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कामगार वर्ग

सूची कामगार वर्ग

कामगार वर्ग (या श्रमिक वर्ग) एक ऐसा शब्द है, जिसका उपयोग सामाजिक विज्ञानों और साधारण बातचीत में वैसे लोगों के वर्णन के लिए होता है, जो निम्न स्तरीय कार्यों (दक्षता, शिक्षा और निम्न आय द्वारा मापदंड पर) में लगे होते हैं और अक्सर इस अर्थ का विस्तार बेरोजगारी या औसत से नीचे आय वाले लोगों तक भी होता है। कामगार वर्ग मुख्यत: औद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं और गैर-औद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं वाले शहरी क्षेत्रों में पाये जाते हैं। 1973 में वोल्फसबर्ग, पश्चिमी जर्मनी में वोक्सवैगन विधानसभा लाइन में श्रमिक सामाजिक वर्ग के वर्णन में कई तरह के शब्दों का उपयोग किया जाता है, मगर कामगार वर्ग को विभिन्न तरीकों से परिभाषित और प्रयुक्त किया जाता है। जब इसका प्रयोग गैर-अकादमिक रूप में होता है तो यह आमतौर पर समाज के एक खंड को संदर्भित करने के लिए होता है, जो शारीरिक श्रम पर आश्रित है, खासतौर पर जिन्हें घंटे के आधार पर मजदूरी दी जाती है। शैक्षिक वार्तालाप में इसका प्रयोग विवादास्पद रहा है, विशेष रूप से उत्तर-औद्योगीकृत समाजों में मानव श्रम में गिरावट के बाद.

19 संबंधों: ऐतिहासिक भौतिकवाद, दास कैपिटल, प्राचल, पूंजीवाद, बेकारी, मानस शास्त्र, मानवशास्त्र, मार्क्सवाद, शिक्षा, समाजशास्त्र, साम्राज्यवाद, वर्ग संघर्ष, व्लादिमीर लेनिन, वैश्वीकरण, कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र, कार्ल मार्क्स, अभिजाततंत्र, अर्थशास्त्र, अर्थव्यवस्था

ऐतिहासिक भौतिकवाद

ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical materialism) समाज और उसके इतिहास के अध्ययन में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical materialism) के सिद्धांतों का प्रसारण है। आधुनिक काल में चूँकि इतिहास को मात्र विवरणात्मक न मानकर व्याख्यात्मक अधिक माना जाता है और वह अब केवल आकस्मिक घटनाओं का पुंज मात्र नहीं रह गया है, ऐतिहासिक भौतिकवाद ने ऐतिहासिक विचारधारा को अत्यधिक प्रभावित किया है। 17 मार्च 1883 को कार्ल मार्क्स की समाधि के पास उनके मित्र और सहयोगी एंजिल ने कहा था, ""ठीक जिस तरह जीव जगत् में डार्विन ने विकास के नियम का अनुसंधान किया, उसी तरह मानव इतिहास में मार्क्स ने विकास के नियम का अनुसंधान किया। उन्होंने इस सामान्य तथ्य को खोज निकाला (जो अभी तक आदर्शवादिता के मलबे के नीचे दबा था) कि इसके पहले कि वह राजनीति, विज्ञान, कला, धर्म और इस प्रकार की बातों में रुचि ले सके, मानव को सबसे पहले खाना पीना, वस्त्र और आवास मिलना चाहिए। इसका अभिप्राय यह है कि जीवन धारण के लिए आसन्न आवश्यक भौतिक साधनों के साथ-साथ राष्ट्र अथवा युगविशेष के तत्कालीन आर्थिक विकास की प्रावस्था उस आधार का निर्माण करती है जिसपर राज्य संस्थाएँ, विधिमूलक दृष्टिकोण और संबंधित व्यक्तियों के कलात्मक और धार्मिक विचार तक निर्मित हुए हैं। तात्पर्य यह है कि इन उत्तरवर्ती परिस्थितियों को जिन्हें पूर्वगामी परिस्थितियों की जननी समझा जाता है, वस्तुत: स्वयं उनसे प्रसूत समझा जाना चाहिए। यह ऐसी धारणा है जिसका मौलिक महत्व है और जो तत्वत: सरल है। इतिहास में (वैसे ही मानव विचार में भी) परिवर्तनों के लिए आदि प्रेरक शक्ति युगविशेष की आर्थिक उत्पादन की व्यवस्था और तज्जनित संबंधों में निहित होती है। यह धारणा उन सारी व्याख्याओं का विरोध करती है जो इतिहास के प्रारंभिक तत्वों को दैव, जगदात्मा, प्राकृतिक विवेक स्वातंत्र्य आदि जैसी भावात्मक वस्तुओं में ढूँढती हैं। इसकी उत्पत्ति वास्तविक सक्रिय मानव से होती है और उसके सही सही और महत्वपूर्ण अंत: संबंध सैद्धांतिक प्रत्यावर्तन के विकास और उनकी सजीव प्रक्रिया की प्रतिध्वनियों को प्रदर्शित करती है। संक्षेप में, चेतनता जीवन को नहीं निर्धारित करती किंतु जीवन चेतनता को निर्धारित करता है। मार्क्स ने "दर्शन की दरिद्रता" (पावर्टी ऑव फ़िलासफ़ी) में लिखा, ""हम कल्पना करें कि अपने भौतिक उत्तराधिकार में वास्तविक इतिहास, अपने पार्थिव उत्तराधिकार में, ऐसा ऐतिहासिक उत्तराधिकार है जिसमें मत, प्रवर्ग, सिद्धांतों ने अपने को अभिव्यक्त किया है। प्रत्येक सिद्धांत की अपनी निजी शताब्दी रही है जिसमें उसने अपने को उद्घाटित किया है। उदाहरण के लिए सत्ता के सिद्धांत की अपनी शताब्दी 11वीं रही है, उसी तरह जिस तरह 18वीं शताब्दी व्यक्तिवाद के सिद्धांत की प्रधानता की रही है। अत:, तर्कत: शताब्दी सिद्धांत की अनुवर्तिनी होती है, सिद्धांत शताब्दी का अनुवर्ती नहीं होता। दूसरे शब्दों में, सिद्धांत इतिहास को बनाता है, इतिहास सिद्धांत को नहीं बनाता। अब यदि हम इतिहास और सिद्धांत दोनों की रक्षा की आशा के लिए पूछें कि आखिर सत्ता का सिद्धांत 11वीं शताब्दी में ही क्यों प्रादुर्भूत हुआ और व्यक्तिवाद 18वीं में क्यों और सत्ता सिद्धांत 18वीं में या व्यक्तिवाद 11वीं में, अथवा दोनों एक ही शताब्दी में क्यों नहीं हुए, तो हमें अनिवार्य रूप से तत्कालीन परिस्थितियों के विस्तार में जाने पर बाध्य होना पड़ेगा। हमें जानना पड़ेगा कि 11वीं और 18वीं शताब्दी के लोग कैसे थे, उनकी क्रमागत आवश्यकताएँ क्या थीं। उनके उत्पादन की शक्तियाँ, उनके उत्पादन के तरीके, वे कच्चे माल जिनसे वे उत्पादन करते थे और अंत में मानव मानव के बीच क्या संबंध थे, संबंध जो अस्तित्व की इन समस्त परिस्थितियों से उत्पन्न होते थे। किंतु ज्योंही हम मानवों को अपने इतिहास के पात्र और उनके निर्माता मान लेते हैं त्योंही थोड़े चक्कर के बाद, हमें उस वास्तविक आदि स्थान का पता लग जाता है जहाँ से यात्रा आरंभ हुई थी, क्योंकि हमने उन शाश्वत सिद्धांतों को छोड़ दिया है, जहाँ से हमने आरंभ किया था।"" भोंड़े पत्थर के औजारों से धनुषबाण तक और शिकारी जीवन से आदिम पशुपालन पशुचारण तक, पत्थर के औजारों से धातु के औजारों तक (लोहे की कुल्हाड़ी, लोहे के फालवाले लकड़ी के हल आदि) कृषि के संक्रमण के साथ, सामग्री के उपयोग के लिए धातु के औजारों का आगे को विकास (लोहार की धौंकनी और बर्तनों का आरंभ), दस्तकारी के विकास और उसका कृषि से प्रारंभिक औद्योगिक निर्माण के रूप में पृथक्करण, मशीनों की ओर संक्रमण और तब आधुनिक बड़े पैमाने के उद्योगों का औद्योगिक क्रांति के आधार पर उदय–प्राचीन काल से हमारे युग तक की उत्पादक शक्तियों के क्रमिक विकास की यह एक मोटी रूपरेखा है। परिवर्तनों के इस क्रम के साथ-साथ मनुष्य के आर्थिक संबंध भी बदलते गए हैं और उनका विकास होता गया है। इतिहास को उत्पादन संबंधों के पाँच मुख्य प्रकार ज्ञात हैं–आदिम जातिवादी, दासप्रधान, सामंती, पूँजीवादी और समाजवादी। इन व्यवस्थाओं के विचार और प्रकार, यथा पूँजीवाद में मुनाफा, मजदूरी और लगान, शाश्वत नहीं बल्कि उत्पादन के सामाजिक संबंधों की सैद्धांतिक अभिव्यक्ति मात्र हैं। भौतिक परिवेश में विकसित होनेवाली ठोस आवश्यकताएँ एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था के परिवर्तन के ऐतिहासिक क्रम को जन्म देती हैं। जब भीतरी अंतर्विरोधों के कारण आर्थिक आच्छादन फट जाता है, जैसा कि समाजवादी विश्लेषण का दावा है कि पूँजीवाद में घटित हो रहा है, तब इतिहास का एक नया अध्याय आरंभ हो जाता है। इस धारणा के अनुसार मनुष्य की भूमिका किसी भी प्रकार निष्क्रियता की नहीं सक्रियता की है। एंजिल्स के कथानानुसार स्वतंत्रता आवश्यकता की स्वीकृति है। व्यक्ति प्राकृतिक नियमों से कहाँ तक बँधा है, यह जान लेना अपनी स्वतंत्रता की सीमाओं को जान लेना है। इच्छा मात्र से आदमी अपनी ऊँचाई हाथ भर भी नहीं बढ़ा सकता। किंतु मनुष्य ने उन भौतिक नियमों का राज समझकर उड़ना सीख लिया है जिनके बिना उसका उड़ना असंभव होता है। नि:संदेह मानव इतिहास का निर्माण करता है किंतु अपनी मनचाही रीति से नहीं। यह कहना कि यह विचारधारा मनुष्य पर स्वार्थ के उद्देश्यों को आरोपित करती है, इस विचार को फूहड़ बनाना है। यह हास्यास्पद होता, यदि सिद्धांत यह कहता कि आदमी सदा भौतिक स्वार्थ के लिए काम करता है। किंतु उसका मात्र इतना आग्रह है कि आदर्श स्वर्ग से बने बनाए नहीं टपक पड़ते किंतु प्रस्तुत परिस्थितियों द्वारा विकसित होते हैं। इसलिए इसका कारण खोजना होगा कि युगविशेष में आदर्शविशेष ही क्यों प्रचलित थे, दूसरे नहीं। 1890 में एंजिल्स ने लिखा, ""अंततोगत्वा इतिहास के रूप को निश्चित करनेवाले तत्व वास्तविक जीवन में उत्पादन और पुनरुत्पादन है। इससे अधिक का न तो मार्क्स ने और न मैंने ही कभी दावा किया है। इसलिए अगर कोई इसको इस वक्तव्य में तोड़ मरोड़कर रखता है कि आर्थिक तत्व ही एकमात्र निर्णायक है, तो वह उसे अर्थहीन, विमूर्त और तर्करहित वक्तव्य बना देता है। आर्थिक परिस्थिति आधार निश्चय है, किंतु ऊपरी ढाँचे के विभिन्न सफल संग्राम के बाद विजयी वर्ग द्वारा स्थापित संविधान आदि–कानून के रूप–फिर संघर्ष करनेवालों के दिमाग में इन वास्तविक संघर्षो के परावर्तन, राजनीतिक, कानूनी, दार्शनिक सिद्धांत, धार्मिक विचार और हठधर्मी सिद्धांत के रूप में उनका विकास–यह भी ऐतिहासिक संघर्षो की गति पर अपना प्रभाव डालते हैं और अधिकतर अवस्थाओं में उनका रूप स्थित करने में प्रधानता: सफल होते हैं। इन तत्वों की एक दूसरे के प्रति एक क्रिया भी होती है–अन्यथा इस सिद्धांत को इतिहास के किसी युग पर आरोपित करना अनन्य-साधारण-समीकरण को हल करने से भी सरल होता।"" वास्तव में यह विचार इस बात को स्वीकार करता है कि ""सिद्धांत ज्योंही जनता पर अपना अधिकार स्थापित कर लेते हैं, वे भौतिक शक्ति बन जाते हैं।"" बुनियादी तौर पर तो नि:संदेह इसका आग्रह है कि सामाजिक परिवर्तनों के अंतिम कारणों को ""दर्शन में नहीं प्रत्येक विशिष्ट युग के अर्थशास्त्र"" में ढूँढ़ना होगा। सत्य तो यह है कि आरंभ में "कार्य" थे, शब्द नहीं। इस विचारधारा का एक गत्यात्मक पक्ष भी है जो इस बात पर जोर देता है कि प्रतयेक सजीव समाज में उत्पादन की विकासशील शक्तियों और प्रतिगत्यात्मक संस्थाओं में, उन लोगों में जो स्थितियों को जैसी की तैसी रहने देना चाहते हैं और जो उन्हें बदलना चाहते हैं, विरोध उत्पन्न होता है। यह विरोध जब इस मात्रा तक पहुँच जाता है कि उत्पादन संबंध समाज की "बेड़ियाँ बन जाते हैं" तब क्रांति हो जाती है। इस विश्लेषण के अनुसार पूँजी का एकाधिपत्य उत्पादन पर बेड़ी बनकर बैठ गया है और यही कारण है कि समाजवादी क्रांतियाँ हुई और जहाँ अभी तक नहीं हुई हैं वहाँ पूँजीवाद स्थायी रूप से संकट में पड़ गया है। यह समय समय में युद्धों और उसकी निरंतर तैयारियों से ही दूर हो सकता है। समाजवादी समाज में जो अंतविरोध पैदा होंगे, वे, वास्तव में, अभी तो निश्चय से अधिक कल्पना की वस्तु हैं। .

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दास कैपिटल

दास कैपिटल (Das Kapital; अर्थ - पूँजी) एक पुस्तक है जिसकी रचना कार्ल मार्क्स ने 1867 ई. में की थी। इसमें पूँजी एवं पूँजीवाद का विश्लेषण है तथा मजदूरवर्ग को शोषण से मुक्त करने के उपाय बताये गए हैं। इस पुस्तक के द्वारा एक सर्वथा नवीन विचारधारा प्रवाहित हुई जिसने संपूर्ण प्राचीन मान्यताओं को झकझोर कर हिला दिया। इस पुस्तक के प्रकाशित होने के कुछ ही वर्षों के बाद रूस में साम्यवादी क्रांति हुई। .

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प्राचल

गणित, सांख्यिकी एवं गणितीय विज्ञानों में उस राशि को प्राचल (parameter) कहते हैं जो फलनों एवं चरों को एक उभयनिष्ट (कॉमन) चर की सहायता से परस्पर जोड़ती है। प्राय: t को प्राचल के रूप में प्रयोग किया जाता है। प्राचल के प्रयोग से चरों के सम्बन्ध सरल तरीके से अभिव्यक्त् करने की सुविधा प्राप्त हो जाती है। दूसरे शब्दों में, प्राचल के प्रयोग के बिना राशियों का आपसी सम्बन्ध एक समीकरण की सहायता से बताना बहुत कठिन, असम्भव या जटिल होता है। ध्यातव्य है कि प्राचल शब्द का प्रयोग अलग-अलग संदर्भों में भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता है। .

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पूंजीवाद

पूंजीवाद (Capitalism) सामन्यत: उस आर्थिक प्रणाली या तंत्र को कहते हैं जिसमें उत्पादन के साधन पर निजी स्वामित्व होता है। इसे कभी कभी "व्यक्तिगत स्वामित्व" के पर्यायवाची के तौर पर भी प्रयुक्त किया जाता है यद्यपि यहाँ "व्यक्तिगत" का अर्थ किसी एक व्यक्ति से भी हो सकता है और व्यक्तियों के समूह से भी। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि सरकारी प्रणाली के अतिरिक्त निजी तौर पर स्वामित्व वाले किसी भी आर्थिक तंत्र को पूंजीवादी तंत्र के नाम से जाना जा सकता है। दूसरे रूप में ये कहा जा सकता है कि पूंजीवादी तंत्र लाभ के लिए चलाया जाता है, जिसमें निवेश, वितरण, आय उत्पादन मूल्य, बाजार मूल्य इत्यादि का निर्धारण मुक्त बाजार में प्रतिस्पर्धा द्वारा निर्धारित होता है। पूँजीवाद एक आर्थिक पद्धति है जिसमें पूँजी के निजी स्वामित्व, उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत नियंत्रण, स्वतंत्र औद्योगिक प्रतियोगिता और उपभोक्ता द्रव्यों के अनियंत्रित वितरण की व्यवस्था होती है। पूँजीवाद की कभी कोई निश्चित परिभाषा स्थिर नहीं हुई; देश, काल और नैतिक मूल्यों के अनुसार इसके भिन्न-भिन्न रूप बनते रहे हैं। .

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बेकारी

CIA द्वारा जारी बेरोजगारी की दर का मानचित्र (२००९ में) जब देश में कार्य करनेवाली जनशक्ति अधिक होती है किंतु काम करने के लिए राजी होते हुए भी बहुतों को प्रचलित मजदूरी पर कार्य नहीं मिलता, तो उस विशेष अवस्था को 'बेरोजगारी' (Unemployment) की संज्ञा दी जाती है। ऐसे व्यक्तियों का जो मानसिक एवं शारीरिक दृष्टि से कार्य करने के योग्य और इच्छुक हैं परंतु जिन्हें प्रचलित मजदूरी पर कार्य नहीं मिलता, उन्हें 'बेकार' कहा जाता है। .

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मानस शास्त्र

साइकोलोजी या मनोविज्ञान (ग्रीक: Ψυχολογία, लिट."मस्तिष्क का अध्ययन",ψυχήसाइके"शवसन, आत्मा, जीव" और -λογία-लोजिया (-logia) "का अध्ययन ") एक अकादमिक (academic) और प्रयुक्त अनुशासन है जिसमें मानव के मानसिक कार्यों और व्यवहार (mental function) का वैज्ञानिक अध्ययन (behavior) शामिल है कभी कभी यह प्रतीकात्मक (symbol) व्याख्या (interpretation) और जटिल विश्लेषण (critical analysis) पर भी निर्भर करता है, हालाँकि ये परम्पराएँ अन्य सामाजिक विज्ञान (social science) जैसे समाजशास्त्र (sociology) की तुलना में कम स्पष्ट हैं। मनोवैज्ञानिक ऐसी घटनाओं को धारणा (perception), अनुभूति (cognition), भावना (emotion), व्यक्तित्व (personality), व्यवहार (behavior) और पारस्परिक संबंध (interpersonal relationships) के रूप में अध्ययन करते हैं। कुछ विशेष रूप से गहरे मनोवैज्ञानिक (depth psychologists) अचेत मस्तिष्क (unconscious mind) का भी अध्ययन करते हैं। मनोवैज्ञानिक ज्ञान मानव क्रिया (human activity) के भिन्न क्षेत्रों पर लागू होता है, जिसमें दैनिक जीवन के मुद्दे शामिल हैं और -; जैसे परिवार, शिक्षा (education) और रोजगार और - और मानसिक स्वास्थ्य (treatment) समस्याओं का उपचार (mental health).

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मानवशास्त्र

बैंकाक के फोरेंसिक विज्ञान संग्रहालय में मानवशास्त्रीय वस्तुएँ मानवशास्त्र या नृविज्ञान (en:Anthropology) मानव, उसके जेनेटिक्स, संस्कृति और समाज की वैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन है। इसके अंतर्गत मनुष्य के समाज के अतीत और वर्तमान के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। सामाजिक नृविज्ञान और सांस्कृतिक नृविज्ञान के तहत मानदंडों और समाज के मूल्यों का अध्ययन किया जाता है। भाषाई नृविज्ञान में पढ़ा जाता है कि कैसे भाषा, सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है। जैविक या शारीरिक नृविज्ञान में मनुष्य के जैविक विकास का अध्ययन किया जाता है। नृविज्ञान एक वैश्विक अनुशासन है, जिसमे मानविकी, सामाजिक और प्राकृतिक विज्ञान को एक दूसरे का सामना करने के लिए मजबूर किया जाता है। मानव विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान के समेत मनुष्य उत्पत्ति, मानव शारीरिक लक्षण, मानव शरीर में बदलाव, मनुष्य प्रजातियों में आये बदलावों इत्यादि से ज्ञान की रचना करता है। सामाजिक-सांस्कृतिक नृविज्ञान, संरचनात्मक और उत्तर आधुनिक सिद्धांतों से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। .

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मार्क्सवाद

सामाजिक राजनीतिक दर्शन में मार्क्सवाद (Marxism) उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व द्वारा वर्गविहीन समाज की स्थापना के संकल्प की साम्यवादी विचारधारा है। मूलतः मार्क्सवाद उन आर्थिक राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांतो का समुच्चय है जिन्हें उन्नीसवीं-बीसवीं सदी में कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स और व्लादिमीर लेनिन तथा साथी विचारकों ने समाजवाद के वैज्ञानिक आधार की पुष्टि के लिए प्रस्तुत किया। .

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शिक्षा

अफगानिस्तान के एक विद्यालय में वृक्ष के नीचे पढ़ते बच्चे शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है। शिक्षा, समाज की एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, दूरदर्शन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है। यही सीखना-सिखाना शिक्षा के व्यापक तथा विस्तृत रूप में आते हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों (विद्यालय, महाविद्यालय) में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्र निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर अनेक परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है। शिक्षा एक गतिशील प्रकिया है निखिल .

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समाजशास्त्र

समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। यह सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से संबंधित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, अनुभवजन्य विवेचनगिडेंस, एंथोनी, डनेर, मिशेल, एप्पल बाम, रिचर्ड.

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साम्राज्यवाद

सन १४९२ से अब तक के उपनिवेशी साम्राज्य विश्व के वे क्षेत्र जो किसी न किसी समय ब्रितानी साम्राज्य के भाग थे। साम्राज्यवाद (Imperialism) वह दृष्टिकोण है जिसके अनुसार कोई महत्त्वाकांक्षी राष्ट्र अपनी शक्ति और गौरव को बढ़ाने के लिए अन्य देशों के प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेता है। यह हस्तक्षेप राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक या अन्य किसी भी प्रकार का हो सकता है। इसका सबसे प्रत्यक्ष रूप किसी क्षेत्र को अपने राजनीतिक अधिकार में ले लेना एवं उस क्षेत्र के निवासियों को विविध अधिकारों से वंचित करना है। देश के नियंत्रित क्षेत्रों को साम्राज्य कहा जाता है। साम्राज्यवादी नीति के अन्तर्गत एक राष्ट्र-राज्य (Nation State) अपनी सीमाओं के बाहर जाकर दूसरे देशों और राज्यों में हस्तक्षेप करता है। साम्राज्यवाद का विज्ञानसम्मत सिद्धांत लेनिन ने विकसित किया था। लेनिन ने 1916 में अपनी पुस्तक "साम्राज्यवाद पूंजीवाद का अंतिम चरण" में लिखा कि साम्राज्यवाद एक निश्चित आर्थिक अवस्था है जो पूंजीवाद के चरम विकास के समय उत्पन्न होती है। जिन राष्ट्रों में पूंजीवाद का चरमविकास नहीं हुआ वहाँ साम्राज्यवाद को ही लेनिन ने समाजवादी क्रांति की पूर्ववेला माना है। चार्ल्स ए-बेयर्ड के अनुसार "सभ्य राष्ट्रों की कमजोर एवं पिछड़े लोगों पर शासन करने की इच्छा व नीति ही साम्राज्यवाद कहलाती है।" .

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वर्ग संघर्ष

वर्ग संघर्ष (Class struggle) मार्क्सवादी विचारधारा का प्रमुख तत्व है। मार्क्सवाद के शिल्पकार कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स ने लिखा है, " अब तक विद्यमान सभी समाजों का लिखित इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है।" मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत ऐतिहासिक भौतिकवाद की ही उपसिधि है ओर साइर्थ ही यह अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत के अनुकूल है। मार्क्स ने आर्थिक नियतिवाद की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति इस बात में देखी है कि समाज मे सदैव ही विरोधी आर्थिक वर्गों का अस्तित्व रहा है। एक वर्ग वह है जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व है ओर दूसरा वह जो केवल शारिरिक श्रम करता है। पहला वर्ग सदैव ही दूसरे वर्ग का शोषण करता है। मार्क्स के अनुसार समाज के शोषक ओर शोषित - ये दो वर्ग सदा ही आपस मे संघर्षरत रहे हैं और इनमें समझोता कभी संभव नहीं है। .

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व्लादिमीर लेनिन

व्लादिमीर इलीइच उल्यानोव, जिन्हें लेनिन के नाम से भी जाना जाता है, (२२ अप्रैल १८७० – २१ जनवरी १९२४) एक रूसी साम्यवादी क्रान्तिकारी, राजनीतिज्ञ तथा राजनीतिक सिद्धांतकार थे। लेनिन को रूस में बोल्शेविक क्रांति के नेता के रूप में व्यापक पहचान मिली। वह १९१७ से १९२४ तक सोवियत रूस के, और १९२२ से १९२४ तक सोवियत संघ के भी "हेड ऑफ़ गवर्नमेंट" रहे। उनके प्रशासन काल में रूस, और उसके बाद व्यापक सोवियत संघ भी, रूसी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा नियंत्रित एक-पक्ष साम्यवादी राज्य बन गया। लेनिन विचारधारा से मार्क्सवादी थे, और उन्होंने लेनिनवाद नाम से प्रचलित राजनीतिक सिद्धांत विकसित किए। सिंविर्स्क में एक अमीर मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुए लेनिन ने १८८७ में अपने भाई के निष्पादन के बाद क्रांतिकारी समाजवादी राजनीति को गले लगाया। रूसी साम्राज्य की ज़ार सरकार के विरोध में में भाग लेने पर उन्हें कज़न इंपीरियल विश्वविद्यालय से निकल दिया गया, और फिर उन्होंने अगले वर्षों में कानून की डिग्री प्राप्त की। वह १८९३ में सेंट पीटर्सबर्ग में चले गए और वहां एक वरिष्ठ मार्क्सवादी कार्यकर्ता बन गए। १८९७ में उन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया, और तीन साल तक शूसनस्केय को निर्वासित कर दिया गया, जहां उन्होंने नाडेज़्दा कृपकाया से शादी कर ली। अपने निर्वासन के बाद, वह पश्चिमी यूरोप में चले गए, जहां वे मार्क्सवादी रूसी सामाजिक डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी (आरएसडीएलपी) में एक प्रमुख सिद्धांतकार बन गए। १९०३ में उन्होंने आरएसडीएलपी के वैचारिक विभाजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और फिर वह जुलियस मार्टोव के मेन्शेविकों के खिलाफ बोल्शेविक गुट का नेतृत्व करने लगे। रूस की १९०५ की असफल क्रांति के दौरान विद्रोह को प्रोत्साहित करने के बाद उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के समय एक अभियान चलाया, जिसे यूरोप-व्यापी सर्वहारा क्रांति में परिवर्तित किया जाना था, क्योंकि एक मार्क्सवादी के रूप में उनका मानना था कि यह विरोध पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने, और समाजवाद की स्थापना का कारण बनेगा। १९१७ की फरवरी क्रांति के बाद जब रूस में ज़ार को हटा दिया गया और एक अनंतिम सरकार की स्थापना हो गई, तो वह रूस लौट आए। उन्होंने अक्तूबर क्रांति में प्रमुख भूमिका निभाई, जिसमें बोल्शेविकों ने नए शासन को उखाड़ फेंका था। .

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वैश्वीकरण

Puxi) शंघाई के बगल में, चीन. टाटा समूहहै। वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजन है।वैश्वीकरण का उपयोग अक्सर आर्थिक वैश्वीकरण के सन्दर्भ में किया जाता है, अर्थात, व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पूंजी प्रवाह, प्रवास और प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण.

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कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र

साम्यवादी घोषणापत्र का प्रथम पृष्ठ कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र (जर्मन: Manifest der Kommunistischen Partei) वैज्ञानिक कम्युनिज़्म का पहला कार्यक्रम-मूलक दस्तावेज़ है जिसमें मार्क्सवाद और साम्यवाद के मूल सिद्धान्तों की विवेचना की गयी है। यह महान ऐतिहासिक दस्तावेज़ वैज्ञानिक कम्युनिज़्म के सिद्धान्त के प्रवर्तक कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने तैयार किया था और २१ फ़रवरी सन् १८४८ को पहली बार जर्मन भाषा में प्रकाशित हुआ था। इसे प्राय: साम्यवादी घोषणापत्र (Communist manifesto) के नाम से जाना जाता है। यह संसार की सबसे प्रभावशाली राजनैतिक पाण्डुलिपियों में से एक है। इसमें (वर्तमान एवं आधुनिक) वर्ग संघर्ष तथा पूंजी की समस्यों की विश्लेषणात्मक विवेचन किया गया है (न कि साम्यवाद के भावी रूपों की भविष्यवाणी)। लेनिन के शब्दों में, यह छोटी-सी पुस्तिका अनेकानेक ग्रन्थों के बराबर है; उसकी आत्मा सभ्य संसार के समस्त संगठित और संघर्षशील सर्वहाराओं को प्रेरणा देती रही है और उनका मार्गदर्शन करती रही है। .

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कार्ल मार्क्स

कार्ल हेनरिख मार्क्स (1818 - 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता थे। इनका जन्म 5 मई 1818 को त्रेवेस (प्रशा) के एक यहूदी परिवार में हुआ। 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। तत्पश्चात्‌ उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुए। 1839-41 में उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात्‌ 1842 में मार्क्स उसी वर्ष कोलोन से प्रकाशित 'राइनिशे जीतुंग' पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात्‌ संपादक के रूप में सम्मिलित हुआ किंतु सर्वहारा क्रांति के विचारों के प्रतिपादन और प्रसार करने के कारण 15 महीने बाद ही 1843 में उस पत्र का प्रकाशन बंद करवा दिया गया। मार्क्स पेरिस चला गया, वहाँ उसने 'द्यूस फ्रांजोसिश' जारबूशर पत्र में हीगेल के नैतिक दर्शन पर अनेक लेख लिखे। 1845 में वह फ्रांस से निष्कासित होकर ब्रूसेल्स चला गया और वहीं उसने जर्मनी के मजदूर सगंठन और 'कम्युनिस्ट लीग' के निर्माण में सक्रिय योग दिया। 1847 में एजेंल्स के साथ 'अंतराष्ट्रीय समाजवाद' का प्रथम घोषणापत्र (कम्युनिस्ट मॉनिफेस्टो) प्रकाशित किया 1848 में मार्क्स ने पुन: कोलोन में 'नेवे राइनिशे जीतुंग' का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया। 1849 में इसी अपराघ में वह प्रशा से निष्कासित हुआ। वह पेरिस होते हुए लंदन चला गया जीवन पर्यंत वहीं रहा। लंदन में सबसे पहले उसने 'कम्युनिस्ट लीग' की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई। अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा। उसका 'नेवे राइनिश जीतुंग' भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया। कोलकाता, भारत 1859 में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष 'जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी' नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का एक भाग थी, जो उसने संपुर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी। किंतु कुछ ही दिनो में उसे लगा कि उपलब्ध साम्रगी उसकी योजना में पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती। अत: उसने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (द कैपिटल, हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रगति प्रकाशन मास्‍को से चार भागों में) के नाम से प्रकाशित किया। 'द कैपिटल' के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए। 'वर्गसंघर्ष' का सिद्धांत मार्क्स के 'वैज्ञानिक समाजवाद' का मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उसने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएँ कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं। 1864 में लंदन में 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' की स्थापना में मार्क्स ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ की सभी घोषणाएँ, नीतिश् और कार्यक्रम मार्क्स द्वारा ही तैयार किये जाते थे। कोई एक वर्ष तक संघ का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा, किंतु बाकुनिन के अराजकतावादी आंदोलन, फ्रांसीसी जर्मन युद्ध और पेरिस कम्यूनों के चलते 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो गया। किंतु उसकी प्रवृति और चेतना अनेक देशों में समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के अस्तित्व के कारण कायम रही। 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो जाने पर मार्क्स ने पुन: लेखनी उठाई। किंतु निरंतर अस्वस्थता के कारण उसके शोधकार्य में अनेक बाधाएँ आईं। मार्च 14, 1883 को मार्क्स के तूफानी जीवन की कहानी समाप्त हो गई। मार्क्स का प्राय: सारा जीवन भयानक आर्थिक संकटों के बीच व्यतीत हुआ। उसकी छह संतानो में तीन कन्याएँ ही जीवित रहीं। .

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अभिजाततंत्र

अभिजाततंत्र (अरिस्टॉक्रैसी) वह शासनतंत्र है जिसमें राजनीतिक सत्ता अभिजन के हाथ में हो। इस संदर्भ में "अभिजन" का अर्थ है कुलीन, विद्वान, सद्गुणी, उत्कृष्ट। पश्चिम में "अरिस्टॉक्रैसी" का अर्थ भी लगभग यही है। अफ़लातून (प्लेटो) और उसके शिष्य अरस्तू ने अपनी पुस्तकों में अरिस्टाक्रैसी को बुद्धिमान, सद्गुणी व्यक्तियों का शासनतंत्र माना है। .

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अर्थशास्त्र

---- विश्व के विभिन्न देशों की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर (सन २०१४) अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है। अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है। अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य, कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि। प्रो.

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अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था (Economy) उत्पादन, वितरण एवम खपत की एक सामाजिक व्यवस्था है। यह किसी देश या क्षेत्र विशेष में अर्थशास्त्र का गतित चित्र है। यह चित्र किसी विशेष अवधि का होता है। उदाहरण के लिए अगर हम कहते हैं ' समसामयिक भारतीय अर्थव्यवस्था ' तो इसका तात्पर्य होता है। वर्तमान समय में भारत की सभी आर्थिक गतिविधियों का वर्णन। अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र की अवधारणाओं और सिद्धांतों का व्यवहारिक कार्य रूप है। .

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