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कुमाऊँ मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड

सूची कुमाऊँ मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड

हल्द्वानी के केमू स्टेशन में खड़ी बसें। कुमाऊँ मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड (Kumaon Motor Owners Union Limited), जो अपने संक्षिप्त नाम के॰एम॰ओ॰यू॰ (K.M.O.U) या केमू से अधिक प्रसिद्ध है, उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में बस सेवा प्रदान करने वाली एक निजी कम्पनी है। १९३९ में १३ निजी कम्पनियों के विलय द्वारा अस्तित्व में आयी यह मोटर कम्पनी स्वतन्त्रता पूर्व कुमाऊँ क्षेत्र में बसें चलाने वाली एकमात्र बस कम्पनी थी। १९८७ तक यह इस क्षेत्र की सबसे बड़ी बस कम्पनी थी। .

37 संबंधों: चम्पावत, चौकोड़ी, डीडीहाट, थल, द्वाराहाट, देवीधूरा, नैनीताल तहसील, धारचूला, नैनीताल, पिथौरागढ़, बागेश्वर, बिनसर, बैजनाथ, उत्तराखण्ड, बेरीनाग, भिकियासैंण, भवाली, मुनस्‍यारी, मुनार, कपकोट तहसील, मुक्तेशवर, नैनीताल तहसील, मोरनौला, जैंती तहसील, रानीखेत, रामनगर, उत्तराखण्ड, रामगढ़, उत्तराखण्ड, लीती, कपकोट तहसील, शामा, कपकोट तहसील, सोमेश्वर चौहान, हल्द्वानी, जागेश्वर, जौलजीबी, गंगोलीहाट, कपकोट, काठगोदाम, कुमाऊँ मण्डल, कौसानी, अल्मोड़ा, उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम, उत्तराखण्ड, उत्तराखण्ड परिवहन निगम

चम्पावत

चम्पावत भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत जिले का मुख्यालय है। पहाड़ों और मैदानों के बीच से होकर बहती नदियाँ अद्भुत छटा बिखेरती हैं। चंपावत में पर्यटकों को वह सब कुछ मिलता है जो वह एक पर्वतीय स्थान से चाहते हैं। वन्यजीवों से लेकर हरे-भरे मैदानों तक और ट्रैकिंग की सुविधा, सभी कुछ यहाँ पर है। यह कस्बा समुद्र तल से १६१५ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। चम्पावत कई वर्षों तक कुमाऊँ के शासकों की राजधानी रहा है। चन्द शासकों के किले के अवशेष आज भी चम्पावत में देखे जा सकते हैं। .

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चौकोड़ी

चौकोरी एक छोटा सा पहाड़ी नगर है, जो पिथौरागढ़ जिले की बेरीनाग तहसील में स्थित है। समुद्र तल से २०१० मीटर की ऊंचाई पर स्थित चौकोड़ी से नंदा देवी, नंदा कोट, और पंचचूली पर्वत श्रंखलाओं के सुन्दर दृश्य देखे जा सकते हैं। यह राष्ट्रीय राजमार्ग ३०९ए पर बेरीनाग से १० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। .

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डीडीहाट

डीडीहाट उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ़ जनपद में स्थित एक नगर है। यह कुमाऊँ मण्डल में आता है, और डीडीहाट तहसील का मुख्यालय है। २०११ की जनगणना के अनुसार डीडीहाट की जनसंख्या ६,५२२ है, और यह उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून से ५२० किमी (३२० मील) की दूरी पर स्थित है। डीडीहाट नाम दो कुमाउँनी शब्दों, 'डांडी' और 'हाट' से जुड़कर बना है, जिनका अर्थ क्रमशः 'छोटी पहाड़ी' और 'बाजार' होता है। डीडीहाट 'कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा' के मार्ग पर पड़ता है। .

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थल

थल उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जनपद में रामगंगा नदी के तट पर स्थित एक छोटा सा नगर है। यहाँ १६वीं शताब्दी का एक शिव मंदिर है। १९५७ से १९६२ तक यह अल्मोड़ा जनपद का एक विकासखंड था। ३० सितम्बर २०१४ से यह पिथौरागढ़ जनपद की एक तहसील है। बेरीनाग तथा डीडीहाट तहसील के ११४ ग्रामों से इसका गठन किया गया। .

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द्वाराहाट

द्वाराहाट उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले का एक कस्बा है जो रानीखेत से लगभग 21 किलोमीटर दूर स्थित है। द्वाराहाट में तीन वर्ग के मन्दिर हैं—कचहरी, मनिया तथा रत्नदेव। इसके अतिरिक्त बहुत से मन्दिर प्रतिमाविहीन हैं। द्वाराहाट में गूजरदेव का मन्दिर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। .

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देवीधूरा, नैनीताल तहसील

देवीधूरा, नैनीताल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड के जिले .

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धारचूला

धारचूला, पिथौरागढ़ जिला, उत्तराखंड में स्थित एक क्षेत्र है। यह कुमाऊँ मण्डल में आता है। .

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नैनीताल

नैनीताल भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। यह नैनीताल जिले का मुख्यालय भी है। कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्व है। देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं। इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। 'नैनी' शब्द का अर्थ है आँखें और 'ताल' का अर्थ है झील। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है। बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्‍थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है। इसलिए इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है। नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है। .

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पिथौरागढ़

पिथौरागढ़ भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख शहर है। पिथौरागढ़ का पुराना नाम सोरघाटी है। सोर शब्द का अर्थ होता है-- सरोवर। यहाँ पर माना जाता है कि पहले इस घाटी में सात सरोवर थे। दिन-प्रतिदिन सरोवरों का पानी सूखता चला गया और यहाँपर पठारी भूमि का जन्म हुआ। पठारी भूमी होने के कारण इसका नाम पिथौरा गढ़ पड़ा। पर अधिकांश लोगों का मानना है कि यहाँ राय पिथौरा (पृथ्वीराज_चौहान) की राजधानी थी। उन्हीं के नाम से इस जगह का नाम पिथौरागढ़ पड़ा। राय पिथौरा ने नेपाल से कई बार टक्कर ली थी। यही राजा पृथ्वीशाह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। .

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बागेश्वर

बागेश्वर उत्तराखण्ड राज्य में सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित एक तीर्थ है। यह बागेश्वर जनपद का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यहाँ बागेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर है, जिसे स्थानीय जनता "बागनाथ" या "बाघनाथ" के नाम से जानती है। मकर संक्रांति के दिन यहाँ उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा मेला लगता है। स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का बड़ा योगदान है। कुली-बेगार प्रथा के रजिस्टरों को सरयू की धारा में बहाकर यहाँ के लोगों ने अपने अंचल में गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन शुरवात सन १९२० ई. में की। सरयू एवं गोमती नदी के संगम पर स्थित बागेश्वर मूलतः एक ठेठ पहाड़ी कस्बा है। परगना दानपुर के 473, खरही के 66, कमस्यार के 166, पुँगराऊ के 87 गाँवों का समेकन केन्द्र होने के कारण यह प्रशासनिक केन्द्र बन गया। मकर संक्रान्ति के दौरान लगभग महीने भर चलने वाले उत्तरायणी मेले की व्यापारिक गतिविधियों, स्थानीय लकड़ी के उत्पाद, चटाइयाँ एवं शौका तथा भोटिया व्यापारियों द्वारा तिब्बती ऊन, सुहागा, खाल तथा अन्यान्य उत्पादों के विनिमय ने इसको एक बड़ी मण्डी के रूप में प्रतिष्ठापित किया। 1950-60 के दशक तक लाल इमली तथा धारीवाल जैसी प्रतिष्ठित वस्त्र कम्पनियों द्वारा बागेश्वर मण्डी से कच्चा ऊन क्रय किया जाता था। .

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बिनसर

बिनसर उत्तरांचल में अल्मोड़ा से लगभग ३४ किलोमीटर दूर है। यह समुद्र तल से लगभग २४१२ मीटर की उंचाई पर बसा है। लगभग ११वीं से १८वीं शताब्दी तक ये चन्द राजाओं की राजधानी रहा था। अब इसे वन्य जीव अभयारण्य बना दिया गया है। बिनसर झांडी ढार नाम की पहाडी पर है। यहां की पहाड़ियां झांदी धार के रूप में जानी जाती हैं। बिनसर गढ़वाली बोली का एक शब्द है -जिसका अर्थ नव प्रभात है। यहां से अल्मोड़ा शहर का उत्कृष्ट दृश्य, कुमाऊं की पहाडियां और ग्रेटर हिमालय भी दिखाई देते हैं। घने देवदार के जंगलों से निकलते हुए शिखर की ओर रास्ता जाता है, जहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला का अकाट्य दृश्‍य और चारों ओर की घाटी देखी जा सकती है। बिनसर से हिमालय की केदारनाथ, चौखंबा, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदाकोट और पंचोली चोटियों की ३०० किलोमीटर लंबी शृंखला दिखाई देती है, जो अपने आप में अद्भुत है और ये बिनसर का सबसे बड़ा आकर्षण भी हैं। .

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बैजनाथ, उत्तराखण्ड

बैजनाथ उत्तराखण्ड राज्य के बागेश्वर जनपद में गोमती नदी के किनारे एक छोटा सा नगर है। यह अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विख्यात है, जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रूप में मान्यता प्राप्त है। बैजनाथ उन चार स्थानों में से एक है, जिन्हें भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत 'शिव हेरिटेज सर्किट' से जोड़ा जाना है। बैजनाथ को प्राचीनकाल में "कार्तिकेयपुर" के नाम से जाना जाता था, और तब यह कत्यूरी राजवंश के शासकों की राजधानी थी। कत्यूरी राजा तब गढ़वाल, कुमाऊँ तथा डोटी क्षेत्रों तक राज करते थे। .

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बेरीनाग

बेरीनाग, जिसे बेड़ीनाग या बेणीनाग भी कहा जाता है, भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथौरागढ जिनपद का एक नगर तथा तहसील मख्यालय है। .

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भिकियासैंण

भिकियासैंण रामगंगा नदी के किनारे पर उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमांऊँ क्षेत्र के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। यह एक शहर तथा अल्मोड़ा जिले की भिक्यासैंण तहसील का मुख्यालय है, जिसके अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के 376 गॉंव आते हैं। .

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भवाली

भवाली या भुवाली उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल जनपद में स्थित एक नगर है। यह कुमाऊँ मण्डल में आता है। शान्त वातावरण और खुली जगह होने के कारण 'भवाली' कुमाऊँ की एक शानदार नगरी है। यहाँ पर फलों की एक मण्डी है। यह एक ऐसा केन्द्र - बिन्दु है जहाँ से काठगोदाम हल्द्वानी और नैनीताल, अल्मोड़ा - रानीखेत भीमताल - सातताल और रामगढ़ - मुक्तेश्वर आदि स्थानों को अलग - अलग मोटर मार्ग जाते हैं। भवाली नगर अपने प्राचीन टीबी सैनिटोरियम के लिए विख्यात है, जिसकी स्थापना १९१२ में हुई थी। चीड़ के पेड़ों की हवा टी.

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मुनस्‍यारी

मुनस्‍यारी एक खूबसूरत पर्वतिय स्थल है। यह उत्‍तराखण्‍ड में जिला पिथौरागढ़ का सीमांत क्षेत्र है जो एक तरफ तिब्‍बत सीमा और दूसरी ओर नेपाल सीमा से लगा हुआ है। मुनस्‍यारी चारो ओर से पर्वतो से घिरा हुआ है। मुनस्‍यारी के सामने विशाल हिमालय पर्वत श्रंखला का विश्‍व प्रसिद्ध पंचचूली पर्वत (हिमालय की पांच चोटियां) जिसे किवदंतियो के अनुसार पांडवों के स्‍वर्गारोहण का प्रतीक माना जाता है, बाई तरफ नन्‍दा देवी और त्रिशूल पर्वत, दाई तरफ डानाधार जो एक खूबसूरत पिकनिक स्‍पॉट भी है और पीछे की ओर खलिया टॉप है। काठगोदाम, हल्‍द्वानी रेलवे स्‍टेशन से मुनस्‍यारी की दूरी लगभग 295 किलोमीटर है और नैनीताल से 265 किलोमीटर है। काठगोदाम से मुनस्‍यारी की यात्रा बस अथवा टैक्‍सी के माध्‍यम से की जा सकती है और रास्‍ते में कई खूबसूरत स्‍थल आते हैं। काठगोदाम से चलने पर भीमताल, जो कि नैनीताल से मात्र 10 किलोमीटर है, पड़ता है उसके बाद वर्ष भर ताजे फलों के लिए प्रसिद्ध भवाली है, अल्‍मोड़ा शहर और चितई मंदिर भी रास्‍ते में ही है। अल्‍मोड़ा से आगे प्रस्‍थान करने पर धौलछीना, सेराघाट, गणाई, बेरीनाग और चौकोड़ी है। बेरीनाग और चौकोड़ी अपनी खूबसूरती के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां से आगे चलने पर थल, नाचनी, टिमटिया, क्‍वीटी, डोर, गिरगॉव, रातापानी और कालामुनि आते हैं। कालामुनि पार करने के बाद आता है मुनस्‍यारी, जिसकी खूबसूरती अपने आप में निराली है। मुनस्‍यारी में ठहरने के लिए काफी होटल, लॉज और गेस्‍ट हाउस है। गर्मी के सीजन में यहां के होटल खचाखच भरे रहते है इसलिए इस मौसम में वहां जाने से पहले ठहरने के लिए कमरे की बुकिंग जरूर करा लेना चाहिए क्‍योंकि इस समय में यहां पर देसी और विदेशी पर्यटकों की भीड़ बहुत अधिक बढ़ जाती है। विदेशी पर्यटक यहां खासकर ट्रैकिंग और माउंटेनियरिंग के लिए आते हैं। लोग पहाड़ी (स्‍थानीय बोली) बोलते है और हिन्‍दी भाषा का प्रयोग भी करते हैं। यहां के अधिकतर लोग कृषि कार्य में लगे हुए है। .

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मुनार, कपकोट तहसील

मुनार, कपकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड के जिले .

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मुक्तेशवर, नैनीताल तहसील

मुक्तेशवर, नैनीताल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड के जिले .

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मोरनौला, जैंती तहसील

मोरनौला, जैंती तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड के जिले .

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रानीखेत

रानीखेत भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख पहाड़ी पर्यटन स्थल है। यह राज्य के अल्मोड़ा जनपद के अंतर्गत स्थित एक फौजी छावनी है। देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरा रानीखेत बहुत ही रमणीक हिल स्टेशन है। इस स्थान से हिमाच्छादित मध्य हिमालयी श्रेणियाँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं। रानीखेत से सुविधापूर्वक भ्रमण के लिए पिण्डारी ग्लेशियर, कौसानी, चौबटिया और कालिका पहुँचा जा सकता है। चौबटिया में प्रदेश सरकार के फलों के उद्यान हैं। इस पर्वतीय नगरी का मुख्य आकर्षण यहाँ विराजती नैसर्गिक शान्ति है। रानीखेत में फ़ौजी छावनी भी है और गोल्फ़ प्रेमियों के लिए एक सुन्दर पार्क भी है। १८६९ में ब्रिटिश सरकार ने कुमाऊं रेजिमेंट के मुख्यालय की स्थापना रानीखेत में की, और भारतीय गर्मियों से बचने के लिए हिल स्टेशन के रूप में इस नगर का प्रयोग किया जाने लगा। ब्रिटिश राज के दौरान एक समय में, यह शिमला के स्थान पर भारत सरकार के ग्रीष्मकालीन मुख्यालय के रूप में भी प्रस्तावित किया गया था। १९०० में इसकी गर्मियों की ७,७०५ जनसंख्या थी, और उसी साल की सर्दियों की जनसंख्या १९०१ में ३,१५३ मापी गई थी। स्वच्छ सर्वेक्षण २०१८ के अनुसार रानीखेत दिल्ली और अल्मोड़ा छावनियों के बाद भारत की तीसरी सबसे स्वच्छ छावनी है। .

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रामनगर, उत्तराखण्ड

रामनगर, उत्तराखण्ड, भारत के नैनीताल ज़िले में स्थित एक कस्बा और नगर निगम बोर्ड है। यह जिला मुख्यालय नैनीताल से ६५ किमी और देश की राजधानी दिल्ली से लगभग २६० किमी की दूरी पर स्थित है। रामनगर, जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के लिए प्रसिद्ध है। यह कस्बा इस राष्ट्रीय उद्यान का प्रवेशद्वार है। आसपास के अन्य प्रसिद्ध स्थल हैं गर्जिया देवी मन्दिर और सीता बनी मन्दिर। .

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रामगढ़, उत्तराखण्ड

रामगढ़, नैनीताल भवाली से भीमताल की ओर कुछ दूर चलने पर बायीं तरफ का रास्ता रामगढ़ की ओर मुड़ जाता है। यह मार्ग सुन्दर है। इस भुवाली - मुक्तेश्वर मोटर-मार्ग कहते हैं। कुछ ही देर में २३०० मीटर की ऊँचाई वाले 'गागर' नामक स्थान पर जब यात्रीगण पहुँचते हैं तो उन्हें हिमालय के दिव्य दर्शन होते हैं। 'गागर' नामक पर्वत क्षेत्र में 'गर्गाचार्य' ने तपस्या की थी, इसीलिए इस स्थान का नाम 'गर्गाचार्य' से अपभ्रंश होकर 'गागर' हो गया। 'गागर' की इस चोटी पर गर्गेश्वर महादेव का एक पुराना मन्दिर है। 'शिवरात्रि' के दिन यहाँ पर शिवभक्तों का एक विशाल मेला लगता है। 'गागर' से मल्ला रामगढ़ केवल ३ कि॰मी॰ की दूरी पर समुद्रतल से १७८९ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। नैनीताल से केवल २५ कि॰मी॰ की दूरी पर रामगढ़ के फलों का यह अनोखा क्षेत्र बसा हुआ है। कुमाऊँ क्षेत्र में सबसे अधिक फलों का उत्पादन भुवाली - रामगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में होता है। इस क्षेत्र में अनेक प्रकार के फल पाये जाते हैं। बर्फ पड़ने के बाद सबसे पहले ग्रीन स्वीट सेब और सबसे बाद में पकने वाला हरा पिछौला सेब होता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में डिलिशियस, गोल्डन किंग, फैनी और जोनाथन जाति के श्रेष्ठ वर्ग के सेब भी होते हैं। आडू यहाँ का सर्वोत्तम फल है। तोतापरी, हिल्सअर्ली और गौला कि का आडू यहाँ बहुत पैदा किया जाता है। इसी तरह खुमानियों की भी मोकपार्क व गौला कि बेहतर ढ़ंग से पैदा की जाती है। पुलम तो यहाँ का विशेष फल हो गया है। ग्रीन गोज जाति के पुलम यहाँ बहुत पैदा किया जाते हैं। रामगढ़, जहाँ अपने फलों के लिए विख्यात है, वहाँ यह अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। हिमालय का विराट सौन्दर्य यहां से साफ-साफ दिखाई देता है। रामगढ़ की पर्वत चोटी पर जो बंगला है, उसी में एक बार विश्वकवि रवीन्द्र नाथ टैगोर आकर ठहरे थे। उन्होंने यहाँ से जो हिमालय का दृश्य देका तो मुग्ध हो गए और कई दिनों तक हिमालय के दर्शन इृसी स्थान पर बैठकर करते रहे। उनकी याद में बंगला आज भी 'टैगोर टॉप' के नाम से जाना जाता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु को भी रामगढ़ बहुत पसन्द था। कहते हैं आचार्य नरेन्द्रदेव ने बी अपने 'बौद्ध दर्शन' नामक विख्यात ग्रन्थ को अन्तिम रूप यहीं आकर दिया था। साहित्यकारों को यह स्थान सदैव अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। स्व.

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लीती, कपकोट तहसील

लीती, कपकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड के जिले .

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शामा, कपकोट तहसील

शामा, कपकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। .

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सोमेश्वर चौहान

सोमेश्वर अजमेर के स्वामी अर्णोराज का कनिष्ठ पुत्र था। पिता की मृत्यु के बाद उसने अपने जीवन का कुछ भाग चौलुक्य राजा कुमारपाल के दरबार में व्यतीत किया। उसके नाना सिद्धराज जयसिंह के समय गुजरात में ही उसका जन्म हुआ था और वहीं पर चेदि राजकुमारी कर्पूरदेवी से उसका विवाह हुआ। जब कुमारपाल ने कोंकण देश के स्वामी मल्लिकार्जुन पर आक्रमण किया, जो चौहान वीर था, सोमेश्वर ने शत्रु के हाथी पर कूदकर उसका वध किया। उधर अजमेर में एक के बाद दूसरे राजा की मृत्यु हुई। अपने पिता अर्णोराज की हत्या करनेवाले जगद्देव को बीसलदेव ने हराया। बीसलदेव की मृत्यु के बाद उसके पुत्र को हटाकर जगद्देव का पुत्र गद्दी पर बैठा किंतु दो वर्षों के अंदर ही सिंहासन फिर शून्य हो गया और चौहान सामंत और मंत्रियों ने गुजरात से लाकर सोमेश्वर को गद्दी पर बैठाया। सोमेश्वर ने लगभग आठ वर्ष (वि. सं. 1226-1234) तक राज्य किया। सोमेश्वर का राज्य प्राय: सुख और शांति का था। उसने अर्णोराज के नाम से एक नगर बसाया और अनेक मंदिर बनवाए जिनमें से एक भगवान्‌ त्रिपुरुष देव का और दूसरा वैद्यनाथ देव का था। ब्राह्मण और अब्राह्मणों सभी संप्रदायों को उसकी संरक्षा प्राप्त थी। सोमेश्वरीय द्रम्मों का प्रचलन भी इसके राज्य के ऐश्वर्य को द्योतित करता है। सोमेश्वर ने प्रतापलंकेश्वर की पदवी धारण की। पृथ्वीराजरासो के अनुसार उसका विवाह दिल्ली के तंवर राजा अनंगपाल की पुत्री कमला देवी से हुआ और पृथ्वीराज इसका पुत्र था। इसी काव्य में गुजरात के राजा भीम के हाथों उसकी मृत्यु का उल्लेख है। ये दोनों बातें असत्य हैं। पृथ्वीराज चेदि राजकुमारी कुमारदेवी का पुत्र था और सोमेश्वर की मृत्यु के समय भीम गुजरात का राजा नहीं बना था। किंतु गुजरात से उसकी कुछ अनबन अवश्य हुई थी। उसकी मृत्यु के समय पृथ्वीराज केवल दस साल का था। श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:भारत के राजा श्रेणी:चौहान वंश श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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हल्द्वानी

हल्द्वानी, उत्तराखण्ड के नैनीताल ज़िले में स्थित एक नगर है जो काठगोदाम के साथ मिलकर हल्द्वानी-काठगोदाम नगर निगम बनाता है। हल्द्वानी उत्तराखण्ड के सर्वाधिक जनसँख्या वाले नगरों में से है और इसे "कुमाऊँ का प्रवेश द्वार" भी कहा जाता है। कुमाऊँनी भाषा में इसे "हल्द्वेणी" भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ "हल्दू" (कदम्ब) प्रचुर मात्रा में मिलता था। सन् १८१६ में गोरखाओं को परास्त करने के बाद गार्डनर को कुमाऊँ का आयुक्त नियुक्त किया गया। बाद में जॉर्ज विलियम ट्रेल ने आयुक्त का पदभार संभाला और १८३४ में "हल्दु वनी" का नाम हल्द्वानी रखा। ब्रिटिश अभिलेखों से हमें ये ज्ञात होता है कि इस स्थान को १८३४ में एक मण्डी के रूप में उन लोगों के लिए बसाया गया था जो शीत ऋतु में भाभर आया करते थे। .

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जागेश्वर

जागेश्वर, अल्मोड़ा जिला, उत्तराखंड में स्थित एक क्षेत्र है। यह कुमाऊँ मण्डल में आता है। .

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जौलजीबी

जौल्जिबि भारत-नेपाल सीमा (उत्तराखंड/महाकाली क्षेत्र) पर काली और गोरी नदियों के संगम पर स्थित एक छोटा बाज़ार है। यह नाम दोनो ओर के बाज़ारों के लिए प्रयुक्त होता है, जिसमें से नेपाल की ओर बसा बाज़ार भारत की ओर बसे बाज़ार से छोटा है। दोनों ओर के बाज़ार एक झूला पुल से जुड़े हुए हैं। श्रेणी:उत्तराखण्ड के गाँव श्रेणी:नेपाल के गाँव.

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गंगोलीहाट

गंगोलीहाट उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक नगर और तहसील मुख्यालय है, जो हाट कलिका मंदिर नामक सिद्धपीठ के लिये प्रसिद्ध है। इस सिद्ध पीठ की स्थापना आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा की गयी। हाट कलिका देवी रणभूमि में गए जवानों की रक्षक मानी जाती है। यह मंदिर जिला मुख्यालय से ७७ किलोमीटर की दूरी पर है तथा सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। .

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कपकोट

कपकोट भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक नगर है। सरयू नदी के तट पर बसा कपकोट जनपद मुख्यालय, बागेश्वर से २५ किमी की दूरी पर स्थित है, और कपकोट तहसील का मुख्यालय है, जो क्षेत्रफल के आधार पर बागेश्वर जनपद की सबसे बड़ी तहसील है। .

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काठगोदाम

काठगोदाम भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित हल्द्वानी नगर के अंतर्गत स्थित एक क्षेत्र है। इसे ऐतिहासिक तौर पर कुमाऊँ का द्वार कहा जाता रहा है। यह छोटा सा नगर पहाड़ के पाद प्रदेश में बसा है। गौला नदी इसके दायें से होकर हल्द्वानी बाजार की ओर बढ़ती है। पूर्वोतर रेलवे का यह अन्तिम स्टेशन है। यहाँ से बरेली, लखनऊ तथा आगरा के लिए छोटी लाइन की रेल चलती है। काठगोदाम से नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत और पिथौरागढ़ के लिए केएमओयू की बसें जाती है। कुमाऊँ के सभी अंचलों के लिए यहाँ से बसें जाती हैं। १९०१ में काठगोदाम ३७५ की जनसंख्या वाला एक छोटा सा गाँव था। १९०९ तक इसे रानीबाग़ के साथ जोड़कर नोटिफ़िएड एरिया घोषित कर दिया गया। काठगोदाम-रानीबाग़ १९४२ तक स्वतंत्र नगर के रूप में उपस्थित रहा, जिसके बाद इसे हल्द्वानी नोटिफ़िएड एरिया के साथ जोड़कर नगर पालिका परिषद् हल्द्वानी-काठगोदाम का गठन किया गया। २१ मई २०११ को हल्द्वानी-काठगोदाम को नगर पालिका परिषद से नगर निगम घोषित किया गया, और फिर इसके विस्तार को देखते हुए इसका नाम बदलकर नगर निगम हल्द्वानी कर दिया गया। .

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कुमाऊँ मण्डल

यह लेख कुमाऊँ मण्डल पर है। अन्य कुमाऊँ लेखों के लिए देखें कुमांऊॅं उत्तराखण्ड के मण्डल कुमाऊँ मण्डल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के दो प्रमुख मण्डलों में से एक हैं। अन्य मण्डल है गढ़वाल। कुमाऊँ मण्डल में निम्न जिले आते हैं:-.

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कौसानी

कौसानी से दृश्यमान हिमालय पर्वतशृंखला कौसानी, गरुङ तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। भारत का खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्‍थल कौसानी उत्तराखंड राज्‍य के अल्‍मोड़ा जिले से 53 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह बागेश्वर जिला में आता है। हिमालय की खूबसूरती के दर्शन कराता कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है। यहां से बर्फ से ढ़के नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा बडा भव्‍य दिखाई देता हैं। कोसी और गोमती नदियों के बीच बसा कौसानी भारत का स्विट्जरलैंड कहलाता है। यहां के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे, खेल और धार्मिक स्‍थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। .

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अल्मोड़ा

अल्मोड़ा भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का एक महत्वपूर्ण नगर है। यह अल्मोड़ा जिले का मुख्यालय भी है। अल्मोड़ा दिल्ली से ३६५ किलोमीटर और देहरादून से ४१५ किलोमीटर की दूरी पर, कुमाऊँ हिमालय श्रंखला की एक पहाड़ी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार अल्मोड़ा की कुल जनसंख्या ३५,५१३ है। अल्मोड़ा की स्थापना राजा बालो कल्याण चंद ने १५६८ में की थी। महाभारत (८ वीं और ९वीं शताब्दी ईसा पूर्व) के समय से ही यहां की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों में मानव बस्तियों के विवरण मिलते हैं। अल्मोड़ा, कुमाऊं राज्य पर शासन करने वाले चंदवंशीय राजाओं की राजधानी थी। स्वतंत्रता की लड़ाई में तथा शिक्षा, कला एवं संस्कृति के उत्थान में अल्मोड़ा का विशेष हाथ रहा है। .

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उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (UPSRTC) उत्तर प्रदेश राज्य की सड़क परिवहन की सरकारी कंपनी है। यह अंतर्राज्यीय एवं उ.प्र.

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उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है। .

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उत्तराखण्ड परिवहन निगम

उत्तराखंड परिवहन निगम, जिसे यूटीसी भी कहा जाता है, उत्तराखंड राज्य की सरकारी स्वामित्व वाली बस सेवा है। उत्तराखंड परिवहन निगम अपनी १४१९ बसें उत्तराखंड के शहरों के बीच, और अन्य राज्यों, जैसे हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, और जम्मू और कश्मीर के शहरों तक चलाता है। निगम की बसें हर दिन ३,५०,००० किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करती है, और १,००,००० से अधिक लोगों की यात्रा आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। यह टिकटों की ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा भी प्रदान करता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

केएमओयू, केमू, के॰एम॰ओ॰यू॰

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