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काण्टीय नीतिशास्त्र

सूची काण्टीय नीतिशास्त्र

काण्टीय नीतिशास्त्र का सन्दर्भ एक कर्तव्यवैज्ञानिक नीतिशास्त्रीय सिद्धान्त से हैं, जिसका सम्बन्ध जर्मन दार्शनिक इमानुएल काण्ट से हैं। जिसको जर्मन दार्शनिक इमानुएल काण्ट ने प्रस्तुत किया था। यह सिद्धांत यूरोपीय ज्ञानोदय युग(18 वी सदी) के परिणाम स्वरुप विकसित हुआ था, यह इस दृष्टिकोण पर आधारित है कि आंतरिक रूप से एक शुभ संकल्प ही शुभ कार्य है;एक कार्य केवल तभी शुभ हो सकता है यदि उसके पीछ सिद्धांत हो- कि नैतिक नियमो का पालन एक कर्तव्य कि तरह किया जाये। कांट के नैतिक नियमो की संरचना का केंद्र बिंदु निरपवाद कर्तव्यादेश (categorical imperative) है जो कि सभी मनुष्यो पर सामान रूप से लागू होता है उनके हितो और इच्छाओ पर ध्यान दिए बिना। कांट ने निरपवाद कर्तव्यादेशो (categorical imperative) को विभिन्न तरीको से सूत्रबद्ध किया है। उनके सर्वभौमिकता के सिद्धांत क़े अनुसार, कोई भी कृत्य तभी अनुज्ञेय है जब कि बिना किसी विरोधाभास क़े सभी लोगो द्वारा इसे लागू किया जाना संभव हो सके। अगर विरोधाभास उत्पन होता है तो यह अरस्तु की गैर-विरोधाभास की अवधरणा के नियम का उललंघन करेगा जो यह निर्धारित करती है की उचित कार्य विरोधाभास का कारण नहीं बन सकते है। कांट का मानवता का सूत्रबद्धीकरण निरपवाद कर्तव्यादेशो का दूसरा खंड(अंश) है जो बताता हैं कि अपने प्रयोजन के लिए मनुष्यो को कभी दूसरो को केवल साधन साधने मात्र के लिए व्यवहार नहीं करना चाहिए परन्तु जैसा वह स्वयं के प्रति चाहते है वैसा ही दुसरो के प्रति करना चाहिए। स्वायत्तता का सूत्रीकारण निष्कर्ष निकलता है कि तर्कसंगत(बौद्धिक) कारक नैतिक नियमो से अपनी इच्छानुसार बंधे हुए होते है जबकि अंत का साम्राज्य(किंगडम ऑफ़ एंड्स) मे कांट की संकल्पना है है-लोग वैसा व्यवहार करते है जैसे की उनके कार्यो के सिद्धांत विधि द्वारा किसी कल्पित साम्राज्य(hypothetical kingdom) के लिए स्थापित कर दिये गए हो। कांट ने पूर्ण कर्तव्यो और अपर्ण कर्तव्यों(pefect duties & imperfect duties) मे भेद भी किया है। एक पूर्ण कर्तव्य है जैसे कि कभी झूठ न बोलने का कर्त्तव्य, हमेशा सच को धारण करे रखना; एक अपूर्ण कर्त्तव्य है जैसे की दान करने का कर्त्तव्य जिसे किसी विशेष समय और स्थान के अनुसार लागू किया जा सकता है। अमेरिकी दर्शनशास्त्री लुईस पॉज़मैन(Louis Pojman) ने उद्घृत किया कि पीटिज़म(Pietism),राजनितिक दर्शनशास्त्री जीन-जैक रूसो, तर्कवाद और अनुभवाद के मध्य की आधुनिक बहस और प्राकृतिक विधि के प्रभाव ने कांट की नैतिकता के विकास को प्रभावित किया है। दूसरे दर्शनशास्त्रीयो का मत है कि कांट कि नैतिकता को उनके माता-पिता और उनके शिक्षक मार्टिन नटजन(Martin Knutzen) से प्रभावित है काण्टीय नैतिकता से प्रभवित लोगो में दार्शनिक दार्शनिक जुर्गन हबर्मास, राजनीतिक दार्शनिक जॉन रॉल्स, और मनोविश्लेषक जैक्स लेकन शामिल हैं। जर्मन दार्शनिक जॉर्ज विल्हेम फ्रेडरिक हेगेल(Georg Wilhelm Friedrich Hegel) ने कांट की आलोचना इस आधार पर कि है की कांट की द्वारा अपने नैतिक सिद्धांत मे निर्णय को प्रभावित करने वाले कारको का विशिष्ट विवरण नहीं दिया गया है तथा मानव प्रकृति को छोड़ दिया गया है। जर्मन दर्शनशास्त्री आर्थर शोपेनहॉउर(aurter Schopenhauer) ने तर्क दिया की नैतिकता का उद्देश्य यह वर्णन करना है कि लोगो का व्यवहर कैसा होना चाहिए तथा कांट के सिद्धांत का आदेशत्मक होने की कारण उनकी आलोचना कि। माइकल स्टॉकर का तर्क है कि कर्तव्य को अभिनय मात्र से दर्शाने से दूसरी नैतिक अभिप्रेरणा क्षीण हो सकती है जैसे कि मित्रता, जबकि मर्सिया बैरन ने यह तर्क देकर इस सिद्धांत का बचाव किया है कि कर्तव्य अन्य प्रेरणा को क्षीण नहीं करते है। कैथोलिक चर्च ने ईसाई नैतिकता को गुण नैतिकता के अधिक संगत बताया है तथा कांट की नैतिकता को ईसाई नैतिकता के विरोधाभासी बता कर इसकी आलोचना की है। यह दावा की सभी मनुष्य अपनी गरिमा और सम्मान के कारण स्वायत्तशासी है मतलब की चिकित्सकीय पेशेवरों को किसी भी व्यक्ति पर उनके उपचार के लिए खुश होना चाहिए और उनका उपचार केवल इसलिए नहीं करना चाइये की वह समाज के लिए उपयोगी है। यौन नैतिकता के प्रति कांट का दृष्टिकोण इस विचार से साथ उभरा की मानवो का उपयोग केवल साधन साधने मात्र के लिए नहीं होना चाहिए यौन गतिविधियों की और जाने पर उन्होंने कुछ यौन प्रथाओ को निंदनीय और अपमान जनक बताया उदाहरणता: विवाहेतर यौन संबंध। नारीवादी दार्शनिको ने काण्टीय नीतिशस्त्र का उपयोग वैश्यावृत्ति और अश्लील साहित्य जैसे प्रथाओं की निंदा करने के लिए किया है क्योकि वे महिलाओ का उपयोग केवल साधन मात्र के लिए करते है। कांट इसमें विश्वास करते थे कि क्योकि जानवर तर्कसंगत(बुद्धि संपन्न) नहीं है इसलिए सिवाए कुछ अप्रत्यक्ष कर्त्यव्यो को छोड़कर हमारे कर्तव्य उनके प्रति नहीं हो सकते जैस उनके प्रति क्रूरता ना करके अनैतिक स्वाभाव को विकसित नहीं करना। कांट ने अपने नीतिशास्त्र मे झूठ को एक उदाहरण स्वरुप प्रस्तुत किया है और बताया है कि हमारा पूर्ण कर्त्तव्य है कि हमें हमेशा सच बोलना चाहिए भले ही ऐसा प्रतित हो कि सच बोलने कि अपेक्षा झूठ बोलने पर बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे इस स्थिति मे भी हमे हमेश सत्य को धारण करे रहना चाहिए ।.

4 संबंधों: नीतिशास्त्र, यूरोपीय ज्ञानोदय, इमानुएल काण्ट, कर्तव्यवैज्ञानिक नीतिशास्त्र

नीतिशास्त्र

नीतिशास्त्र (ethics) जिसे व्यवहारदर्शन, नीतिदर्शन, नीतिविज्ञान और आचारशास्त्र भी कहते हैं, दर्शन की एक शाखा हैं। यद्यपि आचारशास्त्र की परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग में मतभेद के विषय रहे हैं, फिर भी व्यापक रूप से यह कहा जा सकता है कि आचारशास्त्र में उन सामान्य सिद्धांतों का विवेचन होता है जिनके आधार पर मानवीय क्रियाओं और उद्देश्यों का मूल्याँकन संभव हो सके। अधिकतर लेखक और विचारक इस बात से भी सहमत हैं कि आचारशास्त्र का संबंध मुख्यत: मानंदडों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से और इन मानदंडों का प्रयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए वरन् सामाजिक जीवन के विश्लेषण में भी। अच्छा और बुरा, सही और गलत, गुण और दोष, न्याय और जुर्म जैसी अवधारणाओं को परिभाषित करके, नीतिशास्त्र मानवीय नैतिकता के प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास करता हैं। बौद्धिक समीक्षा के क्षेत्र के रूप में, वह नैतिक दर्शन, वर्णात्मक नीतिशास्त्र, और मूल्य सिद्धांत के क्षेत्रों से भी संबंधित हैं। नीतिशास्त्र में अभ्यास के तीन प्रमुख क्षेत्र जिन्हें मान्यता प्राप्त हैं.

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यूरोपीय ज्ञानोदय

''जो कुछ आप जानते हैं उसका प्रसार कीजिये। आप जो नहीं जानते उसकी खोज कीजिये।'' - Encyclopédie के १७७२ के संस्करण में आंकित यूरोप में १६५० के दशक से लेकर १७८० के दशक तक की अवधि को प्रबोधन युग या ज्ञानोदय युग (Age of Enlightenment) कहते हैं। इस अवधि में पश्चिमी यूरोप के सांस्कृतिक एवं बौद्धिक वर्ग ने परम्परा से हटकर तर्क, विश्लेषण तथा वैयक्तिक स्वातंत्र्य पर जोर दिया। ज्ञानोदय ने कैथोलिक चर्च एवं समाज में गहरी पैठ बना चुकी अन्य संस्थाओं को चुनौती दी। .

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इमानुएल काण्ट

इमानुएल कांट (1724-1804) जर्मन वैज्ञानिक, नीतिशास्त्री एवं दार्शनिक थे। उसका वैज्ञानिक मत "कांट-लाप्लास परिकल्पना" (हाइपॉथेसिस) के नाम से विख्यात है। उक्त परिकल्पना के अनुसार संतप्त वाष्पराशि नेबुला से सौरमंडल उत्पन्न हुआ। कांट का नैतिक मत "नैतिक शुद्धता" (मॉरल प्योरिज्म) का सिद्धांत, "कर्तव्य के लिए कर्तव्य" का सिद्धांत अथवा "कठोरतावाद" (रिगॉरिज्म) कहा जाता है। उसका दार्शनिक मत "आलोचनात्मक दर्शन" (क्रिटिकल फ़िलॉसफ़ी) के नाम से प्रसिद्ध है। इमानुएल कांट अपने इस प्रचार से प्रसिद्ध हुये कि मनुष्य को ऐसे कर्म और कथन करने चाहियें जो अगर सभी करें तो वे मनुष्यता के लिये अच्छे हों। .

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कर्तव्यवैज्ञानिक नीतिशास्त्र

कर्तव्यवैज्ञानिक नीतिशास्त्र या कर्तव्यविज्ञान (Deontological ethics or Deontology) (यूनानी δέον से, डिऑन, "कर्तव्य", "दायित्व") वह मानदण्डक नीतिशास्त्रीय स्थिति हैं, जो किसी कार्य की नैतिकता को नियम या नियमों के अनुपालन के आधार पर, जज करती हैं। कभी-कभी, इसका वर्णन "कर्तव्य-" या "दायित्व-" या "नियम-" आधारित नीतिशास्त्र के रूप में होता हैं, क्योंकि नियम "आपको आपके कर्तव्य से बाँधते हैं"।Waller, Bruce N. 2005.

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