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कर्ष

सूची कर्ष

कर्ष या कार्षापण एक प्राचीन भारतीय सिक्का था। जातक, पाणिनि के व्याकरण, तथा चाणक्य के अर्थशास्त्र में रजत और ताम्र के सिक्कों को कार्षार्पण कहा गया है। मनु तथा याज्ञवल्क्य के अनुसार ताम्र कार्षापण ८० गुंजे या रत्ती के बराबर भार वाला होता था। .

5 संबंधों: चाँदी, चाणक्य, ताम्र, पाणिनि, जातक

चाँदी

चाँदी एक चमकीली व बहुमूल्य धातु है। इसका परमाणु क्रमांक 47 व परमाणु द्रव्यमान 107.9 है यह एक तन्य धातु है,अतः इसका उपयोग तार व आभूषण बनाने में होता है। इसका परमाण्विक इलेक्ट्रोन विन्यास-1s22s22p63s23p63d104s24p64d105s1 है। चाँदी सर्वाधिक विद्युतचालक व ऊष्माचालक धातु है। इसमे जल व कार्बन डाई ऑक्साइड व सल्फर डाई ऑक्साइड से अभिक्रिया से जंग उत्पन्न होती है, जो काले रंग की होती है। .

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चाणक्य

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम 'विष्णुगुप्त' था। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलपिंडी के पास था) के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। उनके नाम पर एक धारावाहिक भी बना था जो दूरदर्शन पर 1990 के दशक में दिखाया जाता था। .

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ताम्र

तांबा (ताम्र) एक भौतिक तत्त्व है। इसका संकेत Cu (अंग्रेज़ी - Copper) है। इसकी परमाणु संख्या 29 और परमाणु भार 63.5 है। यह एक तन्य धातु है जिसका प्रयोग विद्युत के चालक के रूप में प्रधानता से किया जाता है। मानव सभ्यता के इतिहास में तांबे का एक प्रमुख स्थान है क्योंकि प्राचीन काल में मानव द्वारा सबसे पहले प्रयुक्त धातुओं और मिश्रधातुओं में तांबा और कांसे (जो कि तांबे और टिन से मिलकर बनता है) का नाम आता है। .

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पाणिनि

पाणिनि (५०० ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, ख़ान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं। .

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जातक

जातक कथाओं पर आधारित भूटानी चित्रकला (१८वीं-१९वीं शताब्दी) जातक या जातक पालि या जातक कथाएं बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक का सुत्तपिटक अंतर्गत खुद्दकनिकाय का १०वां भाग है। इन कथाओं में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथायें हैं। जो मान्यता है कि खुद गौतमबुद्ध जी के द्वारा कहे गए है, हालांकि की कुछ विद्वानों का मानना है कि कुछ जातक कथाएँ, गौतमबुद्ध के निर्वाण के बाद उनके शिष्यों द्वारा कही गयी है। विश्व की प्राचीनतम लिखित कहानियाँ जातक कथाएँ हैं जिसमें लगभग 600 कहानियाँ संग्रह की गयी है। यह ईसवी संवत से 300 वर्ष पूर्व की घटना है। इन कथाओं में मनोरंजन के माध्यम से नीति और धर्म को समझाने का प्रयास किया गया है। जातक खुद्दक निकाय का दसवाँ प्रसिद्ध ग्रन्थ है। जातक को वस्तुतः ग्रन्थ न कहकर ग्रन्थ समूह ही कहना अधिक उपयुक्त होगा। उसका कोई-कोई कथानक पूरे ग्रन्थ के रूप में है और कहीं-कहीं उसकी कहानियों का रूप संक्षिप्त महाकाव्य-सा है। जातक शब्द जन धातु से बना है। इसका अर्थ है भूत अथवा भाव। ‘जन्’ धातु में ‘क्त’ प्रत्यय जोड़कर यह शब्द निर्मित होता है। धातु को भूत अर्थ में प्रयुक्त करते हुए जब अर्थ किया जाता है तो जातभूत कथा एवं रूप बनता है। भाव अर्थ में प्रयुक्त करने पर जात-जनि-जनन-जन्म अर्थ बनता है। इस तरह ‘जातक’ शब्द का अ र्थ है, ‘जात’ अर्थात् जन्म-सम्बन्धीं। ‘जातक’ भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म सम्बन्धी कथाएँ है। बुद्धत्व प्राप्त कर लेने की अवस्था से पूर्व भगवान् बुद्ध बोधिसत्व कहलाते हैं। वे उस समय बुद्धत्व के लिए उम्मीदवार होते हैं और दान, शील, मैत्री, सत्य आदि दस पारमिताओं अथवा परिपूर्णताओं का अभ्यास करते हैं। भूत-दया के लिए वे अपने प्राणों का अनेक बार बलिदान करते हैं। इस प्रकार वे बुद्धत्व की योग्यता का सम्पादन करते हैं। बोधिसत्व शब्द का अर्थ ही है बोधि के लिए उद्योगशील प्राणी। बोधि के लिए है सत्व (सार) जिसका ऐसा अर्थ भी कुछ विद्वानों ने किया है। पालि सुत्तों में हम अनेक बार पढ़ते हैं, ‘‘सम्बोधि प्राप्त होने से पहले, बुद्ध न होने के समय, जब मैं बोधिसत्व ही था‘‘ आदि। अतः बोधिसत्व से स्पष्ट तात्पर्य ज्ञान, सत्य दया आदि का अभ्यास करने वाले उस साधक से है जिसका आगे चलकर बुद्ध होना निश्चित है। भगवान बुद्ध भी न केवल अपने अन्तिम जन्म में बुद्धत्व-प्राप्ति की अवस्था से पूर्व बोधिसत्व रहे थे, बल्कि अपने अनेक पूर्व जन्मों में भी बोधिसत्व की चर्या का उन्होंने पालन किया था। जातक की कथाएँ भगवान् बुद्ध के इन विभिन्न पूर्वजन्मों से जबकि वे बोधिसत्व रहे थे, सम्बन्धित हैं। अधिकतर कहानियों में वे प्रधान पात्र के रूप में चित्रित है। कहानी के वे स्वयं नायक है। कहीं-कहीं उनका स्थान एक साधारण पात्र के रूप में गौण है और कहीं-कहीं वे एक दर्शक के रूप में भी चित्रित किये गये हैं। प्रायः प्रत्येक कहानी का आरम्भ इस प्रकार होता है-‘‘एक समय राजा ब्रह्मदत्त के वाराणसी में राज्य करते समय (अतीते वाराणसिंय बह्मदत्ते रज्ज कारेन्ते) बोधिसत्व कुरंग मृग की योनि से उत्पन्न हुए अथवा...

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

कार्षापण, काशार्पण

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