुष हैं। राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था (जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं) और इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने राक्षस जाति के लंका के राजा रावण का वध किया। राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई की थी। श्रीराम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदहारण देते हुए पति के साथ वन जाना उचित समझा। सौतेले भाई लक्ष्मण ने भी भाई के साथ चौदह वर्ष वन में बिताये। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आये। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। राम की पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। राम ने उस समय की एक जनजाति वानर के लोगों की मदद से सीता को ढूँढ़ा। समुद्र में पुल बना कर रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता को वापस लाये। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम के सारे कार्य पूरे कराये। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके पुत्र कुश व लव ने इन राज्यों को सँभाला। हिन्दू धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुड़े हुए हैं। .

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विदर्भ

विदर्भ महाराष्ट्र प्रांत का एक उपक्षेत्र है। इस उपक्षेत्र में कुल 11 जिले है। महाराष्ट्र में कोयला खदान और मूल्यवान मँगणिज कि खदाने विदर्भ में हि बहुतायत में पाये जाते हैं। कोयला खदानो कि वजह से हि विदर्भ में चंद्रपूर,कोराडी, खापरखेडा, मौदा और तिरोडा में औष्णिक विद्युत निर्माण संयंत्र पाये जाते हैं जिससे संपुर्ण महाराष्ट्र विद्युत आपूर्ती में लाभान्वित होता है। इसके अलावा महाराष्ट्र कि ज्यादातर वनसंपदा विदर्भ क्षेत्र में हि मौजूद है। इसके व्यतिरिक्त चावल उत्पादन में तुमसर मंडी विदर्भ में हि है जो महाराष्ट्र में सबसे बड़ी कृषी उत्पाद कि मंडी का सम्मान पाती है। प्रसिद्ध बासमती चावल का उत्पादन भी इसी क्षेत्र में होता है। विदर्भ के हि चंद्रपूर जिले में महाराष्ट्र के कुल सिमेंट कारखानो में सर्वाधिक कारखाने अकेले चंद्रपूर जिले में है। विदर्भ में मराठी और हिन्दी बोली जाती हैं। श्रेणी:महाराष्ट्र का भूगोल.

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अभिनवगुप्त

अभिनवगुप्त (975-1025) दार्शनिक, रहस्यवादी एवं साहित्यशास्त्र के मूर्धन्य आचार्य। कश्मीरी शैव और तन्त्र के पण्डित। वे संगीतज्ञ, कवि, नाटककार, धर्मशास्त्री एवं तर्कशास्त्री भी थे। अभिनवगुप्त का व्यक्तित्व बड़ा ही रहस्यमय है। महाभाष्य के रचयिता पतंजलि को व्याकरण के इतिहास में तथा भामतीकार वाचस्पति मिश्र को अद्वैत वेदांत के इतिहास में जो गौरव तथा आदरणीय उत्कर्ष प्राप्त हुआ है वही गौरव अभिनव को भी तंत्र तथा अलंकारशास्त्र के इतिहास में प्राप्त है। इन्होंने रस सिद्धांत की मनोवैज्ञानिक व्याख्या (अभिव्यंजनावाद) कर अलंकारशास्त्र को दर्शन के उच्च स्तर पर प्रतिष्ठित किया तथा प्रत्यभिज्ञा और त्रिक दर्शनों को प्रौढ़ भाष्य प्रदान कर इन्हें तर्क की कसौटी पर व्यवस्थित किया। ये कोरे शुष्क तार्किक ही नहीं थे, प्रत्युत साधनाजगत् के गुह्य रहस्यों के मर्मज्ञ साधक भी थे। अभिनवगुप्त के आविर्भावकाल का पता उन्हीं के ग्रंथों के समयनिर्देश से भली भाँति लगता है। इनके आरंभिक ग्रंथों में क्रमस्तोत्र की रचना 66 लौकिक संवत् (991 ई.) में और भैरवस्तोत्र की 68 संवत (993 ई.) में हुई। इनकी ईश्वर-प्रत्यभिज्ञा-विमर्षिणी का रचनाकाल 90 लौकिक संवत् (1015 ई.) है। फलत: इनकी साहित्यिक रचनाओं का काल 990 ई. से लेकर 1020 ई. तक माना जा सकता है। इस प्रकार इनका समय दशम शती का उत्तरार्ध तथा एकादश शती का आरंभिक काल स्वीकार किया जा सकता है। .

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