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इमानुएल काण्ट

सूची इमानुएल काण्ट

इमानुएल कांट (1724-1804) जर्मन वैज्ञानिक, नीतिशास्त्री एवं दार्शनिक थे। उसका वैज्ञानिक मत "कांट-लाप्लास परिकल्पना" (हाइपॉथेसिस) के नाम से विख्यात है। उक्त परिकल्पना के अनुसार संतप्त वाष्पराशि नेबुला से सौरमंडल उत्पन्न हुआ। कांट का नैतिक मत "नैतिक शुद्धता" (मॉरल प्योरिज्म) का सिद्धांत, "कर्तव्य के लिए कर्तव्य" का सिद्धांत अथवा "कठोरतावाद" (रिगॉरिज्म) कहा जाता है। उसका दार्शनिक मत "आलोचनात्मक दर्शन" (क्रिटिकल फ़िलॉसफ़ी) के नाम से प्रसिद्ध है। इमानुएल कांट अपने इस प्रचार से प्रसिद्ध हुये कि मनुष्य को ऐसे कर्म और कथन करने चाहियें जो अगर सभी करें तो वे मनुष्यता के लिये अच्छे हों। .

40 संबंधों: चार्ल्स सैंडर्स पियर्स, एडम स्मिथ, एडमंड हुसर्ल, एपिकुरुस, डेविड ह्यूम, तत्त्वमीमांसा, दर्शनशास्त्र, दार्शनिक, धर्मशास्त्र, न्यूटन (इकाई), नोआम चाम्सकी, नीतिशास्त्र, पाइथागोरस, प्लेटो, फ्रेडरिख शेलिंग, फ्रेडरिक नीत्शे, बारूथ स्पिनोज़ा, भौतिक शास्त्र, मार्टिन हाइडेगर, मिशेल फूको, मुहम्मद इक़बाल, मैक्स वेबर, यूक्लिड, रूस, रूसो, रेने देकार्त, सुकरात, सॉरन किअर्केगार्ड, जर्मनी, जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल, जॉन राल्स, जॉन लॉक, जोहान्न गोत्त्लिएब फिचते, वैज्ञानिक, गणित, गाटफ्रीड लैबनिट्ज़, आर्थर शोपेनहावर, आइज़क न्यूटन, काण्टीयवाद, अरस्तु

चार्ल्स सैंडर्स पियर्स

चार्ल्स सैंडर्स पियर्स अमेरिकी दार्शनिक, तर्कशास्त्री, गणितज्ञ, और वैज्ञानिक थे। .

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एडम स्मिथ

अर्थशास्त्री '''एडम स्मिथ''' एडम स्मिथ (५जून १७२३ से १७ जुलाई १७९०) एक स्कॉटिश नीतिवेत्ता, दार्शनिक और राजनैतिक अर्थशास्त्री थे। उन्हें अर्थशास्त्र का पितामह भी कहा जाता है।आधुनिक अर्थशास्त्र के निर्माताओं में एडम स्मिथ (जून 5, 1723—जुलाई 17, 1790) का नाम सबसे पहले आता है.

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एडमंड हुसर्ल

एडमंड हुसर्ल जर्मन दार्शनिक थे। .

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एपिकुरुस

एपिकुरुस प्राचीन युनान के दार्शनिक थे। ये आनंदवाद के संस्थापक थे। एपिकुरुस का जन्म 342/1 ईसापूर्व समोस में हुआ था। .

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डेविड ह्यूम

डेविड ह्यूम (१७११-१७७६) आधुनिक काल के विश्वविख्यात दार्शनिक थे। वे स्काटलैंड (एडिनबरा) के निवासी थे। आपके मुख्य ग्रंथ हैं - 'मानव प्रज्ञा की एक परीक्षा' (An Enquiry Concerning Human Understanding) और 'नैतिक सिद्धांतों की एक परीक्षा' (An Enquiry Concerning the Principles of Morals) ह्यूम का दर्शन अनुभव की पृष्ठभूमि में परमोत्कृष्ट है। आपके अनुसार यह अनुभव (impression) और एकमात्र अनुभव ही है जो वास्तविक है। अनुभव के अतिरिक्त कोई भी ज्ञान सर्वोपरि नहीं है। बुद्धि से किसी भी ज्ञान का आविर्भाव नहीं होता। बुद्धि के सहारे मनुष्य अनुभव से प्राप्त विषयों का मिश्रण (संश्लेषण) एवं विच्छेदन (विश्लेषण) करता है। इस बुद्धि से नए ज्ञान की वृद्धि नहीं होती। .

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तत्त्वमीमांसा

तत्त्वमीमांसा (Metaphysics), दर्शन की वह शाखा है जो किसी ज्ञान की शाखा के वास्तविकता (reality) का अध्ययन करती है। परम्परागत रूप से इसकी दो शाखाएँ हैं - ब्रह्माण्ड विद्या (Cosmology) तथा सत्तामीमांसा या आन्टोलॉजी (ontology)। तत्वमीमांसा में प्रमुख प्रश्न ये हैं-.

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दर्शनशास्त्र

दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम् सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र स्वत्व, अर्थात प्रकृति तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शनशास्त्र सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है। दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवन-दर्शन को अपनाया। भारतीय दर्शन का इतिहास अत्यन्त पुराना है किन्तु फिलॉसफ़ी (Philosophy) के अर्थों में दर्शनशास्त्र पद का प्रयोग सर्वप्रथम पाइथागोरस ने किया था। विशिष्ट अनुशासन और विज्ञान के रूप में दर्शन को प्लेटो ने विकसित किया था। उसकी उत्पत्ति दास-स्वामी समाज में एक ऐसे विज्ञान के रूप में हुई जिसने वस्तुगत जगत तथा स्वयं अपने विषय में मनुष्य के ज्ञान के सकल योग को ऐक्यबद्ध किया था। यह मानव इतिहास के आरंभिक सोपानों में ज्ञान के विकास के निम्न स्तर के कारण सर्वथा स्वाभाविक था। सामाजिक उत्पादन के विकास और वैज्ञानिक ज्ञान के संचय की प्रक्रिया में भिन्न भिन्न विज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होते गये और दर्शनशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा। जगत के विषय में सामान्य दृष्टिकोण का विस्तार करने तथा सामान्य आधारों व नियमों का करने, यथार्थ के विषय में चिंतन की तर्कबुद्धिपरक, तर्क तथा संज्ञान के सिद्धांत विकसित करने की आवश्यकता से दर्शनशास्त्र का एक विशिष्ट अनुशासन के रूप में जन्म हुआ। पृथक विज्ञान के रूप में दर्शन का आधारभूत प्रश्न स्वत्व के साथ चिंतन के, भूतद्रव्य के साथ चेतना के संबंध की समस्या है। .

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दार्शनिक

जो दर्शन पर मनन करे वह दार्शनिक हुआ। .

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धर्मशास्त्र

धर्मशास्त्र संस्कृत ग्रन्थों का एक वर्ग है, जो कि शास्त्र का ही एक प्रकार है। इसमें सभी स्मृतियाँ सम्मिलित हैं। यह वह शास्त्र है जो हिन्दुओं के धर्म का ज्ञान सम्मिलित किये हुए हैं, धर्म शब्द में यहाँ पारंपरिक अर्थ में धर्म तथा साथ ही कानूनी कर्तव्य भी सम्मिलित हैं। धर्मशास्त्रों का बृहद् पाठ भारत की ब्राह्मण परंपरा का अंग है, तथा यह विद्वत्परंपरा की देन एवं एक विशद तंत्र है। इसके गहन न्यायशास्त्रीय विवेचन के कारण प्रारंभिक ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासकों द्वारा यह हिंदुओं के लिए कानून के रूप में माना गया था तब से लेकर आज भी धर्मशास्त्र को हिन्दू विधिसंहिता के रूप में देखा जाता है। धर्मशास्त्र में उपस्थित रिलीजन व कानून के बीच जो अंतर किया जाता है, दरअसल वह कृत्रिम है और बार-बार उसपर प्रश्न उठाये गये हैं। जबकि कुछ लोग, धर्मशास्त्र में धार्मिक व धर्मनिरपेक्ष कानूनों के बीच अंतर रखा गया है ऐसा पक्ष लेते हैं। धर्मशास्त्र हिन्दू परंपरा में महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि- एक, यह एक आदर्श गृहस्थ के लिए धार्मिक नियमों का स्रोत है, तथा दूसरे, यह धर्म, विधि, आचारशास्त्र आदि से संबंधित हिंदू ज्ञान का सुसंहत रूप है। "पांडुरंग वामन काणे, सामाजिक सुधार को समर्पित एक महान विद्वान्, ने इस पुरानी परंपरा को जारी रखा है। उनका धर्मशास्त्र का इतिहास, पाँच भागों में प्रकाशित है, प्राचीन भारत के सामाजिक विधियों तथा प्रथाओं का विश्वकोश है। इससे हमें प्राचीन भारत में सामाजिक प्रक्रिया को समझने में मदद मिलती है।" .

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न्यूटन (इकाई)

न्यूटन का प्रयोग इन अर्थों में किया जाता है.

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नोआम चाम्सकी

एवरम नोम चोम्स्की (हीब्रू: אברם נועם חומסקי) (जन्म 7 दिसंबर, 1928) एक प्रमुख भाषावैज्ञानिक, दार्शनिक, by Zoltán Gendler Szabó, in Dictionary of Modern American Philosophers, 1860–1960, ed.

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नीतिशास्त्र

नीतिशास्त्र (ethics) जिसे व्यवहारदर्शन, नीतिदर्शन, नीतिविज्ञान और आचारशास्त्र भी कहते हैं, दर्शन की एक शाखा हैं। यद्यपि आचारशास्त्र की परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग में मतभेद के विषय रहे हैं, फिर भी व्यापक रूप से यह कहा जा सकता है कि आचारशास्त्र में उन सामान्य सिद्धांतों का विवेचन होता है जिनके आधार पर मानवीय क्रियाओं और उद्देश्यों का मूल्याँकन संभव हो सके। अधिकतर लेखक और विचारक इस बात से भी सहमत हैं कि आचारशास्त्र का संबंध मुख्यत: मानंदडों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से और इन मानदंडों का प्रयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए वरन् सामाजिक जीवन के विश्लेषण में भी। अच्छा और बुरा, सही और गलत, गुण और दोष, न्याय और जुर्म जैसी अवधारणाओं को परिभाषित करके, नीतिशास्त्र मानवीय नैतिकता के प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास करता हैं। बौद्धिक समीक्षा के क्षेत्र के रूप में, वह नैतिक दर्शन, वर्णात्मक नीतिशास्त्र, और मूल्य सिद्धांत के क्षेत्रों से भी संबंधित हैं। नीतिशास्त्र में अभ्यास के तीन प्रमुख क्षेत्र जिन्हें मान्यता प्राप्त हैं.

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पाइथागोरस

सामोस के पाईथोगोरस (Ὁ Πυθαγόρας ὁ Σάμιος, ओ पुथागोरस ओ समिओस, "पाईथोगोरस दी समियन (Samian)," या साधारण रूप से; उनका जन्म 580 और 572 ई॰पू॰ के बीच हुआ और मृत्यु 500 और 490 ई॰पू॰ के बीच हुई), या फ़ीसाग़ोरस, एक अयोनिओयन (Ionian) ग्रीक (Greek)गणितज्ञ (mathematician) और दार्शनिक थे और पाईथोगोरियनवाद (Pythagoreanism) नामक धार्मिक आन्दोलन के संस्थापक थे। उन्हें अक्सर एक महान गणितज्ञ, रहस्यवादी (mystic) और वैज्ञानिक (scientist) के रूप में सम्मान दिया जाता है; हालाँकि कुछ लोग गणित और प्राकृतिक दर्शन में उनके योगदान की संभावनाओं पर सवाल उठाते हैं। हीरोडोट्स उन्हें "यूनानियों के बीच सबसे अधिक सक्षम दार्शनिक" मानते हैं। उनका नाम उन्हें पाइथिआ (Pythia) और अपोलो से जोड़ता है; एरिस्तिपस (Aristippus) ने उनके नाम को यह कह कर स्पष्ट किया कि "वे पाइथियन (पाइथ-) से कम सच (एगोर-) नहीं बोलते थे," और लम्ब्लिकास (Iamblichus) एक कहानी बताते हैं कि पाइथिआ ने भविष्यवाणी की कि उनकी गर्भवती माँ एक बहुत ही सुन्दर, बुद्धिमान बच्चे को जन्म देगी जो मानव जाती के लिए बहुत ही लाभकारी होगा। (The Savisier-) उन्हें मुख्यतः पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) के लिए जाना जाता है, जिसका नाम उनके नाम पर दिया गया है। पाइथोगोरस को "संख्या के जनक" के रूप में जाना जाता है, छठी शताब्दी ईसा पूर्व में धार्मिक शिक्षण और दर्शनमें उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। पूर्व सुकराती (pre-Socratic) काल के अन्य लोगों की तुलना में उनके कार्य ने कथा कहानियों को अधिक प्रभावित किया, उनके जीवन और शिक्षाओं के बारे में अधिक विश्वास के साथ कहा जा सकता है। हम जानते हैं कि पाइथोगोरस और उनके शिष्य मानते थे कि सब कुछ गणित से सम्बंधित है और संख्याओं में ही अंततः वास्तविकता है और गणित के माध्यम से हर चीज के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है तथा हर चीज को एक ताल बद्ध प्रतिरूप या चक्र के रूप में मापा जा सकता है। लम्बलीकस (Iamblichus) के अनुसार, पाइथोगोरस ने कहा कि "संख्या ही विचारों और रूपों का शासक है और देवताओं और राक्षसों का कारण है।" वो पहले आदमी थे जो अपने आप को एक दार्शनिक, या बुद्धि का प्रेमी कहते थे, और पाइथोगोरस के विचारों ने प्लेटो पर एक बहुत गहरा प्रभाव डाला। दुर्भाग्य से, पाइथोगोरस के बारे में बहुत कम तथ्य ज्ञात हैं, क्योंकि उन के लेखन में से बहुत कम ही बचे हैं। पाइथोगोरस की कई उपलब्धियां वास्तव में उनके सहयोगियों और उत्तराधिकारियों की उपलब्धियां हैं। पाईथोगोरस का जन्म सामोस (Samos) में हुआ, जो एशिया माइनर (Asia Minor) के किनारे पर, पूर्वी ईजियन में एक यूनानी द्वीप है। उनकी माँ पायथायस (समोस की निवासी) और पिता मनेसार्चस (टायर (Tyre) के एक फोनिसियन (Phoenicia) व्यापारी) थे। जब वे जवान थे तभी उन्होंने, अपने जन्म स्थान को छोड़ दिया और पोलिक्रेट्स (Polycrates) की अत्याचारी (tyrannical) सरकार से बच कर दक्षिणी इटलीमें क्रोटोन (Croton) केलेब्रिया (Calabria) में चले गए। लम्ब्लिकस (Iamblichus) के अनुसार थेल्स (Thales) उनकी क्षमताओं से बहुत अधिक प्रभावित था, उसने पाइथोगोरस को इजिप्त में मेम्फिस (Memphis) को चलने और वहाँ के पुजारियों के साथ अध्ययन करने की सलाह दी जो अपनी बुद्धि के लिए जाने जाते थे। वे फोनेशिया में टायर और बैब्लोस में शिष्य बन कर भी रहे। इजिप्ट में उन्होंने कुछ ज्यामितीय सिद्धांतों को सिखा जिससे प्रेरित होकर उन्होंने अंततः प्रमेय दी जो अब उनके नाम से जानी जाती है। यह संभव प्रेरणा बर्लिन पेपाइरस (Berlin Papyrus) में एक असाधारण समस्या के रूप में प्रस्तुत है। समोस से क्रोटोन (Croton), केलेब्रिया (Calabria), इटली, आने पर उन्होंने एक गुप्त धार्मिक समाज की स्थापना की जो प्रारंभिक ओर्फिक कल्ट (Orphic cult) से बहुत अधिक मिलती जुलती थी और संभवतः उससे प्रभावित भी थी। Vatican) पाइथोगोरस ने क्रोटन के सांस्कृतिक जीवन में सुधर लाने की कोशिश की, नागरिकों को सदाचार का पालन करने के लिए प्रेरित किया और अपने चारों और एक अनुयायियों का समूह स्थापित कर लिया जो पाइथोइगोरियन कहलाते हैं। इस सांस्कृतिक केन्द्र के संचालन के नियम बहुत ही सख्त थे। उसने लड़कों और लड़कियों दोनों के liye सामान रूप से अपना विद्यालय खोला.जिन लोगों ने पाइथोगोरस के सामाज के अंदरूनी हिस्से में भाग लिए वे अपने आप को मेथमेटकोई कहते थे। वे स्कूल में ही रहते थे, उनकी अपनी कोई निजी संपत्ति नहीं थी, उन्हें मुख्य रूप से शाकाहारी भोजन खाना होता था, (बलि दिया जाने वाला मांस खाने की अनुमति थी) अन्य विद्यार्थी जो आस पास के क्षेत्रों में रहते थे उन्हें भी पाइथोगोरस के स्कूल में भाग लेने की अनुमति थी। उन्हें अकउसमेटीकोई के नाम से जाना जाता था और उन्हें मांस खाने और अपनी निजी सम्पति रखने की अनुमति थी। रिचर्ड ब्लेक्मोर ने अपनी पुस्तक दी ले मोनेस्ट्री (१७१४) में पाइथोगोरियनो के धार्मिक प्रेक्षणों को बताया, "यह इतिहास में दर्ज संन्यासी जीवन का पहला उदाहरण था। लम्ब्लिकास (Iamblichus) के अनुसार, पाइथोगोरस ने धार्मिक शिक्षण, सामान्य भोजन, व्यायाम, पठन और दार्शनिक अध्ययन से युक्त जीवन का अनुसरण किया। संगीत इस जीवन का एक आवश्यक आयोजन कारक था: शिष्य अपोलो के लिए नियमित रूप से मिल जुल कर भजन गाते थे; वे आत्मा या शरीर की बीमारी का इलाज करने के लिए वीणा (lyre) का उपयोग करते थे; याद्दाश्त को बढ़ाने के लिए सोने से पहले और बाद में कविता पठन किया जाता था। फ्लेवियस जोजेफस (Flavius Josephus), एपियन के विरुद्ध (Against Apion), यहूदी धर्म की रक्षा में ग्रीक दर्शनशास्त्र (Greek philosophy) के खिलाफ कहा कि समयरना के हर्मिपस (Hermippus of Smyrna) के अनुसार पाइथोगोरस यहूदी विश्वासों से परिचित था, उसने उनमें से कुछ को अपने दर्शन में शामिल किया। जिंदगी के अंतिम चरण में उसके और उसके अनुयायियों के खिलाफ क्रोतों के एक कुलीन सैलों (Cylon) द्वारा रचित शाजिश की वजह से वह मेतापोंतुम (Metapontum) भाग गया। वह अज्ञात कारणों से मेटापोंटम म में ९० साल की उम्र में मर गया। बर्ट्रेंड रसेल, ने पश्चिमी दर्शन के इतिहास (History of Western Philosophy), में बताया कि पाइथोगोरस का प्लेटो और अन्य लोगों पर इतना अधिक प्रभाव था कि वह सभी पश्चिमी दार्शनिकों में सबसे ज्यादा प्रभावी माना जाता था। .

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प्लेटो

प्लेटो (४२८/४२७ ईसापूर्व - ३४८/३४७ ईसापूर्व), या अफ़्लातून, यूनान का प्रसिद्ध दार्शनिक था। वह सुकरात (Socrates) का शिष्य तथा अरस्तू (Aristotle) का गुरू था। इन तीन दार्शनिकों की त्रयी ने ही पश्चिमी संस्कृति की दार्शनिक आधार तैयार किया। यूरोप में ध्वनियों के वर्गीकरण का श्रेय प्लेटो को ही है। .

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फ्रेडरिख शेलिंग

फ्रेडरिख शेलिंग फ्रेडरिख विल्हेल्म जोसेफ फॉन शेलिंग (Friedrich Wilhelm Joseph Von Schelling; (27 जनवरी 1775 – 20 अगस्त 1854) जर्मनी का दार्शनिक था। लगातार परिवर्तित होने की प्रकृति के कारण शेलिंग के दर्शन को समझना कठिन समझा जाता है। .

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फ्रेडरिक नीत्शे

फ्रेडरिक नीत्शे फ्रेडरिक नीत्शे (Friedrich Nietzsche) (15, अक्टू, 1844 से 25, अगस्त 1900) जर्मनी का दार्शनिक था। मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद एवं परिघटनामूलक चिंतन (Phenomenalism) के विकास में नीत्शे की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। व्यक्तिवादी तथा राज्यवादी दोनों प्रकार के विचारकों ने उससे प्रेरणा ली है। हालाँकि नाज़ी तथा फासिस्ट राजनीतिज्ञों ने उसकी रचनाओं का दुरुपयोग भी किया। जर्मन कला तथा साहित्य पर नीत्शे का गहरा प्रभाव है। भारत में भी इक़बाल आदि कवियों की रचनाएँ नीत्शेवाद से प्रभावित हैं। .

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बारूथ स्पिनोज़ा

बारूथ डी स्पिनोज़ा (Baruch De Spinoza) (२४ नवम्बर १६३२ - २१ फ़रवरी १६७७) यहूदी मूल के डच दार्शनिक थे। उनका परिवर्तित नाम 'बेनेडिक्ट डी स्पिनोजा' (Benedict de Spinoza) था। उन्होने उल्लेखनीय वैज्ञानिक अभिक्षमता (aptitude) का परिचय दिया किन्तु उनके कार्यों का महत्व उनके मृत्यु के उपरान्त ही सम्झा जा सका। .

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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मार्टिन हाइडेगर

मार्टिन हाइडेगर एक जर्मन दार्शनिक थे | वह 26 सितंबर, 1889 को पैदा हुआ था। वे 26 मई, 1976 को निधन हो गया। वे वर्तमान काल के प्रसिद्ध अस्तित्ववादी दार्शनिक है किन्तु वे अपने सिद्धांत को अस्तित्ववादी सिद्धांत कहलाने से इंकार करते है। वह जर्मनी के छोटे से कस्बे में पैदा हुआ था और रोमन कैथोलिक वातावरण मे पला था। उसने अपनी दार्शनिक शिक्षा पहले तो नव कांटवादी विल्हेम व रिकेट के निर्देशन में प्राप्त की बाद में वे हसरेल के संपर्क मे आये। .

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मिशेल फूको

मिशेल फूको मिशेल फूको (Michel Foucault; 15 अक्टूबर 1926 - 25 जून 1984) फ्रांस के प्रमुख विचारक और दार्शनिक थे। फूको की गिनती 20 वीं सदी के सबसे प्रमुख विचारकों में से की जाती हैं। यह फूको के लेखों का ही प्रभाव था कि आधुनिक विज्ञान के बहुत से क्षेत्रों में और खासकर इतिहास लेखन के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुये। .

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मुहम्मद इक़बाल

मुहम्मद इक़बाल (محمد اقبال) (जीवन: 9 नवम्बर 1877 – 21 अप्रैल 1938) अविभाजित भारत के प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे। उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है। इकबाल के दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित थे जो बाद में सिआलकोट आ गए। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं: असरार-ए-ख़ुदी, रुमुज़-ए-बेख़ुदी और बंग-ए-दारा, जिसमें देशभक्तिपूर्ण तराना-ए-हिन्द (सारे जहाँ से अच्छा) शामिल है। फ़ारसी में लिखी इनकी शायरी ईरान और अफ़ग़ानिस्तान में बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ इन्हें इक़बाल-ए-लाहौर कहा जाता है। इन्होंने इस्लाम के धार्मिक और राजनैतिक दर्शन पर काफ़ी लिखा है। इकबाल पाकिस्तान का जनक बन गए क्योंकि वह "पंजाब, उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत, सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर एक राज्य बनाने की अपील करने वाले पहले व्यक्ति थे", इंडियन मुस्लिम लीग के २१ वें सत्र में,उनके अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया था जो २९ दिसंबर,१९३० को इलाहाबाद में आयोजित की गई थी। भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले इक़बाल ने ही उठाया था। 1930 में इन्हीं के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की माँग उठाई। इसके बाद इन्होंने जिन्ना को भी मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उनके साथ पाकिस्तान की स्थापना के लिए काम किया। इन्हें पाकिस्तान में राष्ट्रकवि माना जाता है। इन्हें अलामा इक़बाल (विद्वान इक़बाल), मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक), शायर-ए-मशरीक़ (पूरब का शायर) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का विद्वान) भी कहा जाता है। .

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मैक्स वेबर

सन् १८९४ में '''मैक्स वेबर''' मैक्स वेबर (Maximilian Carl Emil "Max" Weber) (21 अप्रैल 1864 - 14 जून 1920) एक जर्मन समाजशास्त्री और राजनीतिक अर्थशास्त्री थे। .

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यूक्लिड

यूक्लिड यूक्लिड (Euclid; 300 ईसा पूर्व), या उकलैदिस, प्राचीन यूनान का एक गणितज्ञ था। उसे "ज्यामिति का जनक" कहा जाता है। उसकी एलिमेण्ट्स (Elements) नामक पुस्तक गणित के इतिहास में सफलतम् पुस्तक है। इस पुस्तक में कुछ गिने-चुने स्वयंसिद्धों (axioms) के आधार पर ज्यामिति के बहुत से सिद्धान्त निष्पादित (deduce) किये गये हैं। इनके नाम पर ही इस तरह की ज्यामिति का नाम यूक्लिडीय ज्यामिति पड़ा। हजारों वर्षों बाद भी गणितीय प्रमेयों को सिद्ध करने की यूक्लिड की विधि सम्पूर्ण गणित का रीढ़ बनी हुई यूक्लिड ने शांकवों, गोलीय ज्यामिति और संभवत: द्विघातीय तलों पर भी पुस्तकें लिखीं। .

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रूस

रूस (रूसी: Росси́йская Федера́ция / रोस्सिज्स्काया फ़ेदेरात्सिया, Росси́я / रोस्सिया) पूर्वी यूरोप और उत्तर एशिया में स्थित एक विशाल आकार वाला देश। कुल १,७०,७५,४०० किमी२ के साथ यह विश्व का सब्से बड़ा देश है। आकार की दृष्टि से यह भारत से पाँच गुणा से भी अधिक है। इतना विशाल देश होने के बाद भी रूस की जनसंख्या विश्व में सातवें स्थान पर है जिसके कारण रूस का जनसंख्या घनत्व विश्व में सब्से कम में से है। रूस की अधिकान्श जनसंख्या इसके यूरोपीय भाग में बसी हुई है। इसकी राजधानी मॉस्को है। रूस की मुख्य और राजभाषा रूसी है। रूस के साथ जिन देशों की सीमाएँ मिलती हैं उनके नाम हैं - (वामावर्त) - नार्वे, फ़िनलैण्ड, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, पोलैण्ड, बेलारूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, अज़रबैजान, कजाकिस्तान, चीन, मंगोलिया और उत्तर कोरिया। रूसी साम्राज्य के दिनों से रूस ने विश्व में अपना स्थान एक प्रमुख शक्ति के रूप में किया था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ विश्व का सबसे बड़ा साम्यवादी देश बना। यहाँ के लेखकों ने साम्यवादी विचारधारा को विश्व भर में फैलाया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ एक प्रमुख सामरिक और राजनीतिक शक्ति बनकर उभरा। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ इसकी वर्षों तक प्रतिस्पर्धा चली जिसमें सामरिक, आर्थिक, राजनैतिक और तकनीकी क्षेत्रों में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ थी। १९८० के दशक से यह आर्थिक रूप से क्षीण होता चला गया और १९९१ में इसका विघटन हो गया जिसके फलस्वरूप रूस, सोवियत संघ का सबसे बड़ा राज्य बना। वर्तमान में रूस अपने सोवियत संघ काल के महाशक्ति पद को पुनः प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है। यद्यपि रूस अभी भी एक प्रमुख देश है लेकिन यह सोवियत काल के पद से भी बहुत दूर है। .

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रूसो

महान दार्शनिक '''रूसो''' जीन-जक्क़ुएस रूसो (1712 - 78) की गणना पश्चिम के युगप्रवर्तक विचारकों में है। किंतु अंतर्विरोध तथा विरोधाभासों से पूर्ण होने के कारण उसके दर्शन का स्वरूप विवादास्पद रहा है। अपने युग की उपज होते हुए भी उसने तत्कालीन मान्यताओं का विरोध किया, बद्धिवाद के युग में उसने बुद्धि की निंदा की (विश्वकोश के प्रणेताओं (Encyclopaedists) से उसका विरोध इस बात पर था) और सहज मानवीय भावनाओं को अत्यधिक महत्व दिया। सामाजिक प्रसंविदा (सोशल कंट्रैक्ट) की शब्दावली का अवलंबन करते हुए भी उसने इस सिद्धांत की अंतरात्मा में सर्वथा नवीन अर्थ का सन्निवेश किया। सामाजिक बंधन तथा राजनीतिक दासता की कटु आलोचना करते हुए भी उसने राज्य को नैतिकता के लिए अनिवार्य बताया। आर्थिक असमानता और व्यक्तिगत संपत्ति को अवांछनीय मानते हुए भी रूसो साम्यवादी नहीं था। घोर व्यक्तिवाद से प्रारंभ होकर उसे दर्शन की परिणति समष्टिवाद में होती है। स्वतंत्रता और जनतंत्र का पुजारी होते हुए भी वह राबेसपीयर जैसे निरंकुशतावादियों का आदर्श बन जाता है। .

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रेने देकार्त

रने डॅकार्ट (फ़्रांसिसी भाषा: René Descartes; लातिनी भाषा: Renatus Cartesius; 31 मार्च 1596 - 11 फ़रवरी 1650) एक फ़्रांसिसी गणितज्ञ, भौतिकीविज्ञानी, शरीरक्रियाविज्ञानी तथा दार्शनिक थे। .

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सुकरात

सुकरात को सूफियों की भाँति मौलिक शिक्षा और आचार द्वारा उदाहरण देना ही पसंद था। वस्तुत: उसके समसामयिक भी उसे सूफी समझते थे। सूफियों की भाँति साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देता था और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करता था। वह कहता था, ""सच्चा ज्ञान संभव है बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए; जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं पर हम परखें, इस तरह अनेक परखों के बाद हम एक सचाई पर पहुँच सकते हैं। ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं हैं।' बुद्ध की भाँति सुकरात ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवनकाल में ही उपदेशों को कंठस्थ करना शुरु किया था जिससे हम उनके उपदेशों को बहुत कुछ सीधे तौर पर जान सकते हैं; किंतु सुकरात के उपदेशों के बारे में यह भी सुविधा नहीं। सुकरात का क्या जीवनदर्शन था यह उसके आचरण से ही मालूम होता है, लेकिन उसकी व्याख्या भिन्न-भिन्न लेखक भिन्न-भिन्न ढंग से करते हैं। कुछ लेखक सुक्रात की प्रसन्नमुखता और मर्यादित जीवनयोपभोग को दिखलाकर कहते हैं कि वह भोगी था। दूसरे लेखक शारीरिक कष्टों की ओर से उसकी बेपर्वाही तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवनसुख को भी छोड़ने के लिए तैयार रहने को दिखलाकर उसे सादा जीवन का पक्षपाती बतलाते हैं। सुकरात को हवाई बहस पसंद न थी। वह अथेन्स के बहुत ही गरीब घर में पैदा हुआ था। गंभीर विद्वान् और ख्यातिप्राप्त हो जाने पर भी उसने वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी। ज्ञान का संग्रह और प्रसार, ये ही उसके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे। उसके अधूरे कार्य को उसके शिष्य अफलातून और अरस्तू ने पूरा किया। इसके दर्शन को दो भागों में बाँटा जा सकता है, पहला सुक्रात का गुरु-शिष्य-यथार्थवाद और दूसरा अरस्तू का प्रयोगवाद। तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष उसपर लगाया गया था और उसके लिए उसे जहर देकर मारने का दंड मिला था। सुकरात ने जहर का प्याला खुशी-खुशी पिया और जान दे दी। उसे कारागार से भाग जाने का आग्रह उसे शिष्यों तथा स्नेहियों ने किया किंतु उसने कहा- भाइयो, तुम्हारे इस प्रस्ताव का मैं आदर करता हूँ कि मैं यहाँ से भाग जाऊँ। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और प्राण के प्रति मोह होता है। भला प्राण देना कौन चाहता है? किंतु यह उन साधारण लोगों के लिए हैं जो लोग इस नश्वर शरीर को ही सब कुछ मानते हैं। आत्मा अमर है फिर इस शरीर से क्या डरना? हमारे शरीर में जो निवास करता है क्या उसका कोई कुछ बिगाड़ सकता है? आत्मा ऐसे शरीर को बार बार धारण करती है अत: इस क्षणिक शरीर की रक्षा के लिए भागना उचित नहीं है। क्या मैंने कोई अपराध किया है? जिन लोगों ने इसे अपराध बताया है उनकी बुद्धि पर अज्ञान का प्रकोप है। मैंने उस समय कहा था-विश्व कभी भी एक ही सिद्धांत की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। मानव मस्तिष्क की अपनी सीमाएँ हैं। विश्व को जानने और समझने के लिए अपने अंतस् के तम को हटा देना चाहिए। मनुष्य यह नश्वर कायामात्र नहीं, वह सजग और चेतन आत्मा में निवास करता है। इसलिए हमें आत्मानुसंधान की ओर ही मुख्य रूप से प्रवृत्त होना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन में सत्य, न्याय और ईमानदारी का अवलंबन करें। हमें यह बात मानकर ही आगे बढ़ना है कि शरीर नश्वर है। अच्छा है, नश्वर शरीर अपनी सीमा समाप्त कर चुका। टहलते-टहलते थक चुका हूँ। अब संसार रूपी रात्रि में लेटकर आराम कर रहा हूँ। सोने के बाद मेरे ऊपर चादर उड़ देना। .

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सॉरन किअर्केगार्ड

सोरेन किर्केगार्द का जन्म 15 मई,1813 को कोपेनहेगन में हुआ था। अस्तित्ववादी दर्शन के पहले समर्थक हलाकि उन्होने अस्तित्ववाद शब्द का प्रयोग नहीं किया। किर्केगार्द का देहांत 4 नवंबर 1855 को हुआ। .

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जर्मनी

कोई विवरण नहीं।

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जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल

जार्ज विलहेम फ्रेड्रिक हेगेल (1770-1831) सुप्रसिद्ध दार्शनिक थे। वे कई वर्ष तक बर्लिन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे और उनका देहावसान भी उसी नगर में हुआ। .

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जॉन राल्स

जॉन रॉल्स (John Bordley Rawls; 21 फ़रवरी 1921 – 24 नवम्बर 2002) बीसवीं सदी के महानतम नैतिक विचारक व अमेरिकी उदारवाद के दार्शनिक थे। उन्होंने 1971 में अपनी पुस्तक 'अ थिअरी ऑफ जस्टिस' (A Theory of Justice) का प्रकाशन करके राजनीतिक चिन्तन के पुनरोदय के द्वार खोल दिए। इस पुस्तक के कारण रॉल्स को राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में वही स्थान प्राप्त हें जो प्लेटो, एक्विनॉस, कॉण्ट, कार्ल मार्क्स तथा मैकियावेली को प्राप्त है। रॉल्स के आगमन से राजनीतिक चिन्तन की शास्त्रीय परम्परा का पुनरोदय हुआ है। रॉल्स ने राजनीतिक चिन्तन की डूबती नाव को बचाकर अपना नाम राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में सुनहरी अक्षरों में लिखवाने का गौरव प्राप्त है। उनकी रचना 'अ थिअरी ऑफ जस्टिस' ने उदारवाद को नई दिशा व चेतना प्रदान की है।गॉर्डन, डेविड (२८ जुलाई २००८) (अंग्रेज़ी में), द अमेरिकन कंजरवेटिव इस पुस्तक में ‘सामाजिक न्याय’ की संकल्पना विकसित करके रॉल्स ने एक आदर्श राजनीतिक व्यवस्था के निर्माण का मार्ग तैयार किया है।कैंब्रिज डिक्शनरी ऑफ़ फिलोसपी, "राल्स, जॉन," कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस, पृ॰ 774-775.

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जॉन लॉक

जॉन लॉक जॉन लॉक (1632-1704) आंग्ल दार्शनिक एवं राजनैतिक विचारक थे। .

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जोहान्न गोत्त्लिएब फिचते

' जोहान्न गोत्त्लिएब फिचते (१७६२ - १८१४) एक जर्मन दार्शनिक थे। .

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वैज्ञानिक

रूस शोधकर्ता नई पृथ्वी की खाड़ी में प्रयोगशाला अनुसंधान के लिए सामग्री इकट्ठा। कोई भी व्यक्ति जो ज्ञान प्राप्ति के लिये विधिवत (systematic) रूप से कार्यरत हो उसे वैज्ञानिक (scientist) कहते हैं। किन्तु एक सीमित परिभाषा के अनुसार वैज्ञानिक विधि का अनुसरण करते हुए किसी क्षेत्र में ज्ञानार्जन करने वाले व्यक्ति को वैज्ञानिक कहते हैं। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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गाटफ्रीड लैबनिट्ज़

गाटफ्रीड विलहेल्म लाइबनिज (Gottfried Wilhelm von Leibniz / १ जुलाई १६४६ - १४ नवम्बर १७१६) जर्मनी के दार्शनिक, वैज्ञानिक, गणितज्ञ, राजनयिक, भौतिकविद्, इतिहासकार, राजनेता, विधिकार थे। उनका पूरा नाम 'गोतफ्रीत विल्हेल्म फोन लाइब्नित्स' था। गणित के इतिहास तथा दर्शन के इतिहास में उनका प्रमुख स्थान है। .

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आर्थर शोपेनहावर

आर्थर शोपेनहावर आर्थर शोपेनहावर (Arthur Schopenhauer) (२२ फ़रवरी १७८८ - २१ सितम्बर १८६०) जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वे अपने 'नास्तिक निराशावाद' के दर्शन के लिये प्रसिद्ध हैं। उन्होने २५ वर्ष की आयु में अपना शोधपत्र पर्याप्त तर्क के चार मूल (On the Fourfold Root of the Principle of Sufficient Reason) प्रस्तुत किया जिसमें इस बात की मीमांसा की गयी थी कि क्या केवल तर्क (reason) संसार के गूढ रहस्यों से पर्दा उठा सकता है? बौद्ध दर्शन की भांति शोपेनहावर भी कि इच्च्हाओं (will) के शमन की आवश्यकता पर बल दिया है। .

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आइज़क न्यूटन

सर आइज़ैक न्यूटन इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक थे। जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण का नियम और गति के सिद्धांत की खोज की। वे एक महान गणितज्ञ, भौतिक वैज्ञानिक, ज्योतिष एवं दार्शनिक थे। इनका शोध प्रपत्र "प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांतों "" सन् १६८७ में प्रकाशित हुआ, जिसमें सार्वत्रिक गुर्त्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की गई थी और इस प्रकार चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल भौतिकी) की नींव रखी। उनकी फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका, 1687 में प्रकाशित हुई, यह विज्ञान के इतिहास में अपने आप में सबसे प्रभावशाली पुस्तक है, जो अधिकांश साहित्यिक यांत्रिकी के लिए आधारभूत कार्य की भूमिका निभाती है। इस कार्य में, न्यूटन ने सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। न्यूटन ने दर्शाया कि पृथ्वी पर वस्तुओं की गति और आकाशीय पिंडों की गति का नियंत्रण प्राकृतिक नियमों के समान समुच्चय के द्वारा होता है, इसे दर्शाने के लिए उन्होंने ग्रहीय गति के केपलर के नियमों तथा अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बीच निरंतरता स्थापित की, इस प्रकार से सूर्य केन्द्रीयता और वैज्ञानिक क्रांति के आधुनिकीकरण के बारे में पिछले संदेह को दूर किया। यांत्रिकी में, न्यूटन ने संवेग तथा कोणीय संवेग दोनों के संरक्षण के सिद्धांतों को स्थापित किया। प्रकाशिकी में, उन्होंने पहला व्यवहारिक परावर्ती दूरदर्शी बनाया और इस आधार पर रंग का सिद्धांत विकसित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को कई रंगों में अपघटित कर देता है जो दृश्य स्पेक्ट्रम बनाते हैं। उन्होंने शीतलन का नियम दिया और ध्वनि की गति का अध्ययन किया। गणित में, अवकलन और समाकलन कलन के विकास का श्रेय गोटफ्राइड लीबनीज के साथ न्यूटन को जाता है। उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का भी प्रदर्शन किया और एक फलन के शून्यों के सन्निकटन के लिए तथाकथित "न्यूटन की विधि" का विकास किया और घात श्रृंखला के अध्ययन में योगदान दिया। वैज्ञानिकों के बीच न्यूटन की स्थिति बहुत शीर्ष पद पर है, ऐसा ब्रिटेन की रोयल सोसाइटी में 2005 में हुए वैज्ञानिकों के एक सर्वेक्षण के द्वारा प्रदर्शित होता है, जिसमें पूछा गया कि विज्ञान के इतिहास पर किसका प्रभाव अधिक गहरा है, न्यूटन का या एल्बर्ट आइंस्टीन का। इस सर्वेक्षण में न्यूटन को अधिक प्रभावी पाया गया।.

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काण्टीयवाद

इमानुएल कांट (1724-1804) के दर्शन, को "आलोचनात्मक दर्शन" (क्रिटिसिज्म), "परतावाद" (ट्रैसेंडेंटलिज्म), अथवा "परतावादी प्रत्ययवाद" (ट्रैसेंडेंटल आइडियलिज्म) कहा जाता है। इस दर्शन में ज्ञानशक्तियों की समीक्षा प्रस्तुत की गई है। साथ ही, 17वीं और 18वीं शताब्दियों के इंद्रियवाद (सेंसेशनलिज्म) एवं बुद्धिवाद (इंटेलेक्चुअलिज्म) की समीक्षा है। विचारसामग्री के अर्जन में इद्रियों की माध्यमिकता की स्वीकृति में कांट इंद्रियवादियों से सहमत था; उक्त सामग्री को विचारों में परिणत करने में बुद्धि की अनिवार्यता का समर्थन करने में वह बुद्धिवादियों से सहमत था; किंतु वह एक का निराकरण कर दूसरे का समर्थन करने में किसी से सहमत न था। कांट के मत में बुद्धि और इंद्रियाँ ज्ञान संबंधी दो भिन्न संस्थान नहीं हैं, बल्कि एक ही सस्थांन के दो विभिन्न अवयव हैं। कांट के दर्शन को "परतावाद" कहने का आशय उसे इंद्रियवाद तथा बुद्धिवाद से "पर" तथा प्रत्येक दार्शनिक विवेचन के लिए आधारभूत मानना है। उसके दर्शन में बुद्धि द्वारा ज्ञेय विषयों का नहीं, स्वयं बुद्धि का परीक्षण किया गया है और बहुत ही विशद रूप में। यूरोपीय दर्शन के विस्तृत इतिहास में, प्रथम और अंतिम बार, कांट के माध्यम से, ज्ञानशक्तियों ने स्वयं की व्याख्या इतने विस्तार से प्रस्तुत की है। .

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अरस्तु

अरस्तु अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था ।  अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया। प्लेटो, सुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे।  उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था।  भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा।  अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया। जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई।  उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं।  उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं।  उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।  अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

एम्मानुएलकांट, इमानुएल कांट, इमान्युएल काण्ट, इम्मानुएल कांट, इम्मेनुअल कांट, इमैनुएल काण्ट, इमैनुएल कांट, काण्ट, कांट

निवर्तमानआने वाली
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