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किला

सूची किला

राजस्थान के '''कुम्भलगढ़ का किला''' - यह एशिया के सबसे बड़े किलों में से एक है। शत्रु से सुरक्षा के लिए बनाए जानेवाले वास्तु का नाम किला या दुर्ग है। इन्हें 'गढ़' और 'कोट' भी कहते हैं। दुर्ग, पत्थर आदि की चौड़ी दीवालों से घिरा हुआ वह स्थान है जिसके भीतर राजा, सरदार और सेना के सिपाही आदि रहते है। नगरों, सैनिक छावनियों और राजप्रासादों सुरक्षा के लिये किलों के निर्माण की परंपरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है। आधुनिक युग में युद्ध के साधनों और रण-कौशल में वृद्धि तथा परिवर्तन हो जाने के कारण किलों का महत्व समाप्त हो गया है और इनकी कोई आवशकता नहीं रही। .

49 संबंधों: चाणक्य, चौरागढ़ किला, चेन्नई, ऐरण, नमक्कल किला, नरवर दुर्ग, पद्मदुर्ग किला, पाटलिपुत्र, फोर्ट विलियम, बीना नदी, बीजापुर, बीकानेर किला, भीष्म, मध्य प्रदेश, मनु, मनुस्मृति, महाभारत, माण्डू, मानसोल्लास, मुरुद जंजीरा किला, मौर्य राजवंश, मेहरानगढ़, मेगस्थनीज, मोहन जोदड़ो, युधिष्ठिर, राजघाट समाधि परिसर, राजगीर, लाल क़िला, लूनी किला, शिल्पशास्त्र, सबलगढ़ किला, सागर, सोमेश्वर चौहान, जोधपुर, ईस्ट इण्डिया कम्पनी, वाराणसी, वास्तुकला, खिमसर का किला, ग्वालियर का क़िला, आगरा का किला, इन्द्र, कल्कि पुराण, किला राय पिथौरा, किलाबंदी, कौशाम्बी जिला, कोलकाता, अर्थशास्त्र, अग्निपुराण, ऋग्वेद

चाणक्य

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम 'विष्णुगुप्त' था। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलपिंडी के पास था) के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। उनके नाम पर एक धारावाहिक भी बना था जो दूरदर्शन पर 1990 के दशक में दिखाया जाता था। .

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चौरागढ़ किला

चौरागढ़ का किला, मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर शहर के निकट स्थित है। गोंड शासक संग्राम शाह ने इस किले को 15वीं शताब्दी में बनवाया था। यह किला गाडरवारा रेलवे स्टेशन से लगभग 19 किलोमीटर दूर है। वर्तमान में प्रशासन की उपेक्षा के कारण किला क्षतिग्रस्त अवस्था में पहुंच गया है। किले के निकट ही नोनिया में 6 विशाल प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं। श्रेणी:भारत के किले.

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चेन्नई

चेन्नई (पूर्व नाम मद्रास) भारतीय राज्य तमिलनाडु की राजधानी है। बंगाल की खाड़ी से कोरोमंडल तट पर स्थित यह दक्षिण भारत के सबसे बड़े सांस्कृतिक, आर्थिक और शैक्षिक केंद्रों में से एक है। 2011 की भारतीय जनगणना (चेन्नई शहर की नई सीमाओं के लिए समायोजित) के अनुसार, यह चौथा सबसे बड़ा शहर है और भारत में चौथा सबसे अधिक आबादी वाला शहरी ढांचा है। आस-पास के क्षेत्रों के साथ शहर चेन्नई मेट्रोपॉलिटन एरिया है, जो दुनिया की जनसंख्या के अनुसार 36 वां सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। चेन्नई विदेशी पर्यटकों द्वारा सबसे ज्यादा जाने-माने भारतीय शहरों में से एक है यह वर्ष 2015 के लिए दुनिया में 43 वें सबसे अधिक का दौरा किया गया था। लिविंग सर्वेक्षण की गुणवत्ता ने चेन्नई को भारत में सबसे सुरक्षित शहर के रूप में दर्जा दिया। चेन्नई भारत में आने वाले 45 प्रतिशत स्वास्थ्य पर्यटकों और 30 से 40 प्रतिशत घरेलू स्वास्थ्य पर्यटकों को आकर्षित करती है। जैसे, इसे "भारत का स्वास्थ्य पूंजी" कहा जाता है एक विकासशील देश में बढ़ते महानगरीय शहर के रूप में, चेन्नई पर्याप्त प्रदूषण और अन्य सैन्य और सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का सामना करता है। चेन्नई में भारत में तीसरी सबसे बड़ी प्रवासी जनसंख्या 2009 में 35,000 थी, 2011 में 82,7 9 0 थी और 2016 तक 100,000 से अधिक का अनुमान है। 2015 में यात्रा करने के लिए पर्यटन गाइड प्रकाशक लोनली प्लैनेट ने चेन्नई को दुनिया के शीर्ष दस शहरों में से एक का नाम दिया है। चेन्नई को ग्लोबल सिटीज इंडेक्स में एक बीटा स्तरीय शहर के रूप में स्थान दिया गया है और भारत का 2014 का वार्षिक भारतीय सर्वेक्षण में भारत टुडे द्वारा भारत का सबसे अच्छा शहर रहा। 2015 में, चेन्नई को आधुनिक और पारंपरिक दोनों मूल्यों के मिश्रण का हवाला देते हुए, बीबीसी द्वारा "सबसे गर्म" शहर (मूल्य का दौरा किया, और दीर्घकालिक रहने के लिए) का नाम दिया गया। नेशनल ज्योग्राफिक ने चेन्नई के भोजन को दुनिया में दूसरा सबसे अच्छा स्थान दिया है; यह सूची में शामिल होने वाला एकमात्र भारतीय शहर था। लोनाली प्लैनेट द्वारा चेन्नई को दुनिया का नौवां सबसे अच्छा महानगरीय शहर भी नामित किया गया था। चेन्नई मेट्रोपॉलिटन एरिया भारत की सबसे बड़ी शहर अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। चेन्नई को "भारत का डेट्रोइट" नाम दिया गया है, जो शहर में स्थित भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग का एक-तिहाई से भी अधिक है। जनवरी 2015 में, प्रति व्यक्ति जीडीपी के संदर्भ में यह तीसरा स्थान था। चेन्नई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत एक स्मार्ट शहर के रूप में विकसित किए जाने वाले 100 भारतीय शहरों में से एक के रूप में चुना गया है। विषय वस्तु 1 व्युत्पत्ति 2 इतिहास 3 पर्यावरण 3.1 भूगोल 3.2 भूविज्ञान 3.3 वनस्पति और जीव 3.4 पर्यावरण संरक्षण 3.5 जलवायु 4 प्रशासन 4.1 कानून और व्यवस्था 4.2 राजनीति 4.3 उपयोगिता सेवाएं 5 वास्तुकला 6 जनसांख्यिकी 7 आवास 8 कला और संस्कृति 8.1 संग्रहालय और कला दीर्घाओं 8.2 संगीत और कला प्रदर्शन 9 सिटीस्केप 9.1 पर्यटन और आतिथ्य 9.2 मनोरंजन 9.3 मनोरंजन 9.4 शॉपिंग 10 अर्थव्यवस्था 10.1 संचार 10.2 पावर 10.3 बैंकिंग 10.4 स्वास्थ्य देखभाल 10.5 अपशिष्ट प्रबंधन 11 परिवहन 11.1 एयर 11.2 रेल 11.3 मेट्रो रेल 11.4 रोड 11.5 सागर 12 मीडिया 13 शिक्षा 14 खेल और मनोरंजन 14.1 शहर आधारित टीम 15 अंतर्राष्ट्रीय संबंध 15.1 विदेशी मिशन 15.2 जुड़वां कस्बों - बहन शहरों 16 भी देखें 17 सन्दर्भ 18 बाहरी लिंक व्युत्पत्ति इन्हें भी देखें: विभिन्न भाषाओं में चेन्नई के नाम भारत में ब्रिटिश उपस्थिति स्थापित होने से पहले ही मद्रास का जन्म हुआ। माना जाता है कि मद्रास नामक पुर्तगाली वाक्यांश "मैए डी डीस" से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है "भगवान की मां", बंदरगाह शहर पर पुर्तगाली प्रभाव के कारण। कुछ स्रोतों के अनुसार, मद्रास को फोर्ट सेंट जॉर्ज के उत्तर में एक मछली पकड़ने वाले गांव मद्रासपट्टिनम से लिया गया था। हालांकि, यह अनिश्चित है कि क्या नाम यूरोपियों के आने से पहले उपयोग में था। ब्रिटिश सैन्य मानचित्रकों का मानना ​​था कि मद्रास मूल रूप से मुंदिर-राज या मुंदिरराज थे। वर्ष 1367 में एक विजयनगर युग शिलालेख जो कि मादरसन पट्टणम बंदरगाह का उल्लेख करता है, पूर्व तट पर अन्य छोटे बंदरगाहों के साथ 2015 में खोजा गया था और यह अनुमान लगाया गया था कि उपरोक्त बंदरगाह रोयापुरम का मछली पकड़ने का बंदरगाह है। चेन्नई नाम की जन्मजात, तेलुगू मूल का होना स्पष्ट रूप से इतिहासकारों द्वारा साबित हुई है। यह एक तेलुगू शासक दमारला चेन्नाप्पा नायकुडू के नाम से प्राप्त हुआ था, जो कि नायक शासक एक दमनदार वेंकटपति नायक था, जो विजयनगर साम्राज्य के वेंकट III के तहत सामान्य रूप में काम करता था, जहां से ब्रिटिश ने शहर को 1639 में हासिल किया था। चेन्नई नाम का पहला आधिकारिक उपयोग, 8 अगस्त 1639 को, ईस्ट इंडिया कंपनी के फ्रांसिस डे से पहले, सेन्नेकेसु पेरुमल मंदिर 1646 में बनाया गया था। 1 99 6 में, तमिलनाडु सरकार ने आधिकारिक तौर पर मद्रास से चेन्नई का नाम बदल दिया। उस समय कई भारतीय शहरों में नाम बदल गया था। हालांकि, मद्रास का नाम शहर के लिए कभी-कभी उपयोग में जारी है, साथ ही साथ शहर के नाम पर स्थानों जैसे मद्रास विश्वविद्यालय, आईआईटी मद्रास, मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मद्रास मेडिकल कॉलेज, मद्रास पशु चिकित्सा कॉलेज, मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज। चेन्नई (तमिल: சென்னை), भारत में बंगाल की खाड़ी के कोरोमंडल तट पर स्थित तमिलनाडु की राजधानी, भारत का पाँचवा बड़ा नगर तथा तीसरा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। इसकी जनसंख्या ४३ लाख ४० हजार है। यह शहर अपनी संस्कृति एवं परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। ब्रिटिश लोगों ने १७वीं शताब्दी में एक छोटी-सी बस्ती मद्रासपट्ट्नम का विस्तार करके इस शहर का निर्माण किया था। उन्होंने इसे एक प्रधान शहर एवं नौसैनिक अड्डे के रूप में विकसित किया। बीसवीं शताब्दी तक यह मद्रास प्रेसिडेंसी की राजधानी एवं एक प्रमुख प्रशासनिक केन्द्र बन चुका था। चेन्नई में ऑटोमोबाइल, प्रौद्योगिकी, हार्डवेयर उत्पादन और स्वास्थ्य सम्बंधी उद्योग हैं। यह नगर सॉफ्टवेयर, सूचना प्रौद्योगिकी सम्बंधी उत्पादों में भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक शहर है। चेन्नई एवं इसके उपनगरीय क्षेत्र में ऑटोमोबाइल उद्योग विकसित है। चेन्नई मंडल तमिलानाडु के जीडीपी का ३९% का और देश के ऑटोमोटिव निर्यात में ६०% का भागीदार है। इसी कारण इसे दक्षिण एशिया का डेट्रॉएट भी कहा जाता है। चेन्नई सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, यहाँ वार्षिक मद्रास म्यूज़िक सीज़न में सैंकड़ॊ कलाकार भाग लेते हैं। चेन्नई में रंगशाला संस्कृति भी अच्छे स्तर पर है और यह भरतनाट्यम का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। यहाँ का तमिल चलचित्र उद्योग, जिसे कॉलीवुड भी कहते हैं, भारत का द्वितीय सबसे बड़ा फिल्म उद्योग केन्द्र है। .

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ऐरण

एरण स्थित वराह की विशालकाय प्रतिमा एरण का विष्णु मंदिर मण्डप एरण नामक ऐतिहासिक स्थान मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। प्राचीन सिक्कों पर इसका नाम ऐरिकिण लिखा है। एरण में वाराह, विष्णु तथा नरसिंह मन्दिर स्थित हैं। एरण, सागर से करीब 90 किमी दूर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए सड़क मार्ग के अलावा ट्रेन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। सागर-दिल्ली रेलमार्ग के एक महत्वपूर्ण जंक्शन बीना से इसकी दूरी करीब 25 किमी है। बीना और रेवता नदी के संगम पर स्थित एरण का नाम यहां अत्यधिक मात्रा में उगने वाली प्रदाह प्रशामक तथा मंदक गुणधर्म वाली 'एराका' नामक घास के कारण रखा गया है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि एरण के सिक्कों पर नाग का चित्र है, अत: इस स्थान का नामकरण एराका अर्थात नाग से हुआ है। .

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नमक्कल किला

नमक्कल का दुर्गम किला या दुर्ग, तमिल नाडु के नमक्कल में स्थित है। संघर्षमय इतिहास का प्रतीक यह किला नामागिरी शिखर पर बना हुआ है। 1769 में अंग्रेजों के नियंत्रण से पहले इस पर मैसूर का अधिकार था। बाद में हैदर अली ने इस किले को कुछ समय के लिए पुन: अपने नियंत्रण में ले लिया। लेकिन 1792 में किले पर फिर से अंग्रेजों का अधिकार हो गया। किले में भगवान विष्णु का एक मंदिर भी बना हुआ है, जो एथिरिली पेरूमल को समर्पित है। मंदिर में प्राचीन हस्तलिपियां खुदी हुई हैं। श्रेणी:भारत के किले श्रेणी:तमिल नाडु के किले.

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नरवर दुर्ग

नरवर दुर्ग मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के नरवर में विन्ध्य वर्वतमाला की एक पहाड़ी पर स्थित है। इसकी ऊँचाई भूस्तर से लगभग ५०० फीट है और यह लगभग ८ वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। कहा जाता है कि १०वीं शताब्दी में जब कछवाहा राजपूतों ने नरवर पर अधिकार किया तो इस दुर्ग का निर्माण (पुनर्निर्माण) किया। कछवाहों के बाद यहां परिहार और फ़िर तोमर राजपूतों का आधिपत्य रहा और अन्ततः यह १६वीं शताब्दी में मुगलों के अधीन आ गया। कालान्तर में १९वीं शताब्दी के आरम्भ में यहां मराठा सरदार सिन्धिया ने अधिकार किया।, शिवपुरी पर्यटन .

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पद्मदुर्ग किला

वर्तमान समय का कासा किला ही पहले पद्मदुर्ग किला के नाम से जाना जाता था। यह किला महाराष्ट्र के रायगढ़ जिला मॆं स्थित है। इस किले का निर्माण शिवाजी के उत्तराधिकारी और पुत्र शंभाजी ने सिद्दिकियों के जंजीरा किले के जबाव के रूप में करवाया था। यह किला 81.5 एकड़ में फैला हुआ है। इस किले में मुंबई पोर्ट ट्रस्‍ट की अनुमति से ही प्रवेश किया जा सकता है। श्रेणी:भारत के किले श्रेणी:महाराष्ट्र के किले.

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पाटलिपुत्र

बिहार की राजधानी पटना का पुराना नाम पाटलिपुत्र है। पवित्र गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसे इस शहर को लगभग २००० वर्ष पूर्व पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से अब पटना में एक रेलवे स्टेशन भी है। पाटलीपुत्र अथवा पाटलिपुत्र प्राचीन समय से ही भारत के प्रमुख नगरों में गिना जाता था। पाटलीपुत्र वर्तमान पटना का ही नाम था। इतिहास के अनुसार, सम्राट अजातशत्रु के उत्तराधिकारी उदयिन ने अपनी राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया और बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहां साम्राज्य स्थापित कर अपनी राजधानी बनाई। .

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फोर्ट विलियम

फोर्ट विलियम कोलकाता में हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर बना एक किला है, जिसे ब्रिटिश राज के दौरान बनवाया गया था। इसे इंग्लैंड के राजा विलियम तृतीय के नाम पर बनवाया गया था। इसके सामने ही मैदान है, जो कि किले का ही भाग है और कलकत्ता का सबसे बड़ा शहरी पार्क है। .

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बीना नदी

बीना नदी भारत के मध्य प्रदेश से कोकर बहती है। इसका प्राचीन नाम 'वेण्वा' है। यह बेतवा की सहायक नदी है। इसके तट पर प्राचीन नगर ऐरण (या, एरकिण) बसा हुआ है। बीना नामक कस्बा इस नदी के किनारे ही है। श्रेणी:भारत की नदियाँ.

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बीजापुर

बीजापुर कर्नाटक प्रान्त का एक शहर है। यह आदिलशाही बीजापुर सल्तनत की राजधान भी रहा है। बहमनी सल्तनत के अन्दर बीजापुर एक प्रान्त था। बंगलौर के उत्तर पश्चिम में स्थित बीजापुर कर्नाटक का प्राचीन नगर है। .

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बीकानेर किला

बड़ा किला अधिक नवीन है तथा इसका निर्माण महाराजा रायसिंह (१५८९-९४ AD) के समय हुआ था और शहरपनाह के कोट दरवाजे से लगभग ३०० गज की दूरी पर है। इसकी परिधि १०७८ गज है। भीतर प्रवेश करने के लिए दो प्रधान द्वार हैं, जिनके बाद फिर तीन या चार दरवाजे हैं। कोट में स्थान-स्थान पर प्राय: ४० फुट ऊँची बुर्जे हैं और चारों ओर खाई बनी हुई है, जो ऊपर ३० फुट चौड़ी होकर नीचे तंग होती गई है। इस खाई की गहराई २० से ५० फुट तक है। प्रसिद्ध है कि इस किले पर कई बार आक्रमण हुए पर शत्रु बल पूर्वक इस पर कभी अधिकार न कर पाए। किले का प्रवेश द्वार 'कर्णपोल' है। इसके आगे के दरवाजों में एक सूरज पोल है, जिसके दोनों पार्श्वो पर विशालकाय हाथी पर बैठी हुई दो मूर्तियां हैं, जो प्रसिद्ध वीर जयमल मेड़तिया (राठौड़) और पत्ता चूंड़ावत (सीसोदिया) की (जो चितौड़गढ़ में बादशाह अकबर के मुकाबले में वीरतापूर्वक लड़कर मारे गए थे) बतलाई जाती हैं। आगे बहुत बड़ा चौक है, जिसमें एक तरफ पंक्ति बद्ध मरदाने और जनाने महल हैं। ये महल बड़े भव्य एवं सुंदर बने हुए हैं। इन महलों के भीतर कई जगह कांच की पच्चीकारी और सुनहरी कलम आदि का बहुत सुन्दर काम है, जो भारतीय कला का उत्तम नमूना है। इन राजमहलो की दीवारों पर रंगीन पलस्तर किया हुआ है, जिससे उनका सौंदर्य बढ़ गया है। राजमहलों के निर्माण में बहुधा अब तक के प्राय: सभी महाराजाओं का हाथ रहा है। पहले के राजाओं के बनवाए हुए स्थानों में महाराजा रायसिंह का चौबारा, महाराजा गजसिंह का फूलमहल, चन्द्रमहल, गजमंदिर तथा कचहरी, महाराजा सूरतसिंह का अनुपमहल, महाराजा सरदार सिंह का बनवाया हुआ रत्नमंदिर और महाराजा डूंगर सिंह का छत्रमहल, चीनी बुर्ज, गनपत निवास, लाल निवास, सरदार निवास, गंगा निवास, सोहन भुर्ज (बुर्ज), सुनहरी भुर्ज (बुर्ज) तथा कोढ़ी शक्त निवास है। बाद के राजाओं ने भी समय समय पर नवीन भवन बनवाकर उनकी शोभा बढ़ा दी है। इन महलों में दलेल निवास और गंगा निवास नामक विशाल कक्ष मुख्य है। गंगा निवास में लाल रंग के खुदाई के काम हुए पत्थर लगे हैं। छत की लकड़ी पर भी खुदाई का काम है। इसका फर्श संगमरमर का बना है। किले के भीतर फारसी, संस्कृत, प्राकृत और राजस्थानी भाषा की हस्तलिखित पुस्तकों का एक बड़ा पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय में संस्कृत पुस्तकों का बड़ा भारी संग्रह है, जिनमें से कई तो ऐसी हैं जो अन्यत्र नहीं हीं मिल सकतीं। मेवाड़ के महाराजा कुंभा (कुंभकर्ण) के संगीत ग्रन्थ का पूरा संग्रह भारत वर्ष के केवल इसी पुस्तकालय में है। किले के भीतर का शस्रागार भी देखने योग्य है। इसमें प्राचीन अस्र-शस्रों का अच्छा संग्रह है। वहीं एक कमरे में कई पीतल की मूर्तियां रक्खी हुई हैं, जो तैंतीस करोड़ देवता के नाम से पूजी जाती हैं। ये मूर्तियां महाराजा अनूपसिंह ने दक्षिण में रहते समय मुसलमानों के हाथ से बचाकर यहां पहुँचाई थी। किले के एक हिस्से में बीकानेर राज्य के उत्तरी भाग के रंगमहल, बड़ोपल आदि गांवों से प्राप्त पकी हुई मिट्टी की बनी बहुत प्राचीन वस्तुओं का बड़ा संग्रह है, जिसका श्रेय डाँ० टैसिटोरी को है। इस सामग्री को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-.

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भीष्म

भीष्म अथवा भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे। भीष्म पितामह गंगा तथा शान्तनु के पुत्र थे। उनका मूल नाम देवव्रत था। इन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य जैसी प्रतिज्ञा लेके मृत्यु को भी अपने अधीन कर लिया था। आज के समय मे ब्रह्मचारी कोई नही है। सब इन्द्रियों के ग़ुलाम है, और कहते है की स्वतंत्र है । इनके दूसरे नाम गाँगेय, शांतनव, नदीज, तालकेतु आदि हैं। भगवान परशुराम के शिष्य देवव्रत अपने समय के बहुत ही विद्वान व शक्तिशाली पुरुष थे। महाभारत के अनुसार हर तरह की शस्त्र विद्या के ज्ञानी और ब्रह्मचारी देवव्रत को किसी भी तरह के युद्ध में हरा पाना असंभव था। उन्हें संभवत: उनके गुरु परशुराम ही हरा सकते थे लेकिन इन दोनों के बीच हुआ युद्ध पूर्ण नहीं हुआ और दो अति शक्तिशाली योद्धाओं के लड़ने से होने वाले नुकसान को आंकते हुए इसे भगवान शिव द्वारा रोक दिया गया। इन्हें अपनी उस भीष्म प्रतिज्ञा के लिये भी सर्वाधिक जाना जाता है जिसके कारण इन्होंने राजा बन सकने के बावजूद आजीवन हस्तिनापुर के सिंहासन के संरक्षक की भूमिका निभाई। इन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया व ब्रह्मचारी रहे। इसी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए महाभारत में उन्होने कौरवों की तरफ से युद्ध में भाग लिया था। इन्हें इच्छा मृत्यु का वरदा था। यह कौरवों के पहले प्रधान सेनापति थे। जो सर्वाधिक दस दिनो तक कौरवों के प्रधान सेनापति रहे थे। कहा जाता है कि द्रोपदी ने शरसय्या पर लेटे हुए भीष्मपितामह से पूछा की उनकी आंखों के सामने चीर हरण हो रहा था और वे चुप रहे तब भीष्मपितामह ने जवाब दिया कि उस समय मै कौरवों के नमक खाता था इस वजह से मुझे मेरी आँखों के सामने एक स्त्री के चीरहरण का कोई फर्क नही पड़ा,परंतु अब अर्जुन ने बानो की वर्षा करके मेरा कौरवों के नमक ग्रहण से बना रक्त निकाल दिया है, अतः अब मुझे अपने पापों का ज्ञान हो रहा है अतः मुझे क्षमा करें द्रोपदी। महाभारत युद्ध खत्म होने पर इन्होंने गंगा किनारे इच्छा मृत्यु ली। .

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मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश १ नवंबर, २००० तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन एवं मध्यप्रदेश के कई नगर उस से हटा कर छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। हाल के वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो गया है। खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य में वर्ष 2010-11 राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीत लिया। .

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मनु

मनु हिन्दू धर्म के अनुसार, संसार के प्रथम पुरुष थे। प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये स्वयं भू (अर्थात होना) ब्रह्मा द्वारा प्रकट होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या मनुष्य कहलाए। स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रारंभ। सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं। सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। प्रमाण यही बताते हैं कि आदि सृष्टि की उत्पत्ति भारत के उत्तराखण्ड अर्थात् इस ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ही हुई। मानव का हिन्दी में अर्थ है वह जिसमें मन, जड़ और प्राण से कहीं अधिक सक्रिय है। मनुष्य में मन की शक्ति है, विचार करने की शक्ति है, इसीलिए उसे मनुष्य कहते हैं। और ये सभी मनु की संतानें हैं इसीलिए मनुष्य को मानव भी कहा जाता है। ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। एक कल्प में 14 मनु हो जाते हैं। एक मनु के काल को मन्वन्तर कहते हैं। वर्तमान में वैवस्वत मनु (7वें मनु) हैं। .

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मनुस्मृति

मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक प्राचीन धर्मशास्त्र (स्मृति) है। इसे मानव-धर्म-शास्त्र, मनुसंहिता आदि नामों से भी जाना जाता है। यह उपदेश के रूप में है जो मनु द्वारा ऋषियों को दिया गया। इसके बाद के धर्मग्रन्थकारों ने मनुस्मृति को एक सन्दर्भ के रूप में स्वीकारते हुए इसका अनुसरण किया है। धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारों के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबरस्वामी जैसे दार्शनिक भी प्रमाणरूपेण इस ग्रंथ को उद्धृत करते हैं। परंपरानुसार यह स्मृति स्वायंभुव मनु द्वारा रचित है, वैवस्वत मनु या प्राचनेस मनु द्वारा नहीं। मनुस्मृति से यह भी पता चलता है कि स्वायंभुव मनु के मूलशास्त्र का आश्रय कर भृगु ने उस स्मृति का उपवृहण किया था, जो प्रचलित मनुस्मृति के नाम से प्रसिद्ध है। इस 'भार्गवीया मनुस्मृति' की तरह 'नारदीया मनुस्मृति' भी प्रचलित है। मनुस्मृति वह धर्मशास्त्र है जिसकी मान्यता जगविख्यात है। न केवल भारत में अपितु विदेश में भी इसके प्रमाणों के आधार पर निर्णय होते रहे हैं और आज भी होते हैं। अतः धर्मशास्त्र के रूप में मनुस्मृति को विश्व की अमूल्य निधि माना जाता है। भारत में वेदों के उपरान्त सर्वाधिक मान्यता और प्रचलन ‘मनुस्मृति’ का ही है। इसमें चारों वर्णों, चारों आश्रमों, सोलह संस्कारों तथा सृष्टि उत्पत्ति के अतिरिक्त राज्य की व्यवस्था, राजा के कर्तव्य, भांति-भांति के विवादों, सेना का प्रबन्ध आदि उन सभी विषयों पर परामर्श दिया गया है जो कि मानव मात्र के जीवन में घटित होने सम्भव है। यह सब धर्म-व्यवस्था वेद पर आधारित है। मनु महाराज के जीवन और उनके रचनाकाल के विषय में इतिहास-पुराण स्पष्ट नहीं हैं। तथापि सभी एक स्वर से स्वीकार करते हैं कि मनु आदिपुरुष थे और उनका यह शास्त्र आदिःशास्त्र है। मनुस्मृति में चार वर्णों का व्याख्यान मिलता है वहीं पर शूद्रों को अति नीच का दर्जा दिया गया और शूद्रों का जीवन नर्क से भी बदतर कर दिया गया मनुस्मृति के आधार पर ही शूद्रों को तरह तरह की यातनाएं मनुवादियों द्वारा दी जाने लगी जो कि इसकी थोड़ी सी झलक फिल्म तीसरी आजादी में भी दिखाई गई है आगे चलकर बाबासाहेब आंबेडकर ने सर्वजन हिताय संविधान का निर्माण किया और मनु स्मृति में आग लगा दी गई जो कि समाज के लिए कल्याणकारी साबित हुई और छुआछूत ऊंच-नीच का आडंबर समाप्त हो गया। .

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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माण्डू

माण्डू या माण्डवगढ़, धार जिले के माण्डव क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन शहर है। यह भारत के पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है। यह धार शहर से 35 किमी दूर स्थित है। यह 11 वीं शताब्दी में, माण्डू तारागंगा या तरंगा राज्य का उपभाग था। यहाँ परमारों के काल मे इसे प्रसिद्धि प्राप्त हुई और फिर १३ वीं शताब्दी में, यह क्षेत्र मुस्लिम शासकों के अंतर्गत आ गया, जहाँ से इसका स्वर्णकाल प्रारम्भ हो गया। विन्ध्याचल पर्वत शृंखला में स्थित होने के कारण इसका सुरक्षा कि दृस्टि से बहुत अधिक महत्व था। आज यह एक पर्यटक स्थल के रूप मे प्रशिद्ध है। जहाँ हजारों कि संख्या में सैलानी यहाँ के दर्शनीय स्थलों जैसे जहाज महल, हिन्डोला महल, शाही हमाम और वास्तुकला के उत्कृष्टतम उदाहरण आकर्षक नक्काशीदार गुम्बद को देखने आते है। इसकी इन्दौर शहर से दुरी १०० किमी है। .

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मानसोल्लास

'मानसोल्लास' नामक टीका-ग्रन्थ के लिए देखें, मानसोल्लास (टीका ग्रन्थ) ---- मानसोल्लास (मानस + उल्लास .

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मुरुद जंजीरा किला

मुरुद-जंजीरा मुरुद-जंजीरा भारत के महाराष्ट्र राज्य के रायगड जिले के तटीय गाँव मुरुड में स्थित एक किला हैं। यह भारत के पश्चिमी तट का एक मात्र किला हैं, जो की कभी भी जीता जा सक्त था । यह किला 350 वर्ष पुराना है। स्‍थानीय लोग इसे मुस्लिम किला कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ अजेय होता है। माना जाता है कि यह किला पंच पीर पंजातन शाह बाबा के संरक्षण में है। शाह बाबा का मकबरा भी इसी किले में है। यह किला समुद्र तल से 90 फीट ऊंचा है। इसकी नींव 20 फीट गहरी है। यह किला सिद्दी जौहर द्वारा बनवाया गया था। इस किले का निर्माण 22 वर्षों में हुआ था। यह किला 22 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें 22 सुरक्षा चौकियां है। ब्रिटिश, पुर्तगाली, शिवाजी, कान्‍होजी आंग्रे, चिम्‍माजी अप्‍पा तथा शंभाजी ने इस किले को जीतने का काफी प्रयास किया था, लेकिन कोई सफल नहीं हो सका। इस किले में सिद्दिकी शासकों की कई तोपें अभी भी रखी हुई हैं। जंजीरा का किला जाने के लिए ऑटोरिक्‍शा से मुरुड से राजपुरी जाना होता है। यहां से नाव द्वारा जंजीरा का किला जाया जा सकता है। एक व्‍यक्‍ित का नाव का किराया 20 रु.

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मौर्य राजवंश

मौर्य राजवंश (३२२-१८५ ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली एवं महान राजवंश था। इसने १३७ वर्ष भारत में राज्य किया। इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया। मौर्य साम्राज्य के विस्तार एवं उसे शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने ३२२ ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विकास किया। उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। ३१६ ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्य वंश का बेहद विस्तार हुआ। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली बनकर विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ। .

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मेहरानगढ़

मेहरानगढ़ दुर्गचामुंडा माता मंदिर मेहरानगढ दुर्ग भारत के राजस्थान प्रांत में जोधपुर शहर में स्थित है। पन्द्रहवी शताब्दी का यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, मैदान से १२५ मीटर ऊँचाई पर स्थित है और आठ द्वारों व अनगिनत बुर्जों से युक्त दस किलोमीटर लंबी ऊँची दीवार से घिरा है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है। इसके अतिरिक्त पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है। यह किला भारत के प्राचीनतम किलों में से एक है और भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की २४ संतानों मे से एक थे। वे जोधपुर के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है। उन्होने अपने तत्कालीन किले से ९ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार प्रस्तुत किया। इस पहाड़ी को भोर चिडिया के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वहाँ काफ़ी पक्षी रहते थे। राव जोधा ने १२ मई १४५९ को इस पहाडी पर किले की नीव डाली महाराज जसवंत सिंह (१६३८-७८) ने इसे पूरा किया। मूल रूप से किले के सात द्वार (पोल) (आठवाँ द्वार गुप्त है) हैं। प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगी हैं। अन्य द्वारों में शामिल जयपोल द्वार का निर्माण १८०६ में महाराज मान सिंह ने अपनी जयपुर और बीकानेर पर विजय प्राप्ति के बाद करवाया था। फतेह पोल अथवा विजय द्वार का निर्माण महाराज अजीत सिंह ने मुगलों पर अपनी विजय की स्मृति में करवाया था। राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है। राव जोधा ने १४६० मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि अधिसंख्य जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मेहरानगढ दुर्ग की नींव में ज्योतिषी गणपत दत्त के ज्योतिषीय परामर्श पर ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (तदनुसार, 12 मई 1459 ई) वार शनिवार को राजाराम मेघवाल को जीवित ही गाड़ दिया गया। राजाराम के सहर्ष किये हुए आत्म त्याग एवम स्वामी-भक्ति की एवज में राव जोधाजी राठोड़ ने उनके वंशजो को मेहरानगढ दुर्ग के पास सूरसागर में कुछ भूमि भी दी (पट्टा सहित), जो आज भी राजबाग के नाम से प्रसिद्ध हैं। होली के त्यौहार पर मेघवालों की गेर को किले में गाजे बाजे के साथ जाने का अधिकार हैं जो अन्य किसी जाति को नही है। राजाराम का जन्म कड़ेला गौत्र में केसर देवी की कोख से हुआ तथा पिता का नाम मोहणसी था। .

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मेगस्थनीज

मेगस्थनीज यूनान का एक राजदूत था जो चन्द्रगुप्त के दरबार में आया था। मेगस्थनीज (Megasthenes / Μεγασθένης, 350 ईसापूर्व - 290 ईसा पूर्व) यूनान का एक राजदूत था जो चन्द्रगुप्त के दरबार में आया था। यूनानी सामंत सिल्यूकस भारत में फिर राज्यविस्तार की इच्छा से 305 ई. पू.

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मोहन जोदड़ो

मोहन जोदड़ो- (सिंधी:موئن جو دڙو और उर्दू में अमोमअ मोहनजोदउड़ो भी) वादी सिंध की क़दीम तहज़ीब का एक मरकज़ था। यह लड़काना से बीस किलोमीटर दूर और सक्खर से 80 किलोमीटर जनूब मग़रिब में वाक़िअ है। यह वादी सिंध के एक और अहम मरकज़ हड़पा से 400 मील दूर है यह शहर 2600 क़बल मसीह मौजूद था और 1700 क़बल मसीह में नामालूम वजूहात की बिना पर ख़त्म हो गया। ताहम माहिरीन के ख़्याल में दरयाऐ सिंध के रख की तबदीली, सैलाब, बैरूनी हमला आवर या ज़लज़ला अहम वजूहात हो सकती हैं। मुअन जो दड़ो- को 1922ए में बर्तानवी माहिर असारे क़दीमा सर जान मार्शल ने दरयाफ़त किया और इन की गाड़ी आज भी मुअन जो दड़ो- के अजायब ख़ाने की ज़ीनत है। लेकिन एक मकतबा फ़िक्र ऐसा भी है जो इस तास्सुर को ग़लत समझता है और इस का कहना है कि उसे ग़ैर मुनक़िसम हिंदूस्तान के माहिर असारे क़दीमा आर के भिंडर ने 1911ए में दरयाफ़त किया था। मुअन जो दड़ो- कनज़रवेशन सेल के साबिक़ डायरेक्टर हाकिम शाह बुख़ारी का कहना है कि "आर के भिंडर ने बुध मत के मुक़ामि मुक़द्दस की हैसीयत से इस जगह की तारीख़ी हैसीयत की जानिब तवज्जो मबज़ूल करवाई, जिस के लगभग एक अशरऐ बाद सर जान मार्शल यहां आए और उन्हों ने इस जगह खुदाई शुरू करवाई।यह शहर बड़ी तरतीब से बसा हुआ था। इस शहर की गलियां खुली और सीधी थीं और पानी की निकासी का मुनासिब इंतिज़ाम था। अंदाज़न इस में 35000 के क़रीब लोग रिहाइश पज़ीर थे। माहिरीन के मुताबिक यह शहर सात मरत्तबा उजड़ा और दुबारा बसाया गया जिस की अहम तरीन वजह दरयाऐ सिंध का सैलाब था।यहाँ दुनिया का प्रथम स्नानघर मिला है जिसका नाम बृहत्स्नानागार है और अंग्रेजी में Great Bath.

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युधिष्ठिर

प्राचीन भारत के महाकाव्य महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर पांच पाण्डवों में सबसे बड़े भाई थे। वह पांडु और कुंती के पहले पुत्र थे। युधिष्ठिर को धर्मराज (यमराज) पुत्र भी कहा जाता है। वो भाला चलाने में निपुण थे और वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। महाभारत के अंतिम दिन उसने अपने मामा शलय का वध किया जो कौरवों की तरफ था। .

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राजघाट समाधि परिसर

राज घाट में समाधिस्थल दिल्ली में यमुना नदी के पश्चिमी किनारे पर महात्मा गांधी की समाधि स्थित है। काले संगमरमर से बनी इस समाधि पर उनके अंतिम शब्द 'हे राम' उद्धृत हैं। अब यह एक सुन्दर उद्यान का रूप ले चुका है। यहां पर सुन्दर फव्वारे और अनेक प्रकार के पेड़ लगे हुए हैं। यहां पास ही शांति वन में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की समाधि भी है। भारत आने वाले विदेशी उच्चाधिकारी महात्मा गांधी को श्रद्धांजली देने के लिए राजघाट अवश्य आते हैं। .

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राजगीर

राजगीर, बिहार प्रांत में नालंदा जिले में स्थित एक शहर एवं अधिसूचीत क्षेत्र है। यह कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, जिससे बाद में मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। राजगृह का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। वसुमतिपुर, वृहद्रथपुर, गिरिब्रज और कुशग्रपुर के नाम से भी प्रसिद्ध रहे राजगृह को आजकल राजगीर के नाम से जाना जाता है। पौराणिक साहित्य के अनुसार राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केन्द्र तथा जैन धर्म के 20 वे तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ स्वामी के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान कल्याणक एवं 24 वे तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम देशना स्थली भी रहा है साथ ही भगवान बुद्ध की साधनाभूमि राजगीर में ही है। इसका ज़िक्र ऋगवेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय उपनिषद, वायु पुराण, महाभारत, वाल्मीकि रामायण आदि में आता है। जैनग्रंथ विविध तीर्थकल्प के अनुसार राजगीर जरासंध, श्रेणिक, बिम्बसार, कनिक आदि प्रसिद्ध शासकों का निवास स्थान था। जरासंध ने यहीं श्रीकृष्ण को हराकर मथुरा से द्वारिका जाने को विवश किया था। पटना से 100 किमी दक्षिन-पूर्व में पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बसा राजगीर न केवल एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थस्थल है बल्कि एक सुन्दर हेल्थ रेसॉर्ट के रूप में भी लोकप्रिय है। यहां हिन्दु, जैन और बौद्ध तीनों धर्मों के धार्मिक स्थल हैं। खासकर बौद्ध धर्म से इसका बहुत प्राचीन संबंध है। बुद्ध न केवल कई वर्षों तक यहां ठहरे थे बल्कि कई महत्वपूर्ण उपदेश भी यहाँ की धरती पर दिये थे। बुद्ध के उपदेशों को यहीं लिपिबद्ध किया गया गया था और पहली बौद्ध संगीति भी यहीं हुई थी। .

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लाल क़िला

लाल किला या लाल क़िला, दिल्ली के ऐतिहासिक, क़िलेबंद, पुरानी दिल्ली के इलाके में स्थित, लाल रेत-पत्थर से निर्मित है। इस किले को पाँचवे मुग़ल बाद्शाह शाहजहाँ ने बनवाया था। इस के किले को "लाल किला", इसकी दीवारों के लाल रंग के कारण कहा जाता है। इस ऐतिहासिक किले को वर्ष २००७ में युनेस्को द्वारा एक विश्व धरोहर स्थल चयनित किया गया था। .

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लूनी किला

चान्वा लूनी किला राजस्थान के जोधपुर शहर से २० किलोमीटर दूर स्थित एक किला है। इसका निर्माण जोधपुर - मेवाड़ के शासक महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय (१८७६-१८९५) ने करवाया था। इस किले को अब हैरिटेज होटल में परिवर्तित कर दिया गया है। किला व उसके आसपास का वातावरण दर्शनीय है। .

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शिल्पशास्त्र

शिल्पशास्त्र वे प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ हैं जिनमें विविध प्रकार की कलाओं तथा हस्तशिल्पों की डिजाइन और सिद्धान्त का विवेचन किया गया है। इस प्रकार की चौसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है जिन्हे 'बाह्य-कला' कहते हैं। इनमें काष्ठकारी, स्थापत्य कला, आभूषण कला, नाट्यकला, संगीत, वैद्यक, नृत्य, काव्यशास्त्र आदि हैं। इनके अलावा चौसठ अभ्यन्तर कलाओं का भी उल्लेख मिलता है जो मुख्यतः 'काम' से सम्बन्धित हैं, जैसे चुम्बन, आलिंगन आदि। यद्यपि सभी विषय आपस में सम्बन्धित हैं किन्तु शिल्पशास्त्र में मुख्यतः मूर्तिकला और वास्तुशास्त्र में भवन, दुर्ग, मन्दिर, आवास आदि के निर्माण का वर्णन है। .

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सबलगढ़ किला

मुरैना के सबलगढ़ नगर में स्थित यह किला मुरैना से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है। मध्यकाल में बना यह किला एक पहाड़ी के शिखर बना हुआ है। इस किले की नींव सबला गुर्जर ने डाली थी जबकि करौली के महाराजा गोपाल सिंह ने 18वीं शताब्दी में इसे पूरा करवाया था। कुछ समय बाद सिंकदर लोदी ने इस किले को अपने नियंत्रण में ले लिया था लेकिन बाद में करौली के राजा ने मराठों की मदद से इस पर पुन: अधिकार कर लिया। किले के पीछे सिंधिया काल में बना एक बांध है, जहां की सुंदरता देखते ही बनती है। सबलगढ़ का किला अत्यंत सुन्दर एवं मनमोहक है। श्रेणी:मध्य प्रदेश दुर्ग श्रेणी:मुरैना श्रेणी:भारत के किले श्रेणी:क़िले.

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सागर

कोई विवरण नहीं।

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सोमेश्वर चौहान

सोमेश्वर अजमेर के स्वामी अर्णोराज का कनिष्ठ पुत्र था। पिता की मृत्यु के बाद उसने अपने जीवन का कुछ भाग चौलुक्य राजा कुमारपाल के दरबार में व्यतीत किया। उसके नाना सिद्धराज जयसिंह के समय गुजरात में ही उसका जन्म हुआ था और वहीं पर चेदि राजकुमारी कर्पूरदेवी से उसका विवाह हुआ। जब कुमारपाल ने कोंकण देश के स्वामी मल्लिकार्जुन पर आक्रमण किया, जो चौहान वीर था, सोमेश्वर ने शत्रु के हाथी पर कूदकर उसका वध किया। उधर अजमेर में एक के बाद दूसरे राजा की मृत्यु हुई। अपने पिता अर्णोराज की हत्या करनेवाले जगद्देव को बीसलदेव ने हराया। बीसलदेव की मृत्यु के बाद उसके पुत्र को हटाकर जगद्देव का पुत्र गद्दी पर बैठा किंतु दो वर्षों के अंदर ही सिंहासन फिर शून्य हो गया और चौहान सामंत और मंत्रियों ने गुजरात से लाकर सोमेश्वर को गद्दी पर बैठाया। सोमेश्वर ने लगभग आठ वर्ष (वि. सं. 1226-1234) तक राज्य किया। सोमेश्वर का राज्य प्राय: सुख और शांति का था। उसने अर्णोराज के नाम से एक नगर बसाया और अनेक मंदिर बनवाए जिनमें से एक भगवान्‌ त्रिपुरुष देव का और दूसरा वैद्यनाथ देव का था। ब्राह्मण और अब्राह्मणों सभी संप्रदायों को उसकी संरक्षा प्राप्त थी। सोमेश्वरीय द्रम्मों का प्रचलन भी इसके राज्य के ऐश्वर्य को द्योतित करता है। सोमेश्वर ने प्रतापलंकेश्वर की पदवी धारण की। पृथ्वीराजरासो के अनुसार उसका विवाह दिल्ली के तंवर राजा अनंगपाल की पुत्री कमला देवी से हुआ और पृथ्वीराज इसका पुत्र था। इसी काव्य में गुजरात के राजा भीम के हाथों उसकी मृत्यु का उल्लेख है। ये दोनों बातें असत्य हैं। पृथ्वीराज चेदि राजकुमारी कुमारदेवी का पुत्र था और सोमेश्वर की मृत्यु के समय भीम गुजरात का राजा नहीं बना था। किंतु गुजरात से उसकी कुछ अनबन अवश्य हुई थी। उसकी मृत्यु के समय पृथ्वीराज केवल दस साल का था। श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:भारत के राजा श्रेणी:चौहान वंश श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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जोधपुर

जोधपुर भारत के राज्य राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। इसकी जनसंख्या १० लाख के पार हो जाने के बाद इसे राजस्थान का दूसरा "महानगर " घोषित कर दिया गया था। यह यहां के ऐतिहासिक रजवाड़े मारवाड़ की इसी नाम की राजधानी भी हुआ करता था। जोधपुर थार के रेगिस्तान के बीच अपने ढेरों शानदार महलों, दुर्गों और मन्दिरों वाला प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है। वर्ष पर्यन्त चमकते सूर्य वाले मौसम के कारण इसे "सूर्य नगरी" भी कहा जाता है। यहां स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग को घेरे हुए हजारों नीले मकानों के कारण इसे "नीली नगरी" के नाम से भी जाना जाता था। यहां के पुराने शहर का अधिकांश भाग इस दुर्ग को घेरे हुए बसा है, जिसकी प्रहरी दीवार में कई द्वार बने हुए हैं, हालांकि पिछले कुछ दशकों में इस दीवार के बाहर भी नगर का वृहत प्रसार हुआ है। जोधपुर की भौगोलिक स्थिति राजस्थान के भौगोलिक केन्द्र के निकट ही है, जिसके कारण ये नगर पर्यटकों के लिये राज्य भर में भ्रमण के लिये उपयुक्त आधार केन्द्र का कार्य करता है। वर्ष २०१४ के विश्व के अति विशेष आवास स्थानों (मोस्ट एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी प्लेसेज़ ऑफ़ द वर्ल्ड) की सूची में प्रथम स्थान पाया था। एक तमिल फ़िल्म, आई, जो कि अब तक की भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी फ़िल्मशोगी, की शूटिंग भी यहां हुई थी। .

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ईस्ट इण्डिया कम्पनी

लन्दन स्थित ईस्ट इण्डिया कम्पनी का मुख्यालय (थॉमस माल्टन द्वारा चित्रित, १८०० ई) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना ३१ दिसम्बर १६०० ईस्वी में हुई थी। इसे यदाकदा जॉन कंपनी के नाम से भी जाना जाता था। इसे ब्रिटेन की महारानी ने भारत के साथ व्यापार करने के लिये २१ सालो तक की छूट दे दी। बाद में कम्पनी ने भारत के लगभग सभी क्षेत्रों पर अपना सैनिक तथा प्रशासनिक अधिपत्य जमा लिया। १८५८ में इसका विलय हो गया। .

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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वास्तुकला

'''अंकोरवाट मंदिर''' विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक संरचना है भवनों के विन्यास, आकल्पन और रचना की, तथा परिवर्तनशील समय, तकनीक और रुचि के अनुसार मानव की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने योग्य सभी प्रकार के स्थानों के तर्कसंगत एवं बुद्धिसंगत निर्माण की कला, विज्ञान तथा तकनीक का संमिश्रण वास्तुकला (आर्किटेक्चर) की परिभाषा में आता है। इसका और भी स्पष्टकीण किया जा सकता है। वास्तुकला ललितकला की वह शाखा रही है और है, जिसका उद्देश्य औद्योगिकी का सहयोग लेते हुए उपयोगिता की दृष्टि से उत्तम भवननिर्माण करना है, जिनके पर्यावरण सुसंस्कृत एवं कलात्मक रुचि के लिए अत्यंत प्रिय, सौंदर्य-भावना के पोषक तथा आनंदकर एवं आनंदवर्धक हों। प्रकृति, बुद्धि एवं रुचि द्वारा निर्धारित और नियमित कतिपय सिद्धांतों और अनुपातों के अनुसार रचना करना इस कला का संबद्ध अंग है। नक्शों और पिंडों का ऐसा विन्यास करना और संरचना को अत्यंत उपयुक्त ढंग से समृद्ध करना, जिससे अधिकतम सुविधाओं के साथ रोचकता, सौंदर्य, महानता, एकता और शक्ति की सृष्टि हो से यही वास्तुकौशल है। प्रारंभिक अवस्थाओं में, अथवा स्वल्पसिद्धि के साथ, वास्तुकला का स्थान मानव के सीमित प्रयोजनों के लिए आवश्यक पेशों, या व्यवसायों में-प्राय: मनुष्य के लिए किसी प्रकार का रक्षास्थान प्रदान करने के लिए होता है। किसी जाति के इतिहास में वास्तुकृतियाँ महत्वपूर्ण तब होती हैं, जब उनमें किसी अंश तक सभ्यता, समृद्धि और विलासिता आ जाती है और उनमें जाति के गर्व, प्रतिष्ठा, महत्वाकांक्षा और आध्यात्मिकता की प्रकृति पूर्णतया अभिव्यक्त होती है। .

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खिमसर का किला

खिमसर का किला राजस्थान के नागौर में स्थित है। यह किला नागौर राष्ट्रीय राजमार्ग नं.

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ग्वालियर का क़िला

ग्वालियर का क़िला ग्वालियर शहर का प्रमुखतम स्मारक है। यह किला 'गोपांचल' नामक पर्वत पर स्थित है। किले के पहले राजा का नाम सूरज सेन था, जिनके नाम का प्राचीन 'सूरज कुण्ड' किले पर स्थित है। इसका निर्माण ८वीं शताब्दी में मान सिंह तोमर ने किया था। विभिन्न कालखण्डों में इस पर विभिन्न शासकों का नियन्त्रण रहा। गुजरी महल का निर्माण रानी मृगनयनी के लिए कराया गया था। वर्तमान समय में यह दुर्ग एक पुरातात्विक संग्रहालय के रूप में है। इस दुर्ग में स्थित एक छोटे से मन्दिर की दीवार पर शून्य (०) उकेरा गया है जो शून्य के लेखन का दूसरा सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है। यह शून्य आज से लगभग १५०० वर्ष पहले उकेरा गया था। .

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आगरा का किला

आगरा का किला एक यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहर स्थल है। यह किला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर में स्थित है। इसके लगभग 2.5 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में ही विश्व प्रसिद्ध स्मारक ताज महल मौजूद है। इस किले को कुछ इतिहासकार चारदीवारी से घिरी प्रासाद महल नगरी कहना बेहतर मानते हैं। यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण किला है। भारत के मुगल सम्राट बाबर, हुमायुं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगज़ेब यहां रहा करते थे, व यहीं से पूरे भारत पर शासन किया करते थे। यहां राज्य का सर्वाधिक खजाना, सम्पत्ति व टकसाल थी। यहाँ विदेशी राजदूत, यात्री व उच्च पदस्थ लोगों का आना जाना लगा रहता था, जिन्होंने भारत के इतिहास को रचा। .

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इन्द्र

इन्द्र (या इंद्र) हिन्दू धर्म में सभी देवताओं के राजा का सबसे उच्च पद था जिसकी एक अलग ही चुनाव-पद्धति थी। इस चुनाव पद्धति के विषय में स्पष्ट वर्णन उपलब्ध नहीं है। वैदिक साहित्य में इन्द्र को सर्वोच्च महत्ता प्राप्त है लेकिन पौराणिक साहित्य में इनकी महत्ता निरन्तर क्षीण होती गयी और त्रिदेवों की श्रेष्ठता स्थापित हो गयी। .

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कल्कि पुराण

कल्कि पुराण हिन्दुओं के विभिन्न धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथों में से एक हैं यह एक उपपुराण है। इस पुराण में भगवान विष्णु के दसवें तथा अन्तिम अवतार की भविष्यवाणी की गयी है और कहा गया है कि विष्णु का अगला अवतार (महा अवतार) "कल्कि अवतार होगा। इसके अनुसार ४,३२० वीं शती में कलियुग का अन्त के समय कल्कि अवतार लेंगें। .

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किला राय पिथौरा

किला राय पिथौरा दिल्ली में स्थित एक दुर्ग है, जिसे चौहान राजाओं ने लालकोट के किले को मुहम्मद गोरी से जीतकर, बढाया, एवं फिर इसका नाम किला राय पिथौरा रखा। .

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किलाबंदी

बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में किलेबन्दी का चित्रात्मक वर्णन दुर्गबन्दी या किलाबंदी (fortification) शत्रु के प्रतिरोध और उससे रक्षा करने की व्यवस्था का नाम होता है। इसके अन्तर्गत वे सभी सैनिक निर्माण और उपकरण आते हैं जो अपने बचाव के लिए उपयोग किए जाते हैं (न कि आक्रमण के लिए)। वर्तमान समय में किलाबन्दी सैन्य इंजीनियरी के अन्तर्गत आती है। यह दो प्रकार की होती है: स्थायी और अस्थायी। स्थायी किलेबंदी के लिए दृढ़ दुर्गों का निर्माण, जिनमें सुरक्षा के साधन उपलब्ध हो, आवश्यक है। अस्थायी मैदानी किलाबंदी की आवश्यकता ऐसे अवसरों पर पड़ती है जब स्थायी किले को छोड़कर सेनाएँ रणक्षेत्र में आमने सामने खड़ी होती हैं। मैदानी किलाबंदी में अक्सर बड़े-बड़े पेड़ों को गिराकर तथा बड़ी बड़ी चट्टानों एवं अन्य साधनों की सहायता से शत्रु के मार्ग में रूकावट डालने का प्रयत्न किया जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह निष्कर्ष निकला कि स्थायी किलाबंदी धन तथा परिश्रम की दृष्टि से ठीक नहीं है; शत्रु की गति में विलंब अन्य साधनों से भी कराया जा सकता है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि इसका महत्व बिल्कुल ही खत्म हो गया। अणुबम के आक्रमण में सेनाओं को मिट्टी के टीलों या कंकड़ के रक्षक स्थानों में आना ही होगा। नदी के किनारे या पहाड़ी दर्रों के निकट इन स्थायी गढ़ों का उपयोग अब भी लाभदायक है। हाँ, यह अवश्य कहा जा सकता है कि आधुनिक तृतीय आयोमात्मक युद्ध में स्थायी दुर्गो की उपयोगिता नष्ट हो गई है। .

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कौशाम्बी जिला

कौशम्बी भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। बौद्ध भूमि के रूप में प्रसिद्ध कौशाम्बी उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। कौशांबी, बुद्ध काल की परम प्रसिद्ध नगरी, जो वत्स देश की राजधानी थी। इसका अभिज्ञान, तहसील मंझनपुर ज़िला इलाहाबाद में प्रयाग से 24 मील पर स्थित कोसम नाम के ग्राम से किया गया है। यह नगरी यमुना नदी पर बसी हुई थी। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। यहां स्थित प्रमुख पर्यटन स्थलों में शीतला मंदिर, दुर्गा देवी मंदिर, प्रभाषगिरी और राम मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इलाहाबाद के दक्षिण-पश्चिम से 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कौशाम्बी को पहले कौशाम के नाम से जाना जाता था। यह बौद्ध व जैनों का पुराना केन्द्र है। पहले यह जगह वत्स महाजनपद के राजा उदयन की राजधानी थी। माना जाता है कि बुद्ध छठें व नौवें वर्ष यहां घूमने के लिए आए थे। जिले का मुख्यालय मंझनपुर में है। .

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कोलकाता

बंगाल की खाड़ी के शीर्ष तट से १८० किलोमीटर दूर हुगली नदी के बायें किनारे पर स्थित कोलकाता (बंगाली: কলকাতা, पूर्व नाम: कलकत्ता) पश्चिम बंगाल की राजधानी है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। यहाँ की जनसंख्या २ करोड २९ लाख है। इस शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है। शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। महलों के इस शहर को 'सिटी ऑफ़ जॉय' के नाम से भी जाना जाता है। अपनी उत्तम अवस्थिति के कारण कोलकाता को 'पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है। यह रेलमार्गों, वायुमार्गों तथा सड़क मार्गों द्वारा देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। यह प्रमुख यातायात का केन्द्र, विस्तृत बाजार वितरण केन्द्र, शिक्षा केन्द्र, औद्योगिक केन्द्र तथा व्यापार का केन्द्र है। अजायबघर, चिड़ियाखाना, बिरला तारमंडल, हावड़ा पुल, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, विज्ञान नगरी आदि मुख्य दर्शनीय स्थान हैं। कोलकाता के निकट हुगली नदी के दोनों किनारों पर भारतवर्ष के प्रायः अधिकांश जूट के कारखाने अवस्थित हैं। इसके अलावा मोटरगाड़ी तैयार करने का कारखाना, सूती-वस्त्र उद्योग, कागज-उद्योग, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग, जूता तैयार करने का कारखाना, होजरी उद्योग एवं चाय विक्रय केन्द्र आदि अवस्थित हैं। पूर्वांचल एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष का प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में कोलकाता का महत्त्व अधिक है। .

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अर्थशास्त्र

---- विश्व के विभिन्न देशों की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर (सन २०१४) अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है। अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है। अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य, कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि। प्रो.

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अग्निपुराण

अग्निपुराण पुराण साहित्य में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है। अनेक विद्वानों ने विषयवस्‍तु के आधार पर इसे 'भारतीय संस्‍कृति का विश्‍वकोश' कहा है। अग्निपुराण में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्‍णु एवं शिव तथा सूर्य की पूजा-उपासना का वर्णन किया गया है। इसमें परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, महाभारत के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, रामायण की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएँ, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मन्त्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का अत्यन्त सुन्दर प्रतिपादन किया गया है। इस पुराण के वक्‍ता भगवान अग्निदेव हैं, अतः यह 'अग्निपुराण' कहलाता है। अत्‍यंत लघु आकार होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश किया गया है। इस दृष्टि से अन्‍य पुराणों की अपेक्षा यह और भी विशिष्‍ट तथा महत्‍वपूर्ण हो जाता है। पद्म पुराण में भगवान् विष्‍णु के पुराणमय स्‍वरूप का वर्णन किया गया है और अठारह पुराण भगवान के 18 अंग कहे गए हैं। उसी पुराणमय वर्णन के अनुसार ‘अग्नि पुराण’ को भगवान विष्‍णु का बायां चरण कहा गया है। .

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ऋग्वेद

ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें १०२८ सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है। ऋक् संहिता में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

क़िला, क़िले, क़िलों

निवर्तमानआने वाली
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